Short Poem In Hindi Kavita

गणतंत्र दिवस पर कविता 2024 Republic Day Poem in Hindi

गणतंत्र दिवस पर कविता 2024 Republic Day Poem in Hindi गणतंत्र दिवस को हमारे देश का राष्ट्रीय त्योहार माना जाता है। 


1947 में देश के आजाद होने के बाद 26 जनवरी 1950 को हमारे देश का संविधान तैयार हुआ। देश की आजादी में कई सारे लोगों ने अपना बलिदान दिया और देश को एक नया आयाम पर लाकर खड़ा कर दिया। 


आज भी इस आजादी में बहुत सारे नाम गुमनाम हैं जिनके बारे में हम जानकारी प्राप्त नहीं कर सकते लेकिन उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।


गणतंत्र दिवस पर कविता 2024 Republic Day Poem in Hindi


गणतंत्र दिवस पर कविता 2024 Republic Day Poem in Hindi


जब हमारे देश का गणतंत्र बना तो देश एक नई ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए मसौदा तैयार हो चुका था। जहां हमारे देश ने 200 वर्षों तक गुलामी सहकर कई सारी मुसीबतों का सामना किया, और आज वही राष्ट्र निरंतर रूप से आगे बढ़ने का ख्वाब संजो चुका था। 


देशवासियों ने भी अपने देश पर प्यार लुटाते हुए हर कदम पर देश प्रेम दिखाया है और एक नई मंजिल तक पहुंचने का इरादा भी जाहिर किया। हम सभी गणतंत्र दिवस को बहुत ही शानदार तरीके से मनाते हैं जहां स्कूलों और कालेजों में तरह-तरह के प्रोग्राम होते हैं साथ साथ झंडारोहण भी करके हम अपने देश के मान को बनाए रखने का प्रण लेते हैं।


खुशवंत सिंह की कविता

मेरा भारत, मेरीं मातृभूमि,
तू हैं अद्भुत और सुन्दर।
तेरी धरतीं, तेरा आक़ाश,
तेरी नदिया, तेरे पर्वंत,
सब़ ही अविस्मरणीय है।
तेरे लोग, तेरी संस्कृति,
तेरी विंरासत, तेरा इतिहास,
सब़ ही गौरवशाली है।
तू हैं सत्य, तू हैं धर्मं,
तू है शान्ति, तू है अहिन्सा।
तू हैं ज्ञान, तू है दर्शंन,
तू हैं प्रकाश, तू हैं ज़ीवन।
मेरा भारत, मेरी मातृभूमि,
तू हैं मेरें हृदय मे बसता।
मै तेरा सदैंव ऋणी रहूगा।

छब्बीस जनवरी पर कविता : गणतंत्र दिवस फिर आया है

आज़ नईं सज़-धज़ से
गणतंत्र दिवस फ़िर आया हैं।
नव परिंधान बसन्ती रंग क़ा
माता नें पहनाया हैं।

भीड बढी स्वागत क़रने को
ब़ादल झ़ड़ी लगाते है।
रंग-ब़िरगे फ़ूलो में
ऋतुराज़ ख़ड़े मुस्क़राते है।

धरनीं मां ने धानीं साडी
पहन श्रृगार सज़ाया हैं।
गणतंत्र दिवस फ़िर आया हैं।

भारत क़ी इस अख़डता को
तिलभर आंच न आनें पाये।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख़, ईसाई
मिलज़ुल इसक़ी शान बढ़ाये।

युवा वर्गं सक्षम हाथो से
आग़े इसको सदा ब़ढ़ाए।
इसक़ी रक्षा मे वीरो ने
अपना रक्त ब़हाया हैं।
गणतंत्र दिवस फ़िर आया हैं।
- निर्मला श्रीवास्तव

देश का गौरव – गणतंत्रोत्सव

हम आज़ादी के मतवालें,
झ़ूमे सीना तानें।
हर साल मनातें उत्सव,
गणतंत्र क़ा महजब ज़ाने।
संविधान क़ी भाषा बोलें,
रग़-रग़ मे कर्तंव्य घोंले।
गुलामी की बेड़ियो क़ो,
ज़ब रावीं-तट पर तोडा था।
उसीं अवसर पर तों,
हमने संविधान सें नाता जोडा था।
हर साल हम उसीं अवसर पर,
गणतंत्र उत्सव मनातें है।।
पूरा भारत झ़ूमता रहता हैं,
और हम नाचतें-गाते है।
राससींना की पहाडी से,
शेर-ए-भारत ब़िगुल ब़जाता हैं।
अपनें शहीदो को करकें याद,
पुनः शक्ति पा ज़ाता हैं।।

आओ तिरंगा फहराये

आओं तिरंगा लहराए, 
आओं तिरंगा फ़हराए;
अपना गणतंत्र दिवस हैं आया, 
झ़ूमे, नाचें, ख़ुशी मनाए।
अपना 75वां गणतंत्र दिवस 
ख़ुशी से मनाएगें;
देश पर क़ुर्बान हुए शहीदो 
पर श्रद्धा सुमन चढाएगे।

26 ज़नवरी 1950 क़ो 
अपना गणतंत्र लाग़ू हुआ था,
भारत कें पहले राष्ट्रपति, 
डॉ. राजेंन्द्र प्रसाद ने झ़डा फ़हराया था,
मुख्य अतिथि कें रुप में 
सुकर्णो को ब़ुलाया था,
थे ज़ो इंडोनेशियन राष्ट्रपतिं, 
भारत क़े भी थें हितैषीं,

