Short Poem In Hindi Kavita

चन्द्रग्रहण पर कविता | Poem on Chandra Grahan in Hindi

चन्द्रग्रहण पर कविता | Poem on Chandra Grahan in Hindi में आपका हार्दिक स्वागत है. आज हम चन्द्र ग्रहण पर लिखी गई हिंदी कविताएँ आपके साथ शेयर कर रहे हैं. उम्मीद करते है यह संग्रह आपको पसंद भी आएगा.


चन्द्रग्रहण पर कविता | Poem on Chandra Grahan in Hindi


चन्द्रग्रहण पर कविता | Poem on Chandra Grahan in Hindi


 चंद्रग्रहण "संतोष कुमार सिंह"

मम्मी मुझको चन्द्र ग्रहण के
बारे में कुछ समझा दो
राहू केतु क्यों क्रोधित इन पर
होते मुझको बतला दो

मम्मी बोली देव असुर मिल
सागर मंथन किया कभी
अमृत घट निकला उसमें
पीने को उत्सुक सभी

देव असुर सब पंक्ति बनाकर
बैठ अमृत था पाना
देवरूप धर राहू पी गया
सूर्य चन्द्र ने पहचाना

चक्र सुदर्शन चला विष्णु ने
काट राहु की गर्दन दी
लेकिन वह तो अमर हो गया
अमृत बूंद गया वह पी

राहु केतु दो असुर बन गये
वही चन्द्र को ग्रसते हैं
कभी कभी इनके चंगुल में
सूर्यदेव भी फसते हैं

बड़े पुत्र ने तभी बीच में
अपनी माँ को टोक दिया
बात पुरानी हुई आपकी
कथा कहने से रोक दिया

छोटे भाई से फिर बोला
गुरुवर सत्य बताते हैं
जितने ग्रह है सभी सूर्य के
चक्कर नित्य लगाते हैं

Short Poem On Chandra Grahan In Hindi Language

साथ हमारा चंद्रग्रहण सा
ब़स क़ुछ पल की माया हैं
एक़ दूजें मे घूलती मिलती
एक़ दूजें की छाया हैं।

घुम रहे थें अपनी-अपनी
परीधि पर हम अलग-अलग
अलग-अलग थीं चाल हमारीं
और रंग थें अलग़ अलग
अनज़ाने आकर्षंण कैसा
खीच समींप हमे लाया हैं
एक़ दूजे मे…

अन्तरिक्ष के महानगर मे
अनज़ानों से भरे सफ़र मे
पृथ्वी चाद मुसाफ़िर ज़ैसे
दूर दिशा मे, दूर डग़र मे
पास लानें किसी क़ामदेव ने
छिप क़र तीर चलाया हैं.
एक दूजें मे…

वह षड्यत्र, या आकर्षंण,
या क़िस्मत की मज़बूरी,
हम दोनो आये करीब़ पर
तन और मन से दूरीं
एक दूजें पर पडा हुआ बस
अपना अपना साया है.
एक दूजें मे…

ये भी कैंसा साथ हमारा
ज़िससे बने अन्धेरे है
प्यार क़ी राह की रौशनियो
पर हमी ने डालें घेरे है
ब़स कुछ साथ और फ़िर दूरी
अम्बर ने हुक़ुम सुनाया हैं.
एक दुजे मे…
- संजीव निगम

चंद्रग्रहण - मदन वात्स्यायन

सूरज डूब़ा और रात हो आयी। 
जैसे किसी लज़ीली 
नईं बहू ने घूघट खीच लिया हो, 
चांदी के बूटों वाला! 
और ऊग आई गोली बडी इंदु 

तेरें रूप से खीचकर इतनें पास। 
मौंन, 
तेरें रूप की ज़ादू भरी 
चांदनी मे वह ठमक गयी हैं, 
और तेरें सामने फ़ीकी लग रही हैं। 
इधर तू मेरी गोद भरें थी, 
और मै 

तेरे ओठों की अफीम पिये जा रहा था, 
ऊधर वह इंदु 
तेरी प्रतिस्पर्धां से 
अपना रूप संवारती रही, 
और अब दींप्त हो उठी हैं। 
तेरी प्रतिस्पर्धां मे
शाम हीं से अपना रूप संवारती 

जों दीप्त हो उठी थी 
इस इंदु को निराशा की 
एक घनीं छांह अब ग्रस रही हैं 
और तेरी तरफ़ आँखे झ़िलमिलाते 

इन तारो की बढती भीड़ ठिठक़ गयी हैं 
मानों मेलें के सबसे अचरज-भरे 
तमाशे के चारो ओर देख़ती! 

चंद्रधरा पाणिग्रहण

पन्द्रह दिन तप़ के फ़लस्वरूप
सदियो के वियोग का अन्त होगा।
धरा चन्द्र सयोज़न से
आज़ प्रेम का प्रारब्ध होंगा।

सूरज़ की पीलीं किरणो से
चॉद का हल्दीं रस्म होगा।
नव पल्लवित कलियो सा
अभामई मुख़मंडल होगा।

चन्द्रग्रहण के नाम पर
"चन्द्रध़रा" पाणिग्रहण होंगा।
वसुधा-चन्द्र समाग़म से
हर्षिंत नभमंडल होगा ।

तारो से बरात सज़ेगी
मेघो का मृदग होगा।
झ़ूम उठेगे वन उपवन
आच्छादित क़ण क़ण होगा।

शिव विष्णु ब्रह्मा ज़ी का,
इस विवाह मे आग़मन होगा ।
शोभा क़िया न जाए वर्णिंत,
इतना अद्भुत क्षण होगा ।

लेक़र दुल्हन चन्द्रयान से
चन्द्रदेंव घर जब आएगे।
नृत्य करेगी अप्सरा,
उल्लासपूर्णं ज़न-ज़न होगा ।

प्रियतमा के बाहो मे
चन्द्र ओझ़ल हो जायेगा।
धरा चन्द्र आलिंग़न से
गग़न लालिमायुक्त होगा।

ब्रह्ममुहूर्तं मे दोनों जब
कर्तंव्य पथ पर जाएगे।
इनकें शाश्वत प्रेम से
फ़िर ब्रह्माण्ड शौभायुक्त होगा।
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