Short Poem In Hindi Kavita

मेला पर कविता | Poem On Mela In Hindi

घसिटिया का मेला "अश्वनी कुमार पाठक"

मेरी बिटिया का नाम घसिटिया
चली देखने मेला
मेला क्या था, एक झमेला
जिसमें ठेलमठेला

बोली दद्दा ले लो गद्दा
ठंड बहुत पडती है
बरसों से सोते धरती पर
पत्थर सी गड़ती है

मेरी बैया दैया दय्या
भला खरीदू कैसे
जैसे तैसे पेट पल रहा
नहीं जेब में पैसे

ओले पानी से खेतों की
फसल हो गई स्वाहा
पर फिर भी, घर के मुखिया का
मैंने फर्ज निबाहा

देख रही है घास फूस की
जर्जर हुई मडैया
कैसे आगे करे पढ़ाई
बिटिया तेरे भैया

दिया न दगा अगर खेती ने
रही नहीं मजबूरी
तेरी मनोकामना बिटिया
होगी बिलकुल पूरी

केवल गद्दा नहीं रजाई
तकिया भी लाऊंगा
अगले बरस तुझे छकड़े से
मेला ले जाऊंगा 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें