Short Poem In Hindi Kavita

सर्दी पर कविता | Poem on Winter Season in Hindi

सर्दी पर कविता | Poem on Winter Season in Hindi दोस्तों आइए आपको सर्दी के दिनों कि शैर कराते हैं, जहां आप अपनी पुरानी यादों में खो जाएंगे।

आपको अगर सर्दी के दिनों कि पूरानी यादों को कैद करना है और आप कुछ अच्छा ढूंढ़ रहे हैं तो यह साइट् आपके लिए सबसे अच्छा है।

सर्दी पर कविता | Poem on Winter Season in Hindi

सर्दी पर कविता | Poem on Winter Season in Hindi

सर्दी के दिन जब हम बिस्तर में होते हुए अच्छे अच्छे व्यंजन चखने कि चाह रखते हैं। आईए उन्हीं दिनों कि यादों को ताज़ा करते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि ये कविता- यह जाड़े कि धूप, आपके दिल को छू जाएगी और आपको रोमन्च् से भर् देगी यही वो दिन हैं जब हमें नए नए व्यंजन नित् प्रतिदिन खाने को मिलते हैं।


जब भी हम एक एहसास को पिरोने कि कोशिश में होते है तो हमें मालूम नहीं होता है कि हम कहाँ जाएं और कहाँ से सही शब्दों को लेकर खुद को रोमन्चित् करें , ऐसे हि शब्दों से भरे एक तालाब में हम आपको लेकर आए हैं जहां आपको विभिन्न प्रकार के टॉपिक पर कविताएं और रचनाएं मिलेंगी।


उनमे से हि एक भाव सर्दी के दिनों में निकले हुए धूप कि होती है , जब हमारा मन मीन् को  जल में जाने के भांति, होता है , तब हमें उस सर्द भरी दुपहरी में धूप कि आस होती है। इस कविता के माध्यम से हम् आपको सर्दी के दिनों कि याद दिलाने कि कोशिश में हैं, और मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारा साइट आपको काफी रोमन्चित् करेगा।



 यह जाड़े की धूप


नानी की
लोरी सी लगती
यह जाड़े की धूप

दुआ मधुर
दादी की लगती
यह जाड़े की धूप

गिफ्ट बड़ा
दादू नानू का
यह जाड़े की धूप

जादू की
गुल्लक सी लगती
यह जाड़े की धूप

ऋतुओं में
ठुल्लक सी लगती
यह जाड़े की धूप

सपनों की
रानी सी लगती
यह जाड़े की धूप

बिन माँ की
नानी सी लगती
यह जाड़े की धूप

मक्के की
रोटी सी लगती
यह जाड़े की धूप

मक्खन, घी
मिश्री सी लगती
यह जाड़े की धूप

निर्धन के
चूल्हे सी जगती
यह जाड़े की धूप

पापा की
पप्पी सी लगती
यह जाड़े की धूप

भली नींद 
झप्पी सी लगती
यह जाड़े की धूप

हमको लगी रजाई धूप

जाड़े में जब आई धूप
हमको लगी रजाई धूप

सूरज दादा ने ऊपर से
गरम गरम पहुंचाई धूप

उजली उजली चाँदी जैसी
सबके मन को भाई धूप

चार दिनों के बाद आज फिर
निकली है अलसाई धूप

बच्चों जैसी अंदर बाहर
घर घर में इठलाई धूप

कभी निकलती फीकी फीकी
मुरझाई मुरझाई धूप

थर थर थर थर काँप रही खुद
सकुचाई सकुचाई धूप

बर्फीली ठंडी में लगती
भली भली सुखदाई धूप

जाड़ा दूर भगा !


अरे बिसम्बर
लगा दिसंबर
सिलगा ले सिगड़ी
सर्दी आई
बिना रजाई
हालत है बिगड़ी!

दांत बज रहे
राम भज रहे
पड़ने लगी ठिरन
सर्दी से डर
किरने लेकर
सूरज हुआ हिरण

धूप सुनहली
अभी न निकली 
छाया है कुहरा
सिकुड़ सिकुड़कर
ठिठुर ठिठुरकर
यों मत हो दुहरा

दिखा न सुस्ती
ला कुछ चुस्ती
फुर्ती नई जगा
गरम चाय का
उड़ा जायका
जाड़ा दूर भगा

जाड़े की धूप


आती, फुर्र हो जाती
मम्मी के गुस्से सी
जाड़े की धूप

राहत सा देती है
पापा की हंसी सी
जाड़े की धूप

बड़ी भली लगती है
टीचर के प्यार सी
जाड़े की धूप

गरमाहट देती है
दोस्त के हाथ सी
जाड़े की धूप

 मत न सताओ अब इतना


पास नहीं है उसके कंबल
और न है कोई ऊनी शाल
उकडू बैठा आंच सेकता
सड़क किनारे दीनदयाल

