बहुत हुआ अब
बिजली रानी
बहुत हुआ अब
छोड़ो आना जाना
सोचो, सर पर
इम्तहान है
गरमी करती
परेशान है,
पंखे कूलर
बंद करा के
नहीं कयामत ढाना
तुमको क्या
तुम चली अचानक
हम भुगतें
परिणाम भयानक
इधर मेज पर
प्रेस अधूरी
उधर किचन में खाना
थोड़े दिन जो साथ निभाओ
सच्ची खूब
दुआएं पाओ
बारिश के आते ही फिर से
नखरे भले दिखाना
कहाँ गई बिजली
मम्मी, बिजली कहाँ गई है
उसको जरा बुलाओ न
इस गर्मी में जाती क्यों है
उसको डांट लगाओ ना
देखो कितना हाल बुरा है
मेरा गर्मी के मारे
हुआ पसीने से मैं लथपथ
भीग गए कपड़े सारे
दफ्ती लेकर हवा डुलाते
दर्द हो गया हाथों में
बिजली जाने कहाँ मरी है
कहाँ लगी है बातों में
बिजली रानी
वाह वाह भई बिजली रानी
तुम भी करती हो मनमानी
एक बार क्या चली गई फिर
आने में बस आनाकानी
जन्म दिवस था मेरा उस दिन
केक काटने वाला था
पूरा घर था जगमग जगमग
सभी ओर उजियारा था
यार दोस्त सब पहुँच गये थे
घर पर सबका खाना था
मम्मी पापा मस्त मग्न थे
चाचा को बस आना था
सजे हुए गुब्बारों के संग
सब मेहमान हमारे खुश थे
लगता नीले आसमान में
सारे चाँद सितारे खुश थे
इधर उधर मैं दौड़ रहा था
केक रखा था आंगन में
चाक़ू लेकर पास गया तो
देख तुम्हे घबराया मन में
लुका छिपी का खेल तुम्हारा
पहले तो मैं समझ न पाया
लेकिन यह क्या, चली गई तुम
फिर तो सबने शोर मचाया
चली गई तुम फिर न आई
लौटी हो दस घंटे बाद
कहाँ रही, क्या क्या कर डाला
भूल भाल सारी फरियाद
वादा करो नहीं जाओगी
हंसी ख़ुशी के अवसर पर
दिन और रात रहोगी संग संग
तभी लगोगी तुम सुंदर
मत कर मनमानी "नीलम राकेश"
बिजली रानी बिजली रानी
क्यों करती इतनी मनमानी
कहाँ गई यह नहीं बताती
अपने मन से आती जाती
तुम बिन सब चौपट हो जाता
सारा काम पड़ा रह जाता
बोलो कैसे करूं पढ़ाई?
तुम बिन देता नहीं दिखाई
अब से यह करके दिखलाना
मेरा साथ मत छोड़ जाना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें