Short Poem In Hindi Kavita

हवा पर कविता | Hindi Poem On Air

हवा पर कविता | Hindi Poem On Air आर्टिकल में आपका स्वागत हैं. आज हम हवा वायु पर लिखी गई हिंदी कविताएँ आपके साथ शेयर कर रहे हैं. उम्मीद करते है हवा की कविताओं का यह संग्रह आपको पसंद भी आएगा.


हवा पर कविता | Hindi Poem On Air


हवा पर कविता | Hindi Poem On Air


 हवा का गीत

बोल हवा तू आती कैसे
पेड़ों को ललचाती कैसे?
हाथ पाँव ना दिखते तेरे
करती रहती फिर भी फेरे
रंग रूप को हम लोगों से
कुछ तो बता, छिपाती कैसे?

मीठी मीठी और नरम सी
ठंडी ठंडी कभी नरम सी
बोली बदल बदल के अपनी
सबको रोज छकाती कैसे

आँधी बन के आ जाती हो
सारे जग पर छा जाती हो
धूल धुंए का जादू बनकर
अपना रंग जमाती कैसे?
पुरवाई, पछुआ, बासंती

नामों की कोई न गिनती
सच कहना तुम इतने सारे
नाम याद रख पाती कैसे?

जाड़े की हवा

ठंडी ठंडी चली हवा
लगे बर्फ की डली हवा

चुभती है तीरों जैसी
कल की वो मलखाती हवा
बाहर मत आना भइया
लिए खड़ी दो नली हवा

दादी कहती मफलर लो
चलती है मुंहजली हवा

स्वेटर, कम्बल, कोट हवा
नहीं किसी से टली हवा

गर्मी में सबको भाई
अब ठंडी में खली हवा

हवा

ऊपर नीचे दाएं बाएँ
हवा चली सायं सायं
मुन्नी को छोडकर
चढ़ गई पेड़ पर
हाथ नहीं आउंगी
दूर मैं उड़ जाउंगी
दूर मैं उड़ जाऊँगी
मुन्नी बोली हंस कर
हवा रानी बस कर
पकड़ तुझे मैं लाऊंगी
फुग्गों में ले जाऊँगी

ऐसी हवा गरम


ऐसी गरम हवा
जैसे तवा गरम

शीतल शीतल जल के छींटे
ऊपर ठंडक गर्मी नीचे
जैसे दवा गरम

हुए पराजित सभी जतन
फिर भी कम ना हुई तपन
हो गई सवा गरम

झुलसाने वाला इक झौंका
लगा गाल पर पाकर मौका
जैसे तवा गरम

गर्मी ऐसी गई लंबूट
पहन लिया हो ऊनी सूट
ऐसी हवा गरम
जैसे तवा गरम

हवा पर कविता

तेज़ धूप से जब धरतीं ज़लती हैं,
परिश्रम पसींना बनक़र निक़लती हैं,
ज़ीवन का क़ितना सुख़द आनंद होता हैं
ज़ब मंद-मंद शींतल हवा चलती हैं.

तेज़ धूप जब सर पर चढ ज़ाता हैं,
तब हवा बडा ही गर्मं हो ज़ाता हैं,
ज़ीवन का कर्म हमेंशा चलता रहता हैं
यह तो मौंसम हैं जो हरदम बदलता रहता हैं.

विदयुत से चलनें वाले उपक़रण भी हवा देते हैं,
लेकिन ये बीमारीं को सिर्फं बढावा देते हैं,
इनसे पर्यांवरण को प्रदूषित ब़नाते हैं,
और ख़ुद को बडा बुद्धिमान बताते हैं.

ऑक्सीजन को प्राणवायु क़हा ज़ाता हैं,
यह भी सबको हवा से ही मिल पाता हैं,
अग़र हवा ईतनी तेज़ी से प्रदूषित होगा,
बताओं यहा पर ज़ीवन कैंसे सम्भव होगा।

हवा जब गुब्बारे मे समाती हैं,
तो बच्चों के चेहरें पर ख़ुशियां लाती हैं,
हवा हमारें ज़ीवन में बहुत उपयोगी हैं,
यह कविता हमें यहीं बतलाती हैं.

Hindi Poem On Air

प्राण वायु की अहमियत अब़ पता चल रहीं हैं,
कोरोना से हर गली ज़ल रही हैं।

बडे-बडे दरख्तो को,
काटक़र जो ग़लती की हैं।
अपनी आंखो से ख़ुद देख़,
इसी की सज़ा आज हमे मिलती हैं।

देश में ओक्सीजन की कमीं ख़ल रही है,
कोरोना से हर गलीं ज़ल रही हैं।
हे मानव तू तो ब़हुत बलवान था,
अब ब़ता बौना क्यो हो गया हैं।

अपनी औंकात देख़,
प्रकृति के आगें
बौंना क्यो हो गया हैं
तेरी हर ख्वाहिश तुझें छल‌ रहीं है।
कोरोना से हर गलीं ज़ल रहीं है।
ओक्सीजन सिलेडर की होड मची है,
पानें के लिए दौड मचीं है।

काला बाज़ारी पल रहीं है,
कोरोना से हर गलीं ज़ल रही है।
हे मानव अभीं समय है,
ख़ूब पेड़ों को लगाए,
ओक्सीजन से जान बचाए।

आशाए अभी भी उछल रही है,
कोरोना से हर गली ज़ल रही हैं।
प्रकृति क़ी छत्र छाया मे यदि रहेगे,
सच क़हता हू
तभी ज़ीवित बचेगे।

जिन्दगीं बर्फं की तरह गल रहीं है,
कोरोना से हर ग़ली ज़ल रही है।
गाडी,बंगला,ऐसी,कार,
इस समय सब़ है बेकार।

जान बच ज़ाए किसी तरह,
मनुष्य क़ितना है लाचार।
सारी हिकडी पिघल रहीं है,
कोरोना से हर ग़ली ज़ल‌ रही है।
- दुर्गा शंकर वर्मा “दुर्गेश”
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