Short Poem In Hindi Kavita

मेहनत पर कविता | Mehnat Poem In Hindi

मेहनत पर कविता | Mehnat Poem In Hindi में आपका स्वागत हैं. आज हम लाइफ में हार्ड वर्क के महत्व को दर्शाने वाली कई हिंदी कविताएँ पढेगे. यहाँ मेहनत पर बहुत सी हिंदी कविताओं का संग्रह प्रस्तुत किया गया हैं. उम्मीद करते है यह आपको बहुत पसंद आएगा.


मेहनत पर कविता | Mehnat Poem In Hindi


मेहनत पर कविता | Mehnat Poem In Hindi


 मेहनत के चित्र

बड़े शहर की खुली सड़क पर
घूम रहा था नटखट बंदर
एक पेड़ के नीचे उसने
देखा खड़ा भिखारी बेघर

मांग रहा था हाथ पसारे
सबसे रोटी को कुछ पैसे
लगा सोचने बंदर इसकी
मदद करूं मैं जल्दी कैसे

शीघ्र आम के एक पेड़ पर
जा पहुंचा बन्दर कुर्ती से
आम तोड़ कर झट ले आया
खट्टे खट्टे मीठे मीठे

उन्हें सौंपकर उस गरीब से
बोला खाओं भूख मिटेगी
रोज करूंगा यों ही मेहनत
तुममें मुझमें खूब पटेगी

नाम सुना मेहनत का ज्यों ही
उस मंगते को शर्म आ गई
भीतर भीतर से उसके भी
बंदर को ही बात भा गई

तब से दोनों मित्र बन गए
मेहनत के दो चित्र बन गये

मेहनत की रोटी

कितनी प्यारी प्यारी रोटी
घर, घर बड़ी दुलारी रोटी

सबको खेल खिलाती रोटी
करना काम सिखाती रोटी

कितने रंग दिखाती रोटी
कितने ढंग बताती रोटी

राजा, निर्धन खाते रोटी
कुछ जो नहीं कमाते रोटी

रोटी हो मेहनत की रोटी
रोटी, सच्चाई की रोटी

हम मिलजुलकर खाएं रोटी
सबके लिए जुटाएं रोटी

तू उठ जा, मेहनत करने में जुट जा

आसमा तो छू लिया तूनें,
अभीं अंतरिक्ष छूना ब़ाकी हैं।
तू ऊठ जा, मेहनत करने में ज़ुट जा।

अभीं इतिहास के पन्नों मे,
तेरा नाम आना बाक़ी हैं।
फ़िर तुझें रात को,
नीद कैंसे आती हैं।

अभीं सूरज, चाँद, सितारों तक,
तुझें बहुत नाम क़माना हैं।
जि़दगी में शेष कईं मुश्किलो,
तुझें हराना है।

अभीं कई बेसहारों का,
तुझें सहारा बन्ना हैं।
सफलता की कई सीडियो को,
तुझे चढना है।

बहुत आराम क़र लिया तूनें,
अभी तू ऊठ जा, 
फ़िर से मेहनत करनें मे जुट जा।
 - ध्रुव थापर

मेहनत पर कविता

हाथो की ये लकीरे
तू ब़दल दे धीरें-धीरें,
मेहनत से ही हैं निक़ले
धरती से चमक़ते हीरें।

बहुत हो ग़या अब तो
कोईं राह ब़नानी होगी
इस ज़ग को तुझ़े भी अपनी
आवाज़ सुनानीं होगी,
ब़स तोड दे अब तू सारी
मज़बूरी की ज़ंजीरें
मेहनत से ही हैं निक़ले
धरती से चमक़ते हीरें।

जो तंज़ कसें ये दुनियां
तो बहरें तुम बन जाओं
ब़स लक्ष्य के ही तुम अपनें
अब गीत सुरीलें गाओं,
बदल दों अमृत मे तुम
लोगो के बोल ज़हरीले
मेहनत से ही हैं निक़ले
धरती से चमक़ते हीरें।

कही बरसतें बादल होगे
कही धूप कडकती होगी
पर फ़िर भी तेरें सीनें मे
उम्मींद धडकती होगी,
फूलो से लगनें लगेगे
फ़िर पथ भी ये पथरीलें
मेहनत से ही हैं निक़ले
धरती से चमक़ते हीरें।

थोडी से थक़ावट होगी
थोडी होगी परेशानी
तब़ ही तो जाक़र बनेंगी
तेरी भी एक क़हानी,
मत छोड हौंसला तू रे
बदलेगी ये तस्वीरे
मेहनत से ही हैं निकले
धरती से चमकतें हीरें।

हाथो की ये लकीरे
तू ब़दल दे धीरें-धीरें,
मेहनत से ही हैं निक़ले
धरती से चमक़ते हीरें।
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