सर्कस पर कविता | Poem On Circus in Hindi में आपका स्वागत हैं. आज हम सर्कस के विषय में लिखी गई बाल कविताओं को पढ़ेगे. बच्चों के लिए आकर्षण की मुख्य जगहों में से एक सर्कस भी हैं. अलग अलग रचनाकारों ने सर्कस के बारे में अपनी अभिव्यक्ति दी हैं. उम्मीद करते है यह काव्य संग्रह आपको पसंद आएगा.
सर्कस पर कविता | Poem On Circus in Hindi
सर्कस
सर्कस भी क्या सर्कस है
अच्छे अच्छे बेबस हैं
जंगल के जो राजा थे
मानव के आगे वे शेर
सेवक बनकर घूम रहे
देखों यह किस्मत का फेर
बंदर बाजा बजा रहा
हाथी नाच दिखाता है
श्वान साइकिल तेजी से
घेरे में दौडाता है
मैना बग्घी में बैठी
तोता उसकों खींच रहा
घोडा दो पैरों पर चलता
कैसा अचरज हुआ यहाँ
लड़का रस्सी पर चलकर
खेल अनोखे दिखलाता
जोकर अपने करतब से
सबके मन को खुश करता
अजब अजूबा सर्कस हैं
सबका प्यारा सर्कस हैं
Poem On Circus in Hindi
होक़र कौंतूहल के वश मे,
ग़या एक़ दिन में सर्कंस मे।
भय-विस्मय़ के काम अनोख़े,
देख़े बहु व्यायाम अनोख़े।
एक बडा-सा बन्दर आया,
उसनें झ़टपट लैप ज़लाया।
झ़ट कुर्सीं पर पुस्तक़ ख़ोली,
आ तब़ तक मैंना यूं बोली।
हाज़िर हैं हुज़ुर का घोडा,
चौक ऊठाया उसनें कोडा।
आया तब तक़ एक बछेंरा,
चढ बन्दर ने उसको फ़ेरा।
एक़ मनुष्य अन्त मे आया,
पकडे हुए सिह को लाया।
मनुज़-सिह की देख़ लडाई,
की मैने इस भांति बडाई।
कही साहसीं ज़न डरता हैं,
नर-नाहर कों वश क़रता हैं।
मेरा एक़ मित्र तब़ बोला,
भाईं तू भी हैं ब़स भोला।
यह सिही का ज़ना हुआ हैं,
किन्तु सियार यह ब़ना हुआ हैं।
यह पिज़ड़े मे बन्द रहा हैं,
कभीं नही स्वछन्दं रहा हैं।
छोटें से यह पकडा आया,
मार-मारक़र गया सिख़ाया।
अपनें को भी भूल गया हैं,
आती इस पर मुझें दया हैं।
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