मेहनत के चित्र
बड़े शहर की खुली सड़क पर
घूम रहा था नटखट बंदर
एक पेड़ के नीचे उसने
देखा खड़ा भिखारी बेघर
मांग रहा था हाथ पसारे
सबसे रोटी को कुछ पैसे
लगा सोचने बंदर इसकी
मदद करूं मैं जल्दी कैसे
शीघ्र आम के एक पेड़ पर
जा पहुंचा बन्दर कुर्ती से
आम तोड़ कर झट ले आया
खट्टे खट्टे मीठे मीठे
उन्हें सौंपकर उस गरीब से
बोला खाओं भूख मिटेगी
रोज करूंगा यों ही मेहनत
तुममें मुझमें खूब पटेगी
नाम सुना मेहनत का ज्यों ही
उस मंगते को शर्म आ गई
भीतर भीतर से उसके भी
बंदर को ही बात भा गई
तब से दोनों मित्र बन गए
मेहनत के दो चित्र बन गये
मेहनत की रोटी
कितनी प्यारी प्यारी रोटी
घर, घर बड़ी दुलारी रोटी
सबको खेल खिलाती रोटी
करना काम सिखाती रोटी
कितने रंग दिखाती रोटी
कितने ढंग बताती रोटी
राजा, निर्धन खाते रोटी
कुछ जो नहीं कमाते रोटी
रोटी हो मेहनत की रोटी
रोटी, सच्चाई की रोटी
हम मिलजुलकर खाएं रोटी
सबके लिए जुटाएं रोटी
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