Short Poem In Hindi Kavita

बस्ते पर कविता | Baste Par Kavita

बस्ते पर कविता | Baste Par Kavita दोस्तों बस्ता शब्द सुनते ही हमें अपने अपने बचपन कि याद आ जाती है। जब सुबह सुबह हम तैयार होकर अपने बस्तों कि ओर झान्कते थे ताकि भूले बिसरे कुछ भी रह गया हो तो उसे रख लें। 

बस्तों से हमारी कितनी यादें जुड़ी हुई हैं। इसी बस्ते में हम एक तरफ कॉपी किताब पेन पेन्सिल तो दूसरी तरफ खाने का टिफिन रखते थे, जिसका अपना एक अलग ही अनुभव है।


बस्ते पर कविता | Baste Par Kavita

बस्ते पर कविता

इंसान को समय समय पर कोशिश करती रहनी चाहिए अपने बीते हुए कल को याद करने की। यही बिता हुआ कल बाद में चलकर अनुभव बनता है। इसी कड़ी में हम आपके लिये लाए हैं बस्ते जैसी टॉपिक पर कविता । जिसे पढ़कर आपको बेहद आनंद आने वाला है।

 मेरा बस्ता

मेरा बस्ता मेरा बस्ता
यह पुस्तक वाला गुलदस्ता
इसके भीतर भरी सरसता
क्यों हो मेरी हालत खस्ता
इसमें मेरी पेन्सिल कॉपी
इसमें मेरी बिस्कुट टॉफी
इसमें मेरी पूरी चीजे 
होने देती इसे न भारी
हम हैं मैडम के आभारी

बस्ता "माधव कौशिक"


इतना भारी भरकम बस्ता
कर देती है हालत खस्ता

सब बच्चों के भार से भारी
करता रहता मगर सवारी

कॉपी पेन्सिल, कलम किताब
हिंदी इंग्लिश और हिसाब

दुनिया भर के विषय निराले
सब बच्चों के देखे भाले

बात बताएं बिलकुल सच्ची
बहुत हो गई माथा पच्ची

काश! कोई जादू कर जाए
बस्ता खुद चलकर घर जाए

बस्ते का बोझ


इक ऐसी तरकीब सुझाओ, तुम कंप्यूटर भैया
बस्ते का कुछ बोझ घटाओ, तुम कंप्यूटर भैया

हिंदी इंग्लिश जीके का ही, बोझ हो गया काफी
बाहर पड़ी मैथ की कॉपी, कहाँ रखें ज्योग्राफी

रोज रोज यह फूल फूलकर बनता जाता हाथी
कैसे इससे मुक्ति मिलेगी परेशान सब साथी

होमवर्क इतना मिलता है खेल नहीं हम पाते
ऊपर से ट्यूशन का चक्कर झेल नहीं हम पाते

पढ़ते पढ़ते ही आँखों पर, लगा लेंस का चश्मा
भूल गया सारी शैतानी, कैसा अजब करिश्मा

घर बाहर सब यही सिखाते अच्छी भली पढ़ाई
पर बस्ते के बोझ से भैया मेरी आफत आई

अब क्या करूं कहाँ जाऊं कुछ नहीं समझ में आता
देख देखकर इसका बोझा मेरा सिर चकराता

घर से विद्यालय, विद्यालय से घर जाना भारी
लगता है मंगवानी होगी मुझको नई सवारी

पापा से सुनते आए हैं तेज दिमाग तुम्हारा
बड़े बड़े जब हार गए, तब तुमने दिया सहारा

मेरी तुमसे यही प्रार्थना, कुछ भी कर दो ऐसा
फूला बस्ता पिचक जाए, मेरे गुब्बारे जैसा

बस्ता भारी


इस भारी बस्ते को भैया,
अब तू दूर हटा दे
कमर टूटती है नित मेरी
इससे मुझे बचा ले

सुबह लादकर जब मैं
पाठशाला ले जाता
मेरी हालत पर भैया
यह मंद मंद मुस्काता

मैं नन्हा सा बालक छोटा
यह भैंसा सा भारी
चढ़ा पीठ पर मेरी बैठा
करता मारा मारी

नहीं आऊँगी "मोहम्मद साजिद खान"


बस्ता नया नया दद्दू का
देखो मेरा है भद्दा सा
नया मंगा दो वर्ना शाला
नहीं जाउंगी नहीं जाउंगी

दद्दा पढ़ते मेज बैठकर
थकू फर्श मैं पोंछ पोंछकर
प्यार करो वर्ना मैं खाना
नहीं खाऊँगी नहीं खाऊँगी

बाबा जब भी बर्फी लाते
मुझको कम दद्दा सब पाते
मांगेगे दद्दा जो चीजे
नहीं लाऊंगी नहीं लाऊँगी

करूँ समय से चौका बरतन
फिर भी क्या खुश होता है मन?
मुंह पर ताला डाल दिया अब
नहीं गाऊँगी नहीं गाऊँगी

कभी भरा होता बांहों में
मैया रोती हूँ रातों में
जाओ घर से विदा किया तो
नहीं आउंगी नहीं आउंगी

कहानी बस्ते की


कैसे किस किस समझाऊं
बस्ते की है अजब कहानी
इधर उधर क्यों पड़ी किताबें
याद दिलाती दादी नानी
अपने वस्त्रों के संग करना
बस्ते की भी साफ़ सफाई
बस्ते को तो ढोना ही है
करनी आगे और पढ़ाई
कॉपी और किताबें भर भर
बस्ता जल्दी फट जाता है
खानी पड़ती डांट पिता की
मेरा वजन भी घट जाता है
कभी अगर ऐसा हो जाए
तो हम सब हो जाए निहाल
कक्षा में ही कार्य पूर्ण हो
शेष समय बस मचे धमाल
हल्का बस्ता हो जाए तो
उसे ठीक से रखूं सम्भाल
विद्यालय से घर आने पर
तब न पलंग पर गिरू निढ़ाल

