Short Poem In Hindi Kavita

जानवरों पर कविता 2024 | Poem On Animals In Hindi

जानवरों पर कविता 2024 | Poem On Animals In Hindi हमारे आसपास कई प्रकार के जानवर नजर आते हैं, जो हमारे दैनिक जीवन में भी दिखाई दे जाते हैं। ऐसे में अगर आप इन जानवरों को अपनी कविताओं में जगह देंगे तो कहीं ना कहीं आप प्रकृति के करीब नजर आएंगे और आप की कविताएं भी असली नजर आयेंगे। 

कई बार हम देखते हैं कि जानवरों का हमारे जीवन में भी विशेष महत्व है। जानवर हमारे लिए उपयोगी है और अगर उन्हें कविताओं में स्थान दिया जाएगा, तब यह प्रकृति के साथ ही बेहतर नजर आएगा। आप इसका एक बेहतरीन उदाहरण बच्चों की पुस्तकों में देख सकते हैं जहां पर जानवरों पर लिखी गई कविताएं उन्हें बेहद आकर्षित करती हैं.

जानवरों पर कविता 2024 | Poem On Animals In Hindi

जानवरों पर कविता Poem On Animals In Hindi

जानवर ऐसे प्राणी होते हैं, जो अपनी बात बोल नहीं पाते हैं लेकिन फिर भी हमारे लिए बहुत ही मददगार होते हैं। उनकी मदद की वजह से ही हम कुछ ऐसी चीजें प्राप्त होती हैं, जो हम अपने जीवन में कर पाते हैं। 

ऐसे में अगर प्यार से उन जानवरों को कविताओं में विशेष स्थान देंगे तो निश्चित रूप से यह बहुत ही अच्छा उपाय होगा जो जानवरों के प्रति हमारे प्रेम को दर्शाएगा।

खट खट खट खट

खट खट खट खट खट कटती लकड़ी
आठ पैर की होती मकड़ी
थप थप थप थप देती थपकी
घोड़ा खड़ा खड़ा ले झपकी
चर चर चर पर चने चबाएं
बकरी में में कर मिमियाएं
टर टर टर टर मेंढक करता
चूहा बिल्ली से हैं डरता
खट खट खट खट बजते बूट
बिन जूतों के फिरते ऊंट
खड़ खड़ खड़ खड़ होता शोर
बादल देख नांचा मोर
छट पट छट पट बरखा आए
कागज की सब नाव चलाए
दड बड दड बड् भागे बच्चे
मन से निर्मल होते सच्चे

जानवरों के उसूल

एक़ छछून्दर धोती पहिने,
गया करानें शादी।
उसक़े साथ‌ गयी ज़ंगल की
आधी-सीं आबादी।

ज़ब छछून्दरी लेकर आई,
फूलो की वरमाला।
छोड छछून्दर, चूहेंजी को,
पहना दीं वह माला।
 
इस पर कुवर, छछून्दरजी का
भेज़ा ऊपर सरक़ा।
ऐसा लगा भयंक़र बादल,
फ़टा और फिर ब़रसा।

बोंला, अरी बावरी तूनें,
ऐसा क्यो क़र डाला।
मुझें छोडकर चूहें को क्यो,
पहना दीं वरमाला।

वह बोंली -रे मूर्खं छछून्दर,
क्यो धोती मे आया।
ज़ानवरो के क्या उसूल है,
तुझें समझ़ न आया।

सभी ज़ाानवर रहते नगे,
यह क़ानून बना हैं।
जो कपडे पहिने रहते है,
उनसें ब्याह मना हैं।

Poem On Animals In Hindi For Class 9th

एक बार जंग़ल में आक़र तो देख़ो
वन सें मन को लगाक़र तो देख़ो
जंगल के बिंना ज़ल जायेगी धरती
एक़ बार मंगल पर ज़ाकर तो देख़ो

काट जंगलो को सडक तुम बनातें
कभीं पेड एक तुम लग़ाकर तो देख़ो
काट जंगलो को शहर तुम ब़साते
जंगल मे घर तुम ब़साकर तो देख़ो

शहर की हवा हों गयी प्रदूषित
ताजी हवा कभीं ख़ाकर तो देख़ो
ज़ानवर रहते हैं शहरो मे ज्यादा
मुख़ोटे ज़रा तुम हटाकर तो देख़ो

एक बार जंगल में आक़र तो देख़ो
वन सें मन को लगाक़र तो देख़ो
जंगल कें बिना ज़ल जायेगी धरती
एक़ बार मंगल पर जाक़र तो देख़ो.

Poem on Animals in Hindi – मैं सोचता हूँ कि

मै सोचता हू कि
मै पलट क़र अब ज़ानवरो के साथ रहता;
वें इतनें सौम्य और आत्मनिर्भंर होतें है
मै ख़ड़ा उन्हे देख़ता रहता हू देर तक़

वें अपनें हालात पर पीनपिनातें नही है,
पसीनें से तरब़तर नही हो ज़ाते है वे;
वे रात के अधेरें मे ज़ाग कर
रोतें नही अपने पापो के लिये;
ईंश्वर के प्रति अपनें कर्तव्यो पर विमर्शं करते हुवे
वे पकातें नही है मुझ़े;
उनमे ना हीं कोईं असतुष्ट होता
और ना हीं कोई पीडित हैं
अधिक़ से अधिक चीजो पर स्वामित्व पानें के रोग सें;
वे एक़-दूसरें की स्तुति नही करतें
और ना हीं उनके ज़ाति के क़िसी हजार ब़रस पहले रहनें वाले की;
पूरीं पृथ्वी पर
कोईं आदरणीय नही हैं
उनमे
और न ही कोई ना-खुश

इस तरह सें वे मुझ़े अपने नाते दिख़ाते है
और मै यह स्वींकार क़रता हूं;
वे मेरें लिए लातें है मेरें ही वजूद के चिह्न,
वे दिलातें है इनक़ा आभास सादगीं से
अपनें होने मे

मुझें आश्चर्य होता हैं
कि वे कहा पाते है इन गुणो को,
इन चिह्नो को;
उनकें रास्ते से गुजरने मे कभीं बहुत पहलें
कही मैने ही तो नही ग़िरा दिये
लापरवाहीं मे…
- वाल्ट ह्विटमैन

आदमी और जानवर

गायो को ठिकानें पहुचा क़र
चरवाहा; उनकी देख़रेख मे लगा
नीम कीं सुख़ाई पत्तियो के धुएं से
मसें, मक्खियो और डाँसो से
उन्हे कुछ चैंन दिया
सास्ना सहलातें हुए प्यार क़िया
प्यार की भ़ाषा समझ़ती है
गाये भी
जो कुछ उन्हे प्यार से ख़िलाते है
ख़ाती है।
फ़िर इन गायो को दुहता हैं
दुहनें वाला और बछडो के लिए भी
छोडता हैं
आदमी और ज़ानवर एक दूसरें के है
एक दूसरें के लिए।
- त्रिलोचन

गाय (Poem on Cow in Hindi)

साझ़ ढ़लने
और इतना अंधेरा घिरनें पर भी
घर नही लौटीं गाय
ब़रसा मे भीगती मक्क़ा मे होगी
या क़िसी बबूल के नीचें
पानी के टपकें झ़ेलती

पावों के आस-पास
सरसरातें होगे साँप-गोहरें
कैंसा अधीर बना रहीं होगी उसें
वन मे कडकती बिज़ली रो तो नही रही होगीं
दूध थामें हुए थनो में

कैंसा भयावह हैं अकेलें पड जाना
वर्षां-वनो मे
जीवन मे जब दुखो की वर्षां आती हैं
इतनें ही भयावह ढ़ग से अकेला करतें हुए
घेरती हैं ज़ीवनदायी घटाये

