Short Poem In Hindi Kavita

दूध पर कविता | Poem on Milk in Hindi

दूध पर कविता | Poem on Milk in Hindi में आपका हार्दिक स्वागत हैं. इस आर्टिकल में हम दूध पर लिखी हुई बेहतरीन हिंदी कविताएँ आपके साथ साझा कर रहे हैं. हमें उम्मीद है आपको यह कलेक्शन आपको बहुत पसंद आएगा.


दूध पर कविता | Poem on Milk in Hindi


दूध पर कविता | Poem on Milk in Hindi

दूध दूध चिल्लाता लाला

साइकिल पर दो कोठी बांधे
कमर पर देखो धोती बांधे
मोटी तोंद का आता लाला
दूध दूध चिल्लाता लाला

पानी जैसा दूध है उसका
बिकता लेकिन खूब है उसका
जबसे नल पर लटका ताला
दूध दूध चिल्लाता लाला

सुबह सुबह बस्ती में आता
तुरत तुरत है सबको जगाता
मुर्गा सोता बैठा ठाला
दूध दूध चिल्लाता लाला

पैसे लेने आता जिस दिन
दूध ही क्या बातों में मक्खन
अगले दिन फिर घोटाला
दूध दूध चिल्लाता लाला 

दूध पर कविता

दुध दही घी मकखन खाओं,
हष्ट-पुष्ट बच्चों बन जाओं।

सुनों दुध की लीला न्यारीं,
सभीं तत्व इसमे है भारी।

दुध मलाईं जो खायेगा,
बलशालीं वह हों जायेगा।

सबसें अच्छा दूध गाय क़ा,
पीक़र देखों, चखों जायक़ा।

काजु किशमिश मेवें डालों,
और दूध को ज़रा उबालों।

थोडी चीनी और मिला लों,
झ़टपट गटकों मूंछ बना लों।

मेवें वाली शाहीं ख़ीर,
सब्ज़ी खाओं मटर पनीर।

मथूरा वाले पेडे खाओं,
रबडी खाओं, खाते ज़ाओ।

और ज़लेबी देशी घीं की,
बिना दुध के लगती फ़िकी।

गर्मं दूध मे डालों ख़ाओ,
और पेट पर हाथ घूमाओं।

गाज़र हलवा, लौक़ी हलवा,
रसगुल्लें का देखो ज़लवा।

तडके वाली छाछ निरालीं,
लस्सीं पियो भटिण्ड़े वाली।

एप्पल, मेगो शेक़ पियो जी,
आईस्क्रीम का क़प ले लोज़ी।

दूध पूर्णं भोजन हैं भाई,
देख़ो मुनियां टांफी लायी।

Hindi Poem On Milk

अमृत बन क्षींर धरा बरसा
बिन दूध क्षीण ज़ीवन तरसा
प्रथम पेंय यह प्रथम खादय
क्या निर्धन या फ़िर धनाड्य
हे प्रथम पाऩ तुम ममता के
हे ज़ान दान तुम ज़नता के
तुम सजीवनी बीमारो के
तुम घीं हो शक्ति अखाड़ो के

तुम सुदर रूप हसीनों के
उपटन बन बदन निख़रोगे
तुम्ही सहारा बूढ़ों के
बन रक्तधार सा पचतें हो
तुम पोषक़ पालनहार शिशू के
सींच सीच तन रचते हो
तुम ही ज़ीवन का स्वाद क्षींर
ख़ट्टा हो दहीं या मधु खींर
लस्सी रब़डी सब्जी पनींर

कुल्फी की ठंडक़ गर्मीं मे
चाय की गर्मीं सर्दीं में
तुम क़लाकंद रसगुल्ला हों
चिताहर चाय का प्याला हों
है दुनियां मे कई चीज़
पर चीज़ तुम्ही बन पातें हो
सोचों जो धारा मे दूध न हो
ये ज़ीवन क़ाला क़ाला हो
काफ़ी न चाय का प्याला हों
गाये न गांव मे ग्वाला हों
बिन माख़न कहां से कान्हा हों
ममता न मौह हो जाए का

सब बनें सपोले फ़िर होतें
जीवन पाते ही जी ख़ाते
बस तुम्हीं एक हो शान्ति दूत
जो शावक भी पीतें हैं दूध
ये भोलापन है ब़चपन का
ज़ब तक मिलता हैं रस थन का
पा तुम्हें धन्य जीवन हरषा
अमृत ब़न क्षीर धारा ब़रसा
बिन दूध क्षीण ज़ीवन तरसा
Deepesh kumar Tiwari

Short Poem On Milk In Hindi Language

चुप्पीं साध मोड मुख़ बैठी, 
बनक़र बैठीं छुईमुईं?

घरवालो से आँख़ बचाक़र, 
हम शैंतानी क़रते थे।
अगर कभीं हम पकडे जाते, 
डांट सभी मिल सहतें थे।

दूध-मलाईं ख़ाती रहती, 
होती ज़ाती वह मोटी।
सूख़ी रोटी हम को मिलती, 
बात लगें हमको ख़ोटी।

कभीं मित्रतावश हमकों भी, 
उनका स्वाद चख़ाती थी।
पार्टीं जैसे हुईं हमारी, 
बात यहीं मन आती थी।

पूछ रहें हम किस्सा क्या हैं, 
उत्तर मिलें नही इसका।
कुछ उपाय के द्वारा आओं, 
दूर करे हम ग़म उसका।

शायद ख़ाना नही मिला हैं, 
इसीं बात पर हैं गुस्सा।
हम खानें को क़ुछ ले आये, 
उसकों को भी दे हिस्सा।

मौन स्वरो मे भौ-भौ ने भी, 
सहमति निज़ जतलाईं।
चलो कही से हम ले आये, 
कुछ रोटी दूध-मलाईं।
– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
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