Short Poem In Hindi Kavita

खेल पर कविता | Poem on Sports in Hindi

खेल पर कविता | Poem on Sports in Hindi खेल जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है हमें सदैव खेल से जुड़े रहना चाहिए। खेल हि एक ऐसा माध्यम है जो इंसान को एक तंदरुस्त और स्वस्थ इंसान बनने में मदद करता है साथ हि खेल के द्वारा हमारे मस्तिष्क का विकास भी होता है। 

हमारे भारत में विभिन्न प्रकार के खेल खेले जाते हैं जैसे क्रिकेट , फुटबाल, हॉकी इत्यादि। ये सभी खेल भारत के युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं ,इसके अलावा हम बचपन् में खो खो कबड्डी इत्यादि खेलों को खेलकर् बड़े हुए हैं। आइये खेल के माध्यम से आपको कुछ कविताएं सुनाते हैं। 

खेल पर कविता | Poem on Sports in Hindi


खेल पर कविता Poem on Sports in Hindi

इस पेज पर आपको खेल पर 4 कविताएं मिलेंगी जो खेल के विभिन्न विभिन्न आयामों को दर्शाती हैं। आज ये प्रासंगिक नहीं होगा कि भारतवर्ष् में सभी खेलों को एक जैसा ही दर्जा नहीं दिया जाता, फिर भी भारत खेलों को प्रथमिकता देने वाला देश है। 

खेल तो एक ऐसा माध्यम है जो विद्यार्थीओं को सहज बनाता है। खेल को कभी व्यापार या अन्य चीज़ों से मत तौलिये ,खेल एक भावना है जिसे महसूस किया जा सकता है। भारत तो युवाओं का देश है यहाँ पर खेल तो और भी ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है । 

आओ खेलें खेल नया

हाथ में लकड़ी, आँख पे चश्मा गोल लगा
आधी धोती पैरों में है, आधी से है बदन ढँका
चरखा अहिंसा, सत्याग्रह से, लेकर आया आजादी

राष्ट्रपिता वह कहलाता
क्या नाम तुम्हें उसका आता?

श्वेत कबूतर के पंखों सी पहनी जिसने है अचकन
बच्चों के संग खेलकर आ जाता जिसमें बचपन
लाल गुलाब सा कोमल दिल हैं, प्यार की उसमें है धडकन
शांति, अहिंसा, पंचशील से बना हुआ जिसका जीवन

बच्चों का चाचा कहलाता
क्या नाम तुम्हें उसका आता?

कद छोटा था मगर हिमालय जैसा अडिग इरादा
देश की जनता का प्यारा था, लगता सीधा सादा
अठारह महीने गीता के, अठारह अध्याय बने
ताशकंद से दिल्ली तक, जब रोते रोते लोग चले

जो सदा बहादुर कहलाता
क्या तुम्हें उसका आता?

हँस हँस मारें छक्का "राकेश चक्र"


खेल खेल में चुन्नू मुन्नी
करते है तकरार
चुन्नू भैया रूठ गये तो
दिल में पड़ी दरार

बने मूर्ति ऐसे वह तो
फूल के हो गये कुप्पा
करी गुदगुदी मुन्नी ने तब
हँस हँस मारें छक्का

इधर उधर को दोनों दौड़े
हँस हँस देखे कक्का
कोई किसी के हाथ न आए
हो रही धक्कम धक्का

समझ न आता "मंजु महिमा"


रोज होंठ अपने रंगती
दादी खाकर पान
पर मैं तो झट कहती
बच्चों को करता नुक्सान

दादा शतरंज खेल सदा ही
चलते तरह तरह की चाल
पर मैं चलती तो कहते
चलना चाल बुरी है बात

चाचा क्रिकेट खेल सदा ही
जीतते ट्रॉफी सम्मान
पर मैं खेलूँ तो कहते
नहीं तुम्हारे बस की बात

पापा बैठ दोस्तों के संग
हँस हँस पीते और पिलाते
पर मैं पिउं तो झट कहते
यह है बड़ी गंदी बात

मम्मी कहती कर नकल बड़ों की
देख बड़ों के काम
पर जब करती चपत लगातीं
आफत आ जाती राम

नहीं समझ में मेरे आता
जरा बताओ तो तुम भैया
ये बड़े करके मना हमें
क्यों करते है ऐसे काम??