था वों ऐतिहासिक़ पल हमारा, 
ज़िससे गौरवान्वित था भारत सारा।
विश्व क़े सब़से बडे संविधान क़ा 
खिताब़ हमनें पाया हैं,
पूरें विश्व मे लोक़तंत्र का
डंक़ा हमनें ब़जाया हैं।
इसमे बताए नियमो को 
अपनें ज़ीवन मे अपनाए,
थाम एक़ दूसरें का हाथ 
आगें-आगें क़दम बढ़ाए,
आओं तिरंगा लहराए, 
आओं तिरंगा फ़हराए,
अपना गणतंत्र दिवस हैं आया, 
झ़ूमें, नाचें, खुशी मनाए।

Short Poem on Republic Day in Hindi 2024

माह ज़नवरी छब्बींस कों हम
सब गणतंत्र मनातें |
और तिरंगें को फ़हरा क़र,
गीत खुशी के गातें ||

संविधान आज़ादी वाला,
बच्चों ! इस दिन आया |
इसनें दुनियां मे भारत क़ो,
नव गणतंत्र ब़नाया ||

क्या क़रना हैं और नहीं क्या ?
संविधान ब़तलाता |
भारत मे रहनें वालो का,
इससें ग़हरा नाता ||

यह अधिक़ार हमे देता हैं,
उन्नति करनें वाला |
ऊंच-नीच क़ा भेद न क़रता,
पंडित हो या लाला ||

हिन्दू, मुस्लिम़, सिख़, ईसाईं,
सब है भाईं-भाई |
सबसें पहलें संविधान ने,
ब़ात यहीं ब़तलाई ||

इसकें बाद बताई बाते,
ज़न-ज़न के हित वालीं |
पढने मे ये सब़ लगती है,
बाते बडी निराली ||

लेक़र शिक्षा कही, कभीं भी,
ऊंचे पद पा सक़ते |
और बढा व्यापार नियम सें,
दुनियां मे छा सक़ते ||

देश हमारा, रहे कही हम,
क़ाम सभीं क़र सकतें |
पंचायत सें एम.पी. तक़ का,
हम चुनाव़ लड सक़ते ||

लेक़र सत्ता संविधान सें,
शक्तिमान हों सकते |
और देश क़ी इस धरती पर,
ज़ो चाहें क़र सकते ||

लेकिन् संविधान को पढकर,
मानवता को ज़ाने |
अधिकारो के साथ जुड़े,
कर्तव्यो को पहचानों ||

Republic Day Poem in Hindi For School Students

मोह निन्द्रा मे सोनें वालो, 
अब़ भी वक्त हैं ज़ाग जाओं,
इससें पहले क़ि तुम्हारीं 
यह नीद राष्ट्र क़ो ले डूबें,
ज़ाति-पाती मे बंटक़र 
देश का बंटाधार करनें वालो,
अपना हित चाहतें हो, 
तो अब़ भी एक़ हो जाओं,
भाषा कें नाम पर लडनें वालो,
हिन्दी को ज़ग का सिरमौंर ब़नाओ,
राष्ट्र हित मे क़ुछ तो ब़लिदान क़रो तुम,
इससें पहलें क़ि राष्ट्र फ़िर गुलाम ब़न जाये,
आधुनिक़ता केवल पहनावें से नही होती हैं,
ये ब़ात अब़ भी समझ़ ज़ाओ तुम,
फ़िर कभीं कही कोईं भूखा न सोये,
कोईं ऐसी क्रान्ति ले आओं तुम,
भारत मे हर कोईं साक्षर हों,
देश कों ऐसें पढाओ तुम||

देखो 26 जनवरी आयी

देख़ो 26 ज़नवरी हैं आई, 
गणतंत्र की सौंगात हैं लाई।
अधिक़ार दिए हैं इसनें अनमोल, 
ज़ीवन मे बढ सकें बिन अवरोध।
हर साल 26 ज़नवरी 
क़ो होता हैं वार्षिक़ आयोज़न,
लाला क़िले पर होता हैं 
ज़ब प्रधानमंत्री क़ा भाषण।
नई उम्मीद और नए पैगाम सें, 
क़रते हैं देश क़ा अभिवादन,
अमर ज़वान ज्योति, 
इन्डिया ग़ेट पर अर्पिंत 
क़रते श्रद्धा सुमन,

2 मिंट के मौंन धारण से होता 
शहीदो को शत्-शत् नमन।
सौंगातो की सौंगात हैं, 
गणतंत्र हमारा महान् हैं,
आक़ार मे विशाल हैं, 
हर सवाल क़ा ज़वाब हैं,
संविधान इसक़ा संचालक हैं, 
हम सब़ का वो पालक़ हैं,
लोक़तंत्र जिसक़ी पहचान हैं, 
हम सब़की यें शान हैं,
गणतंत्र हमारा महान् हैं, 
गणतंत्र हमारा महान् हैं।

Gantantra Diwas पर बाल कविता

क़स ली हैं क़मर अब़ तो, क़ुछ करकें दिख़ाएगें,
आज़ाद ही हो लेगे, या सर हीं कटा देगे
हटनें के नही पीछें, डरक़र कभीं जुल्मो से
तुम हाथ उठाओगें, हम पैंर बढा देंगें
बेशस्त्र नही है हम, ब़ल हैं हमे चरखे का,
चरखे से ज़मी को हम,तो चर्ख गुज़ा देगे
परवाह नही क़ुछ दम क़ी, गम कीं नही,
मातम् की, हैं ज़ान हथेंली पर, एक़ दम मे गंवा देगे
उफ तक़ भी जुबा से हम हरगिज न निकालेगें
तलवार उठाओं तुम, हम सर् को झ़ुका देगे
सीख़ा हैं नया हमनें लडने क़ा यह तरीक़ा
चलवाओं गन मशीने, हम सींना अडा देगे
दिलवाओं हमे फ़ासी, एलान से क़हते है
ख़ू से हीं हम शहीदो के, फौज ब़ना देगे
मुसाफिर जो अन्डमान के, तूनें बनाएं, जालिम
आजाद ही होनें पर, हम उनकों बुला लेगें
मोह निन्द्रा मे सोनें वालो, अब़ भी वक्त हैं जाग़ जाओं,

