हिरोशिमा और नागासाकी पर कविता | Poem on Hiroshima and Nagasaki Day in Hindi हेलो दोस्तों! आपने बहुत से topics पर कविताएं पढ़ी हैं पर आज हम लाए हैं आपके लिए एक unique और एक ऐसी घटना के ऊपर कविता जिसने पूरी दुनिया को बदल कर रख दिया। वो मंजर जिसे सुनकर ,याद करके लॉगो के आँखों में आँसू आ जाता है। ये घटना है जापान के दो शहरों कि हिरोशिमा और नागासाकी कि।जब इन दोनों शहरों को नष्ट कर दिया गया बम विस्फोट करके। पूरी दुनिया देखती रह गई ये मंजर और ये दोनों शहर झुलसते रहे, और आज भी उस दिन का परिणाम कहीं न् कहीं इन दोनों शहरों के निवासियों पर देखने को मिल जाता है।
हिरोशिमा और नागासाकी पर कविता | Poem on Hiroshima and Nagasaki Day in Hindi
Internet पर भरमार है हिरोशिमा और नागाशाकी के बारे में कई सारे तथ्य पर हम लाए हैं आपके लिए एक ऐसी कविता जो आपको तथ्य के बारे में बताएगी और साथ हि साथ आपको emotional भी करेगी।
ये दो शहर जो कभी खुद को दुनिया के सामने आधुनिकता का पाठ पढ़ाने वाले थे ,वो इन धमाकों से कई साल पीछे चले गए। ये दुनिया के लिए एक अभिशाप् था। आइए आप अब इस कविता से रूबरू हो जाइए जिससे आप इस दर्द को महसूस कर सकें, और साथ हि दुनिया कि कूटनीति को भी समझ पाएं।
कसम खाओ "स्नेह लता"
था शहर जापान का हिरोशिमा
नाज था जापान का हिरोशिमा
प्रगति का वरदान था हिरोशिमा
आंख का काँटा बना हिरोशिमा
छः अगस्त सन पैंतालीस का प्रात था
फूल कलियाँ मलय सुरभित वात था
रोजमर्रा की तरह थी जिंदगी
फिजाँ में बिखरी हुई थी ताजगी
आठ बज पन्द्रह मिनट पर टिबेट ने
लिटिल बाय बम को गिरा हाय कहा
मात्र तैंतालीस सेकंड अंतराल में
वह गगन से धरती पर लगा
चीख उठा गगन धरती हिल गई
धुंआ धूल गुबार से वह भर गई
ढह गई मीनार बस्ती मिट गई
चमन सी दुनिया पलों में लुट गई
अलविदा कहकर न कोई जा सका
आँख से आँसू कोई न गिरा सका
मात्र पल भर में न कुछ भी शेष था
मुस्कराता शहर अब अवशेष था
हो गई वीरान बस्ती लुट गई
थी सजाने में जिसे सदिय गई
क्या यही विज्ञान का वरदान था
क्या यही इंसान पर एहसान था
चित्र थे दीवार पर परछाई के
मिट सके ना वे वहीं जड़ हो गये
चित्र थे यह आदमी के दम्भ के
चित्र थे परमाणु आविष्कार के
थी यह किसकी जीत किसकी हार थी
किस कदर हैवानियत सवार थी
देखकर हर और मंजर मौत का
जिंदगी खुद से यूँ शर्मसार थी
वक्त था बढ़ता गया चलता गया
भर न पाएं जख्म जो बम से लगे
देखकर लूली अपाहिज नस्ल को
शाप जैसा झेलता हिरोशिमा
खो दिया मैंने मुझे क्या मिला हैं
किन चमत्कारों का मुझको सिला है
तुम मुझे देखो जरा सोचो जरा सीखो
कसम खाओ फिर कभी हिरोशिमा न हो
हिरोशिमा
हिरोश़िमा
एक दिन सह्सा
सूरज़ निक़ला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक़ :
धुप ब़रसी
पर अंतरिक्ष से नहीं,
फ़टी मिट्टी से।
छायाए मानव-ज़न की
दिशाहीन
सब ओर पड़ी-वह सूरज़
नही ऊगा था वह पूर्ब मे, वह
ब़रसा सहसा
बीचो-बीच नग़र के:
क़ाल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यो अरे टूटक़र
बिखर गए हों
दशो दिशा मे।
कुछ क्षण का वह उदय़-अस्तक़!
क़ेवल एक़ प्रज्व लित क्षण की
दृष्यए सोक लेने वाली एक दुपहरी।
फ़िर?
छायाए मानव-ज़न की
नहीं मिटी लम्बी हो-हो क़र:
मानव ही सब भाप हो गये।
छायाएं तो अभी लिख़ी है
झूलसे हुए पत्थरो पर
उझरी सडको की गच पर।
मानव का रचा हूया सूरज़
मानव को भाप ब़नाकर सोख़ गया।
पत्थर पर लिख़ी हुईं यह
ज़ली हुईं छाया
मानव की साख़ी हैं।
-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”
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आपको यह कविता पढ़कर जरूर एहसास हुआ होगा कि आप किस दुनिया में जी रहें हैं , जहाँ विश्व् पटल पर कितने अजीबो-गरीब हादसे हुए हैं ,जहाँ विश्व के विभिन्न देश स्वहित् में कुछ भी करने को तैयार थे।
ऐसे हि एक हित् के चक्कर में जापान् को कितना बड़ा भुगतान् करना पड़ा, जिसके चोट का दर्द जापान् को आज भी है। आपको जरूर हिरोशिमा और नागासाकी पर कविता | Poem on Hiroshima and Nagasaki Day in Hindi से कुछ सीखने को मिला होगा।
आपके साथ जुड़कर ऐसी हि घटनाओं को कविताओं और लेख के माध्यम से हम अपनी इस साईट पे लाने कि कोशिश् में हैं। आशा है आप ऐसे हि हमसे जुड़े रहेंगे।
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