Short Poem In Hindi Kavita

भूख पर कविता | Poem on hunger in Hindi

भूख पर कविता | Poem on hunger in Hindi भूख एक ऐसी भावना जो  किसी को आती है तो सता जाती है, परेशान कर जाती है। भूख ही है जिसके कारण इंसान नित प्रति दिन सुबह होते ही अपने अपने काम पे लग जाता है। 

आपके पास,जिसमें एक छोटा बच्चा अपनी माँ के पास भूख लगने पर होने वाली बेचैनी के बारे में प्रश्न लेकर आया है। ये कविता पढ़कर आपको बहुत अच्छा महसूस होने वाला है।

भूख पर कविता | Poem on hunger in Hindi

भूख पर कविता | Poem on hunger in Hindi


भूख पर इस कविता को पढ़कर आपको एहसास होगा कि कुछ ऐसे भी बच्चे हैं जो एक वक्त कि रोटी के लिए जगह जगह कि ठोकरे खाते हैं। इस दृश्य को सोचने भर से कितनी तकलीफ होती है। 

पर हम उसी भीड़ के हिस्से भी बन जाते हैं जब हमारे सामने ऐसे बच्चे आते हैं और हम भी उस भीड़ कि भांति उन बच्चों को इग्नोर करके आगे बढ़ जाते हैं। इस सोच को हमें बदलना होगा। ऐसी ही विभिन्न बिन्दुओ पर लोगों कि सोच बदलने के लिए इंटरनेट के माध्यम से अपने कविताओं और लेखों के जरिये लोगों को जागरुक कर रहा है।

 भूख सताती क्यों है

मम्मी भूख सताती क्यों है?
बार बार फिर आती क्यों है?

पूड़ी सब्जी रोटी खाओ
चावल दाल हजम कर जाओ
कितना दूध दही पी जाओ
रबड़ी खीर मलाई खाओ
चाट मिठाई चट कर जाओ
लोटा भर पानी पी जाओ
लेकिन पेट न भर पाता है
फिर फिर खाली हो जाता है
इतना खाने पीने पर भी 
एकदम नहीं बुझाती क्यों है?
मम्मी भूख सताती क्यों है?

कैसा है यह पेट अनोखा
बार बार देता है धोखा
भर जाने पर इतराता है
भोजन से मुंह बिचकाता है
फिर चाहे कुछ भी ले आओ
मन कहता सब दूर हटाओं
खेलो कूदों या सो जाओ
लेकिन फिर खाली होने पर
सूखी रोटी भाती क्यों है
मम्मी भूख सताती क्यों है

भरा हुआ जब होता पेट
मन करता है जाऊं लेट
करूँ न कुछ भी बस सो जाऊं
मीठे सपनों में खो जाऊं
भूख शांत जब हो जाती है
गहरी नींद तभी आती है
सोकर सारी रात बिताओ
सुबह उठो फिर खाओ खाओ
लगती है जब भूख जोर की
सारी नींद उड़ाती क्यों है
मम्मी भूख सताती क्यों है

मम्मी बोली सुनो ध्यान से
क्यों हो इतने परेशान से
बिना भूख तुम क्या खाओगे
सारे स्वाद कहाँ पाओगे
मजा चाट का लोगे कैसे
दावत खूब छ्कोगे कैसे
कैसे फिर बलवान बनोगे
अच्छे अच्छे काम करोगे
अब तो समझ गये होंगे न
बार बार फिर आती क्यों है
सबको भूख सताती क्यों हैं

भूख / नरेश सक्सेना

भूख़ सबसे पहले दिमाग ख़ाती हैं
उसकें बाद आंखे
फिर जिस्म़ में बाक़ी बची चीजो को

छोडती कुछ भी नही है भूख़
वह रिश्तो को ख़ाती है
मां का हों ब़हन या बच्चो का

बच्चें तो उसे बेंहद पसन्द है
जिन्हे वह सबसें पहले
और बड़ी तेजी से ख़ाती हैं

बच्चो के बाद फिर ब़चता ही क्या है

भूख का झण्डा

भूखे बच्चो जैसें
दौडे आते है शब्द
मेरी लेख़नी और कागज़ की आहट पर
किसी भडारे की तलाश करतें और
सज ज़ाते है
पंग़त की पंक्तियो सी
परोसनें का इंतजार करतें
कविता की पंक्तियो मे ।

यहीं इबारत एक़ दिन
क्रांति लायेगी
भूख़ का झंडा उठाये
यहीं शब्द फ़िर
टाग दिये जायेगे सूली पर
फांसी की सज़ा भुगतनें
क्योकि भूख़ का नारा लगाना
कभीं भी मजूर नही था
भरें पेट वाले इंसानो को।

इनक़ा रोना पीटना भीं
नाजायज़़ होता हैं ये शब्द सिर्फं
हमाल की पींठ ज़ैसे है
जमाने का बोझ़ ढोनें के लिये
जो सिर्फं कराह सकती हैं
आसू नही बहा सक़ती
व्यथा कह नही पाती
परंतु ऐठती आँतो मे
भूख़ का अनुवाद
सिर्फं और सिर्फ भूख़ ही होता है।

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कभी कभी जब हम भोजन करने के अपने निर्धारित समय से विलम्ब हो जाते हैं तो हमें जो व्याकुलता महसूस होती है , वैसी व्याकुलता न जाने कितने गरीबों को प्रतिदिन झेलनी पड़ती है। हास्य काव्य का एक बेहद खूबसूरत रूप है इसलिए इन सब में हम आपके लिए भूख पर हास्य ढूंढ़ कर लाए हैं जिसे पढ़कर आपको अपार ख़ुशी मिलेगी। 

दोस्तों इस कविता में आपको एक बच्चे द्वारा माँ से भूख पर किये गए प्रश्नों का एहसास हुआ होगा। हमारा पूरा विश्वास है कि आप सबको इस कविता को पढ़कर अच्छा लगा होगा। आपके लिए ऐसी कविताएं लाता रहेगा। आप सबका आभार। धन्यवाद।

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