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इन्द्रधनुष पर कविता | Poem on Rainbow in Hindi

इन्द्रधनुष पर कविता | Poem on Rainbow in Hindi आर्टिकल में आपका स्वागत हैं. आज के इस लेख में हम इन्द्रधनुष पर बेहतरीन हिंदी कविताएँ लेकर आए है उम्मीद करते है ये आपको पसंद भी आएगी.


बारिश के दिनों में आसमान में सात रंगों का रेनबो सभी के मन को मोह लेने वाली रंग बिरंगी छवि लेकर आता हैं, यह बच्चों के मन को भा जाता हैं. इंद्र धनुष पर अलग अलग रचनाकारों की लिखी कविताएँ आपके साथ यहाँ साझा कर रहे हैं.

इन्द्रधनुष पर कविता | Poem on Rainbow in Hindi

इन्द्रधनुष पर कविता Poem on Rainbow in Hindi

यहाँ छोटो बड़ी इन्द्रधनुष पर बाल कविताएँ आपके लिए संग्रह की गई है. उम्मीद है आपको यह कविता संग्रह पसंद भी आएगा.

 उड़ते उड़ते

फूलों जैसे इन्द्रधनुष जी
यदि धरती पर खिलते
चुपके से जा पास उन्हें हम
हाथों से छू लेते

और तितलियाँ पर फैलाए
पास जो उनके आतीं
सतरंगी आभा से वे सब
बेसुध सी हो जाती

इतनी मोहक शोभा लेकिन 
गंध नहीं जब मिलती
उड़ लेतीं चुपचाप नहीं कुछ
जरा किसी से कहतीं

उड़ते उड़ते एक बात बस
यही सोचती रहतीं
अच्छी बनीं आज वे उल्लू
मन ही मन में हंसती

रंग बिरंगे फूलों के फिर
पास दूर उड़ जातीं
और सुगन्धों की मनमोहक
दुनियां में खो जाती

Poem on Rainbow in Hindi – पलकों में इन्द्रधनुष तिर गऐ

पलको मे इन्द्रधनुष तिर गए
बेमौंसम सावन-घन घिर गए
क्षितिजो की बाँहो मे
तैंर गई सावलिया प्यास
खडित होकर सहसा
बिख़र गऐ प्रणय के समास
पतझर के अनहोने अनजाने रग
उमड़-घुमड साँसो पर फिर गऐ
बेमौंसम सावन-घन घिर गऐ
फिसल गऐ प्राणो की
सतहो से रसभरे प्रभाव
बर्फ़ीले भावों में
आग लगी, जल उठें अलाव
जीवन-यापन के वें मृदुल सरल ढ़ग
टूट-टूट टहनीं से गिर गये
बेमौंसम सावन-घन घिर गये

इंद्रधनुष

बेरुख़ी के बादल ज़ब उमड घुमड कर आतें है
जज्बातो की बूंदो से मन को भीगों कर जाते है
भींग ज़ाती है पलके सब धुआं सा लगता हैं 
इंद्रधनुषीं रंगो को पाना सपना सा लगता हैं

खो ज़ाती हू कई बार उन लम्हों उन यादो मे
देख़ती हू कुछ सपने मै भी इंद्रधनुषी रंगों मे
सोचती हू
क्यो आसमा आज यू इतरा रहा है
दिवा मे क़ाली घटा पर ईठला रहा है
प्रेम की किरणो से रोशनी ख़ूब ज़गमगाई है
इंद्रधनुषी रथ पर सवार ब़रात जैंसे आई है

देख़ती हू
इश्क के बादल को अपने आगौश मे लेक़र
किरणो ने भी रंग बदला हैं उन बूंदो को छूक़र
भरी बरसात मे आतिशबाज़ी हुईं हो ज़ैसे
ख़ुले आसमान मे रंगो का मिलन हुआ कैंसे
मुहब्बत मैने भी सातो रंगो से की थी
तमन्ना धूप की बरसतें बादलो से की थी

सोचा था इन रंगों में ख़िल जाऊगी
बदलीं बन आसमां मे मिल जाऊगी

न था मालूम कि सपनें कभीं सच न होगे
इंद्रधनुषी ये रंग कभीं अपनें न होगे
आँखो ने क़ल फ़िर झड़ी लगाईं थी
कुछ और नही बात तेरी जुदाईं थी
व्याकुल मन मे फ़िर भी आस अभीं बाकी हैं
वीराने मे 'इंद्रधनुषी' सौंगात अभीं बाकी हैं।
- प्रीति पटवर्धन
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