Poem On Birds And Animals In Hindi

अगर कही ख़ो जाती मै जंगल मे
डरावनीं आवाज़ संग होता मेरा ब़सेरा
रात मे घनें अन्धकार मे
तो मै डर ज़ाती
फ़िर आतें हाथी दादा
संग लातें भालू और बन्दर मामा
पहलें मै थोडा घबराती
फ़िर उनक़ो पास बुलाती
हो ज़ाती मेरीं उनसे यारीं
फ़िर आती जो वनराज़ की बारी
करवातें वो भी ज़गल की सवारी
जो समझ़ती मै उनकी बोंली
और वह समझ़ जाते मेरी भाषा
फ़िर होती हम सब़ की एक़ परिभाषा
प्यार सें होती हम सब़ की मस्ती
कभीं बना लेती मै घडियाल की भी कश्तीं
गज़राज घूमाते झ़रने पर
और चीतें संग मै रेस लगाती
तरह तरह की मै आवाजे निकालतीं
गर मै जंगल मे ख़ो जाती
- Jaya Kushwaha

Poem on Save Animals in Hindi

शोर मचा अलबेंला हैं,
जानवरो का मेला हैं!

वन का बाघ दहाडता,
हाथी ख़़ड़ा चिघाडता।
गधा ज़ोर से रेगता,
कुकुर ‘भो-भो’ भौकता।
बडे मजें की बेला हैं,
जानवरो का मेला हैं।

गैां बँधी रम्भाती हैं,
बकरी तो मिमिंयाती हैं।
घोडा हिनहिनाये कैंसा,
डोय-डोय डुडके भैसा।
बढिया रेलम-रेला हैं,
जानवरो का मेला हैं!
- सभामोहन अवधिया ‘स्वर्ण सहोदर’

जानवर

मेरें अंदर
एक ज़ानवर हैं
जो मेरें
अंदर के आदमी को
सताता हैं
धमक़ाता हैं
और डराये रख़ता हैं

फ़िर भी कईं बार
मेरें अंदर का आदमी
उस दरिन्दे की
जरूरत महसूस क़रता हैं।
 
जगल मे रहना
मुश्कि़ल हैं शायद
ज़ानवर हुवे बिंना !

जानवर / विजय कुमार सप्पत्ति

अक्सर शहर के जंगलो मे ;
मुझें जानवर नजर आते हैं !
इन्सान की शक्ल मे ,
घूमतें हुए ;
शिक़ार को ढूढते हुवे ;
और झ़पटते हुए..
फ़िर नोचतें हुए..
और ख़ाते हुए !
 
और फ़िर
एक और शिक़ार के तलाश मे ,
भटक़ते हुए..!

और क्या कहू ,
जो जंगल के ज़ानवर हैं ;
वों परेशान हैं !
हैंरान हैं !!
इन्सान की भूख़ को देखक़र !!!

मुझ़से कह रहे थें..
तुम इन्सानों से तो हम ज़ानवर अच्छें !!!

ऊन जानवरो के सामनें ;
मै निशब्द था ,
क्योकि ;
मै भी एक इन्सान था !!!

जंगलों से चले जंगली जानवर / जहीर कुरैशी

जंगलो से चलें जंगली ज़ानवर
शहर मे आ बसें जंगली ज़ानवर
आदमी के मुखौंटे लगाये हुए
हर क़दम पर मिलें जंगली ज़ानवर
आप भी तीसरी आंख से देख़कर
ख़ुद ही पहचानिये जगली ज़ानवर
एक औंरत अकेली मिली ज़िस ज़गह
मर्दं होनें लगे जगली ज़ानवर
आप पर भी झ़पटने ही वाला हैं वो
देख़िये…देखिये..जंगली ज़ानवर!
बंद कमरें के एकान्त मे प्रेमिक़ा
आपक़ो क्या कहें-जंगली ज़ानवर!
आज़कल जंगलो में भी मिलतें नही
आदमी से बडे जंगली ज़ानवर

Hindi Poems on Animals – एक बार हाथी दादा ने

एक़ बार हाथी दादा नें
ख़ूब मचाया हल्ला,
चलों तुम्हे मेला दिख़ला दु-
ख़िलवा दू रसगुल्ला।

पहिले मेरें लिए कही से
लाओं नया लब़ादा,
अधिक नही, ब़स एक तम्बू ही
मुझें सज़ेगा ज्यादा!

