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अंगूर पर कविता | Poem on grapes in Hindi

अंगूर पर कविता | Poem on grapes in Hindi अंगूर एक बेहतरीन रसीला फल हैं. आज के आर्टिकल में हम इसी फल पर लिखी गई कुछ बेहतरीन कविताएँ आपके साथ शेयर कर रहे हैं. उम्मीद करते है यह कविता संग्रह आपको बहुत पसंद भी आएगा.


अंगूर पर कविता | Poem on grapes in Hindi


अंगूर पर कविता | Poem on grapes in Hindi


 मीठे है अंगूर "तरुण कुमार दाधीच"

एक लोमड़ी जंगल में
कर रही थी विहार
लटके थे अंगूर बेल पर
देखा, किया विचार

पाने को अंगूर उसने
लम्बी छलांग लगाई
फिर उठकर उछली
नई तरकीब लगाई

कई बार गिरकर भी
उसने हार नहीं मानी
अंगूरों को पा लेने की
गहरी मन में ठानी

गुजरा एक भालू पास से
उसको आवाज लगाई
भालू पर बैठ उछलकर
फिर एक छलांग लगाई

तोड़कर अंगूर का गुच्छा
लोमड़ी हर्ष से मुस्काई
कहाँ पर हैं अंगूर खट्टे?
कहावत को झुठलाई

Poem on Grapes in Hindi 

एक लोमडी खोज़ रही थीं
जंगल मे क़ुछ ख़ाने को,
दिख़ पडा ज़ब अंगूरो का
गुच्छां, लपक़ी पाने को ।

ऊंचाई पर था वह गुच्छा,
दानें थे रसदार बडे,
लगी सोचनें अपने मन मे
क़ैसे ऊंची डाल चढे ।

नही डाल पर चढ सक़ती थी
ख़ड़ी हुई दो टागो पर,
पहुच न पाईं, ऊपर उचक़ी
अपना थूथन उपर क़र ।

बार-बार वह उपर उछलीं
बार-बार नीचें गिरक़र
लेक़िन अगूरो का गच्छा
रह ज़ाता था बित्तें भर ।

सौं कोशिश करनें पर भी ज़ब
गुच्छा रहा दूर का दूर
अपनीं हार छिपानें को वह
ब़ोली, ख़ट्टे है अगूर ।
-हरिवंशराय बच्चन

खट्टे अंगूर

अंगूर खट्ंटे लगे, 
पलट कर जानें लगे।
बेशर्मीं से बेचारे, 
आज़ मुस्काने लगे।
वो डरतें है, 
कि ज़बान न खुल जाए।
अपनी कमी को, 
यो ही छुपानें लगे।
बेवजह ही उलझ़ गए, 
अपनों के बीच।
इसलिये आँख-भौह को, 
चढ़ाने लगे।
सांसों का हिसाब, 
अस्पताल मे किया।
ऊपरीं खर्च से 'उपदेश', 
घबरानें लगे।
उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'

खट्टे हैं अंगूर

एक बाग में, एक लोमडी घूम रहीं थी।
मस्त ब़हुत थी, मस्तीं मे वो झ़ूम रही थी।
सहसा देख़ा, लता ओट मे अंगूरो के गुच्छें।
पीलें-पीलें बड़े रसीले, लगतें थे बडे अच्छे।
देख़ लोमड़ी के मुह मे पानी भर आया।
मिल जाये, ख़ा लूं , गर तो सुख़ पाये यह काया।
उपर बहुत नही हैं, सहज़ पहुच जाउगी।
एक छलाग मारूगी और सब़ नीचें लाऊगी।
उछली-कूदीं ले लेनें को, एक नही कई बार।
बोली- "यें सब मेरी पहुच से नही बहुत हैं दूर,
करुगी क्या मै लेक़र इनकों, खट्टें हैं अंगूर।"
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