सागर की लहर
हर-हर-हर-हर
हहर-हहर
ऊंची उठती
लहर-लहर
ऐसी लगती दूरी पर
जैसे मोती की झालर
झालर आती जाती पास
मन में बंधती जाती आस
मोती मैं चुन लाऊंगी
घर पर हार बनाउंगी
लहर किनारे जब आती
फेन फेन बस रह जाती
हर-हर-हर-हर
हहर- हहर
ऊंची उठती लहर- लहर
बोल समंदर
बोल समंदर सच्ची सच्ची, तेरे अंदर क्या?
जैसा पानी बाहर, वैसा ही है अंदर क्या?
बाबा जो कहते क्या सच है
तुझमें होते मोती
मोती वाली खेती तुझमें
बोलो कैसे होती
मुझकों भी कुछ मोती देगा, बोल समंदर क्या?
जो मोती देगा, गुड़िया का
हार बनाउँगी मैं
डाल गले में उसके, उसका
ब्याह रचाऊँगी मैं
दे जवाब ऐसे चुप क्यों हैं, ऐसा भी डर क्या?
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