बिल्ली पर कविता | Cat Poem in Hindi- नमस्कार दोस्तों यदि आप वेब पर Cat Poems से सम्बंधित कविताओ की खोज में है, तो आज का यह हमारा आर्टिकल आपके लिए उपयुक्त है. इस आर्टिकल में हम बिल्ली मौसी से जुडी कुछ कविताए लेकर आए है.
यह कविताए आपको बिल्ली के स्वभाव तथा प्रकृति में उसके महत्व को भलीभांति प्रस्तुत करेगी. बिल्ली के बच्चे, बिल्ली का जीवन, बिल्ली मौसी जैसी अनेक शीर्षक वाली कविताएँ आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे है.
बिल्ली पर कविता | Cat Poem in Hindi
बिल्ली का बच्चा
रोती रोती मुन्नी आई
टीचर ने की कान खिंचाई
मम्मी ने लडिया के पूछा
किस कारण से हुई पिटाई
क्या तुमने की नहीं पढ़ाई
या फिर पोएम नहीं सुनाई
शायद सब बच्चों ने मिलकर
आपस में की हाथपाई
मुन्नी ने रोकी सुबकाई
फिर धीरे से बात बताई
रधिया अपने झोले में रख
इक बिल्ली का बच्चा लाई
मैडम जी कक्षा में आई
उन्हें देख बिल्ली घबराई
शायद उसको भूख लगी थी
म्याऊं म्याऊ वो चिल्लाई
फिर बिल्ली ने उधम मचाई
सबको नानी याद दिलाई
आगे बिल्ली पीछे टीचर
फिर भी उसको पकड़ न पाई
प्रिंसिपल गुस्से में आई
हमसे ऊठ बैठ करवाई
सुन मुन्नी की बिल्ली गाथा
मम्मी धीरे से मुस्काई
बिल्ली की बीमार
छत से फिसली बिल्ली रानी
हड्डी टूटी चार
पहुँच गई चूहे की क्लिनिक
होकर के लाचार
रेफर किया चूहे ने बोला
मौसी आई एम सॉरी
मेरी क्लिनिक है दांतों की
दूजी यह बिमारी
कुत्ते जी आर्थों के डोक्टर
पास उन्ही के जाओ
निल ओरल रखवा कर इनको
एम्बुलेंस बुलाओ
बिल्ली का रसगुल्ला
चुनमुन बोला प्यारी बुआ
बिल्ली से डरता क्यों चूहा?
जब आती छुप जाता है
फिर बाहर न आता है
ये सुन बुआ मुस्काई
अंदर से रसगुल्ला लाई
बोली जब इसको खाओगे
तुम उत्तर पा जाओगे
चुनमुन ने रसगुल्ला खाया
फिर बुआ ने उसे बताया
मीठी मीठी प्यारी मिठाई
जैसे तुम को भाती है
चूहे को समझ रसगुल्ला
बिल्ली चट कर जाती है
बिल्ली का चश्मा
बिल्ली के हाथ लगा
नाना जी का चश्मा
सोचा इसको डालूंगी
लगेगा सुंदर मुखड़ा
लगा के चश्मा कानों पर
मंद मंद मुस्काए
ठुमक ठुमक चले मतवाली
वो पगली इठलाए
छोटी छोटी चीजें भी
दिखने लगी बड़ी
चले बड़ी इतरा इतरा
ले हाथों में छड़ी
तभी सामने आया चूहा
बिलकुल दुबला पतला
चश्में के कारण बिल्ली को
लगा वो मोटा तगड़ा
डर के मारे भागी बिल्ली
छोड़ छाड़ के चश्मा
चूहा भी हैरान रह गया
देखकर अद्भुत किस्सा
बिल्ली की कविता
मक्ख़ी पर चूहा बैंठा था,
चूहे पर बैंठी थी बिल्ली,
उडते-उडते पहुच गए वे
पलभर मे ही दिल्ली.
दिल्ली वालों ने तीनों की
खूब़ उड़ाई ख़िल्ली
तीनों गुस्सें से चिल्लाए
बोलें ये दिल्ली बडी निठल्लीं.
दिल्ली को हम कर देगे
दो पल मे पिल्लीं-पिल्लीं,
गिरा-गिरा क़र विकेट धडा-धड
उडवा देगे गिल्ली.
यह सुनक़र दिल्ली वालों के
नीचे की ज़मीन हिल्ली,
डर के मारें दिल्ली वालें
बन गए भीगी बिल्ली.
हास्य कविता : बिल्ली मौसी
बिल्ली मौंसी बिल्ली मौंसी,
रात-रात भर क्यो तुम रोती।
दूध पीनें घर आती हों,
मार के चूहा ख़ा ज़ाती हो।
मुंह मे दब़ा तुम चूहा लाती,
अपनें बच्चो को भी ख़िलाती।
म्याऊं-म्याऊं करना तुम्हारा क़ाम,
क़रती हो तुम खूब़ परेशान।
-त्रिशिका श्रीवास्तव 'तिशा'
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