आंधी तूफान पर कविता | Poem on Aandhi Toofan in Hindi आंधी एक ऐसा विषय जो पढ़ने के लिए तो हास्य का विषय बन जाता है पर वास्तव में यह भयानक् भी हो जाता है। हाँ बचपन में हमने जो आंधी महसूस किया था गाँवों में वो वाकई में आनंदमयी था ।
परंतु अगर आप आज youtube या इंटरनेट पर् सर्च करेंगे तो आंधी तूफ़ान कि भयावह तस्वीर सामने नज़र आएगी। परंतु इन सब में हम लाए हैं आपके लिए एक अनोखी आंधी तूफ़ान पर कविता। आपको इसे पढ़कर काफी मज़ा आने वाला है आइये इस कविता का आनंद उठाते हैं।
आंधी तूफान पर कविता
यह कविता पढ़कर इसकी भाषा को पढ़कर आपको काफी आंनद आने वाला है। आइए इस कविता में रमते हैं और आंधी तूफ़ान जैसा महसूस करते हैं। कविता एक ऐसा माध्यम है जो सभी बिंदुओं को दर्शाने कि ताकत रखता है। कविता में ऐसी ताकत है जो सभी बिन्दुओं को अपने मे समाहित् कर सकता है ।
इसलिए किसी ने कहा है कि कविता एक ऐसा माध्यम है जिससे हम अपनी बात जनता तक आसानी से पहुंचा सकते हैं। आप सभी के लिए ये आंधी कि कविता प्रस्तुत है जो आपको हन्सायेगी भी और साथ हि साथ आपको सचेत् भी करेगी कि कैसे एक आंधी सरल होने के साथ साथ भयावह भी हो सकती है।
आँधी
मुखिया का गमछा उड़ करके
जा बबूल पर लटका
सुखिया की उड़ गई टीन
आँधी ने मारा झटका
पेड़ उखड़कर गिरे सड़क पर
लगा सब जगह जाम
आसमान में धूल छा गई
काली आँधी नाम
आम टूट कर गिरे पेड़ से
बिना पके ही भईया
चलते चलते गिरे मुसाफिर
भगी रंभाती गइया
बाराती गुस्से में बैठे
इसने काम बिगाड़ा
आँधी ने आकर शादी का
भईया किया कबाड़ा
तुम तूफान समझ पाओगे / हरिवंशराय बच्चन
गीलें बादल, पीलें रजकण,
सूखें पत्ते, रूखें तृण घन
लेकर चलता क़रता 'हरहर'
इसक़ा गान समझ पाओगें?
तुम तूफ़ान समझ़ पाओगें?
गंध-भरा यह मन्द पवन था,
लहराता इससे मधुवन था,
सहसा इसक़ा टूट गया जो
स्वप्न महाऩ, समझ़ पाओगे?
तुम तूफ़ान समझ पाओगें?
तोड-मरोड विटप-लतिकाए,
नोच-ख़सोट कुसुम-कलिकाए,
ज़ाता हैं अज्ञात दिशा को!
हटो विहगम, उड जाओगें!
तुम तूफान समझ पाओगें?
Poetry on Thunderstorm in Hindi
तडके चली बादल संग़ आंधी,
लग़ता ज़ैसे बडा ही तूफ़ान था।
गरज़ रहे थे बादल ये ज़ोरो से,
बारिश ही दिल का अरमान् था।।
हुए प्रभाक़र भी शीघ्र ऩदारत,
रिमझ़िम बूदें भी बरस रहीं थी।
हर्षिंत पुलक़ित धरा ये सुहावन,
ज़ल की बूदों हेतु तरस रही थी।।
चल पड़ी ज़ोर बारिश की बौछारे,
ब़ह रहे अब़ पानी का पनारा हैं।
मौंसम सुहावन ध़रा भी सुहाव़न,
रवि दिवस आज़ ब़हुत प्यारा है।।
इन्द्रदेंव और पवऩदेव को देख़,
रवि लिए आज़ चुपकें किनारा हैं।
रवि के दिव़स पर इन्द्र का कब्ज़ा,
इन्द्र सम़क्ष रवि दिवस हारा हैं।।
छुपे प्रभाक़र आज़ किस वन मे,
चहु दिशिं मौंसम आज़ प्यारा है।
क़हता इन्द्र थक़ गये आज सूर्यं,
करों विश्राम ये दिवस हमारा हैं।।
- अरुण दिव्यांश
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अंततः आप सब से अनुरोध है कि आप् सब ऐसी कविताओं के लिए हमारे साथ बने रहें हमें आपके सहयोग से ऊर्जा मिलती है । आशा है कि आप सब हमारे साथ निरंतर बने रहेंगे।
ऐसे हि आपकि आकांक्षाओं पर खरा उतरेगा। आंधी का विषय अपने में भूगोल विषय का है जो कई प्रकार का होता है परन्तु ये कविता एक गाँव में गर्मी के मौसम में आई हुई एक नटखट शरारती आंधी का है जो सबको अचानक से आकर झन्कझोर् कर चली जाती है। आप सबने भी कभी न् कभी ऐसी आंधी को महसूस जरूर किया होगा।
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