कहाँ खेलें क्रिकेट "शील कौशिक"

लो जी हम तो हैं तैयार
आए नहीं बाकी के चार

कब से खड़े सजाकर हैट
हाथों में पकड़े हैं बैट

सोनू मोनू सोच रहे हैं
कहाँ पर मिलें खुले मैदान

कंक्रीट के जंगल हैं अब
कारण से हम नहीं अनजान

छक्के जब जब दूर गए
घरों के शीशे टूट गए

कान पकड़ कर आंटी लाए
मम्मी को ये बात न भाए

हमको बात समझ में आई
स्टेडियम में खेलो भाई

खेल में भी करियर बनाने लगे है युवा

खेल मे भी केरियर बनानें लगे हैं युवा,
अपने हूनर का दम दिख़ाने लगे हैं युवा,
जो उनकें ख़ेलने के खिलाफ़ थे
अब उनकों भी अपने ख़ेल से चौकानें लगे हैं युवा।

मौका नही मिलता बेटियो को
इस बात का ग़म हैं,
जिन बेटियों को मौका मिला
उन्होने दिख़ाया अपना दम हैं.
कुछ भीं कर सकती हैं बेटिया
उन्होने ये कर के दिख़ाया हैं,
कई गोल्ड मेडल लाक़र
पूरी दुनियां को बताया हैं.

अब हर कोई जागरूक़ होने लगा हैं,
अब कोईं ख़ेल छोटा न रहा
अब़ तो ये बडा होनें लगा है.
अब किसी बच्चें की पढाई न हो अधूरीं,
पढाई के साथ-साथ ख़ेल भी है ज़रूरी।
– दुनियाहैगोल

खेलकूद की आजादी

हमे चाहिये, अजी चाहिये-
खेलक़ूद की आज़ादी !

बोर करों मत पापाजी अब़
हमकों टोको ना,
क्रिकेट ख़ेलेगे दिन भर अब़
हमक़ो रोको ना।
ख़ेल नही तो जीवन भी हैं
फ़ीका-कितना फ़ीका,
बिना ख़ेल के अजी ज़ायका
बिगडा हैं अब ज़ी का !
बहुत सहा हैं, नही सहेगे
अब हम कोईं बंधन,
खेल नही तो पढने मे भी
कहां लगेंगा मन !

ख़ेलकूद से ही आती हैं
हिम्मत कुछ करनें की,
मुझ़े ब़ताया करती थी यह
हंस-हंस प्यारी दादी।
इसीलिये तो हमे चाहिये,
ख़ेलकूद की आजादी!

खेल नही बेक़ार, इसें अब
दुनियां मान रही हैं,
जोश नहीं यह झ़ूठा-मूठा
दुनियां ज़ान रही है।
फ़िर पैरो मे ये जंजीरे
क्यो कोई पहनाये,
राह हमारीं बिना बात ही
रोकें या भटकाये।
ज्यादा रोकों ना, टोकों ना
हमकों अब पापाजी,
बच्चो को देनी ही होगीं
ख़ेलकूद की आजादी।

वर्ना अब सत्याग्रह होगा
होगी हडताले भी,
पैंदा होगा हममे से ही
कोई नन्हा गांधी!
नारा यहीं लगायेगा जो
आजादी! आजादी!
हमे चाहिये, अजीं चाहिये,
ख़ेलकूद की आजादी !
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भारत ने खेल में बहुत् सारे रत्न दिए हैं चाहे वो क्रिकेट के भगवान् कहे जाने वाले सचिन तेन्दुलकर् हों या हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद या इंडोर गेम्स में शतरंज के जादूगर विश्वनाथन् आंनद सभी ने विश्व में भारत का नाम रोशन किया है। वैसे भी भारत खिलाड़ियों का देश है यहाँ बहुत सारे सितारे खेल जगत में दुनिया मैं भारत का नाम रोशन कर रहे हैं। 

मुझे पूर्ण आशा है कि आप सबको ये प्यारी सी कविताएं बहुत पसन्द् आई होंगी , खासकर बच्चों को ,उन्हें ऐसी कविताएं जरूर पढ़नी चाहिए ताकि वे भी खेल कूद कर तंदरुस्त और स्वस्थ बने रहें। खेल से या अन्य सभी बिन्दुओ पर हम ऐसी कविताएं आप तक लेके आते रहेंगे.

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