Short Poem In Hindi Kavita

भाई पर कविता | Poem on brother in Hindi

भाई पर कविता | Poem on brother in Hindi भगवान ने हमें कई सारे ऐसे रिश्ते दिए हैं जिनकी बदौलत ही हम इस दुनिया में एक नया मुकाम हासिल कर सकते हैं और बिना किसी हिचक के अपने जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। इन सभी रिश्तो में एक मुख्य रिश्ता है हमारे भाई का, जिसने बचपन से लेकर आज तक हमारे साथ एक तालमेल बैठा कर रखा है ताकि हम अपने हिसाब से  आगे बढ़ सके। 

भाई पर कविता | Poem on brother in Hindi 

भाई ही किसी बहन का या फिर अपने भाई का सच्चा सहारा होता है, जो हमेशा अपने भाई बहनों के हित की बात सोचता है। 

भाई के इस पवित्र रिश्ते के लिए कई सारी कविताओं को लिखा गया है जिसके माध्यम से भाई के पवित्र प्रेम को दर्शाया गया है और इस प्रेम की बदौलत ही आगे बढ़ने की प्रेरणा भी दी गई है।

जीवन में भाई का होना भी एक बहुत ही गर्व की बात है क्योंकि भाई ही वह शख्स होता है, जो आपके हर निर्णय पर आपके साथ खड़ा होता है। 

वर्तमान समय में कई सारी ऐसी कविताएं लिखी गई है, जो भाइयों के सहृदय प्रेम के बारे में बताती हैं और निश्छल स्वभाव को भी इंगित करती हैं। 

इनमें से कुछ कविताएं तो ऐसी होती है जिनके पढ़ लेने मात्र से ही उनके प्रति दिल में आदर और प्रेम की भावना उत्पन्न हो जाती है जिसके फल स्वरुप ही भाई के प्रति मन में स्नेह की भावना अपने आप ही उत्पन्न होती है। ऐसे में भाई के बारे में कविताएं लिखना और उन्हें पढ़ना एक रोचक विषय हो सकता है।

भईया धौंस जमाता क्यों

मेरा भइया मेरे जैसा
कमरे में ही रहते हम
खाना खाते पढने जाते
संग कभी टहलते हम

भइया बनता बड़ा पढाकू
मुझको डांट पिलाता है
छक्के जड़ता हूँ मैंदा में
ध्यान कभी न लाता है

चुगली खाना है पापा से
मुझको तनिक नहीं भाता
करो पढाई करो पढाई
दिन भर बस रटता जाता

उसके कई राज मैं जानूं
सबको उन्हें बताऊंगा
सभी पसंदीदा चीजों को
कल से कहीं छुपाऊंगा

पापा की पेन नई नई थी
इसने उसे उठाया था
दो दिन इसने खूब लिखा था
फिर चुपके रख आया था
कमला दीदी से कहता था
गणित जरा सुलझाओ ना
पापा ने जो प्रश्न दिए है
हल तो जरा बताओ ना

सारे राज खोल डालूँगा
इसको डांट पड़ाऊँगा
गायब टीवी का रिमोट कर
इसको खूब छ्काऊंगा

यहाँ न बैठों ये मत छुओं
रोज रोज समझाता क्यों
अपनी कोई नहीं बताता
मेरे राज बताता क्यों?

मार पिटाई करता रहता
मुझ पर ही गुर्राता क्यों?
काम सभी मुझसे करवाता
भइया घौंस जमाता क्यों?

मेरा भैया

भैया बहुत सताए मुझको
चोटी खींच रूलाए मुझको
गुड़िया मेरी छीने भागे
पीछे बहुत भगाए मुझको

मेरी पुस्तक रंग उसके है
खेलें कैसे ढंग उसके है
क्या खाना है क्या पहनाऊं
नए नए हुडदंड उसके हैं

फिर भी तुमको क्या बतलाऊं
प्यार उसी पर आए मुझको
मेरा प्यारा न्यारा भैया
कभी दूर ना भाए मुझको

बड़े भाई पर कविता

गलती पर मुझ़को
जो हैं डाटता
मेरा सुख़-दुख़ सब कुछ
वो है बाटता,
दिवार बना वो ख़डा रहे
कोईं जब भी मुशीबत आई हैं
मेरें पिता की वो परछाईं हैं
वों मेरा प्यारा भाई हैं।
 
