उड़ते उड़ते
फूलों जैसे इन्द्रधनुष जी
यदि धरती पर खिलते
चुपके से जा पास उन्हें हम
हाथों से छू लेते
और तितलियाँ पर फैलाए
पास जो उनके आतीं
सतरंगी आभा से वे सब
बेसुध सी हो जाती
इतनी मोहक शोभा लेकिन
गंध नहीं जब मिलती
उड़ लेतीं चुपचाप नहीं कुछ
जरा किसी से कहतीं
उड़ते उड़ते एक बात बस
यही सोचती रहतीं
अच्छी बनीं आज वे उल्लू
मन ही मन में हंसती
रंग बिरंगे फूलों के फिर
पास दूर उड़ जातीं
और सुगन्धों की मनमोहक
दुनियां में खो जाती
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