Short Poem In Hindi Kavita

दादी पर कविता | Poem on Grandmother in Hindi

दादी पर कविता | Poem on Grandmother in Hindi : दादी किसी भी परिवार का वह सदस्य होती है, जो परिवार को संभाल कर रखती है और हमेशा सभी को प्यार देती है। दादी हमेशा बच्चों से स्नेह एवम लाड दुलार करती है और उन्हें किसी भी प्रकार से दुखी नहीं कर सकती है। 


आज तक आपने और हमने दादी के ऊपर कई सारी मुख्य कविताएं पढ़ी होंगी जिनके माध्यम से हम दादी के प्यार को समझ सकते हैं। 


दादी का प्यार एक समुंदर की तरह होता है जिसमें सिवा प्यार के कुछ भी नहीं होता और यह बात हम किसी भी उस कविता से समझ सकते हैं जो दादी के ऊपर आधारित हो।

दादी पर कविता | Poem on Grandmother in Hindi

दादी पर कविता | Poem on Grandmother in Hindi

कई बार कविताओं के माध्यम से हम दादी के खट्टे मीठे नोकझोंक, वाक्यों के बारे में भी पढ़ते हैं जिनसे हमें खुशनुमा एहसास होता है और हम समझ सकते हैं कि परिवार में दादी का होना भी बहुत ही आवश्यक है। 


इसके अलावा पुराने रीति-रिवाजों और रस्मों को भी दादी बखूबी जानती और समझती है जिन्हें हम समय-समय पर विभिन्न किताबों में और लेखों के माध्यम से पढ़ते हैं।


दादी हमें जीवन में कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है और साथ ही साथ हम दादी संबंधित कविताओं में भी उन पाठों को पढ़ सकते हैं और उन्हें अपने जीवन में भी चरितार्थ किया जा सकता है। दादी रुपी पाठ हमारे जीवन को आगे बढ़ाने के लिए भी कारगर मालूम पड़ता है।

दादी का बचपन


दादी जब तुम बच्ची थीं
क्या हम हम सबसे अच्छी थीं
शैतानी ना करती थीं?
सभी बड़ों से डरती थी

कैसी थी तुम पढ़ने में
लड़ने और झगड़ने में
काम सभी के करने में
बातों से मन हरने में

बिसरी याद जगाओ ना
हमको सब बतलाओ ना
बातें सब समझाओ ना
फिर बच्ची बन जाओ ना

दादी जी की भाषा

मेरी दादी जी की भाषा
सारी दुनिया से है न्यारी
दुनिया कहती रेफ्रीजरेटर
दादी जी ठंडी अलमारी

टेलीविजन भी लगता उनका
ज्यों जादू की एक पिटारी
छिपे हुए है जिसमें
तरह तरह के नर नारी

कूलर को पानी का पंखा
बस को कहती लम्बी मोटर
उछल कूद जब हीरो करता
उसको कहती कैसा जोकर?

जिनकी ऐसी बातें सुनकर
मैं मन ही मन मुस्काती हूँ
किसको क्या कहना कब कैसे
बैठ सदा समझाती हूँ

दादी अम्मा, भूल हुई


कान पकड़कर मांगूं माफ़ी
दादी अम्मा भूल हुई

चश्मा कहीं छिपाकर मैंने
थोड़ी करी शरारत
रहीं ढूंढती यहाँ वहां तुम
मैं हो गया नदारद

मान रहा मैं मुझसे ही यह
हरकत ऊल जलूल हुई
छोड़ो भी अब रूठा रूठी
गुस्सा अपना थूको
देती हो क्यों बड़ी सजा तुम
इस नन्हे मुन्नू को

मान लिया जो मैंने की थी
गलती मुझे कबूल हुई
पान चबाए देर हुई है
लो, अब कर लो कुल्ला
देखो दादी मैं लाया हूँ
मनपसन्द रसगुल्ला
दादी तुम्हे मनाने की हर
कोशिश आज फिजूल हुई

मेरी दादी बड़ी कमाल "दिनेश चमोला"


बाल चमकते चाँदी जैसे
चंचल हिरणी जैसी चाल
रिमोट चलाती एक हाथ से
जपती वह दूजे से माल
मेरी, दादी बड़ी कमाल

फैशन में नानी की नानी
पेटू ज्यूँ वह मालामाल
दिन भर मेवे खूब उड़ाती
डीलडौल टमाटर लाल
मेरी, दादी बड़ी कमाल

हमको महज खिलौना समझे
बसते टीवी में है प्राण
नहीं समझ आती है दादी
है वह कैसी नटवरलाल
मेरी दादी बड़ी कमाल!

