अखबार पर कविता | Poem On Newspaper In Hindi अख़बार यानी कि newspaper हमारे दिनचर्या का एक अहम् हिस्सा सुबह सुबह चाय के साथ नाश्ते में अखबार न् मिले तो हम भारत वासियों का दिन पूरा नहीं होता। यह अखबार आज कितना प्रासंगिक है समाचार छापने में यह प्रश्न का विषय है। ऐसे हि हम् आपके लिए एक कविता लेकर आए हैं ,जो अखबार पर व्यंग तो करता है साथ हि साथ उसकी उपयोगिता भी बताता है।
अखबार पर कविता | Poem On Newspaper In Hindi
आइए देखते हैं कैसे आज अखबार समाचार से ज्यादा विज्ञापन और अन्य अनावश्यक तथ्य छापता है। फिर भी ये आज भी और कल भी समाचार के लिए उतना हि प्रासंगिक रहेगा जितना पहले था। अखबार एक ऐसा माध्यम है जिससे हम न केवल दुनिया में हो रही घटनाओं से सचेत हो जाते हैं, बल्की अखबार् नियमित पढ़ने से हमारे ज्ञान का विकास भी होता है। अखबार एक ऐसा माध्यम है जो आपके आसपास ,राज्य और दुनिया में हो रही खबरों से आपको रूबरू कराता है।
आइए अख़बार जैसी बेहद हि महत्त्वपूर्ण topic पर हम लाए हैं आपके लिए एक खूबसूरत सी कविता। ये कविता आपको हंसाएगी भी साथ हि साथ जागरूक भी करेगी। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह कविता पढ़कर आप जरूर प्रसन्न होंगे।
अखबार "बलराम अग्रवाल"
मायानगरी की तस्वीरे
घनी बनाने की तरकीबें
वजन घटाने वाली गोली
गोरा करने वाली क्रीमें
कुछ विज्ञापन आकर्षक से
कुछ विज्ञापन है बेकार
काला चोला छोड़ छाड़कर
रंगों से सज बरखुरदार
लेकर खबरों का अंबार
कहाँ चले मिस्टर अखबार?
कैसे कर लेते हत्याओं
की खबरों को हजम मियाँ
कैसे सह लेते हो झूठों
मक्कारों को सहन मियाँ
कैसे युद्धों और दंगों की
खबरों पर चुप रहते हो
चोरों और मुनाफाखोरो
से भी कुछ नहीं कहते हो
फड़ फड़ करते बारंबार
कहाँ चले मिस्टर अखबार?
सुनो दोस्त! मुझ पर आरोपों
की बरसातें ठीक नहीं
मैं बचाव भी करता हूँ
क्या लगती बातें ठीक नहीं
साहसभरी साफ़गोई और
न्याय नीति भी लाता हूँ
शिक्षा, कला , खेलकूद
इतिहास, धर्म सिखलाता हूँ
मुझको मत समझो बेकार
सदा सहायक मैं अखबार
आता अखबार
सुबह सुबह आता अखबार
खबरों का लाता अंबार
मेरे लिए नहीं सब कुछ इसमें
यह लगता बिलकुल बेकार
आते ही लपकें दादा जी
देखें इसमें राशिफल
फिर पापा जी झटपट ढूँढे
इधर उधर की हर हलचल
मेरा जब नम्बर आता तो
मिलता सबकुछ चौपट यार
पहले इसमें रविवार को
गीत कहानी छपते थे
रंग बिरंगे कार्टून भी
मुझको इसमें दिखते थे
जिस दिन यह छुट्टी करता था
मैं हो जाता था बीमार
जाने क्या हो गया आजकल
भैया इन अखबारों को
रोक दिया क्यूँ जान बुझकर
बचपन भरी बहारों को
हे भगवान सुधारों इनको
लौटा दो मेरा संसार
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दोस्तों आपको अखबार पर कविता | Poem On Newspaper In Hindi कविता पढ़कर कैसा लगा? मुझे पता है आप सब जरूर रोमन्चित् हुए होंगे यह कविता पढ़कर। वाकई दिलचस्प् कविता थी और बहुत हि शानदार तरीके से रचयिता के द्वारा पेश भी किया गया हैं। एक बेहद हि अनोखी बात यह है कि अखबार न् केवल ये बतलाता है कि दुनिया में क्या हो रहा है बल्कि हमें entertain भी करता है ।
पहले अख़बार के साथ हर रविवार को एक छोटा सा booklet होता था जिसमें फ़िल्मी दुनिया कि बातें और अन्य मनोरंजक तथ्य शामिल होते थे । साथ हि साथ अखबार में दिए हुए पहेलियों , और सुद्दोकु को हल करना एक अलग हि एहसास होता था । यह कविता पढ़ने के लिए आप सबका धन्यवाद।
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