दौड़ पड़ा था घोड़ा जी
हम थे भाई छोटे छोटे
मिलकर पाला घोड़ा जी
नाम था रखा खीरू हमने
नहीं बुलाया घोड़ा जी
मंझला कहता मामू आ जा
छोटे के मन को भाया जी
ताजा ताजा घास खिलाते
कोमल काया घोड़ा जी
सवा सेर था दाना खाता
सरपट दौड़ लगाता था
दुडकू दुडकू चाल मस्त थी
नहीं सताया घोड़ा जी
पूंछ काट दी बड़का जी ने
टप टप आँखों रोया था
पकड़ लगाम पीठ पर चढ़कर
शहर घुमाया घोड़ा जी
पिता देखकर घोड़े को थे
गुस्से गुस्से बोले जी
सबकी करू मैं खूब पिटाई
गले लगाया घोड़ा जी
दौड़ा दौड़ा हम सब बोले
दौड़ पड़ा था घोड़ा जी
रुक जाओ रुक जाओ थोड़ा
हाथ न आया घोड़ा जी
घोड़े दादा
घोड़े दादा दौड़ लगाते
करवाते हो सैर
कैसे चल पाते हो इतना
दुखते होंगे पैर
खूब पीठ पर चाबुक पड़ते
लगती हो चोट
क्यों न हमारी तरह रूठकर
जाते हो तुम लोट?
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