अंतरिक्ष की सैर "त्रिलोक सिंह ठकुरेला"
नभ के तारे कई देखकर
एक दिन बब्लू बोला
अन्तरिक्ष की सैर करें माँ
ले आ उड़न खटोला
कितने प्यारे लगते है
ये आसमान के तारे
कोतूहल पैदा करते है
मन में रोज हमारे
झिलमिल झिलमिल करते रहते
हर दिन हमे इशारे
रोज भेज देते हैं हम तक
किरणों के हरकारे
कोई ग्रह तो होगा ऐसा
जिस पर होगी बस्ती
माँ, बच्चों के साथ वहां
मैं खूब करूंगा मस्ती
वहां नए बच्चों से मिलकर
कितना सुख पाउँगा
नए खेल सीखूंगा मैं
कुछ उनको सिखलाऊंगा
अंतरिक्ष "भावना शर्मा"
अंतरिक्ष जादू की नगरी
कौन है इसका जादूगर
अनगिनत है तारें इसके
गिनों तो सकरा जाए सर
लटके है ग्रह इसके सारे
बिना सहारे धागों के
बादलों के भी कई आकार
लगते हैं गुब्बारों से
हैरां हूँ ये देख के मैं
कैसे रची ये नगरी
न तो कोई पगडंडी है
न ही कोई डगरी
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