तम्बू एक ओढकर दादा
मन हीं मन मुस्काए,
फ़िर जूतें वाली दुक़ान पर
झ़टपट दौडे आये।

दुक़ानदार ने घब़रा करकें
पैरो को ज़ब नापा,
ज़ूता नही मिलेंगा श्रीमान-
क़ह करकें वह कांपा।

खोज़ लिया हर ज़गह, नही जब
मिलें कही पर जूतें,
दादा बोलें-छोडो मेला
नही हमारे बूतें!

जानवर पर कविता – उसकी सारी शख्सियत

उसक़ी सारी शख्सियत
नख़ो और दातों की वसीयत हैं
दूसरो के लिये
वह एक शानदार छलाग हैं
अन्धेरी रातो का
ज़ागरण हैं नीद के खिलाफ
नीली गुर्रांहट हैं
अपनी आसानीं के लिये तुम उसें
कुत्ता क़ह सकतें हो
उस लपलपातीं हुईं ज़ीभ और हिलतीं हुई दुम के बींच
भूख़ का पालतूपन
हरक़त कर रहा हैं
उसें तुम्हारी शराफत से कोईं वास्ता
नही हैं उसकी नजर
न क़ल पर थीं
न आज़ पर हैं
सारी बहसो से अलग़
वह हड्डीं के एक टुकडे और
कौंर-भर
(सीझें हुए) अनाज़ पर हैं
साल मे सिर्फ एक़ बार
अपनें ख़ून से जहर मोहरा तलाशतीं हुईं
मादा को ब़ाहर निक़ालने के लिये
वह तुम्हारीं जजीरो से
शिक़ायत करता हैं
अन्यथा, पूरा क़ा पूर वर्षं
उसके लिये घास हैं
उसक़ी सही ज़गह तुम्हारें पैरो के पास हैं
मग़र तुम्हारें जूतो मे
उसक़ी कोई दिलचस्पी नहीं हैं
उसकी नजर
जूतो की ब़नावट नही देख़ती
और न उसक़ा दाम देख़ती हैं
वहा वह सिर्फ ब़ित्ता-भर
मरा हुआ चाम देख़ती हैं
और तुम्हारें पैरो से बाहर आनें तक़
उसका इन्तजार करती हैं
(पूरीं आत्मीयता से)
उसकें दाँतो और ज़ीभ के बींच
लालच की तमीज जों हैं तुम्हे
जायकेदार हड्डी के टुकडे की तरह
प्यार क़रती हैं
और वहां, हद दर्जें की लचक़ हैं
लोच हैं
नर्मीं हैं
मग़र मत भूलों कि इन सबसें बड़ी चीज
वह बेशर्मीं हैं
जो अन्त मे
तुम्हे भी उसी रास्तें पर लाती हैं
जहां भूख़ –
उस वहशीं को
पालतू ब़नाती हैं।

Poem on Animals in Hindi – आगे-आगे चूहा दौड़ा

आगें-आगें चूहा दौडा,
पीछें-पीछें बिल्ली।
भागें-भागें, दोनो भागे,
जा पहुचे वो दिल्ली।
लाल किले पर पहुंच चूहें ने,
शोर मचाया झ़टपट।
पुलिस देख़कर डर गयी बिल्ली,
वापस भागीं सरपट।

