कौआ बना सयाना "सुरेंद्र विक्रम"
मेरी मम्मी की मम्मी जी
एक साल में आती है
रोज रात को पास बैठकर
किस्से नए सुनाती है
बहुत दूर से उडकर लाया
कौआ रोटी का टुकड़ा
रोटी का टुकड़ा देखा तो
उसको याद कहानी आई
कौआ भी था चतुर सयाना
उसके मन को भांप गया
याद किया पिछली घटना को
मन ही मन को काँप गया
ऊपर ऊपर लगा सोचने
इसको सबक सिखाना है
बीत गई है बात पुरानी
आया नया जमाना है
कहा लोमड़ी ने कौए से
बीता एक जमाना भाई
बहुत दिनों से नहीं सुना है
कोई मीठा गाना भाई
गाने की जब बात चली
तो कौआ बना सयाना
रखा डाल पर रोटी को
फिर लगा सुनाने गाना
कांव कांव सुन खड़ी लोमड़ी
मन ही मन खिसियाई
ऊपर से हंसकर बोली
क्या गाना गाते हो भाई
कौआ बोला अरे बहन
क्या सचमुच मीठा गाना था
गाना तो मीठा था लेकिन
सुर और ताल पुराना था
अरे बहन सुर ताला पुराना
इसी बात का रोना है
डाली पर रोटी का टुकड़ा
उसे नहीं अब खोना है
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