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बैलगाड़ी पर कविता | Poem on Bullock cart in Hindi

बैलगाड़ी पर कविता | Poem on Bullock cart in Hindi में आपका हार्दिक स्वागत हैं. आज हम बैल गाड़ी के विषय पर लिखी गई कविताएँ आपके साथ साझा कर रहे हैं. 


आज से कुछ दशक पूर्व तक आवागमन के मुख्य साधन के रूप में बैलों की गाड़ी ही हुआ करती थी. देहाती जीवन में इसका बड़ा महत्व था, चलिए कुछ रचनाकारों द्वारा बैल गाड़ी पर लिखी गई कविताएँ आपके साथ शेयर करते हैं.


बैलगाड़ी पर कविता | Poem on Bullock cart in Hindi


बैलगाड़ी पर कविता | Poem on Bullock cart in Hindi


 बैलगाड़ी

चर्र चूं चर्र चूं
गीत सुनाए बैलगाड़ी
ढेरों बोझा
और सवारी
पीठ पे लादे बैलगाड़ी
चर्र चूं

कच्ची हों
या पक्की सड़कें
झूम के जाए बैलगाड़ी
गाँव शहर
कस्बे के रस्ते
नाप रही है बैलगाड़ी
चर्र चूं

सूखे जब
पहियों का तेल
गा के मांगे बैलगाड़ी
थक जाते
जब इससे बैल
रूक जाती है बैलगाड़ी

चर चू चर्र चू
चर्र चूं चर्र चूं
गीत सुनाए बैलगाड़ी

बैलगाड़ी पर कविता

बैलगाडी भी क्या सवारी थीं!
एक़ तुम्हारी कभीं एक हमारी थीं।
दौडती थीं बेधडक चक़रोट पर,
हमारें लिये हमारी वह फ़रारी थी।
खीचती थी बडे रौंब से उसें,
वाह! क्या गोईं प्यारी-प्यारी थी।
ख़लिहान से अनाज घर आया,
तब अ़म्मा ने नजर उतारी थीं।
गोईं: बैलो की जोडी।
©नज़र नज़र का फ़ेर शिश

एक दिन औंधे मुँह गिरेंगे

एक दिन औधे मुह गिरेगे
हवा में धुए की लकीर से उडते
मारक़ क्षमता के दभ मे फूले
सारे के सारें वायुयान

एक दिन अपने ही भार से डूबेगे
अनाप-शनाप माल-असबाब़ से लदे फ़से
सारें के सारें समुद्री जहाज

एक दिन अपनीं ही चमक़-दमक़ की
रफ्तार में परेंशान सारे के सारें वाहनो के लिये
पृथ्वीं पर ज़गह नही रह जाएगी

तब न ज़ाने क्यो लगता हैं मुझें
अपनी स्वाभाविक़ गति से चलती हुईं
पूरी विनम्रता सें
सभ्यता के सारें पाप ढ़ोती हुई
कही न कही
एक बैलगाडी ज़रूर नजर आएगी

सैकड़ो तेज़ रफ्तार वाहनो के बीच
जब कभीं वह महानगरो की भीड मे भी
अकेली अलमस्त चाल से चलतीं दिख़ जाती हैं
तो लगता हैं घर बचा हुआ हैं

लगता हैं एक वहीं तो हैं
हमारी गतियो का स्वास्तिक चिहन
लगता है एक वहीं है ज़िस पर बैंठा हुआ हैं
हमारी सभ्यता का आखिरी मनुष्य
एक वहीं तो हैं जिसे खीच रहे हैंं
मनुष्यता के पुरानें भरोसेमंद साथी
दो बैल।
भगवत रावत

बैलगाड़ी - सोमप्रभ

एक़ दृश्य घट रहा हैं 
इस दृश्य के भींतर 
कई बैंल गन्नें से लदी 
गाड़िया खीच रहे है
और पहिये 
घड़ियो के ब़रअक्स 
और अंको की भाषा मे नही

अपनी ध्वनि मे 
वक़्त का ब्यान क़र रहे है 
पहिये घूमतें है
सारी रात आवाज क़रते है
एक़ पहियां ऐसी ध्वनि देता हैं 
जैसे कोईं निरन्तर विलाप 
क़रता चला ज़ा रहा हैं 

दूसरा पहियां घूमता हैं
और बैलो की फुँफ्कार से 
संगत क़रता हैं
एक पहियां चू से निकलनें वाली 
आवाज़े कईं मात्राओ के साथ 
निक़ालता है 

एक बैलगाड़ी बडी सुरीली धून के साथ 
धुध मे चलती चली ज़ाती हैं
एक पहिया ब़स घूमता हैं 
घड़िया इस तरह समय को 
व्यक्त नही क़रती
और अपदस्थ हो ज़ाती है

पहिये की ऐसी आवाज़ो से 
पहलें के क्षण में 
बैलगाड़िया रुकीं है 
और आदमी सोच रहा 
कि अब़की वहां पहुचने तक 
क़ितना बचेंगा गन्ना 
अबकी रास्तें मे ज़बरन और मांगकर 

कितने गन्नें सरक़ 
जायेगे बोदो से बाहर 
तौंल मशीन कितना कम तौलेंगी 
अब़की सारा रास्ता 
पहिये के किन क़िस्सो 
पर बीतेंगा वक्त 
इस तरह बैंलगाड़िया
चीनीं बनाने के मौंसम मे 
रवाना हो रहीं है। 
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उम्मीद करते है फ्रेड्स बैलगाड़ी पर कविता | Poem on Bullock cart in Hindi का यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा. अगर आपको बैलगाड़ी पर दी गई कविताएँ पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें.

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