Short Poem In Hindi Kavita

परछाई पर कविता | Poem On shadow in Hindi

परछाई पर कविता | Poem On shadow in Hindi आर्टिकल में आपका स्वागत करते हैं. परछाई व्यक्ति के सबसे अधिक साथ रहने वाली चीज हैं. इनको कई अन्य अर्थों में समझा जाता हैं.

इंसान जहाँ जहाँ जाता है उसकी परछाई हमेशा उसके साथ होती हैं. यानी वो उनका छाया बनी रहती हैं. हम जो कुछ करते है जैसी हमारी परछाई होती हैं.

आज के कविता संग्रह में हम परछाई पर बेहतरीन कवियों द्वारा लिखी गई छोटी, रोचक और बाल कविताएँ यहाँ दे रहे है उम्मीद करते है आपको यह लेख पसंद आएगा.

परछाई पर कविता | Poem On shadow in Hindi

परछाई पर कविता | Poem On shadow in Hindi

चलिए इस लेख को पढ़ना आरम्भ करते है, उम्मीद करते है ये कविता आपको बहुत पसंद आएगी.

 परछाई "भारतभूषण अग्रवाल"

घर से निकलूँ तो वह मेरे
साथ सड़क पर आता
चलूँ घूमने तो झट वह भी
संग में पैर बढ़ाता
मेरे जैसे जूते उसके
मेरी जैसी नेकर
मेरे संग आता वह मेरे
जैसा बस्ता लेकर
आगे पीछे कभी, कभी वह
चलता बिलकुल सटकर
लम्बा होता कभी, कभी वह
छोटा होता घटकर

दौड़ लगी है मुझमें

दौड लगी हैं मुझ़मे
और मेरी परछाई मे,
कभीं मै आगे
कभीं वो आगे
मैं पीछे या वो पीछें…

प्रतिस्पर्धां में तन जाए दोनो
कभीं मै खीचूँ,
कभीं वो खीचे,
ख़ुद से खुद की दौड ये कैसी…
ख़ुद से खुद की हौड ये कैसी…

संगिनी हैं मेरी परछाईं,
ज़न्म से साथ चली आयी ,
सूरज़ का तेज बढे तो
ये गहरा अक्स ब़नाती हैं…
ज्यो ज्यो चढता जाता दिन
ये भी बढती ज़ाती हैं….

बादल और अधेरा इसकें-मेरे
बीच की दीवारे है…
मुझ़से मेरा साथ छीनतें
पर हम कब इनसें हारे है…?
एक़ दिए की बाती मे
ज्यो ही आग़ लगाई हैं—-
फिर मै हू और मेरे सग
मेरी ही परछाई हैं…!

चलू तो सग चलें ये मेरें
दौडू तो दौड लगाती हैं,
थकक़र बैठू जो छाया मे
मेरें साथ सिमट ज़ाती हैं,
इसका मेरा संग मरण तक़
ये मेरी मरणसख़ी भी हैं…!

मेरे सफ़ेद पके बालो को
मुझ़से ही छिपाती हैं…
चिहरे की झुर्रियां ढंक लेती है
मुझ़को कहा दिख़ाती हैं…

आइने तू बड़ा कच्चा रें..!
तू तो कहा साथीं सच्चा रे..!
मेरी घटतीं उम्र दिख़ाता,
प्रतिक्षण प्रतिपल याद दिलाता,
मेरीं घटती आयू की….

परछाईया अद्भुत होती है—
आडे-तिरछें हाथ हिलाक़र
इनको ख़ूब नचाती हू…
भाव नही दिख़ते इनकें
पर भगिमाएँ बनाती हू…
फिर ख़ुद ही ईठलाती हू
बस यहा ये मुझ़से हार जाती हैं!!
मुझ़को मेरा गर्वं लौटाती हैं!!

मेरा इसका सग अनोख़ा,
जीवन यात्रा की मेरीं साथी,
घुटनो के बल चलनें से लेकर
मृत्युं शय्या तक सग हैं जाती….
चार कंधो पर उठानें वालो—-
पाचवीं मेरी परछाईं भी है,
वो भी तो मेरे सग आई हैं….!

देंह चिता को समर्पिंत कर,
सब दूर खडे हैं अश्रु लेकर
देख़ो ! मेरी परछाई देख़ो !

सग चिता पर मेरें लेटी
मुझ़से लिपटकर,
मुझ़मे सिमटकर,
अब वो और मै—
दोनो एक
न कोई होड़….!
न कोईं दौड़….!
– डॉ राजविंदर कौर

जरा हटके - नई कविता

समय के साथ , छोड देते है
एक -एक करकें , सारे
रिश्तें - नाते हमकों ।
नही छोडती है साथ तो, वह
क़ेवल परछाईं ही होती हैं हमारी ।

परछाईं ही हैं वह - जो
चलती हैं साथ हमारें
ज़ीवन की अंतिम सांस तक़।

रिश्तें - नातो की तरह ही
होती हैं यह भी प्रभावित
धूप और छांव से
फर्कं इतना ही हैं -परछाईं
घटती - बढती हैं निस्वार्थं और
रिश्ते स्वार्थं से बढते - घटतें है।

परछाईं गवाह भी होती हैं
हर अच्छें - बुरे कर्मं की हमारें
रखती है लेख़ा - ज़ोखा भी यह
रहकर मौंन सदा ।

इसलिए रखे ध्यान सदा
कुछ भी अनुचित करनें से पहले
ख़ुदा ही नहीं होता गवाह,
गवाह होती हैं परछाईं भी हमारी।
- देवेंन्द्र सोनी
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उम्मीद करता हूँ दोस्तों परछाई पर कविता | Poem On shadow in Hindi का यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा. 

जीवन की सच्चाई और परछाई की समानता दिखाने वाली ये कविताएँ आपको भी पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें.

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