Short Poem In Hindi Kavita

छुट्टी पर कविता | Poem On Holidays in Hindi

छुट्टी पर कविता | Poem On Holidays in हिंदी छुट्टी एक ऐसा शब्द जिसे सुनकर हर किसी का मन प्रफुल्लित हो जाता है।छुट्टी के दिनों का जो आनंद होता है वो किसी और दिन में नहीं। बचपन में बच्चों के लिए छुट्टी कि खबर सुनकर बच्चे खुश से झूम उठते हैं। 

उन्हें छुट्टी के दिनों में घर में समय बिताना,खेलना काफी भाता है। ऐसी ही भाव को इन कविताओं मे कवि ने पिरोने कि कोशिश कि है। आईये आनंद लेते हैं इन कविताओं का ।

छुट्टी पर कविता | Poem On Holidays in Hindi

छुट्टी पर कविता


साथ ही एक ऐसी कविता है जिसमें कवि ने एक नन्हे बच्चे द्वारा अपनी माँ से काम पे न जाने कि जिद्द करती है, जिसे देखकर काफी अच्छा लगता है। 


छुट्टी कि ख़ुशी तो कार्यालय पर काम करने वाले कर्मचारियों को भी होती है,उन्हें इसका बेहद बेसब्री से इन्तज़ार होता है। उन्हें अपने परिवार के साथ समय बिताने के पल का इंतज़ार रहता है।

 छुट्टी का दिन "चंद्रपाल सिंह यादव मयंक" 

हफ्ते में जब हो रविवार
मौज मजा आता तब यार

विद्यालय में छुट्टी रहती
मचती मौज मजे की धूम
उस दिन हम सारे ही बच्चे
मस्ती में उठते है झूम

क्रिकेट मैच कभी होते हैं
या टीवी पर जम जाते है
सच पूछों तो टीवी पर ही
हम आनन्द उठा पाते है

टीवी ने हम सब बच्चों पर
किया बड़ा ही उपकार है
हफ्ते में जब हो रविवार
मौज मजा आता तब यार

आज हमारी छुट्टी है


आज हमारी छुट्टी है
स्कूल से हो गई कुट्टी हैं

सब कुछ उल्टा पुल्टा घर में
झाड़ू पोंछा बर्तन पल में
अब पापा निपटाएंगे
माँ की हो गई छुट्टी है
आज हमारी....

पार्क में सब मिल जाएंगे
मौजें खूब मनाएंगे
हरी घास फूलों के नीचे
सोंधी सोंधी मिट्टी है
आज हमारी....

झूले पतंग और खेल खिलौने
पापा मम्मी भैया दीदी
गोलगप्पे और आलू टिक्की
चटनी सबमें खट्टी है

आज हमारी छुट्टी है
स्कूल से हो गई कुट्टी हैं

हो गई छुट्टियाँ " हरीश कुमार अमित"


करें खेल अब नए नए
पढ़ने के दिन गए गए
अब तो हो गईं छुट्टियाँ
खाली अब हम भए भए

करो मौज और हल्ला गुल्ला
खाओ पिज्जा या रसगुल्ला
अब हम पर नहीं बंदिश कोई
पास हमारे वक्त है खुल्ला

नानी के घर दादी के घर
इन छुट्टियों में जाएगे हम
छुट्टी के इक इक दिन को
खुशियों से चमकाएंगे हम

आज न दफ्तर जाओं मम्मी

आज न दफ्तर जाओ मम्मी
कुछ पल साथ बिताओ मम्मी

खेलो कूदो साथ जरा तुम
मेरे संग मुस्काओ मम्मी

ब्रेड मटर मत आज खिलाओ
रोटी दाल बनाओ मम्मी

मैं मानूंगी सारी बातें
पहले साथ घुमाओ मम्मी

हाथ न लूंगी मोबाइल मैं
पुस्तक मुझे पढाओ मम्मी

आउंगी कक्षा में अव्वल
संग संग नाचो गाओ मम्मी

छुट्टी "मांघी लाल यादव"

अब कोई न डांटे
खूब भरो खर्राटे

करना विश्राम हमें
आज नहीं काम हमें
सब भेदभाव पाटे
खूब भरे खर्राटे

या फिर पिकनिक जाएं
मौसम में घुल पाएं
आपस में सुख बाँटे
खूब भरो खर्राटे

कविता : छुट्टियां सारी ख़त्म हो गई

छुट्टियां सारी खत्म हो गई,
पडा रहा कोने मे झोला।
क़ल तो हिंदी का पेपर है !
अब क्या होगा, हाय रे मौंला ?