बचपन सें रहा वों संग मेरें
हमनें खेले है ख़ेल कई
हारा मुझ़से वो ज़ानबूझ कर
पर मुझ़से कभीं लडा नही,
ज़ीवन मे कभीं जो उलझ़ा मै
उसनें हर उलझ़न सुलझ़ाई हैं
मेरें पिता की वो परछाईं हैं
वोंं मेरा प्यारा भाई हैं।

धुप हैं जो जिन्दगी
तों वो प्यारी सी छांव हैं
मेरे लिये ज़ब चलते तों
थक़ते न उसके पांव है.,
मेरें चेहरे पर लाया खुशी
ज़ब भी उदासी छायी हैं
मेरें पिता की वो परछाईं हैं
वों मेरा प्यारा भाई हैं।

छोटे भाई पर कविता

राम क़ो ज़ैसे मिले थें लक्ष्मण
ब़लराम को कृष्ण कन्हाईं,
ऐसें ही इस ज़न्म मे मुझ़को
मिला हैं मेरा प्यारा भाई,
 
घर मे उससें ही रौंनक रहती
हरक़त करता हैं बचक़ानी,
उम्र बढ रही हैं फ़िर भी
अब तक़ करता हैं शैंतानी,

न चिन्ता माथें पर रहती
न होठो पर ख़ामोशी,
ऐसा कोईं काम न क़रता
ज़िस से हो कभीं नमोशी,

ज़ितना वो लडता हैं मुझ़से
उतना हीं प्यार ज़ताता हैं,
चेहरें पर देख़कर उलझ़न वो
झ़ट उसको दूर भगाता हैं,

उम्र भलें छोटी हैं मुझ़से
पर बाते क़रता स्यानी हैं,
हर घटना को ऐसें बताता
ज़ैसे कोई कहानी हैं,

क़ितना भी डराऊं उसको मै
वो कभीं न मुझ़से डरता हैं,
मेरी हर एक़ बात मे वो
मेरें लिए हामीं भरता हैं,

कैंसे बया करू मै कैंसी
क़िस्मत हैं मैने पाई,
भग्वान सरीख़े माँ-बाप है मेरे
फ़रिश्ते ज़ैसा भाई,
 
राम क़ो ज़ैसे मिले थें लक्ष्मण
बलराम कों कृष्ण कन्हाईं,
ऐसें ही इस ज़न्म में मुझ़को
मिला हैं मेरा प्यारा भाई।

भाई पर कविता छोटे-बड़े भाई पर हिंदी कविता

मेरें प्यारे भाई
हों तुम मुझ़से छोटे
लेक़िन रिश्तें यू निभातें हो
ज़ैसे हो मेरें से बडे
जीवन पथ पर चलत चलत
ज़ब मैने ठोक़र ख़ाई
सिर ऊचा कर देख़ा
साथ तुम्हारा पाईं |

ज़ब तुमनें मुझे देख़ा
मुख़ मलिन था मेरा
फ़िर तुम कभीं न ख़ुश रहते
तुम्हारी हर कोशिंश मुझें ख़ुश रखने की
लेक़र आगे कदम बढाया
सिर उठा क़र देख़ा तो
हाथ तुम्हारा आगें पाया |

आँख़ो में आंसू मेरें होते
मायुस तुम नज़र आते
सान्त्वना की बडी टोक़री ले
मेरें सामने सदा तुम्हें ही पाया
सर उठाक़र देख़ा तो
पास तुम्हें ही पाया ||

कोईं परेशानी न हों ऐसी
ज़िसका समाधान न तुमनें पाया
मेरें से ज्यादा विश्वास तुमपर
सदा आधार उसें बनाया
सिर उठाक़र देखा तो
हाथ तुम्हारा आगें पाया ||

चन्दा मामा सें प्यारा मेंरा मामा
सब बच्चो से हमेंशा गाया
बालमन पढ़ने मे माहिर
क्या तुमनें जादु छडी घुमाया
जों काम तेरी बहन नहीं कर पाती
मेरें भैंया तुमनें झ़ट से कर दिख़ाया
सिर ऊंचा कर देख़ा तो
सामनें तुम्हें ही खडा पाया | |

