Short Poem In Hindi Kavita

दादाजी पर कविता | Poem On Grandfather In Hindi

मटके जैसा पेट

मटके जैसा पेट
हमारे दादू का

जब खाते जमकर खाते हैं
खाने के ही गुण गाते हैं
तनिक न ओवर वेट
हमारे दादू का

जब अनगिनत डाव आ जातीं
दादू की बांछे खिल जाती
भेष बने फिर ठेठ
हमारे दादू का
कुछ भी खाओ सभी हजम हैं
पर दांतों का निकला दम है
नया लगा है सैट
हमारे दादू का

रोज सवेरे दौड़ लगाते
घर आ रामदेव बन जाते
शुगर बढ़े ना फैट
हमारे दादू का

दादाजी

मेरे प्यारे दादाजी
सबसे न्यारे दादाजी
रोज मिठाई लाने का
पूरा करते वादा जी

नाक तले जो बैठी है
मूंछें ऐठी ऐठी हैं
भंजी रुई की बाती सी
तुमने खूब उमेठी हैं

पेट तुमारा भारी है
छोटी मोटी लारी है
नीतू मीतू कहते हैं
गद्देदार सवारी है

टाफी खूब खिलाते हो
मीठे गीत सुनाते हो
बच्चों का मन रखने को
भालू भी बन जाते हो

मेरे दादा "लता अग्रवाल"

बबलू देखो ये है मेरे दादा
जीवन इनका बहुत ही सादा
रोज सबेरे उठ आते है
खेतों में पानी दे आते हैं

आकर करते वो कलेवा
घर का बना सत्तू और मेवा
खटिया पर कुछ पल विश्राम
सारा दिन फिर करते काम

किस्से पुराने हमें सुनाते
अच्छी अच्छी बात सिखाते 
चारों ओर हरियाली महके
सुराही से सोंधी खुशबू महके

जरूरतमंदों को करते वो दान
घर भर करता उनका सम्मान

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