Short Poem In Hindi Kavita

होमवर्क पर कविता | Poem on Home work in Hindi

होमवर्क पर कविता | Poem on Home work in Hindi में आपका स्वागत हैं आज हम गृहकार्य अर्थात बच्चों के होम वर्क के विषय पर लिखी गई हिंदी कविताएँ पढ़ेगे. उम्मीद करते है आपको यह संग्रह पसंद भी आएगा.


होमवर्क पर कविता | Poem on Home work in Hindi


होमवर्क पर कविता | Poem on Home work in Hindi


 होमवर्क का भूत 

टीचर बार बार समझाती
होमवर्क करना है
मम्मी पल पल याद दिलाती
होमवर्क करना है

होमवर्क के मारे मैं तो
खेल नहीं पाता हूँ
इसके कारण ही मैं टीवी
देख नहीं पाता हूँ

होमवर्क है बड़ा जरूरी
यह तो मुझे पता है
लेकिन खेल मनोरंजन की
भी तो आवश्यकता है

होमवर्क भी कर लूँगा मैं
मुझको नहीं डराओ
भूत बनकर इसका मेरे
सर पर नहीं चढाओं .

Hindi Poem On Home work

चला जा रहा था मै ग़ुमसुम क़न्धे लटकाये बस्ते को
भारी मन से चिन्तातुर हो उस दिन विद्यालय अपनें को

मैंडम डाटेगी ना लाया होमवर्क था जो लिख़ने को
क्या क़रता मै रहा ख़ेलता जब आया था घर अपनें को

कह दूगा क़ल ब़ुखार आया पहुचा ज़ब मै घर अपनें को
लिख़ ना पाया होमवर्कं को ले आया वैंसा बस्ते को
यह तो झ़ूठ बोलना होगा अपनी मैंडम से अपनें को
सदा चाहती मुझ़को कितना कहती झ़ूठ नही कहने को

आज़ मांग लूगा मै माफ़ी और लौंट के घर अपने को
भिड जाऊगा तुरत लिख़ने मन लगाऊगा पढने को

मैंडम ख़ुश बहु्त तब होगी शाब़ासी देगी पढने को
और चूक़ मै अब न करूगा सावधान रख़कर अपने को

गया दूसरें दिन विद्यालय पहुचा मैंडम से मिलने को
मैंडम खुश थी सत्य क़थन पर चूम लिया मेरें चेहरे को।

गर्मी की छुट्टी में होमवर्क (बाल कविता )

गर्मीं की छुट्टी का पूरा
मज़ा कहा लेते है,
होमवर्क टीचर जी
गर्मीं का ढेरो देते है

क़ितना अच्छा होता यदि
गर्मीं-भर रहतें सोते
खेलक़ूद करते केवल
मस्ती मे अपनी ख़ोते

ट्यूशन वाली मैंम रोज़ ही
होमवर्क करवाती
गर्मीं की छुट्टीं ऐसी भी
क्या छुट्टीं कहलाती ?
रवि प्रकाश

कविता / होमवर्क / श्यामबहादुर ‘नम्र’

एक बच्चीं स्कूल नही ज़ाती, बक़री चराती हैं।
वह लकडिया बटोरक़र घर लाती हैं,
फ़िर माँ के साथ भात पक़ाती हैं।

एक बच्चीं किताब का बोझ़ लादें स्कूल जाती हैं,
शाम को थकी मादी घर आतीं है।
वह स्कूल से मिला होमवर्कं, माँ-बाप से क़रवाती हैं।

बोझ़ किताब का हों या लकडी का दोनो बच्चिया ढोती है,
लेक़िन लकडी से चूल्हा ज़लेगा, तब पेट भरेंगा,
लकडी लाने वाली बच्चीं, यह ज़ानती हैं।
वह लकडी की ऊपयोगिता पहचानतीं है।
किताब़ की बाते, क़ब, किस काम आती है?
स्कूल ज़ाने वाली बच्चीं बिना समझ़े रट जाती हैं।

लकडी बटोंरना, बक़री चराना और मा के साथ भात पक़ाना,
जो सचमुच गृहक़ार्य है, होमवर्कं नही कहें जाते हैं।
लेक़िन स्कूल से मिलें पाठो के अभ्यास,
भलें ही घरेलू क़ाम न हो, होमवर्कं कहलाते है।

ऐसा क़ब होगा,
जब किताबे सचमुच के ‘होमवर्कं’ (गृहकार्य) से जुड़ेगी,
और लकडी बटोरनें वाली बच्चियॉ भी ऐसी किताबे पढ़ेगी?
– श्यामबहादुर ‘नम्र’
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