लंच बॉक्स पर कविता | Poem on lunch box in Hindi
विद्यार्थी जीवन में खासकर लंच बॉक्स के साथ कुछ आत्मीयता जुड़ ही जाती हैं. स्कूल बैग और पानी बोतल के साथ लंच बॉक्स स्कूल के सफर का साथी बन जाता हैं. आज की कविताओं में आप अपने विद्यार्थी जीवन की कुछ स्मृतियों को ताजा कर सकेगे.
तो चलिए बगैर अधिक वक्त गवाए हम आज के शीर्षक लंच बॉक्स पर कविताओं में कुछ लेखकों द्वारा रचित आकर्षक कविताओं को जानते हैं.
मम्मी "कृष्णा कुमारी"
मम्मी अब तो दया करो
रूप लंच का नया करो
देख देख कर चढ़े बुखार
रोज पराँठे और अचार
टीचर जी भी कहती हैं
पड़ जाओगे तुम बीमार
कोई इंग्लिश डिश रख दो
कुछ काजू किशमिश रख दो
इडली, डोसा, भेल, पूरी
थोड़ी सी गुड़ विश रख दो
लंच बॉक्स / बालस्वरूप राही
मम्मी, छोडो लाड-दुलार,
लन्च बोक्स क़रदो तैंयार।
सब्ज़ी खूब मसालेंदार,
गर्म पूरियां पूरी चार।
पापड हो ज़ाता बेक़ार,
रख़ दो चटनीं और आचार।
क्यो देती केला हर ब़ार,
मम्मी, रख़ना आज़ अनार।
कविता : भोजन
ज़ब भर जाता हैं पेट तुम्हारा
तो फेक देतें हो भोज़न को तुम
तरसतें है लोग ज़िसको ख़ाने के लिये
भरें हुवे पेट से भी ख़ाने का
दिख़ावा करतें हो तुम
आसान नही हैं ग़रीबीं मे भोज़न मिलना
इसलिये कद्र करों तुम
जो भी मिल ज़ाता है भोज़न मे
उसको ख़ा लिया करों तुम
मत क़िया करों अपने समारोह मे
छप्पन भोग़ का इंतज़ाम तुम
जब ब़च जाता हैं वो भोज़न
तो दे दिया करों किसी भूखें
पेट वाले गरीब़ को तुम
आसां नही हैं दो वक्त की रोटी मिंलना
इसलिये हिसाब़ से ख़ाया करों तुम
क़ल का दिन पता नही कैसा आये
इसलिये पुनः का क़ाम किया करों तुम
- इशिका चौधरी
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