भिखारी पर कविता | Poem On Beggar in Hindi में आपका स्वागत हैं. आज हम भिखारी, भीख, गरीबी आदि पर हिंदी कविताएँ लेकर आए हैं. अलग अलग रचनाकारों के भिखारी के विषय में जो जो विचार है इन कविता संग्रह को पढ़कर हम समझ पाएगे. उम्मीद करते है आपको यह कलेक्शन पसंद भी आएगा.
भिखारी पर कविता | Poem On Beggar in Hindi
माँ कैसे यह रहता होगा?
बहुत सबेरे इस सर्दी में
एक फटा सा कुर्ता पहने
चिथड़ों की घुटनों तक धोती
कौन, ठिठुरता चला आ रहा
मांग रहा खाने को रोटी
ओ माँ बेचारे को दे दो
मैं भूखा ही रह जाऊँगा
वह घिघियाता चला आ रहा
अपने घर हैं कई बिस्तरे
हीटर गर्मी उगल रहा है
पर यह तो नंगा भूखा है
माँ कैसे यह रहता होगा
माँ कैसे यह बना भिखारी
किसने इसकी रोजी मारी
है यह बहुत गरीब बेचारा
दया करो, दुःख सहता होगा.
Poem On Beggar in Hindi
आज़ निक़ल के घर से बाहर ग़या,
तो देख़ा उन दीन-दुख़ियारो को,
नन्हें हाथों मे ख़ाली कटोरी,
और नयनों से निक़लते अश्रु धारों को।
जिन्हें देख़ हृदय पसीज़ गया,
मन मेरा बेब़स हो ग़या ,
उनकें हाथों के सिक्कों को सुन,
आज़ मै तो संगीत भूल ग़या।
जिन्हें देख़ सहसा मै ठहरा,
मानों कुछ देर अमीर मै बन ग़या,
उन्हें देक़र चन्द सिक्कें मै,
उनक़ी दुआओं से गरीब़ मै बन ग़या।
-नीरज चौरसिया
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