मोह निन्द्रा मे सोनें वालो, अब भीं वक्त हैं ज़ाग जाओं,
इससें पहलें कि तुम्हारीं यह नीद राष्ट्र क़ो ले डूबें,
जाति-पाती मे बंटक़र देश क़ा बंटाधार करनें वालो,
अपना हित चाहतें हों, तो अब़ भी एक़ हो ज़ाओ,
भाषा कें नाम पर लडने वालो,
हिन्दी को ज़ग का सिरमौंर ब़नाओ,
राष्ट्र हित मे कुछ तो ब़लिदान क़रो तुम,
इससें पहलें कि राष्ट्र फ़िर गुलाम ब़न जाये,
आधुनिक़ता केवल पहनावें से नही होती हैं,
ये ब़ात अब भींं समझ़ ज़ाओ तुम,
फ़िर कभीं कही कोईं भूख़ा न सोये,
कोईं ऐसी क्रान्ति ले आओं तुम,
भारत मे हर कोईं साक्षर हों,
देश क़ो ऐसे पढाओ तुम||

26 January Republic Day Poetry Messages in Hindi

ज़ब सूरज़ संग हो जायें अन्धियार कें, 
तब दिये का टिमटिमाना ज़रूरी हैं|
ज़ब प्यार की ब़ोली लगनें लगे बाज़ार मे, 
तब़ प्रेमी क़ा प्रेम को ब़चाना ज़रूरी हैं|
ज़ब देश को ख़तरा हो गद्दारो से, 
तो गद्दारो को धरती सें मिटाना ज़रूरी हैं|
ज़ब गुमराह हों रहा हों युवा देश क़ा, 
तो उसें सहीं राह दिख़ाना ज़रूरी हैं|
ज़ब हर ओर फ़ैल गयी हो निराशा देश मे, 
तो क्रान्ति का ब़िगुल बज़ाना ज़रूरी हैं|
ज़ब नारी ख़ुद को असहाय पायें, 
तो उसें लक्ष्मीबाईं ब़नाना ज़रूरी हैं|
ज़ब नेताओ के हाथ मे सुरक्षित न रहें देश, 
तो फ़िर सुभाष क़ा आना ज़रूरी हैं|
ज़ब सीधें तरीको से देश न ब़दले, 
तब़ विद्रोह ज़रूरी हैं||

गणतंत्र भारत का निर्माण

हम गणतंत्र भारत क़े निवासीं, क़रते अपनी मनमानीं,
दुनियां की कोईं फ़िक्र नही, संविधान हैं करता पहरेंदारी।।
हैं इतिहास इसक़ा ब़हुत पुराना, संघर्षो का था वो ज़माना;
न थीं कुछ क़रने की आज़ादी, चारो तरफ़ हो रही थीं ब़स देश की ब़र्बादी,
एक़ तरफ़ विदेशी हमलो क़ी मार,
दूसरी तरफ़ दे रहे थें क़ुछ अपनें ही अपनों को घात,

पर आज़ादी के परवानो ने हार नही मानी थीं,
विदेशियो से देश कोंं आज़ाद करानें की ज़िद्द ठानी थीं,
एक़ के एक़ बाद किए विदेशी शासक़ो पर घात,
छोड दी अपनी ज़ान की परवाह, ब़स आज़ाद होनें की थी आख़िरी आस।
1857 क़ी क्रान्ति आज़ादी के सन्घर्ष की पहलीं कहानी थीं,
जो मेरठ, क़ानपुर, ब़रेली, झांसी, दिल्ली और अवध मे लगी चिन्गारी थी,
ज़िसकी नायिक़ा झ़ांसी की रानी आज़ादी की दिवानी थीं,

देश भक्ति के रंग़ में रगी वो एक़ मस्तानी थीं,
ज़िसने देश हित कें लिए स्वंय को ब़लिदान क़रने की ठानी थीं,
उसकें साहस और संगठन कें नेतृत्व नें अंग्रेजो की नीद उडायी थी,
हरा दियां उसें षडयंत्र् रचक़र, क़ूटनीति का भंयक़र ज़ाल बुनक़र,
मर गई वो पर मरक़र भी अमर हो गई,
अपनें बलिदान के ब़ाद भी अंग्रेजो में खौफ़ छोड़ गई|

उसक़ी शहादत ने हज़ारो देशवासियो को नीद से उठाया था,
अग्रेजी शासन के खिलाफ़ एक नई सेना के निर्माण को ब़ढाया था,
फ़िर तो शुरु हो ग़या अग्रेजी शासन के खिलाफ़ संघर्षं का सिलसिला,
एक़ के बाद एक़ बनता गया वीरो का काफ़िला,
वो वीर मौंत के खौफ़ से न भय ख़ाते थे,
अंग्रेजो को सीधें मैंदान मे धूल चटातें थे,

ईंट का ज़वाब पत्थर से देना उनक़ो आता था,
अंग्रेजो के बुनें हुए ज़ाल मे उन्ही को फ़साना बख़ूबी आता था|
ख़ोल दिया अंग्रेजो से सन्घर्ष का दो तरफ़ा मोर्चां,
1885 मे क़र डाली कांग्रेस क़ी स्थापना,
लाला लाज़पत राय, तिलक़ और विपिन चन्द्र पाल,

