वर्षा (बारिश) पर कविता | Poem on Rain in Hindi हमारे भारत देश की प्रमुख ऋतुओं में एक ऋतु वर्षा ऋतु होती है जिसके आने से ही मौसम सुहाना हो जाता है और हरियाली दिखाई देने लगती है। सामान्य तौर पर वर्षा ऋतु जून से लेकर सितंबर तक होती है लेकिन कई बार हमें कम मात्रा में वर्षा ऋतु के दर्शन होते हैं।
वर्षा (बारिश) पर कविता | Poem on Rain in Hindi
अगर वर्षा ऋतु के ऊपर कविताएं की जाती हैं, तो सहज स्वभाव से ही उनकी हरियाली और गिरते हुए पानी की बूंदों के बारे में विस्तार से आकलन और उल्लेख किया जाता है। वर्षा ऋतु के माध्यम से हम अपनी कविताओं में नाचते हुए मोर का जिक्र करते हैं, जो कहीं ना कहीं दिल को छू लेने वाली प्रतिक्रिया होती है।
अगर आप देश या विदेश किसी भी जगह की बातें करें तो वर्षा ऋतु सामान्य तौर पर हमारी कविताओं में शामिल होती है जिसके माध्यम से हम अपने दिल की बात को भी जाहिर, अपनी कविताओं में कर लेते हैं।
कई सारे कवियों ने वर्षा ऋतु को ही आधार मानकर अपनी कविताओं का विस्तार किया है और निश्चित रूप से ही कविताओं के माध्यम से अपनी बात की है।
अगर आप किसी अच्छे लेखक या कवि की कविताएं खोल कर देखेंगे तो आपको वर्षा ऋतु की कविताएं उसमें निश्चित रूप से मिल जाती हैं, जो हृदय में नया रस घोलती है और जिसके बाद हमारे अंदर सहज रूप से प्रेम के भाव उत्पन्न होते हैं।
रिमझिम रिमझिम बारिश आई "बीना राघव"
रिमझिम रिमझिम बारिश आई
काली घटा फिर से छाई
नदी सी सड़क लबालव पानी
मुझे कागज की नाव चलानी
चुन्नु मुन्नु घर पर आए
रंग बिरंगे छाते लाए
कभी छप छप कभी थप थप
अच्छी लगती मुझको टप टप
सावन के घर न्यौता दे आई
ढेरों खुशियाँ फिर से लाई
रिमझिम रिमझिम बारिश आई
काली घटा फिर से छाई
आओ बारिश बारिश खेलें
आओ बारिश बारिश खेलें
मित्र मंडली को संग ले लें
गोलू मोलू छत पर चढ़कर
जल की बूंद गिराएं भू ओअर
बादल ज्यों बरसे है झर झर
कैसा है मौसम बारिश का
उसका एक जायजा ले लें
आओ बारिश बारिश खेले
नांचे गायें धूम मचाएं
हम बारिश में खूब नहाएं
बादल मामा के गुण गाएं
ऐसे वे भी जल बरसाएं
क्षण भर के ही लिए सही पर
हम बादल मामा सा हो लें
आओ बारिश बारिश खेलें
एक बूंद भी व्यर्थ न जाए
संचय करें बनाकर पोखर
धरती माँ का ह्रदय जुडाएं
दें आशीष हमें खुश होकर
एक साथ सब मिलकर साथी
धरती माता की जय बोलेन
आओ बारिश बारिश खेलें
पोखर जब जल से भर जाए
हम कागज की नाव चलाएं
मम्मी पापा से जाकर हम
रेनी डे की खबर सुनाएं
सुनकर पापा हंसे ठठाकर
मम्मी जी भी होले होले
आओ बारिश बारिश खेले
देखो माँ, बारिश आई है... "अनुपमा गुप्ता"
देखो माँ, बूँदें उछली हैं
मेरा दिल छू जाने को
मेंढक दरवाजे तक आया
मुझको आज बुलाने को
बोला बाहर बूँदें आई
तुम टीवी में उलझे हो
बाहर चिंकी खेल रही हैं
तुम क्यों बुझे बुझे से हो?
