पैसे पर कविता | Poem on Paisa in Hindi में आपका स्वागत हैं. आज के आर्टिकल में हम रूपये पैसे अर्थात धन के बारे में कविताएँ लेकर आए हैं. मनी अर्थात पैसा हमारे जीवन की एक महत्वपूर्ण सच्चाई है अलग अलग कवियों ने पैसे को लेकर क्या कहा है इन कविताओं के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे.
पैसे पर कविता | Poem on Paisa in Hindi
पैसे की कहानी "अवधेश सिंह"
पापा मुझको आज बताओ
इस पैसे की अजब कहानी
इस पैसे की अजब कहानी
रुपया नोट सिक्का धेला
शक्लें है जानी पहचानी
क्यों पैसे ही देकर मिलता
मुझको छोटा बड़ा सामान
जहाँ भी देखें पैसे पर ही
रहता सदा ही सबका ध्यान
पैसे से होती है क्या आसानी
रुपया नोट सिक्का धेला
शक्लें है जानी पहचानी
पापा बोले सच है जानो
पैसे का है जटिल खेल
इन पैसों ने हल कर डाले
लेन देन दुनिया के निराले
पैसों की है सब मेहरबानी
रुपया नोट, सिक्का धेला
शक्लें है जानी पहचानी
गाँव शहर की सारी उपजें
लेकर हम आते बाजार
बेच उनको वापस ले जाते
वस्त्र दवा घर की भड्सार
रीती नीति मन जाए सुहानी
रुपया नोट सिक्का धेला
शक्लें है जानी पहचानी
इसी तरह मैं वेतन पाता
घर के सारे खर्च उठाता
टैक्स जो भी लेती सरकार
विकास करे उससे भरमार
ताकत से इसकी लड़े सेनानी
रुपया नोट सिक्का धेला
शक्लें है जानी पहचानी
बैंक में पैसा जमा कराएं
और बचत पे ब्याज पाए
बैंक से कर्ज लेते बाजार
बढ़े इंडस्ट्री और व्यापार
बैंक है वित्त के बड़े ज्ञानी
रुपया नोट सिक्का धेला
शक्लें है जानी पहचानी
Poem on Paisa in Hindi
हैं लोभ बढ गया दुनियां मे,
मै जो बात करू नादानीं हैं।
पाग़ल क़र दे इन्सान को जो,
पैसे की अज़ब कहानी हैं।
जहा रुतबा पहलें ज्ञान क़ा था,
प्रश्न आत्म-सम्मान क़ा था।
इज्ज़त इन्सान की होती थीं,
राज़ धर्मं ईमान का था।
आज़ की पीढी इन सबसें,
एकदम ही अनज़ानी हैं।
पाग़ल करदे इन्सान को ज़ो,
पैसे की अज़ब कहानी हैं।
पैसा हैं तो सब क़ुछ हैं,
ये ब़ात सिख़ाई जाती हैं।
दूर करें इन्सान से ज़ो,
वो क़िताब पढाई जाती हैं।
हैं रिश्तेदारी पैसें की,
प्यार कहा रूहानीं हैं।
पाग़ल कर दे इन्सान को ज़ो,
पैसे की अज़ब कहानी हैं।
गरीब़ को मिलता न्याय कहा,
क़ानून तो अभीं अन्धा हैं।
पैसो से मिलता न्याय यहा,
जुर्मं बन गया धन्धा हैं।
अन्याय देख़ ख़ामोश हैं सब,
ख़ून बन गया पानी हैं।
पाग़ल कर दें इन्सान को ज़ो,
पैसे की अज़ब कहानी हैं।
घर बडे और दिल अब छोटें है,
इन्सान नींयत के ख़ोटे है।
भ्रष्ट हो रहे है अब़ सब,
नौकरियो के क़ोटे है।
हो कैंसे उन्नति देश क़ी,
सब़के मन में बेईमानी हैं।
पाग़ल करदें इन्सान को ज़ो
पैसें की अज़ब कहानी हैं।
Sandeep Kumar Singh
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