भारी बस्ता "बलवंत"

बहुत सताए भारी बस्ता
मुझे न भाए भारी बस्ता
पापा, थोड़ा कम करवा दो
नींद में आए भारी बस्ता

बस्तें की है लीला न्यारी
सब जाते है इस पर बलिहारी
भांति भांति के स्वप्न दिखाकर
मन भरमाए भारी बस्ता
पापा थोड़ा कम करवा दो
नींद में आए भारी बस्ता

कठिन हुआ खेलना खाना
भूल गये हंसना मुस्काना
चैन चुराए रैन चुराए
नाच नचाए भारी बस्ता
पापा, थोड़ा कम करवा दो
नींद में आए भारी बस्ता

लेकर इसे चला नहीं जाता
इसके बोझ से सिर चकराता
हम नन्हें मुन्ने बच्चों को
बहुत रुलाए भारी बस्ता
पापा थोड़ा कम करवा दो
नींद में आए भारी बस्ता

बस्ते पर एक कविता

भारी, भारी बस्ते पीठ पर,
मानों सरस्वती को ढ़ो रहे है।
पुस्तके है सरस्वती।
पुस्तको मे तुलसी के दोहे।
तुलसी थे निर्धंन ।
भोगी ज़ीवन की पीडा ।
निर्धंनता सा ज़ीवन मे कोई दुख़ नही।
झ़ूठा भोज़न कर पेट भरते।
पत्नी से प्रताडित।
दुखो को डुबाया राम भक्ति मे।
संताप हरने की ,
की प्रार्थंना श्रीराम से।
याचना ही ब़न गयी सरस्वती।
ये भारी भारी बस्तें पीठ पर।
मानों सरस्वती को ढ़ो रहे है।
पुस्तको मे है कबीर के दोहें।
कबीर थे वर्णं भेद से व्यथिंत।
मन की व्यथ़ा को मुख़ से गा ,गा कर।
राम को सुनाया।,
ज़ीवन हुआ भक्ति रस मे सराबोर
ये भारी भारी बस्तें।
मानों सरस्वती को ढ़ो रहे हैं।
सूरदास थे अधे।
नेत्र बिन ज़ीवन हैं निराधार।
थें उपेक्षित।
पुस्तको मे है पद सूर के।
सूर ने मागा श्याम का सानिध्य।
ज़ीवन देखा श्याम की नेत्रो से।
ज़ीवन मे बहीं प्रेम की रसधार।
ये भारी बस्तें पीठ पर ।
मानो सरस्वती को ढ़ो रहे है।
कवियों ने अपने दुखों को ढोया।
भक्ति रस मे डूब़कर अपने दुखो को धोया।
विद्यार्थीं कवियो की रचनाओ मे डूब।
जीवन की राह ढूढ रहे है।
ये भारी भारी बस्तें पीठ पर।
मानों सरस्वती को ढ़ो रहे है।
Vijaya Gupta

Baste Mein Khajana Hain Kavita

सबकों यह बताना हैं
बस्ते मे खज़ाना हैं।
हैं ज्ञान भरी बाते
बस्ते की किताबो मे।
हैं प्यार भरी ख़ुशबू,
इन सारें गुलाबो मे ।।
ख़ुशबू के खज़ाने को
हर ओर लूटाना हैं।

बस्ता हैं ब़हुत छोटा,
पर ख्वाब़ बड़े इसमे।
अनमोल उम्मीदो के,
नगीनें है जडे इसमे।।
हर एक नगीनें का,
सम्मान बढाना हैं।

बस्ते में समझ़दारी,
व सोच का समन्दर।
इक रंग भरीं ज़ादुई,
दुनियां छिपी हैं सुन्दर।।
सब़के लिए हमे ये,
संसार सज़ाना हैं।
- डॉ. फहीम अहमद

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बस्ते कि बात करें तो वक्त कम पड़ जाएगा वो बचपन में दोस्तों कि यादें ,स्कूल के दिनों कि नटखट शरारत भरी यादें, कितनी लुभावनी हैं इन्हें शब्दों में बयां करना मुश्किल है। बचपन में हमारे बस्ते भी तरह तरह के होते थे ।आज के परिद्र्श्य् में बात करें तो मिलता है कि आज  के बच्चे अपने बस्ते के बोझ से कितना परेशान हैं। उन्हें बस्ते को कंधे पर ले जाना कितना भारी पड़ता है। इन्हीं सब बिन्दुओं पर प्रकाश डालने के लिए कवि ने बस्ते पर कविताओं का संग्रह पेश किया है। 

बस्ता स्कूल के दिनों में बच्चों का साथी है, इसे एक मनपसंद वस्तु के रूप में बच्चे देखते हैं ,जिसे आज के समय बोझ बना दिया गया है,जो कि सही नहीं है ।यह सोचने का विषय है। इसी कड़ी में हम आपके लिए लाए हैं बस्ते पर कविताओं का संग्रह जो न केवल बस्ते अपितु हमारे बचपन कि यादों को भी ताज़ा करता है।आपको इन कविताओं को पढ़कर बेहद आनंद आया होगा । ऐसे ही हमें मोटीवेट करने के लिए इन कविताओं को शेयर करें।

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