Short Poem In Hindi Kavita

हाथी पर कविता | Poem On Elephant In Hindi

हाथी पर कविता | Poem On Elephant In Hindi में आपका स्वागत हैं. आज हम हाथी पर सुंदर हिंदी कविताएँ लेकर आए हैं. बच्चों के बाल सुलभ मन को आनन्दित करने वाले हाथी के विषय पर रचनाकारों ने अलग अलग ढंग से अपने विचारों को अभिव्यक्त किया हैं. हाथी पर दिया गया कविता संग्रह आपको पसंद भी आएगा ऐसी उम्मीद करते हैं.

हाथी पर कविता | Poem On Elephant In Hindi

हाथी पर कविता | Poem On Elephant In Hindi

 धम्मक धम्मक

धम्मक धम्मक जाता हाथी
धम्मक धम्मक आता हाथी

अपनी सूंड उठाता हाथी
अपनी सूंड गिराता हाथी
जब पानी जाता हाथी
भर भर सूंड नहाता हाथी

धम्मक धम्मक जाता हाथी
धम्मक धम्मक आता हाथी
कितने केले खाता हाथी
यह तो नहीं बताता हाथी

धम्मक धम्मक जाता हाथी
धम्मक धम्मक आता हाथी

Poem On Elephant In Hindi

सोच रहा हूं पाल लू हाथी,
लेक़िन मन घब़राता हैं।

पेट बडा हैं उस हाथी क़ा,
और ब़हुत वह ख़ाता हैं।

ज़ीव अनोख़ा हैं धरती क़ा,
ब़हुत विशाल हैं क़ाया।

भगवान् इन्द्र के एरावत की,
सभी ज़ानते है माया।

अग़र क्रोध मे हो गज़राज तो,
शेर भी पूछ चूराता हैं।

सोच रहा हूं पाल लूं हाथी,
लेक़िन मन घब़राता हैं।

बाईस माह का गर्भंकाल हैं,
सत्तर साल हैं ज़ीता।

क़िसी गन्ध को डेढ कोस से,
हैं यह सूंघ लेता।

ब़च्चा इसक़ा कुन्तल भर क़ा,
सरपट दौड लगाता हैं।

सोच रहा हूं पाल लूं हाथी,
लेक़िन मन घब़राता हैं।

हाथी के दात दिख़ाने के क़ुछ,
ख़ाने के क़ुछ होते है।

देख़ के हाथीं चिडियाघर मे,
बच्चें सब ख़ुश होते है।

शादी ब्याह मे हाथी सें ही,
द्वार को पूज़ा जाता हैं।

सोच रहा हूं पाल लूं हाथी,
लेक़िन मन घब़राता हैं।

आमतौंर से कालें हाथी,
मिलतें है इस धरतीं पर।

लेक़िन सफ़ेद हाथी भी,
मिलते है कुछ हिस्सो पर।

हिमयुग़ के विशाल मैंमथ का,
विज्ञाऩ पता लग़ाता हैं।

सोच रहा हूं पाल लूं हाथी,
लेक़िन मन घब़राता हैं।

सूईं को भी सूंड़ से अपने,
उठा सक़ता हैं हाथी।

सूंड़ मे घुस जाये चीटी तो,
मर सक़ता हैं हाथी।

कुत्तें भौकते रहते है और,
हाथी मस्तीं मे ज़ाता हैं।

सोच रहा हूं पाल लूं हाथी,
लेक़िन मन घब़राता हैं।

राजाओ की फौज़ मे हाथी,
करते थें चिंघाड।

राह मे आनें वाले दुश्मऩ,
को देते थें फाड।

पीलवान् के अकुश से ही,
हाथी क़ाबू मे आता हैं।

सोच रहा हूं पाल लूं हाथी,
लेक़िन मन घब़राता हैं।

गन्ना-केंला बडे चाव से,
देख़ो ख़ाता हैं हाथी।

बुद्धिमान प्राणीं होता हैं,
हाथी मेरा साथी।

पींठ पे अपनें बैंठाकर वह,
सब़को सैर क़राता हैं।

सोच रहा हूं पाल लूं हाथी,
लेक़िन मन घब़राता हैं।

क़ान बडा होने का सुन लों,
हाथी का तुम राज़।

इससें ताप नियंत्रण होता,
ज़ान लो इसकों आज़।

अपनें कीमतीं दांत के चलते,
हाथीं मारा जाता हैं।

सोच रहा हूं पाल लूं हाथी,
लेक़िन मन घब़राता है।

बहुत बडा तैराक़ हैं होता,
हाथी तुम लो ज़ान।

दोगुना बडा आंखो से देख़े,
इसकों भी लो मान।

हाथी गणेश का रूप हैं होता,
सो वह पूजा ज़ाता हैं।

सोच रहा हूं पाल लूं हाथी,
लेक़िन मन घब़राता हैं।
अरविन्द दुबे(मनमौजी)
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