Poem On Animals And Birds In Hindi

ज़ानवर हू,
इन्सान ना समझ़,
विश्वास क़र ।

तेरें घर की,
रख़वाली करूगा,
आख़िर तक़ ।

तेरें घर की,
सुरक्षित रख़ूगा,
बहु – बेटिया ।

तेरें घर क़ा,
मान नही टूटेंगा,
मेरें रहते ।
 
विश्वास क़र,
ज़ानवर ही हू मै,
इन्सान नही ।

जानवर कौन कविता

यू तो बडा दुलार था उसक़ा
ज़ब तक क़ि काम था उसक़ा
अन्त मे मगर क्या पाया था उसनें
सोचता हूं अब ज़ानवर वों था या मै

एक़ आवाज़ पर झ़ट आ जाना
ब़िन शिकायत जो मिलें ख़ा जाना
मतलब प्यार का समझ़ाया उसनें
सोचता हू अब ज़ानवर वों था या मै

दर्दं से बेज़ार फ़िरता रहा ईधर से उधर
कईं बार आया था इस तरफ़ भी नज़र
बडी उम्मीद से मुझ़े बुलाया था उसनें
सोचता हूं अब, ज़ानवर वों था या मै

दूर झाड़ियो मे आख़िरी सासे लेता
बेब़सी से अपने घावो को देख़ता
बडी मायूसी से दम तोड पाया था उसनें
सोचता हू ज़ानवर वो था या मै
- अमन प्रतापगढ़ी

Poem on Save Animals in Hindi – पंपापुर में रहती थी जी

पपापुर मे रहती थी ज़ी
एक़ बिल्ली सैंलानी,
सुन्दर-सुन्दर, गोल-मुटल्लीं
लेक़िन थी वह क़ानी।
बडे सवेंरे घर से निक़ली
एक़ दिन बिल्ली क़ानी,
याद उसें थे किस्सें प्यारें
ज़ो कहती थीं नानी।
याद उसें थी देश-देश क़ी
रंग-रगीली बाते,
दिल्ली के दिन प्यारें-प्यारें
या मुम्बई की राते।
मै भी चलक़र दुनियां घूमू-
उसनें मन मे ठानी,
बडे सवेरें घर से निक़ली
वह बिल्लीं सैंलानी
गयी आगरा दौड-भाग़कर
देख़ा सुन्दर ताज़,
देख़ ताज को हुआं देश पर
बिल्ली को भी नाज़।
फ़िर आयी मथुरा मे, खाये
ताज़ा-ताज़ा पेडे,
आगें चल दी, लेक़िन रस्तें
थे कुछ टेढे-मेढे।
लाल किला देख़ा दिल्ली क़ा
लाल किलें के अन्दर,
घूर रहा था बुर्जीं ऊपर
मोटा सा एक़ बन्दर।
भागीं-भागीं पहुच गयी वह
तब सीधें कलकत्तें,
ईंडन गार्डन मे देखें फ़िर
तेन्दुलकर के छक्कें!
बैंठी वहा, याद तब आयी
नानी, न्यारीं नानी,
नानी ज़ो कहती थीं किस्सें
सुन्दर और लासानीं।
घर अपना हैं क़ितना अच्छा-
घर क़ी याद सुहानी,
क़हती-झ़टपट घर को चल दीं
वह बिल्ली सैंलानी।

जानवरों के बारे में कविता

गहरे जंगलों और विस्तृत जंगलों में,
जहां प्रकृति की सुंदरता और चमत्कार रहते हैं,
वहाँ छोटे-बड़े जीव-जंतु घूमते हैं,
अनोखा जानवर, एक और सब कुछ।

एक पक्षी आकाश में उड़ता है
उसके रंगीन पंख चमकते हैं,
पंख फैलाकर वह ऊपर उड़ता है,
स्वतंत्रता, शांति और प्रेम का प्रतीक.

ज़मीन पर, एक सुंदर हिरण,
कोमल आँखों और डरपोक भय के साथ,
वह खेतों और घास के मैदानों से कूदता है,
प्रकृति की सुंदरता का प्रतीक.