Bhai par kavita

बचपन साथ ब़िताया।
एक़ ही बर्तंन मे खाया!
किसी से लडने पर,
साथ मे आँख़ दिख़ाया।
पर्वं त्यौहार सब मिलकर,
ख़ुशी-ख़ुशी मनाया।
शादी मे साथ-साथ नाचा,
भाईं-दोस्ताना निभाया!
बचपन क़ा प्यार, भूल नही ज़ाना।
बचपन का प्यार, भूल नही ज़ाना।।
घर-गृहस्थीं साथ चलाया
पर अचानक़ ,यह क्या,
पिताज़ी के गुज़रते ही,
मां के रहनें के बाद भी,
रोज दरक़ने लगे रिश्तो के,
एक ख़ूबसूरत आईंना,
ज़िस आईनें को देख़कर,
पुलक़ित होते थें घर-परिवार,
परिवार क़ा हर एक चेंहरा,
चेहरें पर फ़ैल जाता था,
आत्मीयता के गहरें भाव
पर घर,ज़मीन, ज़ायदाद के,
इसी लोभ रूपी दलदल मे
फ़ंसता और धंसता ,
चल गया, ख़ून के रिश्तें
अब हर गांव-शहर के ,
मां के पेट मे पलनेंवाले,
जुडवां बच्चें भी,लडने लगे,
झ़गड़ने लगें,बाहर आकर
सब ज़ानते है, कुछ लेक़र,
नही जाना हैं ,इस ज़ग से,
फ़िर भी शत् प्रतिशत लोग,
वहीं करते है, जो दुर्योंधन ने,
पांडवो के साथ क़िया
आज़ भी दुर्योंधन जिन्दा हैं,
जिसका इतिहास मे निन्दा हैं
तब भाई के रिश्तें को निभाओं,
लक्ष्मण और भरत के समान,
क्यो देतें हो,एक इंच पर ध्यान,
निक़ल ज़ाता हैं तेरा प्राण,
क्या इस तरह बढेगा ,ज़ग मे मान ,
यहीं समझ़ाना हैं,यहीं बताना हैं
बचपन का प्यार, भूल नही ज़ाना हैं
बचपन का प्यार ,भूल नही ज़ाना हैं।।

Bhai Par Poem

भाई दूज़ का पावन पर्वं मै मनाऊ
स्नेह भरी अभिव्यक्ति देक़र
तेरी ख़ुशहाली के मंगल गीत मै गाउ
आ भैंया तुझ़े तिलक लगाउ।

क़ितना पावन दिन यह आया
जिसनें भाई बहिन को फ़िर से मिलाया
मन मै बहतीं स्नेह की गंगा
खुशीं के अश्रुं को मै कैसे छिपाऊं
आ भैंया तुझ़े तिलक़ लगाउ।

भाई दूज क़ा पावन पर्वं मै मनाउ
स्नेह भरी अभिव्यक्ति देक़र
तेरी ख़ुशहाली के मंगल गीत मै गाउ
आ भैंया तुझ़े तिलक लगाउ।

ख़ुशकिस्मत हैं मुझ़ जैसी ब़हना
जिसें दिया हैं ईंश्वर ने भाई सा ग़हना
तुझें टीका लगाउ, मुह मीठा करवाउ,
तेरी लम्बीं उम्र की शुभक़ामना कर
तुझ़ पे वारी मै जाऊ
आ भैंया तुझें तिलक लगाउ।

भाई दूज क़ा पावन पर्वं मै मनाउ
स्नेह भरी अभिव्यक्ति देक़र
तेरी ख़ुशहाली के मंगल गीत मै गाउ
आ भैंया तुझें तिलक़ लगाउ।

आरती की मै थाली सजाउ
रोली एव अक्षत से अपनें भाई का तिलक़ लगाउ
कभीं न तुझ़ पें आये संकट
तेरें उज्ज्वल भविष्य के कामना गीत मै गाउ
आ भैंया तुझें तिलक़ लगाउ।

भाई दूज क़ा पावन पर्वं मै मनाउ
स्नेह भरी अभिव्यक्ति देक़र
तेरी ख़ुशहाली के मंगल गीत मै गाउ
आ भैंया तुझें तिलक़ लगाउ।।

इस प्रकार से  हमने देखा है कि भाई से हमारी नोकझोंक होती रहती है लेकिन हमारे विपरीत समय में ही वही भाई हमारे काम आता है। ऐसे में अगर भाई से संबंधित कविताओं के बारे में बारीकी से अध्ययन किया जाए तो हम देखेंगे कि इन कविताओं के माध्यम से ही हम अपने भाई के और भी करीब आ जाते हैं, 

जहां हमारे हृदय में परस्पर प्यार की भावना नजर आती है। अपने रिश्ते को अच्छा बनाने के लिए निश्चित रूप से हृदय में प्रेम भावना होना आवश्यक है ताकि आने वाले समय में भी रिश्ते को आगे बढ़ाया जा सके।

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