सोना की रसोई "कविता मुकेश"
नन्हीं सी सोना के मन में
आज खाना पकाने की आई
सबसे पहले उसने
रसोई अपनी सजाई
छोटा सा एक चूल्हा
वह लेकर आई
पतीली कुकर
तवा कढ़ाई
सबकी लाइन लगाई
बोली उनसे
अब हो जाओ तैयार
चूल्हे चढ़ने की बारी
हर एक की आएगी
साग सब्जी दूध रोटी
सबके मन को भाएगी
तभी पतीली को धक्का देकर
बोला कुकर राम
हट जा मेरे रस्ते से
सबसे पहले
मैं करूंगा अपना काम
बिखरा हुआ दूध देखकर
रो पड़ी पतीली रानी
बोली सबसे पहले
मुझे है उबलना
नहीं तो फट जाऊँगी
आँखे तरेरी भ्रकुटी तानी
डगमग करता आगे बढ़कर
तवा चढ़ा चूल्हे पर
सुनो मोटे सुनो छोटी
सबसे पहले मैं बनाऊंगा रोटी
कढ़ाई ने भी हिम्मत दिखाई
कूद फांद कर तवे पर चढ़ आई
बोली सबसे पहले
लगेगी मेरी बारी
मैं पकाऊगी तरकारी
सबको लड़ते देख
सोना निकल बाहर आई
तौबा तौबा करती बोली
भूखे भले ही सो जाउंगी
पर अब खाना नहीं पकाऊंगी
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