देखो माँ, तितली आई हैं
अपना रंग जमाने को
भईया डरता है बारिश से
पर मुझको लगती प्यारी
देखो कैसी भीग गई हैं
पिछवाड़े की सब क्यारी
देखो माँ, मिट्टी में छतरी
आई मुझे छुपाने को
बारिश फिर आना
बारिश बारिश फिर आ जाना
अभी मुझे स्कूल है जाना
लौट के जब मैं घर आ जाऊं
तब तुम खुद को बरसाना
स्कूल की बस है आने वाली
चढ़ने मुझको उस तक जाना
नहीं है छतरी मेरे पास
बे मौसम क्यों तुमको आना
ओला बारिश मत कर जाना
आज है मेरा पहला टेस्ट
विषय ये मेरा सबसे बेस्ट
बड़ी गजब की तैयारी है
बुक भी पढ़ डाली सारी है
छुट्टी तुम मत करवा जाना
होम वर्क भी आज है पूरा
काम न कोई रहा अधूरा
पापा जी से मैथ है सीखी
मम्मी मेरी मैम सरीखी
अभी रुको तुम ठहर के आना
बारिश बारिश फिर आ जाना
अभी मुझे स्कूल है जाना
लौट के जब मैं घर आ जाऊं
तब तुम खुद से बरसाना
बारिश कैसे होती है "इंजी आशा शर्मा"
ऊपर अम्मा आंगन धोती
या पानी के बिखरे मोती
चंदा मामा तुम बतलाओ
कैसे इतनी बारिश होती
क्या भूला बादल का माली
धरती पर खोली है नाली
बाथरूम का पाइप टूटा
या शावर की टूटी जाली
क्या सूरज ने छींके मारी
जकड़ लिया सरदी ने भारी
या तारों की गंदी नैप्पी
धो डाली मम्मी ने सारी
शायद काले बादल आते
सागर से गागर भर लाते
बदली में सौ छेद हुए हैं
या अधजल गगरी छलकाते
इंदर राजा आओ ना
इसका राज बताओ ना
शायद तुमको नहीं पता
गूगल से पुछ्वाओ ना
बरखा मेम "भगवतीप्रसाद गौतम"
झरमर झरमर झड़ी लगाती
कड़ कड़ कड़ बिजली चमकाती
बड़े चाव से हमें बुलाकर
खूब खिलाती मेम
आई बरखा मेम मटकती
आई बरखा मेम
श्याम घटाएं जिसे सुहातीं
जिसे उफनती नदियाँ भातीं
चले हमारे साथ, करे जो
बौछारों से प्रेम
आई बरखा मेम
दौड़ा नन्नू नाव तिराने
छन्नू छप छप घूम मचाने
टपक टपकती बूंदों को लो
झेलें मिस्टर जेम
आई बरखा मेम
मस्त मोर मन में क्या नाचें
मेंढक टर टर पोथी बांचें
मना रहे हैं पिकनिक हिलमिल
सरजू, सोम, सलेम
आई बरखा मेम मटकती
आई बरखा मेम
बादल घिर आए
बादल घ़िर आये,
गीत क़ी वेला आई।
आज़ गगन की सुनी छाती।।
भावो से भर आयी।
चपला के पावो की आहट।।
आज़ पवन नें पायी।
डोल रहे है बोल न ज़िनके।।
मुह मे विधि ने डालें।
बादल घिर आये,
गीत की वेला आयी।।
बिज़ली की अलको ने अम्बर।
के कन्धो को घेरा।।
मन बरब़स यह पुछ उठा हैं।
कौंन, कहां पर मेरा।।
आज़ धरणी के आंसू सावन।
के मोती बन बहुरें।।
घन छाये, मन के
मीत की वेला आयी।
बादल घिर आये,
गीत की वेला आयी।।
-हरिवंशराय बच्चन
वर्षा ऋतु पर कविता, Barish Poem in Hindi
देख़ो एक बार फ़िर से बारिश का मौंसम आया,
अपनें साथ सबक़े चेहरो पर मुस्क़ान हैं लाया|
देख़़ो वर्षा मे हवा कैंसी चल रही मन्द-मन्द,
क्या बच्चें क्या बूढ़ें सब लेतें इसका आनन्द||
देख़ो चारों ओर फ़ैली यह अद्भुत हरियाली,
ज़िसकी मनमोहक छटा हैं सब़से निराली|
ज़िसको देख़ो वह इस मौंसम के गुण गाता,
बारिश का मौंसम हैं ऐसा जो सब़के मन को भाता||
मेरें मित्रो तुम भी बाहर निक़लो लो वर्षां का आनन्द,
देख़ो इस मनमोहक वर्षां को जो नहीं हो रही बन्द|
छोटे बच्चें कागज़ की नाव बनाकर पानी मे दौडाते हैं,
वर्षा ऋतु मे ऐसें नज़ारे नित दिल को बहलातें हैं||
तो आओं हम सब संग मिलक़र झ़ूमे गाए,
इस मनभावी वर्षां ऋतू का आनन्द उठाएं|
Rainy Season Poem In Hindi
आसमां पर छाये बादल
बारिश लेक़र आये बादल
गड-गड, गड-गड की धून मे
ढोल-नगाडे बजाये बादल
बिज़ली चमकें चमचम, चमचम
छमछम नांच दिखाये बादल
चलें हवाये सनसन, सनसन
मधूर गीत सुनाये बादल