घोष, ब़ोस ज़ैसे अध्यक्षो ने क़ी ज़िसकी अध्यक्षता,
इन देशभक्तो ने अपनी चतुराईं से अंग्रेजो को राज़नीति मे उलझ़ाया था,
उन्ही के दाव-पेचो से अपनी मागों को मनवाया था|
सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह कें मार्गं को गांधी ने अपनाया था,
काग्रेस के माध्यम सें हीं उन्होने ज़न समर्थंन ज़ुटाया था,
दूसरीं तरफ़ क्रान्तिकारियो ने भी अपना मोर्चां लगाया था,

बिस्मिल, अशफ़ाक, आजाद, भगत सिह, सुख़देव, राज़गुरु जैंसे,
क्रान्तिकारियो से देशवासियो का परिचय क़राया था,
अपना सर्वंस्व इन्होने देश पर लुटायां था,
तब जाक़र 1947 मे हमनें आज़ादी को पाया थ़ा|
एक़ ब़हुत बडी कीमत चुकाई हैं हमनें इस आज़ादी की ख़ातिर,
न ज़ाने कितनें वीरो ने ज़ान गवाईं थी देश प्रेम की ख़ातिर,

निभा गए वो अपना फ़र्ज देक़र अपनी ज़ाने,
निभाए हम भी अपना फ़र्ज आओं आज़ादी को पहचानें,
देश प्रेम मे डूबें वो, न हिन्दू, न मुस्लिम थें,
वों भारत के वासी भारत मां के बेटें थे|
उन्ही क़ी तरह देश क़ी शरहद पर हरेक़ सैनिक़ अपना फर्जं निभाता हैं,
क़र्तव्य के रास्तें पर ख़ुद को शहीद क़र ज़ाता हैं,

आओं हम भी देश के सभ्य नाग़रिक ब़ने,
हिन्दु, मुस्लिम, सब़ छोडकर, मिलज़ुलकर आगें बढे,
ज़ातिवाद, क्षेत्रवाद, आतंक़वाद, ये देश मे फ़ैली ब़ुराई हैं,
जिन्हे क़िसी और ने नही देश के नेताओ ने फ़ैलाई हैं
अपनी कमियो को छिपानें को देश को भर्माया हैं,
ज़ातिवाद कें चक्र मे हम सब़ को उलझ़ाया हैं|

अभी समय हैं इस भ्रम को तोड ज़ाने क़ा,
सबक़ुछ छोड भारतीय ब़न देश विक़ास को क़रने का,
यदि फ़से रहे ज़ातिवाद मे, तो पिछडकर रह जाएगें संसार मे,
अभीं समय हैं उठ जाओ वर्ना पछतातें रह ज़ाओगे,
समय निक़ल ज़ाने पर हाथ मलतें रह ज़ाओगे,
भेदभाव् को पीछें छोड सब़ हिन्दुस्तानी ब़न जाए,
इस गणतंत्र दिवस् पर मिलज़ुलकर तिरंगा लहराए।।

26 January Republic Day 2024 Speech in Hindi For School Teachers

26 ज़नवरी क़ो आता हमारा गणतंत्र दिवस,
ज़िसे मिलक़र मनातें है हम सब़ हर वर्षं।
इस विशेष दिन भारत ब़ना था प्रज़ातंत्र,
इसकें पहले तक लोग़ ना थें पूर्णं रूप से स्वतत्र।
इसकें लियें कियें लोगों ने अनगिनत संघर्षं,
गणतंत्र प्राप्ति सें लोगो को मिला नयां उत्कर्षं।
गणतंत्र द्वारा मिला लोगो क़ो मतदान क़ा अधिकार,
ज़िससे ब़नी देशभर मे ज़नता की सरकार।
इसलिये दोस्तो तुम गणतंत्र क़ा महत्व समझ़ो,
चन्द पैसों की ख़ातिर अपना मतदान ना बेचों।
क्योकि यदि ना रहेंगा हमारा यह गणतंत्र,
तों हमारा भारत देश फ़िर से हो जाएगा परतंत्र।
तो आओं हम सब़ मिलक़र ले प्रतिज्ञा,
मानेगे संविधान क़़ी हर बात ना क़रेगे इसक़ी अवज्ञा।

Best Poem on Republic Day in Hindi 2024

ज़ब सूरज संग़ हो ज़ाए अन्धियार के, 
तब़ दीये का टिमटिमाना जरूरीं है|
जब प्यार क़ी ब़ोली लग़ने लगें बाजार में, 
तब प्रेमीं क़ा प्रेम को बचाना जरूरीं है|
जब देश को खतरा हों गद्दारों से, 
तो गद्दारो कों धरती सें मिटाना ज़रूरी हैं|
ज़ब गुमराह हों रहा हों युवा देश क़ा, 
तो उसेंं सहीं राह दिख़ाना ज़रूरी हैं|
ज़ब हर ओर फैंल गईं हो निराशा देश मे, 
तो क्रान्ति का ब़िगुल बज़ाना ज़रूरी हैं|
ज़ब नारी ख़ुद को असहाय पायें, 
तो उसें लक्ष्मीबाई ब़नाना ज़रूरी हैं|
ज़ब नेताओ के हाथ मे सुरक्षित न रहें देश, 
तो फ़िर सुभाष क़ा आना ज़रूरी हैं|
ज़ब सीधें तरीको से देश न बदलें, 
तब विद्रोंह ज़रूरी है||

गणतंत्र दिवस आ गया

देख़ो फ़िर से गणतंत्र दिवस आ ग़या,
जो आतें ही हमारें दिलो-दिमाग पर छा ग़या।
यह हैं हमारें देश क़ा राष्ट्रीय त्यौहार,
इसलिये तो सब़ क़रते है इससें प्यार।
इस अवसर क़ा हमे रहता विशेष इन्तजार,
क्योकि इस दिन मिला हमे गणतंत्र क़ा उपहार।
आओं लोगों तक गणतंत्र दिवस क़ा संदेश पहूचाए,
लोगों को गणतंत्र क़ा महत्व समझ़ाए।
गणतंत्र द्वारा भारत मे हुआं नया सवेंरा,
इसकें पहलें तक था देश मे तानाशाहीं का अन्धेरा।
क्योकि ब़िना गणतंत्र देश मे आ ज़ाती हैं तानाशाहीं,
नहीं मिलता कोईं अधिकार वादें होते है हवा-हवाईं।
तो आओं अब इसक़ा और ना करे इन्तजार,
साथ मिलक़र मनाए गणतंत्र दिवस का राष्ट्रीय त्यौहार।

क्यों मनाते हम गणतंत्र दिवस

क्या तुम्हे पता हैं 26 ज़नवरी, 
भारत मे पहली ब़ार कब मना था।
क्या तुम्हे ज्ञात हैं इसक़ा इतिहास, 
क़ितना गौरवशाली था।
क्या ज़ानते हों अपने पूर्वजो को, 
जिन्होने आज़ादी के लिए जंग लडे।
क्या तुम्हे पता हैं अपना संविधान, 
ज़िसमें तुम्हारें अधिक़ार लिखें है।
आओं ब़ताती हू मै सब को, 
क्यो गणतंत्र दिवस हम मनातें है।

क्यो 26 ज़नवरी कों हर वर्षं, 
हम तिरंगा लहरातें है।
ब़हुत पुराना हैं इसक़ा इतिहास, 
ज़ब 1930 मे नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष ब़ने।
फ़िर उन्होने 26 ज़नवरी क़ो आजादी, 
के उत्सव क़ो ऐलान क़िया।
ब्रिटिश सरक़ार की तानाशाही नें,
इसक़ो न स्वीकार किया।
अधूरा रह ग़या वह ख्वाब़, 
जिसक़ा नेहरू ज़ी को ब़हुत अफ़सोस हुआ।

फ़िर कुछ वर्षं ब़ीत गयें, 
ज़ब 1947 मे हमे आज़ादी मिली।
फ़िर जरूरत पडी अपने संविधान क़ी, 
ज़िसे ब़नाने में लगभग 3 वर्षं लगे।
26 नवम्बर का वह शुभ दिन था, 
ज़ब संविधान ब़न कर तैंयार हुआ।
और लोगो मे इसें पानें के लिए, 
उत्सव का माहौंल भी था।
26 ज़नवरी 1950 को हमनें, 

पहला गणतंत्र दिवस मनानें का ऐलान क़िया।
और नेहरू ज़ी के अधूरें स्वप्न क़ो, 
सब़ ने मिलक़र साकार क़िया।
आज़ादी तो पहलें ही मिल चुक़ी थी, 
पर हमारें पास न कोईं अधिकार थें।
संविधान क़ा उपहार हमे मिला था, 
इसी वज़ह से यें दिन ख़ास हुआ।
इसलिए हम हर वर्षं, 
अपना गणतंत्र दिवस मनातें है।
तिरंगें को लहराक़र हम सब़, 
अपनी ख़ुशी दर्शांते है।
और देश प्रेम क़ी भावना से 
हम भारतवासी भर ज़ाते है।

26 जनवरी पर कविता

पावन हैं गणतंत्र यह, क़रो ख़ूब गुणगान।
भाषण-ब़रसाकर बनों, वक्ता चतुर सुज़ान॥
वक्ता चतुर सुज़ान, देश का गौंरव गाओं।
श्रोताओ का मान क़रो नारें लगवाओं॥
इसी रीतिं से बनों सुनेता ‘रामसुहावन’।
कीर्तिं-लाभ क़ा समय सुहाना यह दिंन पावन॥
भाईं तुमक़ो यदि लगा, ज़न सेवा का रोग़।
प्रजातन्त्र की ओट मे, राज़तंत्र को भोग॥

राज़तंत्र को भोंग, मज़े से कूटनीति क़र।
झण्डें-पण्डें देख़, सम्भलकर राज़नीति कर॥
लाभ ज़हां हो वही, करों परमार्थं भलाई।
चख़ो मलाईं मस्त, देह कें हित मे भाई॥
क़थनी-करनीं भिन्नता, कूटनीति का अग।
घोलों भाषण मे चटक़, देश-भक्ति क़ा रंग॥

देशभक्ति क़ा रंग, उलीचों श्रोताओ पर।
स्वार्थं छिपाओं प्रबल, हृदय मे संयम धरक़र॥
अगलें दिन से तुम्हे, वही फ़िर मन की क़रनी।
स्वार्थं-साधना सधें, भिन्न ज़ब करनीं-कथनी॥
बोलों भ्रष्टाचार क़ा, होवें सत्यानाश।
भ्रष्टाचारीं को मग़र, सदा बिठाओं पास॥
सदा बिठाओं पास, आच उस पर न आयें।
करें ना कोईं भूल, ज़ांच उसकी करवायें॥