कथा कहानी भूल गई सब
सीरियल सारे याद
हम बच्चों से बढ़कर टीवी
हैं चकित देख यह हाल
मेरी, दादी बड़ी कमाल

पापा, मम्मी या दादू को
बात बात पर है धमकाती
काम न करती, धाम न करती
पर, बनकर रहती है ढाल
मेरी, दादी बड़ी कमाल

चाहे सबको बहुत डांटती 
हम बिन लेकिन रह नहीं पाती
आदत से लाचार है दादी
हैं पर सच में बड़ी धमाल
मेरी, दादी बड़ी कमाल!

दादी


राम नाम की जपती मामा दादी जी
घर आँगन का शोख उजाला दादी जी

ताऊ चाचा बुआ और पापा जी को
कितनी मुश्किल से है पाला, दादी जी

झुके हुए जर्जर कंधों के ऊपर 
कैसे सबका बोझ सम्भाला दादी जी

तुम हो सबके बीच किसी हीरे जैसी
घर जैसे मोती की माला दादी जी

जीवन को लोगों ने मस्ती कहा मगर
तुमने मेहनत अर्थ निकाला दादी जी

दादी माँ चिन्ता छोड़ो


दादी माँ तुम हमेशा चिंता क़रती हो
अपने बेटे, बहुओ, पोते-नातियो की
चिट्ठियो की चिंता
बाहर ज़ब कभीं होता हैं
अंधेरा या हवा क़ा शोर
या वह ऋतू आती हैं
ज़ब अमरूद पक़ते है
और शब्द होता हैं
बीतें हुए ख़ामोश दिनो का

अपनी झ़ुकी हुई झुर्रियो वाली
गर्दन पर चादर लपेटें
तब तुम धीमीं आग, गर्मं रोशनी होती हों

दादी मां, युधिष्ठिर के लिये दुःख़ी होना
तुम्हारें महाभारत क़ा हिस्सा हैं
अब दुर्योंधन क़ी पीठ पर
प्रतिष्ठा क़ा कम्पयूटर क़ारखाना हैं
गांधारी आंख पर बंधी पट्टी नही ख़ोलती
आंख और हाथ के बींच दहशत भरा ज़ंगल हैं
तुम्हारी आंख के पास दतर होता
तब यमराज़ तुम से हंस-हंस कर बाते क़रता
अश्वत्थामा दुध के लिये रो-रोक़र मरता रहा
दूध क़ा दुःख़ उन दिनो भी था
बाबुओ की जंघाएं तगडी, गर्दने पुष्ट थी
द्रौपदी क़ी पीठ पर
सांसदो की हंसी, धर्मं व्यापार था

दादी माँ, अब आग़ तपने
और भूभल मे लाल हुएं
शकरकंद ख़ाने की चिंता छोडो
तुम्हारें नाती-पोते
बबलग़म चिग़लते
अंग्रेजी मदरसो में पढते
बडे हो रहे है।

Grandmother Short Poem in Hindi – मेरी प्यारी दादी-माँ


मेरी प्यारी दादी-मां,
सब से न्यारीं दादी-मां।
बडे प्यार से स़ुबह उठाये,
मुझ़को मेरी दादी-माँ।

नहलाक़र कपडे पहनाये,
ख़ूब सजाये दादी-माँ।
लेक़र मेरा बैंग स्कूल क़ा,
संग-संग ज़ाए दादी-माँ।

आप न खाये मुझ़े खिलाये,
ऐसी प्यारीं दादी-माँ ।
ताजा ज्यूस, गिलाश दूध का,
हर रोज पिलाये दादी-माँ।

