Short Poem In Hindi Kavita

बंदूक पर कविता | Poem On Gun in Hindi

 बंदूक " सर्वेश्वरदयाल सक्सेना"

अगर कहीं मिलती बंदूक
उसको मैं करता दो टूक
नली निकाल बना पिचकारी
रंग देता यह दुनिया सारी

कौआ बगुला जैसा होता
बगुला होता मोर
लाल लाल हो जाते तोते
होते हरे चकोर

बत्तख नीली नीली होती
पीले पीले बाज
एक दूसरे का मैं फौरन
रंग बदलता आज

फिर जंगल के बीच खड़ा हो
ऊंचे स्वर में गाता
जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता

तुमको अपना मित्र बना लूँ

नन्हें दुश्मन, प्यारे दुश्मन
यह बंदूक कहाँ से लाए
जिसमें बंदूकें रखते हो
वह सन्दुक कहाँ से लाए

बन्दूकों में गोली भरकर
तुम अब किस किसकों मारोगे
मार दिया यदि सौ पचास को
तो भी आखिर में हारोगे

इनमें प्यारे रंग भरो तो
तुमको अपना मित्र बना लूं
कोई बढियाँ काम करो तो
तुमकों अपना मित्र बना लूं

गलत बात से अगर डरों तो
तुमकों अपना मित्र बना लूं
अच्छी तरह बनो संवरो तो
तुमकों अपना मित्र बना लूं

तुमकों अपने गले लगा लूं
यदि तुम यह बंदूक फेंक दो
एक नया त्यौहार मना लूं
यदि तुम यह बंदूक फेंक दो

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