Short Poem In Hindi Kavita

गाँव पर कविता | Poem On Village In Hindi


 गाँव सुधार

पंचों में यह हुई सलाह,
गाँव सुधारें इस सप्ताह

सोमवार को ले गोबर,
लीपे सबने अपने घर
खेत निराए मंगलवार
कुआं साफ़ किया बुधवार,
सब जुट पड़े ब्रहस्पतिवार
पक्की सड़क हुई तैयार
शुक्रवार को हिल मिलकर
साफ़ किया पंचायतघर
टूटा पुल जोड़ा शनिवार
जिससे सब हो जाएं पार
पंचायत बैठी रविवार
सबको भाया गाँव सुधार

गाँव दिखा लाना पापा


अबकी बार किसी छुट्टी में
गाँव अगर जाना पापा
कैसा होता गाँव! मुझे भी
गाँव दिखा लाना पापा
कैसे भला किसान गाँव में
अपनी फसलें बोता है
कैसे गन्ना गुड़ बन जाता 
कोल्हू कैसा होता है?
खेत और खलिहान दिखाना
बाग़ कुआँ तालाब नहर
कैसे होते हैं गाँवों के
मिट्टी वाले कच्चे घर
अक्सर आप बताते रहते
गाँवों की कितनी बातें
मन करता है देखू सचमुच
गाँवों के दिन औ रातें

प्यारे गाँव


आँगन में पीपल की छाँव
हमको प्यारे लगते गाँव
अमवा पर कौआ की काँव
हमको प्यारे लगते गाँव

कोयल की मीठी बोली
पक्के रंगों की होली
गाँव की कच्ची राहों पर
भीगे बच्चों की टोली

और सने मिट्टी में
हमको प्यारे लगते गाँव
हरे भरे लहराते खेत
पनघट पर सखियों का हेत
उड़ती अच्छी लगती है
सोन सी मुट्ठी में रेत

पानी में कागज की नाव
 हमको प्यारे लगते गाँव
चोरी से अंबिया लाना
छत पर छुप छुप कर खाना
नन्ही मुनिया जब मांगे
उसे अंगूठा दिखलाना

माली की मुछों पर ताव
हमको प्यारे लगते गाँव
बच्चों की लम्बी सी रेल
गिल्ली डंडों का वो मेल
खेतों में पकड़ा पकड़ी
आँख मिचौली का वह खेल
पहलवान के दीखते दांव
हमको प्यारे लगते गाँव

कैसा होता गाँव "आशा पाण्डेय"


मम्मी जी तुम मुझे बताओं कैसा होता गाँव?
कैसा पनघट कैसा पोखर
कैसी तालतलैया
कैसा होता है चरवाहा
कैसी होती गइया
कैसे बहे गाँव में नदियाँ
पुरवाई क्या होती?
पेड़ों की ऊंची डाल पर
चिड़ियाँ कैसे सोती
मम्मी जी कैसी होती है देखूं पीपल की छाँव
गेंहूँ दाल चना चावल की
खेती कैसे होती
ये किसान की धरती मइया
सोना कैसे देती?
चलकर मुझको एक बार तुम
ऐसा गाँव दिखाओ
चलो शहर से दूर चलो अब
मुझको गाँव घुमाओ
नदी किनारे जा देखूंगा कैसी होती नाव?

अपना गाँव "महेशचंद्र त्रिपाठी"

रचा बसा यादों में गाँव
नीम आम महुआ की छाँव
दादुर मोर पपीहे के स्वर
कोयल कूक काग की काँव

पहलवान दंगल के दाँव
लग बिग जाना ठाँव कुठाँव
यदा कदा झगड़ा झंझट पर
सदा सदा फिर साँव पटांव

अगल बगल के गाँव गेराँव
राम रहीम भगत के नाँव
याद हमेशा आते रह रह
निज भौजी के भारी पाँव

हमारा गाँव "पूनम श्रीवास्तव"

जहाँ खुले आकाश के नीचे
हम खेले दौड़े नंगे पाँव
 अमराई में कोयल कूके
वही हमारा गाँव
बड़ी भोर ही चूल्हा सुलगे
सोंधी गरम जो रोटी महके
भूख भी आए नंगे पाँव
वही हमारा गाँव
हुक्का पानी बातों के संग
कक्का दद्दा बैठें मिल के
सहलाएँ एक दूजैं के घाव
वही हमारा गाँव
धरती उगले सोना चाँदी
महकें खेतों की माटी 
हर घर प्रेम की दिखती छाँव
वही हमारा गाँव
मन आजाद परिंदा सा
उड़ उड़ ढूँढे अपनी ठाँव
वही हमारा गाँव

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