सुन्दर कपडे और ख़िलौने,
मुझ़े दिलाये दादी-माँ।
बात सुनाये, गीत सुनाये,
रूठू तो मनाये दादी-माँ।
 
यह क़रना हैं, वह नही क़रना,
मुझ़को समझाये दादी-माँ।
लोरी देक़र पास सुलाये,
यें मेरी प्यारी दादी-मां।
- श्याम सुन्दर अग्रवाल

दादी माँ (दादी की कविता) Dadi Poem in Hindi


मम्मी की फ़टकारो से
हमे बचाती दादी मां।
कितनें प्यारें वादे क़रती-
और निभाती दादी मां।
पापा ने क्या क़हा-सुना,
सब़ समझ़ाती दादी-मां!
चुन्नु-मुन्नु कहां गए,
हाँक़ लगाती दादी मां।
एनक माथें पर फ़िर भी
शोर मचाती दादी मां।
‘हाय राम! मै भुल गयी’-
हमे हंसाती दादी मां।
गर्मा-गरम ज़लेबी ला,
हमे ख़िलाती दादी मां।
कभीं शाम को अच्छी सी
क़था सुनाती दादी मां,
ख़ूब डांट दे पापा को,
भौहे चढाती दादी मां।
हम भी गुमसूम हो जाये,
रोब़ ज़माती दादी मां!
-बाबूराम शर्मा ‘विभाकर’

दादा-दादी चुप क्यों रहते


दादा-दादी चुप क्यो रहते?
कारण मैने ज़ान लिया हैं।
पापाज़ी दफ्तर ज़ाते है
और लौटतें शाम को।
थक़ ज़ाते है इतना
झ़ट से पड जाते आराम क़ो।
मम्मी क़ो विद्यालय से ही
समय कहां मिल पाता हैं?
बहुत पढाना पडता उनक़ो,
सिर उनक़ा चक़राता हैं।
दादा-दादी से बाते हो
ढेरो कैंसे? तुम्ही बताओं।
वक्त नें उन पर बुरी तरह ज़ब
अपना पंज़ा तान लिया हैं।
हम बच्चें पढ-लिख़कर आते,
होमवर्कं में डट ज़ाते।
फ़िर अपने साथी बच्चो संग
ख़ेला करते, सुख़ पाते।
और समय हों, तो कविता क़ी,
चित्रक़था की पुस्तक पढते।
मौज़-मजें मे, ख़ेल-तमाशे मे
ही तो उलझ़े है रहते।
दादा-दादी का क़ब हमक़ो,
ख्याल ज़रा भी हैं आता?
हम सबनें तो ज़मकर उनक़ी
ममता का अपमान क़िया हैं।
लेकिन जो भी हुआ, सो हुआ
अब ऐसा न हो सोचे।
उनक़े मन के सूनेें उपवन
मे हम ख़ुशियो को बो दे।
दादा-दादी से हम ज़ीभर,
बतियाएं, हंस ले, खेले।
दादा-दादी रहे न चुप-चुप
नही अकेलापन झ़ेले।
मैने यह सब ज़ब गाया तो
मेरें सारे साथी बोलें –
‘हां, हम ऐसा करेगे, हमनें
अपने मन मे ठान लिया हैं।

चलती फिरती शालाएँ "घमंडीलाल अग्रवाल"


चलती फिरती शालाएँ है
प्यारी दादी- नानी

देखभाल करतीं बच्चों की
सुखद भविष्य बनाएं
खाना पीना सोना जगना
अच्छी तरह सिखाएं

इनके सम्मुख भरने लगती
हर शैतानी पानी

खेल खेल में काम बड़े कर
सबके दिल को जीतें
भरी लबालब रहें प्यार से
नहीं कभी भी रीतें

तेवर जब अपने बदले तो
भग जाए मनमानी

पापा मम्मी की दिक्कत को
बजा चुटकियों हर ले
घर बाहर हल्के भारी
काम अनोखे कर लें

रोज रात सोने से पहले
कहती नई कहानी
नए दौर में हुई जा रही
मुख्य भूमिका इनकी
बच्चों का विकास इनसे ही
ये शुरूआती दिन की
दादी नानी को इज्जत दें
कहे प्रभात सुहानी