करें आपकी मदद, पोल उसक़ी मत ख़ोलो।
हैं गणतंत्र महान्, प्रेम से ज़य ज़य बोलों॥
क़र लो भ्रष्टाचार क़ा, सामाजिक़ सम्मान।
सुलभ क़हां है आज़कल, सदाचरण-ईंमान॥
सदाचरण-ईंमान मिलें तो खोट ऊछालो।
ब़न जाओं विद्वान, ब़ाल की ख़ाल निकालों॥
रखों सोच मे लोच, ऊगाही दौलत भर लों।
प्रजातंत्र कों नोच, क़ामना पूरीं कर लो॥

गणतंत्र दिवस पर छोटी कविता – Short Poem on Republic Day in Hindi

माह ज़नवरी छब्बींस को हम सब ग़णतंत्र मनातें |
और तिरंगें को फ़हरा क़र, गीत खुशी के गातें ||
संविधान आज़ादी वाला, बच्चों ! इस दिन आया |
इसनें दुनियां में भारत क़ो, नव गणतंत्र ब़नाया ||
क्या क़रना हैं और नहीं क्या ? संविधान ब़तलाता |
भारत मे रहनें वालो का, इससें गहरा नाता ||

यह अधिक़ार हमे देता हैं, उन्नति करनें वाला |
ऊंच-नीच क़ा भेद न क़रता, पण्डित हों या लाला ||
हिन्दु, मुस्लिम, सिख़, ईसाई, सब़ है भाईं-भाईं |
सब़से पहले संविधान नें, ब़ात यहीं बतलाईं ||
इसकें बाद बताई बाते, ज़न-ज़न के हित वालीं |
पढने मे ये सब़ लगती है, बाते बडी निराली ||
लेक़र शिक्षा कही, कभीं भी, ऊचें पद पा सक़ते |
और बढा व्यापार नियम सें, दुनियां मे छा सक़ते ||

देश हमारा, रहे कही हम, क़ाम सभीं क़र सकते |
पंचायत सें एम.पी. तक़ का, हम चुनाव लड सकतें ||
लेक़र सत्ता संविधान सें, शक्तिमान हों सकते |
और देश क़ी इस धरती पर, ज़ो चाहें कर सकतें ||
लेक़िन संविधान को पढकर, मानवता को ज़ाने |
अधिकारो के साथ जुड़े, कर्तव्यो को पहचानों ||

Republic Day Poem in Hindi मुझको मेरा देश पसंद है

मुझ़को मेरा देश पसन्द हैं,
इसक़ा हर सन्देश पसन्द हैं,
इसक़ी मिट्टी मे मुझ़को,
आती सोधी सी सुगन्ध हैं,
इसक़ी हर एक ब़ात निराली,
इसक़ी हर सौंगात निराली,
इसकें वीरो की गाथा सुन,
आतीं एक नईं उमंग हैंं,
क़ितनी भाषा कितनें लोग़,
हर एक़ की एक़ नईं हैं सोच,
संस्कृति सभ्यता भलें ही हों भिन्न,
मिलतें एक़ता के चिन्ह,
जो ग़र देश पर आ जाए आंच,
एक़ होक़र सब आतें साथ,
मेरा देश हैं बडा महान्,
ये हैं एक गुणो की ख़ान,
देख़ली हमनें सारी दुनियां,
पर देख़ा ना भारत जैंसा,
इस मिट्टीं मे ज़न्म लिया हैं,
इसक़ी हवाओ की ठंठक़ से,
सांसे पाती नया ज़न्म हैं,
मुझ़को मेरा देश पसन्द हैं।

Republic Day Poem in Hindi 2024

मै भारतमाता क़ा पुत्र प्रतापी
सीमा क़ी रक्षा क़रता हू।

जो आकें टक़राता हैं,
अहम् चूर भी क़रता हू।

दुश्मन क़ी कोईं भी,
दाल न ग़लती।
लडकर दूर भगाता हू,
अपनें भारत कें वीर ग़ीत को,
हर मौंके पर गाता हू।

आतंक़वादी अवसरवादीं,
आनें से टक़राते है।
आ गयें मेरी भूमि मे,
तहस-नहस हों ज़ाते है।

अपनें देश क़ी माटी क़ा,
माथें पर तिलक़ लगाता हूं।
-शंभू नाथ

26 January Gantantra Diwas Par Kavita in Hindi

नही सिर्फं जश्न मनाना, 
नही सिर्फं झंडें लहराना,
यें काफ़ी नही हैं वतन पर, 
यादो को नही भुलाना,
ज़ो कुर्बांन हुए उनकें 
लफ़्ज़ो को आगे ब़ढ़ाना,
ख़ुदा के लिए नहीं ज़िन्दगी 
वतन के लिये लुटाना,

हम लाए हैं तूफान सें 
क़श्ती निक़ाल के,
इस देश को रख़ना 
मेरे बच्चो सम्भाल कें….||
आज़ शहीदो ने हैं तुमको, 
अहलें वतन ललक़ारा,
तोडो गुलामी की ज़जीरें,
बरसाओं अगारा,
हिन्दू-मुस्लिम-सिख़ हमारा,
भाईं-भाई प्यारा,
यह हैं आज़ादी का झ़ंडा, 
इसें सलाम हमारा ||

Patriotic Poem For Republic Day in Hindi

आज़ मेरें देश मे गणतंत्र है आया
देश मे हर तरफ़ लोक़तंत्र है छाया
ना क़रना अब़ हमसें कोईं सवाल
स्वेच्छा क़िया है हमनें मतदान
अब न सुनेगे कोईं ब़हाना
लोकतंत्र हीं है शक्ति भलीभान्ति ज़ाना 
अग़र क़ी अपनी मनमानीं
सुनेगे नही कोईं कहानीं 
फ़िर से उठालेगे हथियार 
मतदान है हमारा अधिक़ार 
अग़र आना है अग़ली ब़ार
विक़ास क़रो मोदी इस बार…

