Short Poem In Hindi Kavita

शहर पर कविता | Short Poem on City in Hindi

शहर पर कविता | Short Poem on City in Hindi लेख में आपका स्वागत हैं. आज के आर्टिकल में हम शहर और शहर के जीवन के बारे में बाल कविताएँ दी गई हैं. दुनियां में अलग अलग तरह के शहर है उनके लोगों का जीवन उनकी कल्चर अलग अलग हैं.


गाँव और शहर के लोगों में किस तरह के अंतर पाए जाते हैं. शहर के आदमी का जीवन किस तरह गुजरता हैं. भौतिकता की दौड़ में संघर्ष करते आम आदमी और ऐशोआराम का जीवन व्यतीत करते अमीर इंसान के जीवन के बारे में भी इन कविताओं में जानेगे,


उम्मीद करते है इन कविताओं में आपको कुछ सीखने और जानने को मिलेगा. चलिए इस लेख को पढ़ना आरम्भ करते हैं.

शहर पर कविता | Short Poem on City in Hindi

शहर पर कविता | Short Poem on City in Hindi

बहुत सुंदर मेरे शहर के बारे में इन छोटी छोटी कविताओं में सिटिज की ख़ूबसूरती और उसकी कमियों को भी जानेगे.

 एक शहर

एक शहर मैंने देखा है
रहता है जो जगरमगर
कभी नहीं बिजली जाती है
ऐसा है वह बना शहर

ऐसे लोग वहां रहते है
लड़ना आता नहीं जिन्हें
लड़ना भिड़ना ठीक नहीं है
यह सब भाता नहीं जिन्हें

पुलिस नहीं है, नहीं मुकदमे
न्यायालय का नाम नहीं
दिनभर सब मेहनत करते हैं
पलभर भी आराम नहीं

खेती करते है किसान सब
लड़के सारे पढ़ते है
अफसर नेता या व्यापारी
मेहनत करके बढ़ते है

दिन में काम रात में मिलकर
गाते और बजाते है
नाटक करते किस्से कहते
ऐसे मन बहलाते है

इसी शहर में चलो चलें हम
खुशियाँ है दिन रात यहाँ
मन को बुरी लगे ऐसी है
नहीं एक भी बात जहाँ

Short Poem on City in Hindi

रोता-सा ये शहर हैं देख़ो,
रीतें रीतें गांव है।
न वों पनघट क़ी मस्ती,
न ब़रगद की छाव हैं।

फ़टे हुए कपड़ो से रिश्तें,
हर मन मे दिवार हैं।
शब्द सभीं तुतलातें लगते,
अभिव्यक्ति बीमार हैं।

कधे सारें झुकें झुकें है,
लगड़ाता हर पाव हैं।
चुप्पीं सारी चुबन भरी है,
मौंन भरा कोंलाहल हैं।
टींस सिसकती मन के भींतर,
ज़ीवन बना हलाहल है।

सुख़ गया मन का हर कौना,
धुप भरी हर छाव हैं।
न गौंरैया, न ताल-तलैंया,
पोख़र, झीले सूख़ी हैं।
बना हुआ है बाप रुपैंया,
मन की बाते रूख़ हैं।

न मोरों का नृत्यं सुहाना,
न कौवो की काव हैं।
-रत्नेश मिश्र

शहर

बस आदमी से उख़डा हुआ आदमी मिलें
हमसें कभीं तो हंसता हुआ आदमी मिलें

इस आदमी की भीड मे तू भी तलाश क़र,
शायद इसीं मे भटका हुआ आदमी मिलें

सब तेज़गाम जा रहे है ज़ाने किस तरफ,
कोई कही तो ठहरा हुआ आदमी मिलें

रौंनक भरा ये रात-दिन ज़गता हुआं शहर
इसमे कहा , सुलग़ता हुआ आदमी मिलें
इक ज़ल्दबाज कार लो रिक्शें पे जा चढ़ी
इस पर तो कोईं ठिठक़ा हुआ आदमी मिलें

बाहर से चहक़ी दिख़ती है ये मोटरे मगर
इनमे, इन्ही पे ऐठा हुआ आदमी मिलें.
--मनु ’बेतखल्लुस’
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उम्मीद करते है फ्रेड्स शहर पर कविता | Short Poem on City in Hindi का यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा.

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