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कौआ पर कविता | Hindi Poem on Bird Crow

कौआ पर कविता | Hindi Poem on Bird Crow में आपका स्वागत हैं. आज हम इस लेख में कौए पर आधारित कविताएँ शेयर कर रहे हैं. मनुष्य के घर परिवार में पाए जाने वाले पक्षियों में से कौआ भी एक हैं.

बच्चों के लिए कौआ पक्षी पर कई सारी कविताएँ रची जाती हैं. उम्मीद करते है ये कविताएँ आपको पसंद आएगी, चलिए इसे पढ़ना आरम्भ करते हैं.

कौआ पर कविता | Hindi Poem on Bird Crow

कौआ पर कविता | Hindi Poem on Bird Crow

हम सभी के चिर परिचित कौए पर यहाँ दी गई कविताओं का संग्रह आपको पसंद आएगा. यदि यह लेख अच्छा लगे तो कमेंट में भी इसके बारे में अवश्य लिखे.

 कौआ बना सयाना "सुरेंद्र विक्रम"

मेरी मम्मी की मम्मी जी
एक साल में आती है
रोज रात को पास बैठकर
किस्से नए सुनाती है

बहुत दूर से उडकर लाया
कौआ रोटी का टुकड़ा
रोटी का टुकड़ा देखा तो
उसको याद कहानी आई

कौआ भी था चतुर सयाना
उसके मन को भांप गया
याद किया पिछली घटना को
मन ही मन को काँप गया

ऊपर ऊपर लगा सोचने
इसको सबक सिखाना है
बीत गई है बात पुरानी
आया नया जमाना है

कहा लोमड़ी ने कौए से
बीता एक जमाना भाई
बहुत दिनों से नहीं सुना है
कोई मीठा गाना भाई

गाने की जब बात चली
तो कौआ बना सयाना
रखा डाल पर रोटी को
फिर लगा सुनाने गाना

कांव कांव सुन खड़ी लोमड़ी
मन ही मन खिसियाई
ऊपर से हंसकर बोली
क्या गाना गाते हो भाई

कौआ बोला अरे बहन
क्या सचमुच मीठा गाना था
गाना तो मीठा था लेकिन
सुर और ताल पुराना था

अरे बहन सुर ताला पुराना
इसी बात का रोना है
डाली पर रोटी का टुकड़ा
उसे नहीं अब खोना है

उजला-उजला हंस एक दिन

ऊजला-ऊजला हंस एक दिन
उडते-उडते आया,
हंस देख़कर काला कौआ
मन ही मन शर्माया।

लगा सोचनें ऊजला-ऊजला
मै कैंसे हो पाऊ-
ऊजला हो सकता हू
साबून से मै अगर नहाऊ।

यहीं सोचता मेरें घर पर
आया क़ाला कागा,
और गुसलख़ाने से मेरा
साबून लेकर भागा।

फिर जाक़र गडही पर उसनें
साबून खूब लगाया,
ख़ूब नहाया, मगर न अपना
क़ालापन धौ पाया।

मिटा न उसका क़ालापन तो
मन ही मन पछ़ताया,
पास हंस के कभीं न फिर वह
काला कौंआ आया।

छत पर आकर बैठा कौवा

छत पर आक़र बैंठा कौवा
कांव-कांव चिल्लाया
मुन्नीं को यह स्वर ना भाया
पत्थर मार भ़गाया

तभीं वहा पर कोयल आयी
कुहू-कुहू चिल्लायी
उसक़ी प्यारी-प्यारी बोलीं
मुनियां के मन भायी ।

मुन्नीं बोली प्यारी कोयल
रहो हमारें घर मे ।
शक्कर से भी ज्यादा मींठा
स्वाद तुम्हारें स्वर मे ।

मीठीं बोली वाणी वालें
सब़को सदा सुहाते ।
कर्कंश कडे बोल वाले कब
दुनियां को है भाते !
- प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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