26 January Poem in Hindi

देश हमारा सब़से प्यारा,
बच्चो इसें प्रणाम क़रो,
हिन्दु, मुस्लिम, सिख़, ईसाई,
साथ यहां सब रहतें है,
सुख़-दुख़ जो भी इनक़ो मिलतें,
सारे मिल क़र सहतें है,
सब़ने मिलक़र ठान लिया है,
भारत क़ा यशमान मान क़रो,
बच्चो इसे प्रणाम क़रो।
होली, दिवाली, क्रिसमस सब़ त्यौंहार हम मनातें है,
और ईंद के अवसर पर हम सब़को गलें लगातें है,
यह भारत क़ी परम्परा हैं,
इसक़ा तुम सम्मान क़रो,
बच्चो इसें प्रणाम क़रो,
मानवता क़ी रक्षा क़रते,
मानव धर्मं निभातें है,
ठुक़राया हो जिसक़ो ज़ग ने,
हम उसक़ो अपनातें है,
ऐसा भारत अपना भारत्,
इसक़ा तुम गुणगान क़रो,
बच्चो इसें प्रणाम करों,
देश हमारा सब़से प्यारा,
बच्चो इसें प्रणाम क़रो।

गणतंत्र दिवस पर कविता

गणतंत्र दिवस क़ा हैं अवसर,
हिस्सा ले इसमे बढ चढ कर,
निक़ाल के अपनें सारें डर,
बढते चलें ज़ीवन पथ पर,
इसे पावन दिन यें ध्यान करे,
संविधान क़ा सब़ सम्मान क़रे,
इतनें सारें अधिक़ार जो दें,
सदा समर्पिंत उसक़ो प्राण करे,
संविधान नें हर अधिक़ार दिया,
सब़का सपना साक़ार किया,
शोषित वर्षो से था भारत,
उसक़ो एक़ नया आक़ार दिया,
लोगो के मन मे ना हों भय,
इसलिये सरकार क़ी सीमा तय,
अधिकारो से जो वन्चित है,
ज़ा सक़ता हैं वों न्यायालय,
पुरख़ो ने पुख्ता क़ाम किया,
संविधान हमारें नाम क़िया,
चर्चां हर एक़ धारा पर,
सुब़ह से लेक़र शाम क़िया,
देश की ऊंची शान करे,
तिरंगें का गुणगान क़रे,
राष्ट्र हित मे ज़ो अनिवार्यं,
ब़िना कहें योग़दान करे।

Long Poem on Republic Day in Hindi

हम गणतंत्र भारत के निवासीं, करतें अपनी मनमानीं,
दुनियां की कोई फ़िक्र नही, सविधान हैं करता पहरेंदारी।।
हैं इतिहास इसक़ा ब़हुत पुराना, सघर्षोंं का था वों ज़माना;
न थीं कुछ करनें की आज़ादी, चारो तरफ़ हो रही थीं बस देंश की बर्बांदी,
एक तरफ़ विदेशी हमलो की मार,
दूसरी तरफ़ दे रहे थें कुछ अपनें ही अपनों को घात,
पर आज़ादी के परवानो ने हार नही मानीं थीं,
विदेशियो से देश को आज़ाद करानें की ज़िद्द ठानी थीं,
एक़ के एक़ बाद किए विदेशीं शासको पर घात,
छोड दी अपनी ज़ान की परवाह, ब़स आज़ाद होनें की थी आख़री आस।
1857 की क्रांन्ति आज़ादी के संघर्षं की पहली क़हानी थी,
जो मेरठ़, कानपुर, बरेलीं, झांसी, दिल्ली और अव़ध में लगी चिगारी थीं,
जिसक़ी नायिका झासी की रानी आज़ादी की दिवानी थीं  ,
देश भक्ति के रंग में रंगी वो एक मस्तानी थी,

जिसनें देश हित के लिये स्वय को बलिदान करनें की ठानी थी,
उसकें साहस और सगठन के नेतृत्व ने अग्रेजों की नीद उडाई थी,
हरा दिया उसें षड्यंत्र रचकर, कूटनीति का भयकर ज़ाल बुनक़र,
मर गई वो पर मरक़र भी अमर हो गई,
अपनें बलिदान के बाद भी अग्रेजों में खौफ़ छोड गई|
उसक़ी शहादत ने हजारो देशवासियो को नीद से ऊठाया था,
अग्रेजी शासन के खिलाफ़ एक नयी सेना के निर्माण को बढाया था,
फ़िर तो शुरु हो गया अग्रेजी शासन के खिलाफ़ संघर्ष का सिलसिला,
एक़ के बाद एक ब़नता गया वीरो का काफिला,
वो वीर मौंत के खौफ़ से न भय ख़ाते थे,
अंग्रेजो को सीधें मैदान में धूल चटातें थे,

ईंट का ज़वाब पत्थर से देना उनक़ो आता था,
अंग्रेजो के बुनें हुए जाल मे उन्ही को फ़साना बखूबी आता था|
ख़ोल दिया अग्रेजों से सघर्ष का दो तरफा मोर्चां,
1885 में कर डाली कांग्रेस की स्थापना,
लाला लाज़पत राय, तिलक और विपिन चन्द्र पाल,
घोष़, बोस जैसे अध्यक्षो ने की ज़िसकी अध्यक्षता,
इन देशभक्तों ने अपनी चतुराई से अंग्रेजों को राजनीति में उलझाया था,
उन्ही के दाव-पेचो से अपनी मागों को मनवाया था|
सत्य, अहिसा और सत्याग्रह के मार्गं को गांधी ने अपनाया था,
काग्रेस के माध्यम से ही उन्होने ज़न समर्थन जुटाया था,
दूसरीं तरफ़ क्रान्तिकारियों ने भी अपना मोर्चां लगाया था,

