Short Poem In Hindi Kavita

चश्मा पर कविता | Poem on Goggle in Hindi

 चश्मे से बढ़ जाती "सलोनी राजपूत"

चश्मे से बढ़ जाती मेरे
होठों की मुस्कान सुहानी

चश्मा पहन घूमने जाती
बगिया में मैं दौड़ लगाती
बातें करती मस्त हवा से
पेड़ सुनाते मधुर कहानी

बढिया बढिया पोज बनाती
फूलों सी मैं खिल खिल जाती
मेरा चश्मा देखे जब भी
चिढ जाती तितली रानी

जब मैं चश्मा नहीं लगाती
ऊंगली से मैं उसे नचाती
उसका नाच देखकर नन्ही
चिड़ियाँ चीं चीं मुस्काती

पापाजी की प्यारी ऐनक "निशेश जार"

पापाजी की प्यारी ऐनक
जरा हमें बतलाओ तो
हमको तो गोदी में पापा
कभी कभी बिठलाते हैं
तुम्हें नाक पर चढ़ा हमेशा
पुस्तक में खो जाते हैं
घर से बाहर भी जब जाते
साथ तुम्हें ले जाते हैं
हम तुमको छूना चाहे तो
गुस्सा भी हो जाते हैं
आखिर क्या है तुममे ऐसा
हमको भी समझाओ तो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें