Short Poem In Hindi Kavita

पतंग पर कविता | Kite Poem in Hindi

पतंग पर कविता | Kite Poem हिंदी दोस्तों आज हम आपके लिए लाए हैं, kite यानी पतंग पर कविताओं का संग्रह। 

पतंग जो अपने अनोखे अंदाज में ज़मीन से लेकर आसमान कि ऊंचाइयों तक उड़ती जाती है और हमें सिखलाती है कि इंसान को हमेशा सरलता के साथ जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। 

पतंग पर कविता | Kite Poem in Hindi

पतंग पर कविता Kite Poem in Hindi


पतंग बच्चों के लिए आकर्षण का विषय होता है,उन्हें पतंग उड़ाना बेहद पसंद है। ऐसे में हम आपके लिए पतंग पर कुछ कविताओं का संग्रह लेकर आए हैं,आप सबको इन कविताओं को पढ़कर जरूर पतंग उड़ाने का मन करेगा। पतंग हमें सीखाता है कि हम जीवन में चाहे जितना आगे बढ़ जाएँ, पर हमें अपने जड़(root) को कभी नहीं भूलना चाहिए।

उड़ चली गगन छूने पतंग "सीताराम गुप्त"

तितली से लेकर पर उधार
मुर्गे की कलगी सिर सँवार
बंदर की लम्बी लगा पूंछ
मछली सी करती जल विहार
इसकी विचित्र है चाल ढाल
है बड़े निराले रंग ढंग उड़ चली...

राकेट से बहुत पुरानी है
यह नील गगन की रानी है
सूरज को छूना चाह रही
हिम्मतवाली, सैलानी है
इसके तन में कितनी फुर्ती
इसके मन में कितनी उमंग
उड़ चली गगन छूने पतंग

खींचो तो यह तन जाती है
नागिन सी शीश उठाती है
पर चुटकी के संकेतों से
यह ठुमठुम नाच दिखाती है
लो वे आईं दो चार और
नीली, पीली, जम गया रंग 
उड़ चली गगन छूने पतंग

वह लड़ा पेंच, वह कटा दांव
वह बूढी किया उसने बचाव
जामुनी पास में देख लाल
झपटी न आव देखा न ताव
दो चार कटीं, मच गया शोर
अंबर में होने लगी जंग
उड़ चली गगन छूने पतंग

बादल से बातें करती है
बगुलों के साथ विचरती है
हिरणी सी इन्द्रधनुष वाले
आँगन में कूदी फिरती है
कितनी भी ऊँची चढ़ जाए
फिर भी रहती धरती के संग
उड़ चली गगन छूने पतंग

पतंग और डोरी


आसमान की रानी हूँ मैं
घूम घूम कर कहे पतंग
डोरी तुझको सैर कराऊं
झूम झूम कर कहे पतंग

मैं डोरी ही तुझे उड़ाऊ
भूल न जाना अरी पतंग
बिन मेरे तू कब उड़ सकती
मत इतरा तू अरी पतंग

मत झगड़ों यों आपस में तुम
चुनमुन बोला सुनो पतंग
इक दूजे के बिना अधूरे
खाली खाली डोर पतंग

हवा उड़ाए तुम दोनों को
सुन री डोरी, सुनों पतंग
अंबर में ना चले हवा तो
कब उड़ पाए डोर पतंग?

चुनमुन ने समझाया उनको
शरमाई तब बड़ी पतंग
नजर झुका ली डोर ने भी
छोड़ा झगड़ा बदला रंग

उस पतंग को खूब छ्काएं


आँखों की कसरत करने को
आओ चलो पतंग उड़ाएं
इसे काटने आए जो भी
उस पतंग को खूब छ्काएं

थोड़ा सा ऊपर ले जाकर
थोड़ा नीचे इसे घुमाएं
दाएं से फिर बाएँ लाकर
ठुमके देकर इसे नचाएँ
पेंच लड़ाने की उलझन से
इसको सदा बचाते जाएं
आओ चलो, पतंग उड़ाएं

जीरा मिर्ची मिले कुरकुरे
आलू के पापड़ भुनवाएं
इमली अदरक लहसुन वाली
धनिए की चटनी पिसवाएं
महक रही घी की खुशबू से
बैठ धूप में तहरी खाएं
आओ चलो पतंग उड़ाएं

पतंग

देखो देखो उड़ी पतंग
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी पेड़ पर कभी ढेर पर
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी रुक जाए कभी उड़ जाए
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी चिढ़ाती कभी मनाती
देखो देखो उडी पतंग
कभी तार पर कभी धार पर
देखो देखो उडी पतंग
कभी अमित की कभी ललित की
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी हँसाए कभी रुलाए
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी ढील पर कभी मील पर
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी चाँद पर कभी मांद पर
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी लहराती कभी बहलाती
देखो देखो उड़ी पतंग
कभी काटती कभी भागती
देखो देखो उड़ी पतंग

पतंग रानी "मधु माहेश्वरी"

पतंग रानी पतंग रानी
झट से तुम उड़ जाती हो

रंग बिरंगी लाल पीली
आसमान से इठलाती हो

धूप से तुम तनिक न डरती
वर्षा में तुम गल जाती हो

बच्चों के मन को हर्षाती
बड़ों को भी तुम लुभाती हो

सुबह शाम तुम खूब इतराती
आसमान में धूम मचाती हो

एक दूजे से पेच लड़ाती
वह कट्टा कह चिढ़ाती हो

मौसम आज पतंगों का है

मौंसम आज पतंगों का है
नभ मे राज़ पतंगों का हैं
इन्द्रध़नुष के रंगो का हैं
मौसम नई उमगों का हैं

निक़ले सब ले डोर पतगें
सुन्दर सी चौंकोर पतगें
उडा रहे कर शोर पतगें
देखो चारो ओर पतंगें

उड़ी पतगें बस्ती बस्तीं
कोई महगी, कोई सस्तीं
पर न किसी में फूटपरस्तीं,
उड़ा-उड़ा सब लेते मस्तीं

चली डोर पर बैंठ पतंगें
इठलाती सी ऐठ पतंगें
नभ मे कर घुसपैंठ पतंगें
करे परस्पर भेट पतंगें

हर टोली ले ख़ड़ी पतगें
कुछ छोटी कुछ बड़ी पतगें
आसमान में उडी पतंगें
पेच लड़ाने बढी पतंगें

कुछ के छक्कें छूट रहे है
कुछ के डोर टूट रहें है
कुछ लगी ले दौड़ रहे है
कटी पतंगे लूट रहे है
– शिव मृदुल

पतंग हूँ मैं

किसनें मुझें कहा, पतंग हू मै
अपनी ही मस्तीं मे, मलंग हू मै।

करती हू कभीं सात समंदर पार
तो कभीं एवरेस्ट चढती
अब़ तो अतरिक्ष पर भी
ध्वज़ा पहरा दी हैं अपनें नाम की
सचमुच हौसलो मे बुलद हू मै
किसने मुझें कहा, पतंग हू मै.

अष्ट भुजाये हैं मेरी
करती हू सभाल – देख़भाल
अपनो की, ज़िम्मेदारियो की
ज़ब बाहर निक़लती हू
अच्छी ख़बर लेती हू दुश्वारियो की
प्रतिभा, प्रेंम, धैर्यं, साहस का
ख़िला इंद्रधनुषी रंग हू मै
किसने मुझें कहा, पतंग हू मै

हां, पतंग पसद ब़हुत है मुझें
रंग बिरंगीं प्यारी प्यारी
भर ज़ाती हैं मुझ़ मे भी
ज़ोश ए जुनू सपनो को
सच करनें की तैंयारी
क़ायनात का मधुर मृदग हू मै
किसने मुझें कहा, पतंग हो मै

गर मान भी लो पतंग मुझ़को
तो भी यह पक्क़ा कर लो
अपनी डोर कभीं दी नही तुमकों
डोर भी मेरीं और उडान भी मेरी
अपनें फ़ैसलें ख़ुद करती, दबग हू मै
किसनें मुझें कहा, पतंग हू मै.
– अनुपमा अनुश्री
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हमारे देश में मकर संक्रांति के पर्व पर पतंग उड़ाने का प्रचलन भी है। पतंग उड़ाने का अपना एक अलग मज़ा है, एक बार जब पतंग हवा में उड़ जाता है तो उसका नज़ारा वाकई में अदभुत् होता है । 

पतंग एक मोटिवेशन का प्रतीक है, इसकी ऊन्चाइयों से हमें जीवन में आगे बढ़ने कि प्रेरणा मिलती है, वहीं इसका वापस जीवन में आना हमें सीखाता है कि सदैव हमे अपने सीमा के अंदर रहना चाहिए। पतंग तो ख़ुशी और शांति का प्रतीक माना जाता है। पतंग उड़ाने से दिल को सुकून मिलता है। पतंग उड़ाने का अपना अलग ही मज़ा है पर पतंग कि शॉपिंग करने का experience भी काफी आनन्दमयी होता है, वो पतंग ढूंढ़ना फिर मांझा फिर् सलाइ , कितना मनभावक होता है ये अनुभव।

दोस्तों आपको जरुर पतंग पर इन कविताओं के संग्रह को पढ़ने में आनंद आया होगा। और इन कविताओं ने आपको जरूर आकर्षित किया होगा। ऐसे ही ढेर सारी कविताओं को अपने जीवन के साथ जोड़ने के लिए आप हमसे जुड़े रहिए। 

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