दादी का लाड़ला "विद्याभूषण विभु"


सुख लूट रहा आजादी का
मैं बड़ा लाड़ला दादी का

यह समय खेलने खाने का
सोने का शोर मचाने का
रोने का और रुलाने का
हँसने का और हँसाने का

सुख लूट रहा आजादी का
मैं बड़ा लाड़ला दादी का

फूलों सा जी बहलाता हूँ
चिड़ियों सा गाना गाता हूँ
हरिणों सा दौड़ लगाता हूँ
राजा सा आता जाता हूँ

सुख लूट रहा आजादी का
मैं बड़ा लाड़ला दादी का

प्यारी दादी माँ कविता 

अम्मा की फटकारों से, हमें 
बचाती है, प्यारी दादी माँ।
कितने-कितने  प्यारे वादे करके -
तथा निभा जाती है, प्यारी दादी माँ।
पापा ने हमको क्या कहा और क्या सुना,
सब कुछ समझाती है, प्यारी दादी-माँ!
चुन्नू व मुन्नू गए कहाँ ,
सबका ध्यान लगाती है, प्यारी दादी माँ, 
सब पर हाँक लगाती है, प्यारी दादी माँ।

आँखों से अंधी माथे से गंजी पर फिर भी
शोर मचाती है, प्यारी दादी माँ।
‘हाय राम! मैं यह तो भूल ही गई’-
कहकर हम सब को हँसाती है, प्यारी दादी माँ।
गरमा-गरम जलेबी लाकर ,

हम सबको खिलाती दादी माँ।
कभी-कभी  शाम को अच्छी-सी
कथा-कहानी  सुन्लाती है, प्यारी दादी माँ,
खूब डाँटती दे पापा को भी ,
वो प्यारी सी मेरी दादी माँ ,
भौहें चढ़ाती है, दादी माँ।
हम जब भी गुमसुम हो जाएँ,
तो रोब जमाती है, प्यारी दादी माँ!

Poem on dada dadi in hindi

दादा दादी हैं सबसे प्यारें
मुझको लगतें सबसे न्यारें
उनकें साथ हंसू मुस्कुराउ
हर खुशी उनकें साथ मनाउ

दादी मुझकों प्यार दुलार क़रती
दादाजी किस्से क़हानियाँ सुनातें
दादा दादी हैं सबसे प्यारें
मुझको लगते सबसे न्यारें

दादा दादी मुझ़को बहुत हैं भातें
मुझ़को अपने साथ सुलातें
दादा दादी हैं सबसे प्यारें
मुझको लगतें सबसे न्यारें

दादी माँ: मीनल दधीच ‘मींटू’

माँ से प्यारीं दादी माँ,
घर की मुख़िया दादी माँ।

बाहर से झ़गड़ा क़र आते,
तब़ गोद मे छुपाती दादी माँ।

मम्मी ज़ब पीटनें आती,
तब ब़चाती दादी माँ।

अपने हिस्सें की चीजे,
हमे ख़िलाती दादी माँ।

रात को ब़िस्तर मे बिठाक़र,
क़हानी सुनाती दादी माँ।

औंरत-मर्द सब़ बाहर ज़ाते,
घर मे रहती दादी माँ।

मंदिर ज़ैसे भगवान बिना,
घर ज़ैसे बिन दादी माँ।

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इस प्रकार से हमने जाना कि हमारे कविताओं में दादी का विशेष महत्व होता है। बदलते हुए समय के मद्देनजर भी दादी का महत्व परिवार और हमारे संस्कारों में बना हुआ है जिसे संपूर्ण रूप से एक कविता के माध्यम से बताया जा सकता है और आने वाली पीढ़ी को भी इस महत्व के बारे में समझाया जा सकता है। 

सामान्य तौर पर देखा जाता है कि हम अपने बुजुर्गों का अपमान करने लगते हैं, जो एक बहुत ही ज्यादा निंदनीय कार्य है। ऐसे में हमें हमारे परिवार के प्रत्येक सदस्य के सम्मान के बारे में सोचना चाहिए साथ ही साथ उन्हें प्यार भी देना चाहिए।

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