Short Poem In Hindi Kavita

बच्चे पर कविता | Poem on Kids in Hindi

बच्चे पर कविता | Poem on Kids in Hindi बच्चे मन के सच्चे, बच्चे ही हैं जिनसे घर कि रौनक होती है, बच्चों के बिना घर सूना सा लगता है। दोस्तों आज हम आपके लिए पेश कर रहें हैं बच्चों पर कविताओं का संग्रह ,इन कविताओं को पढ़कर आपको अपने बचपन कि याद आ जाएगी। 

इन कविताओं में बच्चों के मानवीय भाव को जाग्रत करने का प्रयास किया गया है। ये कविताएं पढ़कर आपका मन खिल उठेगा। इन कविताओं में कवि ने बच्चों के प्रति जो प्रेम भावना का प्रकाश डाला है वो बेहद खूबसूरत है। इन कविताओं को पढ़कर आपको इस भाव का एहसास होगा। 

बच्चे पर कविता | Poem on Kids in Hindi


बच्चे पर कविता | Poem on Kids in Hindi


बचपन में बच्चों का रहन सहन हो या फिर बच्चों के मन कि बात या फिर उनकी शरारत भरी बातें उन तमाम दृश्यों को कवि ने अपनी कविता के माध्यम से बताने कि चेष्ठा कि है। 

कवि ने इन कविताओं में बच्चों कि मनोदशा को चित्रित करने का बेहद खूबसूरत प्रयास किया है। इन कविताओं में बच्चे अपने आसपास घटित हो रहे परिस्थितियों से खुद को जुड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं ।

बच्चों की बात

बच्चों की है बात निराली
तन के सुंदर मन के सच्चे
सबको लगते प्यारे बच्चे
सूरत इनकी भोली भाली
बच्चों की है बात निराली

चाहे जो भी हो मजबूरी
इनकी मांगे होती पूरी
इनके वचन न जाएं खाली
बच्चों की है बात निराली

इनसे घर आंगन सजता है
इनसे घर घर सा लगता है
इनसे घर आती खुशहाली
बच्चों की है बात निराली

मन में कोमल आशा लेकर
जीवन की अभिलाषा लेकर
करते सपनों की रखवाली
बच्चों की है बात निराली

 बच्चे की चाह "राधेश्याम प्रगल्भ"


सपने में चाहा नदी बनूं
बन गया नदी
कोई भी नाव डुबोई मैंने
कभी नहीं
मैंने चाहा मैं बनूं फूल
बन गया फूल
बन गया सदा मुस्काना ही
मेरा उसूल
मैंने चाहा मैं मेंह बनूं
बन गया मेंह
बूंद बूंद बरसाती
रही नेह

मैंने चाहा मैं छाँह बनूं
बन गया छाँह
बन गया पथिक हारे को
मैं आरामगाह
मैंने चाहा मैं व्यक्ति बनूं
सीधा सच्चा
खुल गई आँख, मैंने पाया
मैं था बच्चा


सफाईपसंद बच्चे "भगवती प्रसाद द्वेदी"


छि छि छि गंदे बच्चे
हम तो है अच्छे बच्चे

हमें गंदगी से नफरत
सदा सफाई की है लत
कपड़े लत्ते साफ़ सुथरे
रोज नहाने की आदत
रखते साफ़ गली कूचे
हम तो है अच्छे बच्चे

जो फैलाते है कचरे
हम उनको आगाह करें
अपनी अपनों की सेहत
की कुछ तो परवाह करें

तन मन स्वच्छ, वचन सच्चे
रखते हैं अच्छे बच्चे
देश हमारा स्वच्छ रहे
सभी नागरिक स्वस्थ रहे

कुदरत की हमजोली बन
पूरी दुनिया मस्त रहे
कभी न खाएंगे गच्चे
हम तो हैं अच्छे बच्चे


यह बच्चा


कौन है पापा यह बच्चा जो
थाली की झूठन है खाता
कौन है पापा यह बच्चा जो
कूड़े में कुछ ढूँढा करता

देखो पापा देखो यह तो
नंगे पाँव ही चलता रहता
कपड़े भी है फटे पुराने 
मैले मैले पहने रहता

पापा जरा बताना मुझको 
क्या यह स्कूल नहीं है जाता
थोड़ा जरा डांटना इसको
नहीं न कुछ भी यह पढ़ पाता

पापा क्यों कुछ भी न कहते
इसको इसके मम्मी पापा
पर मेरे तो कितने अच्छे
अच्छे मम्मी पापा

पर पापा क्यों मन में आता
क्यों यह सबका झूठा खाए
यह भी पहने अच्छे कपड़े
यह भी रोज स्कूल में जाए


मैं ढ़ाबे का छोटू हूँ


मैं ढाबे का छोटू हूँ
मैं ढाबे का छोटू हूँ

रोज सुबह उठ जाता हूँ
ड्यूटी पर लग जाता हूँ
सबका हुक्म बजाता हूँ
मैं ढाबे का छोटू हूँ

दिनभर खटकर मरता हूँ
मेहनत पूरी करता हूँ
पर मालिक से डरता हूँ
मैं ढाबे का छोटू हूँ

देर रात में सोता हूँ
कप और प्याली धोता हूँ
रोते रोते हंसता हूँ
मैं ढाबे का छोटू हूँ


ये झोपड़ियों के बच्चे


मैली झोपड़ियों के है ये
मैले मैले बच्चे
उछल कूदते खिल खिल हंसते
हैं ये कितने अच्छे
मुझ जैसी इनकी दो आँखे
मुझे जैसे दो हाथ
नहीं पढ़ा करते पर क्यों ये
कभी हमारे साथ?
नहीं हमारे साथ कभी ये
जाते हैं स्कूल
क्यों इनके कपड़ों पर मम्मी
इतनी ज्यादा धूल?

ढाबों में बरतन मलते हैं
या बोझा ढोते है
हम कक्षा में होते हैं जब
ये चुप चुप रोते हैं
इनके बस्ते और किताबें
मम्मी, किसने छीने
वरना ये भी खूब चमकते
जैसे नए नगीने

मम्मी सोच लिया है पढ़कर
इनको खूब पढ़ाऊँगा
ये पढ़कर आगे बढ़ जाए
इनको यही सिखाऊंगा

ये भी भारत के बच्चे है
ये भारत की शान है
झोपड़ियों के हैं तो क्या है
मन इन पर कुर्बा हैं.


नए युग का बालक


घिसे पिटे परियों के किस्से नहीं सुनूंगा
खुली आँख से झूठे सपने नहीं बुनूँगा
मुझे पता चंदा की धरती पथरीली है
इसलिए धब्बों की छायाएं नीली है

चरखा कात रही नानी मत बतलाओं 
पढ़े लिखे बच्चों को ऐसे मत झुठलाओ
इन्द्रधनुष के रंग इंद्र ने नहीं बनाएं
पृथ्वी का नहीं बोझ खड़ा कोई बैल उठाएं

मुझे पता है, बादल कब जल बरसाते हैं
मुझे पता है कैसे पर्वत हिल जाते हैं
नए जमाने के हम बालक पढ़ने वाले
कैसे मानें बगुलों के पर होंगे काले

हमें सुनाओं बातें जग की सीधी सच्ची
नहीं रही अब अक्ल हमारी इतनी कच्ची 


मत रो मुन्ना "शन्नो अग्रवाल"


मत रो मेरे प्यारे मुन्ने
जिद नहीं किया करते
छोटी छोटी बातों पर
रोया कभी नहीं करते

आँखों का तारा है तू
घर भर का है लाडला
रोकर कैसा हाल बनाया
कैसा है तू बावला

चल चलते हैं मेले में
हम दोनों मौज उडाएगें
कुल्फी भी हम खाएंगे
और गुब्बारे घर लाएंगे

आलू टिक्की पानी पूरी
कैंडी मिलकर खाएंगे
झूले में जब बैठेगे तो
गला फाड़ चिल्लाएगे

सर्कस में जोर जोर से
मारेगा जोकर सिटी
सब बच्चों को बांटेगा
गोली वह मीठी मीठी

रसगुल्ले भी खाएंगे
अब इतना भी सोच ले
मुस्का दे अब थोडा सा
आंसू अपने पोंछ ले

मस्ती करके मेले में
हम वापस घर आएँगे
ढेरों खेल खिलौने भी
हम खरीद कर लाएंगे


छोटे बच्चे गोल मटोल

छोटे बच्चे गोल मटोल
यूँ लुढ़कते जैसे बॉल

ये रहते सबसे हिलमिल
ये रहते सबसे मिलजुल
बड़े बड़ों की खोले पोल
छोटे बच्चे गोल मटोल

इनके चेहरे पर मुस्कान
सबको देती जीवनदान
सबसे मीठे इनके बोल
देते मन की गांठें खोल
छोटे बच्चे गोल मटोल

जब भी होती है अनबन
जब भी भारी होता मन
देते मन की गांठें खोल
छोटे बच्चे गोल मटोल

जीवन में भरी उदासी है
खुशियाँ बहुत जरा सी हैं
हँसी नहीं मिलती है मोल
छोटे बच्चे गोल मटोल

हम बच्चे "नरेंद्र सिंह नीहार"

हम बच्चों की अजब कहानी
कहो शरारत या शैतानी
सुबह सवेरे पढ़ने जाते
टीचर जी को पाठ सुनाते
होमवर्क की महिमा न्यारी
हनुमान की पूंछ से भारी
करते करते हम थक जाते
इसको पूरा ना कर पाते
खेलें कूदे शोर मचाएं
एक दूजे को खूब चिढ़ाएं
फिर भी मिलकर रहते सारे
नील गगन के चाँद सितारे