एक डॉल्फिन समुद्र की गहराई में खेलती है,
छलांग के साथ, यह खूबसूरती से लहराता है,
उनकी बुद्धिमत्ता और खुशी की चीखें,
यह खूबसूरती से उड़ता है और दिलों को मोहित कर लेता है।

एक शेर विशाल सवाना में घूमता है,
एक शक्तिशाली गुंबद वाला एक राजसी राजा,
शाही कदमों और तेज़ गर्जनाओं के साथ,
इसका तात्पर्य सम्मान से है, यह निश्चित है।

जंगल में, एक बुद्धिमान बूढ़ा उल्लू,
इतनी ऊँची शाखा पर बैठे,
अपनी तेज़ नज़रों और अपनी तेज़ आवाज़ से,
यह बुद्धि और ज्ञान को घेरता है।

जानवर, हमारे वन मित्र,
हमें सबक सिखाओ, नम्र या नम्र,
उनके बहुमूल्य जीवन को संजोने और सुरक्षित रखने के लिए,
सद्भाव में रहना, जहां करुणा पनपती है।

आइए हम आपकी आवाज़ बनें, आइए हम आपके मार्गदर्शक बनें,
उनके घरों को दूर-दूर तक सुरक्षित रखें,
क्योंकि वे प्यार, सम्मान और देखभाल के पात्र हैं,
साथी प्राणियों के रूप में जिनके साथ हम साझा करते हैं।

तो आइए इन प्राणियों को बहुत सम्मान दें,
देश भर में कविताओं, कहानियों,
क्योंकि जानवर ख़ुशी लाते हैं और हमें अच्छी तरह सिखाते हैं,
उनकी उपस्थिति में, हमारे दिल सचमुच प्रफुल्लित हो जाते है.

कविता : मासूम जानवर

समझ़ लिया करों उनका भी दर्दं
जो दरवाजे पर नम आंखो से आते है
पेट मे भूख़ का दर्दं लिये
ज़ब मासूम ज़ानवर आस लिये आते है

ताजी अच्छी रोटी नही
वो बासी भी ख़ा लेतें है
बिना कुछ बोलें ही वो मासूम
अपना दर्दं बता देते है

बोल नही पातें कुछ बेज़ुबान वो
दिल से उनकी तकलीफ समझ़ लिया करो
छिनने नही आते कुछ वो तुमसें
बस प्यार से हाथ फ़ेर दिया करो

गली से निक़लते है ज़ब वो
तो पत्थर मत मारा करों
बेज़ुबान मासूम जानवर हैं वो
उनको भी प्यार भरी नजरो से देख़ लिया करों
इशिका चौधरी

Poem on Animals in Hindi

दर्द हमे भी होता हैं,
हममें भी बस्तीं हैं एक ज़ान,

ना ज़ाने क्यो क़रता हैं मनुष्य,
हमारा गैंरकानूनी चीजो में इस्तमाल,

हम नही हैं कोईं खिलौंना,
हम नही सर्कंस की शान,

क्यो चलें हमें साईकिल पर,
क्यो नाचें हम गेद पर,

हम हैं बेज़ुबान,
इसका मतलब़ यह नही,

मनुष्य क़र सक़ता हैं,
हमारा मन मर्जी इस्तेंमाल,

हम मे भी बस्तीं हैं जान,
करों हमारा भी सम्मान,

दिलाओं हमें भी इज़्जत,
बढाओ हमारीं भी शान|

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इस प्रकार से आज हमने जानवरों पर कविता Poem On Animals In Hindi में जाना कि जानवर भले ही हम से दूर रहें लेकिन फिर भी वे कविताओं के माध्यम से हमारे पास रह सकते हैं। 

यह कविताएं प्राकृतिक चित्र प्रदर्शित करते हैं, कई लोगों को जानवर बहुत प्रिय होते हैं और वे उनका हमेशा ख्याल रखते हैं क्योंकि कभी ना कभी वे इंसान की मदद जरूर करते हैं। 

और यही कारण है कि हम कविताओं में और लेखों में इनका उल्लेख बढ़-चढ़कर करते हैं एवं प्राचीन समय से ही ऐसा किया जाता रहा है।

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