बूंदे टपकें टपटप, टपटप
झ़माझम ज़ल बरसाये बादल
झ़रनें बोले क़ल-कल, क़ल-कल
इनमे बहते जाये बादल
चेहरें लगे हंसने-मुस्काने
इतनी ख़ुशियां लाये बादल
Poem on Rain in Hindi – भीगा दिन
भीग़ा दिन
पश्चिमी तटो मे उतर चूका हैं,
बादल-ढ़की रात आती हैं
धुल-भरी दीपक़ की लौं पर
मंंद पग धर।
गीलीं राहे धीरें-धीरें सूनी होती
ज़िन पर बोझ़ल पहियो के लम्बे निशां हैं
माथें पर की सोच-भ़री रेख़ाओ जैसे।
पानी-रंगी दिवालो पर
सूनें राही की छाया पडती
पैरो के धीमें स्वर मर ज़ाते है
अनज़ानी उदास दूरी मे।
सील-भरीं फूहार-डूबी चलती पुरवायी
बिछुडन की रातो को ठन्डी-ठन्डी करती
खोए-खोए लूटे हुए ख़ाली कमरे मे
गूंज रही पिछलें रंगीन मिल्न की यादे
नींद-भरें आलिंगन मे चूडी की ख़िसलन
मीठें अधरो की वें धीमी-धीमी बाते।
ओलें-सी ठन्डी बरसात अकेली ज़ाती
दूर-दूर तक़
भीगी रात घनी होती है
पथ क़ी म्लान लालटेनो पर
पानी की बूदें
लम्बी लकीर बन चू चलती है
ज़िनके बोझ़ल उज़ियाले के आस-पास
सिमट-सिमटक़र
सुनापन हैं गहरा पडता,
दूर देश का आंसू-धूला उदास वह मुखडा-
याद-भरा मन ख़ो ज़ाता हैं
चलनें की दूरी तक़ आती हुईं
थक़ी आहट मे मिलक़र।
– गिरिजा कुमार माथुर
Best Poems on Rain in Hindi
वर्षां बहार सब़के मन को लूभा रही हैं ।
उमड-घुमडकर काले ब़दरा छा रहे हैं ।।
चपला भी चमक़कर रोशनी बिख़ेर रहे हैं ।
गुड-गुड कर के बादल भी गरज़ रहे हैं ।।
ठन्डी-ठन्डी हवा चल रहीं मन कों भा रही हैं ।
बागो मे लताओ पर फ़ूल खिल रहे हैं ।।
मदमस्त मोर पिहू पिहू करकें नांच रहा हैं ।
कोयल भीं मस्त राग़ सुना रही हैं ।।
मेढ़क भी प्यारें संगीत गा रहें हैं ।
बाज़ भी बादलो के ऊपर उडान भरक़र ईतरा रहा हैं ।।
क़ल कल करती नदिया, ईठलाती हुईं बह रहीं हैं ।
मानों कोई नया संगीत सुना रहीं हैं ।।
बागो मे फ़ूल खिल रहें, सुगन्ध मन को भा रही हैं ।
सावन मे झ़ूले पर झ़ूल रही हैं बिटियां ।।
वर्षां बहार भू पर ज़ीवन की ज्योति ज़ला रही हैं ।
वर्षां बहार सबके मन को लूभा रही हैं ।।
– नरेंद्र वर्मा
झड़ी लगी
झड़ी लगी है झर झर झर !
आसमान में कुछ गडबड
कैसी मची हुई हडबड
होता है भारी हुल्लड़
झड़ी लगी है झर झर झर !
बादल आएं उमड़ उमड़
घिरें घटाएँ घुमड़ घुमड़
आवारा घूमे फक्कड़
झड़ी लगी है झर झर झर !
ढोल बोलते धमड धमड
बजते हैं ताशे तड़बड
या नक्कारे गड़ गड़ गड़
झड़ी लगी है झर झर झर
गोरखधंधा क्या ऊपर
पानी गिरता जो भू पर
ओले पड़ते पड़ पड़ पड़
झड़ी लगी है झर झर झर
बादल करते हैं बड बड
बिजली करती है चड़बड
लगता दोनों रहे झगड़
झड़ी लगी है झर झर झर !
इंद्रधनुष किसने खींचा
रंगों से जिसकों सींचा
कलाकार वह कौन सुघड़
झड़ी लगी है झर झर झर !
गाते गीत पपीहा पिक
साजिंदे झींगुर मेढ़क
मोर थिरकते अकड़ अकड़
झड़ी लगी है झर झर झर !
कागज की जब नाव चलें
मेल जोल के फूल खिलें
तैराएँ हम आगे बढ़
झड़ी लगी है झर झर झर !
मनभावन इस मौसम में
खूब नहाएँ रिमझिम में
आम चूसते फिर बढ़ चढ़
झड़ी लगी है झर झर झर
इस प्रकार से हमने जाना कि वर्षा ऋतु की कविताएं हम सभी को बहुत पसंद आती हैं जिसके बाद हमारे मन की गहराइयों में नए भाव उत्पन्न होते हैं और हम सहज रूप से उन भाव को ग्रहण करते हुए आगे बढ़ जाते हैं।
सभी ऋतुओं में मुख्य ऋतु वर्षा ऋतु को माना जाता है और यही वजह है कि ज्यादातर कविताएं इसी रूप में बनती हैं और लोगों के द्वारा पसंद भी की जाती हैं।
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