शीत लहर को संग लाई हो
घना कोहरा झोली में
मंगू ठिठुरा बैठा है जी
तुमसे डरकर खोली में

दांत किट्कता थर थर काँपे
नंगे पाँव खड़ किसना
ओ सर्दी कुछ रहम करो तुम
नहीं सताओ अब इतना

सर्दी आई


सर्दी आई छाया कोहरा
छिपा लिया सूरज ने चेहरा
दादी बैठी दांत बजाएं
हर घंटे बस चाय मंगाएं
दादाजी के दांत नहीं
पर देखों मूंगफली मंगवाएं

गोलू जी तो मस्त घूमते
पूरे घर में उधम मचाते
ठंड बढ़ी तो बढ़ गई छुट्टी
बाथरूम से कर ली कुट्टी
चार दिनों से मुंह न धोया
बात करें तो गंध आए

फिर मम्मी को गुस्सा आया
गोलू जी को दे धमकाया
गोलू बोले ठंड बड़ी है
मम्मी बोली देख छड़ी है
गोलू जी गुस्से में आए
स्वेटर पहनके खूब नहाएं

सर्दी "संध्या गोयल सुगम्या"


खूब सारी छुट्टियाँ लेकर आती
सर्दी मुझको खूब है भाती
स्वेटर हमको खूब रिझाते
रजाई कम्बल पास बुलाते
धूप में बैठ मूंगफली खाते
स्कूल को कुछ दिन भूल ही जाते
अम्मा चटपट स्वेटर बुनती
मटर की फलियाँ झटपट छीलती
गोद में बैठकर बाबा की
बात बनाते दुनिया भर की
क्यों आती साल में एक बार
आओ न सर्दी बारम्बार

आई ओढ़ दुशाला

सर्दी आई ओढ़ दुशाला
सूरज ने भी मफलर डाला

धूप जरा सकुचाई लगती
चढ़े देर से जल्दीढलती
दिन लगते हैं सिकुड़े सिकुड़े
रातों की लंबाई खलती
इतराता है कंबल काला
सर्दी आई ओढ़ दुशाला

दांतों की किट किट भारी है
पानी से दुनिया हारी है
डर लगता है छूने में भी
रोज नहाना लाचारी है
यह कैसा है गडबडझाला
सर्दी आई ओढ़ दुशाला

लगती हवा तीर सी तीखी
चुभना बता कहाँ तू सीखी
जब तू हाड़ गलाती आई
दादा चीखे दादी चीखी
काम आज का कल पे टाला
सर्दी आई ओढ़ दुशाला

Winter Season Poem in Hindi – सर्दी लगी रंग जमाने

सर्दी लगी रंग ज़माने
दांत लगें किटकिटाने
नयी-नयी स्वेटरो को
लोग गये बाज़ार से लाने।

बच्चें लगे कंपकपाने
ठडी से ख़ुद को बचानें
ढूढकर लकडी लाये
बैठें सब आग जलानें।

दिन लगा अब ज़ल्दी जाने,
रात लगीं अब पैर फैलानें
सुबह-शाम को क़ोहरा छाये
हाथ-पैंर सब लगें ठडाने।

सांसे लगी धुआ उडाने
धूप लगी अब सबकों भाने
गर्मं-गर्मं चाय को पीक़र
सभी लगें स्वय को गरमाने।

ठंड पर कविता

किट किट दांत बज़ाने वाली,
आयी सर्दीं आई।

भाग गए सब़ पतले चादर,
निक़ली लाल रज़ाई।

दादा, दादी, नाना, नानीं,
सब सर्दीं से डरते।

धूप सेकते, आग तपतें,
फ़िर भी रोज़ ठिठुरते।

कोट पहनक़र मोटें वाला,
पापा दफ्तर ज़ाते।

पहनें टोपा, बाधे मफ्लर,
सर्दीं से घब़राते।

मम्मी जी की हालत पतलीं,
उल्टी चक्कीं चलती।

हाथ पैंर सब ठन्डें ठन्डें,
मुह से भाप निक़लती।

लेक़िन हमसब छोटें बच्चें,
कभीं नही घबराते।

मस्तीं करते है सर्दीं मे,
दिन भर मौज़ मनाते।
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सर्दी के दिनो को याद करना हम सबके लिए एक अनोखा एहसास होता है। जब हम पूरे परिवार के साथ बैठकर अलाव् कि आन्च् लेते है, और साथ हि भुले-बिसरे यादों को ताजा करते हैं,


जैसा कि आपने देखा सर्दी पर कविता Poem on Winter Season in Hindi कविता में भी बच्चे अपने दादी नानी कि प्यार भरी बातें याद करते हैं, किसी कि गिफ्ट कि चाह तो किसी को उनके दुलार कि याद।


कितना मन् भावक लगता है ये सब। मुझे आशा है कि आप सबको यह कविता काफी भाई होगी। धन्यवाद।।

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