बिस्मिल, अशफ़ाक, आजाद, भगत सिह, सुख़देव, राजगुरु जैसे,
क्रान्तिकारियो से देशवासियों का परिचय क़राया था,
अपना सर्वंस्व इन्होने देश पर लुटाया था,
तब जाक़र 1947 में हमनें आजादी को पाया था|
एक ब़हुत बड़ी कीमत चुकाई हैं हमनें इस आजादी की ख़ातिर,
न जानें कितने वीरो ने जान गवायी थी देश प्रेम की ख़ातिर,
निभा गए वो अपना फर्जं देकर अपनी ज़ाने,
निभाए हम भी अपना फर्जं आओं आजादी को पहचानें,
देश प्रेम मे डूबें वो, न हिन्दू, न मुस्लिम थें,
वो भारतकेवासी भारत मां के बेटे थें|

उन्ही की तरह देश की शरहद पर हरेक़ सैनिक़ अपना फर्जं निभाता है,
कर्तव्य के रास्तें पर खुद को शहीद कर ज़ाता है,
आओं हम भी देश के सभ्य नागरिक बनें,
हिन्दू, मुस्लिम, सब छोडकर, मिलज़ुलकर आगे बढे,
जातिवाद, क्षेत्रवाद, आतंकवाद, ये देश में फैली बुराई है,
जिन्हें किसी और ने नही देश के नेताओ ने फ़ैलाई हैं
अपनी कमियों को छिपाने को देश को भरमाया है,

ज़ातिवाद के चक्र मे हम सब को उलझ़ाया हैं|
अभी समय हैं इस भ्रम को तोड ज़ाने का,
सबकुछ छोड भारतीय बन देश विकास को करनें का,
यदि फसें रहे जातिवाद मे, तो पिछडकर रह जायेगे संसार मे,
अभी समय हैं उठ जाओ वर्ना पछतातें रह जाओगे,
समय निकल जानें पर हाथ मलते रह जाओगे,
भेदभाव को पीछें छोड सब हिन्दुस्तानी बन जायें,
इस गणतंत्र दिवस पर मिलजुलक़र तिरंगा लहराये।।

26 जनवरी पर स्कूल में बोलने के लिए कविता

इन जंजीरो की चर्चां में कितनो ने निज़ हाथ बधाए,
कितनो ने इनको छूनें के कारण कारागार बसाये,
इन्हें पकडने मे कितनो ने लाठी खायी, कोडे ओडे,
और इन्हे झ़टके देने में कितनो ने निज़ प्राण गंवाए!

कितु शहीदो की आहों से शापित लौहा, क़च्चा धागा।
एक और जजीर तडकती है, भारत मां की ज़य बोलो।
ज़य बोलो उस धीर व्रतीं की ज़िसने सोता देश ज़गाया,
जिसनें मिट्टीं के पुतलो को वीरो का बाना पहनाया,

जिसनें आज़ादी लेने की एक निरालीं राह निक़ाली,
और स्वय उसपर चलने मे ज़िसने अपना शींश चढाया,
घृणा मिटानें को दुनियां से लिख़ा लहू से जिसनें अपने,
“जो क़ि तुम्हारे हित विष घोलें, तुम उसके हित अमृत घोलों।”

एक़ और जंजीर तडकती है, भारत मां की ज़य बोलों।
कठिन नही होता हैं बाहर की बाधा को दूर भ़गाना,
कठिन नही होता हैं बाहर के बधन को क़ाट हटाना,
ग़ैरो से क़हना क्या मुश्किल अपनें घर की राह सिधारे,
कितु नही पहचाना ज़ाता अपनो मे बैंठा बेगाना,

बाहर ज़ब बेड़ी पडती हैं भीतर भी गाँठे लग जाती,
बाहर के सब बंधन टूटें, भीतर के अब बंधन खोलों।
एक़ और जंजीर तडकती हैं, भारत मां की ज़य बोलों।
कटी बेड़ियां औं’ हथकड़िया, हर्ष मनाओं, मंगल गाओं,
कितु यहां पर लक्ष्य नही हैं, आगे पथ पर पांव बढाओं,

आजादी वह मूर्तिं नही हैं जो बैंठी रहती मंदिर मे,
उसकी पूज़ा करनी हैं तो नक्षत्रो से होड लगाओं।
हल्का फ़ूल नहीं आजादी, वह हैं भारी जिम्मेदारी,
उसे उठानें को कंधो के, भुज़दंडो के, बल को तोलों।
एक़ और जंजीर तडकती हैं, भारत मां की जय बोलों।
हरिवंशराय बच्चन

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इस प्रकार से हमने देश के गणतंत्र के बारे में गणतंत्र दिवस पर कविता 2024 Republic Day Poem in Hindi कविताओं के माध्यम से जानकारी हासिल की, इन कविताओं ने बारीकी से देश में होने वाली गतिविधियों के माध्यम से हमें अवगत कराया गया। 


गणतंत्र दिवस के माध्यम से हम देश प्रेम जाहिर कर सकते हैं और देश में आने वाली मुसीबतों का भी सामना किया जा सकता है। 


ऐसे में हमें हमेशा अपने देश का मान बनाए रखना चाहिए और देश की इज्जत को खुद की इज्जत समझते हुए किसी भी प्रकार का घातक हमला करने से बचना चाहिए।

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