इसे पढ़े या उसे पढ़े !
या, पीपर पात सरिस मन डोला।
रट्टम-रट्टा रहीं रातभर,
रुके तभीं जब मुर्गां बोला।।

नहा-धोक़र तैंयार हो गये,
मदिर का दरवाज़ा खोला।
चढा रुपैया, हुए दण्डवत,
बोले, कृपाक़र शंकर भोला !!

भांग घोटकर तुझे चढ़ाऊं,
करूं समर्पित मिश्री-गोला।
अब़के पास करा दे भगवन् !
कावड लाऊं बम-बम भोला !!

पहुच गए फ़िर पेपर देने,
ड़रतें-ड़रतें पेपर खोला।
हिंदी होश उडाकर ले गयी,
ज़ैसे हो कोई उडन-ख़टोला।।

याद नही जब कुछ आया तो,
दिल साला घब़राकर बोला-
''लिख़ो उदाहरण अनुप्रास का-
ढंम-ढंम ढ़ोल बजाए ढोला'' ।।

प्रश्न गणित के हल न पाए,
हम हिल-हिलक़र हुए झ़टोला।
पूछ के पप्पू से लिख़ डाला-
''आठ-आठ होते है सोलह ''।।

क़रना था अनुवाद परंतु,
अंगरेजी मे ध्यान यू डोला,
वेहयर डू यू लिव ? का उत्तर
लिख़ आये - ‘’नियर छपरौंला’’।।

पानी का अणुंभार मिला ना,
साइन्स का फर्रा ख़ूब टटोला।
हार के आखिर लिख़ ही आऐ-
''होगा कोईं बारह तोला'' ।।

इतिहास ने सांस रोक़ दी,
कक्ष-निरीक्षक देख़ के बोला-
''नूरजहां के बाप, ओ बुद्धूं !
कुछ तो लिख़ एत्मादुद्दौंला ''।।

इतने पर भी हम न समझ़े,
बंट गये भईंया चावल-छोला !
दो नम्बर की दावत उड गयी,
जीरों रह गए बुद्धूं भोला।।

पेय पदार्थोंं के लिखो नाम,
ये प्रश्न पढ़ा, दिल खुशी से बोला-
''लिख़ दे बेटा, शान से - लिम्क़ा,
पेप्सीं, थम्सअप, कौकाकोला'' ।।

पढ़ों लगाकर ध्यान रे बच्चों !
कभीं करो मत टालमटोला !
बींच भंवर में फ़स जाओंगे,
नैंय्या खाएगी हिचकोला।।

अभीं समझ़ लो, अभी वक़्त है,
चिन्टू, पप्पू, बुद्धू, भोला !
चलो उठाओं अपना झ़ोला !
और बन जाओं हरफ़नमौला !!
- अरविन्द सिंहानिया

छुट्टी का दिन - कविता हिन्दी

कहनें को छुट्टी का दिन 
एक़ अलसाया हुआ दिन 
देर तक़ सोना हैं 
फुर्संत को ख़ोना हैं 

दिन गुज़र जाता हैं
खानें  - पीनें - सोनें मे
यूं ही गुज़र जाने में 
व्यवस्थित ज़ीवन छूट जाता हैं 
आदमी क्या पाता हैं 
क्या ख़ो जाता हैं
छुट्टी क़ा दिन !!!
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यही वे पल हैं जिन्हें हम यादगार बनाना चाहते हैं। काम से ,स्कूल कि पढ़ाई से थोड़ा ब्रेक लेकर इन दिनों को जीना बेहद खूबसूरत होता है।छुट्टी के दिनों कि यादों का अपना अलग ही मजा होता है, खासकर गर्मी के छुट्टीयों का जब हम बचपन में सारे चचेरे ममेरे फुफेरे भाई बहन मिलकर मौज मस्ती करते हैं। साथ ही साथ इसी गर्मी के छुट्टीयों में तरह तरह के फल भी बाज़ार में आते हैं,जो सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होते  हैं ।
 
इन कविताओं के संग्रह से प्रतीत होता है कि जीवन में निरंतर काम के दौरान एक ब्रेक जरुरी होता है, जो आपके शरीर और मन मस्तिष्क को आराम देती है। इसलिए छुट्टी जरुरी है। इन्ही भावों को बच्चों ने अलग अलग तरीके से कविताओं में बताने का प्रयास किया है। आशा है कि आप सबको ये कविताएं पसंद आएँगी।

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