बच्चों की आजादी

हम बच्चों को भी कुछ कहने की आजादी हो
मिट्टी पानी और हवा की कभी नहीं बर्बादी हो
स्वच्छ जल मिले पीने को खुलकर साँसे ले पाएं
साफ़ शुद्ध अनाज मिले औ ताजे फल सब्जी खाए

चमचमाचम सड़के हो
गली मुहल्ले साफ़ दिखे
सौंधी गंध जमी से आए
क्यारी क्यारी फूल खिले
झूले रैंप खेल खिलौने
बस्ती बस्ती पार्क बनें
घनी घिरी सी हरियाली हो
बादल भी बरसात करें
गाँव नगर ब्लाक सेक्टर
पुस्तकालय भी खुलवाओ
घर के बाहर खेलें कूदे
मिनी स्टेडियम बनवाओ
पन्द्रह दिन महीने में
एक पिकनिक भी हो जाए
आइसक्रीम यदि दिलवा दो
सारा टेंशन खो जाए|| 

बच्चे "चन्द्रदत्त इंदु"

हंसी मांग कर फूलों से
और कुलाचे झूलों से
मांग लहर से चंचलता
तितली ने दी कोमलता
अटपट बोल हवाओं के
सपने दसों दिशाओं के
रंग सुबह की किरणों का
प्यार परी रानी से पा
ईश्वर बोला धरती से
मैं तुझको देता बच्चा
इसकी किलकारी सुनना
अपने सुख सपने बुनना

बाल कविता नन्हे मुन्ने बच्चे

नन्हें मुन्नें बच्चें आये,
लगे झ़ूलनें झूलें।
झूले भी तो लगें झूमने,
पडे थे अब तक सूनें।

सूनें पड़े पड़े सब झूलें,
फांक रहे थें धूल।
बच्चें झूलें,धूल भगी सब
ख़िल गये जैसे फ़ूल।

एक एक़ कर फ़िर झूलो
पर,सभी झ़ूलते बच्चें।
कही एक भी छूट न जाये,
जिद्द करते है बच्चे।

सब झूलो पर झ़ूल झ़ूल
कर, बच्चें ख़ुश हो लेते।
एक़ एक कर सब झूलों
की,खोज़ खबर ले लेते।

मम्मीं-पापा,दादा-दादी,
साथ में ख़ुश हो लेते।
अपने ब़चपन की भी
यादे, वो ताज़ा कर लेते।

कभी फ़िसलते,कभीं घूमते,
कभीं लटक कर झूलें।
कभीं झूलो पर झूल झूल
कर,आसमां को छू लें।

हरी भरी हैं प्यारी बगिया,
रंग बिरगे ख़िलते फूल।
धमाचौकडी करते बच्चें,
चले हवा और झूमे फूल।

"गुरुजी"बच्चो से हैं,रौंनक
आती,बढती चहल पहल।
प्यारी ब़गिया यो रोशन
होती,जैसे ख़िले कमल।
वीरेन्द्र कुमार

घर में नन्ही किलकारियां

नन्हीं किलकारियो से,
गूज उठा हैं अंगान,
खुशियो से भर गया,
मेरा ये ज़ीवन,
पा लिया हो जैंसे,
दबा हुआ खजाना,
ख़ुशी मे पागल हैं,
ऐसें ये मेरा मन,
तोतली जबान से,
अब कोईं पुकारेंगा,
इंतजार उस पल का,
रहेंगा अब हरदम ।
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इन कविताओं में एक संदेश भी छिपा है,कि बच्चों से हमेशा प्रेम पूर्वक व्यवहार करें ताकि उन पर ,उनके जीवन पर अच्छा प्रभाव पड़े।  क्यों कि बच्चे ही आने वाले कल का भविष्य हैं। कहते हैं बच्चे भगवान का रूप होते हैं। इसलिए हमेशा बच्चों से प्यार पूर्वक व्यवहार करना चाहिए ताकि वे भविष्य में वे एक आदर्श समाज का निर्माण कर सकें।

मुझे पूरा विश्वास है कि ऊपर दी हुई कविताएं आपके दिल को छू कर गुजरी होंगी। आप इन कविताओं को अपने परिचित बच्चों को सुनाएं इन कविताओं को पढ़कर न सिर्फ उन्हें आनंद आएगा बल्कि ख़ुशी भी मिलेगी। बच्चे तो एक अनमोल गहने के समान हैं जिनका कोई मूल्य नहीं। बच्चों कि मनोदशा को समझना भी अपने में एक बेहद अनोखा एहसास है।  दोस्तों ऐसे ही लाजवाब कविताओं को पढ़ने के लिए आप हमसे जुड़े रहिये। सह्रदय धन्यवाद।

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