परछाई "भारतभूषण अग्रवाल"
घर से निकलूँ तो वह मेरे
साथ सड़क पर आता
चलूँ घूमने तो झट वह भी
संग में पैर बढ़ाता
मेरे जैसे जूते उसके
मेरी जैसी नेकर
मेरे संग आता वह मेरे
जैसा बस्ता लेकर
आगे पीछे कभी, कभी वह
चलता बिलकुल सटकर
लम्बा होता कभी, कभी वह
छोटा होता घटकर
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