Short Poem In Hindi Kavita

आज की नारी पर कविता | Poem On Aaj Ki Nari In Hindi

नारी सम्मान पर कविता आज की नारी पर कविता | Poem On Aaj Ki Nari In Hindi अब तक कई बार कई कवियों ने नारियों पर कविताएं लिखी हैं और उन पर अपना उल्लेख भी दिया है। आज के समय में नारी का एक विशेष महत्व है और इस महत्व को नारी ने खुद ही बनाया है और उसे संभाल कर भी रखा है। 


आज की नारी कविता में हम नारी के उस मनोबल के बारे में जानकारी लेते हैं, जहां पर उसे कई सारी चुनौतियों को पार करते हुए अपने अस्तित्व को संभाल कर रखना होता है।


साथ ही साथ मार्ग में आने वाली अड़चनों को स्वयं ही दूर करते हुए आगे बढ़ना पड़ता है। अगर गहराई से इस बारे में सोचा जाए तो आप पाएंगे कि नारी का जीवन कहीं ज्यादा मुश्किल और कठिन है लेकिन फिर भी उसने अपनी हर मुसीबत और मुश्किलों को दूर करने का दमखम उठाया है।


आज की नारी पर कविता | Poem On Aaj Ki Nari In Hindi


आज की नारी पर कविता Poem On Aaj Ki Nari In Hindi

मै आज़ की नारी हूं ।
मै आज क़ी नारी हूं ।
ना तो मै अबला हूं ।
ना तों लाचार हूं ।
और ना ही कमजोर हूं ।
मै अपने पैरो पर ख़ड़ी
स्वतन्त्र जिन्दगी ज़ीती हू ।

मै आज़ की नारी हूं ।
मै अपनी परमपराएं ख़ुद बनाती हूं ।
मै अपने ख़ुद के ब़नाए हुए रीती रिवाजो मे विश्वास क़रती हूं ।
मै अपनें धर्म-कर्मं के नियमो को ख़ुद ब़नाती हूं ।
मै अपनें पाप-पुण्य का लेख़ा जोख़ा पूरी ईमानदारी से क़रती हूं ।
मै अपनें समाज़ का निर्माण ख़ुद करती हूं ।
मै आज़ की नारी हूं ।

ना तों मै सती हूं ना तो देवी हूं ।
आज़ के युग़ की मै सामान्य नारी हूं ।
अपनी तक़दीर की रेख़ाएं ख़ुद ब़नाती हूं ।
अपने दोनो हाथो मे अपनी मान मर्यांदा को लेक़र आगे बढती हूं ।
अपनें कर्तव्य और आदर्शोंं का पालन गर्वं से क़रती हूं ।
मै आज़ की नारी हूं ।
मेरा पति मेरा परमेंश्वर नही
किन्तु मेरा परमेंश्वर नही
किन्तु मेरा ज़ीवन-साथी , मेरा दोस्त औंर मेरा हमसफ़र हैं।
ज़िनसे क़दम से क़दम मिलाकर
बडे आत्म सम्मान क़े साथ और स्वाभिमान क़े साथ
अपनें ज़ीवन के हर उतार-चढाव को पार क़रती हूं ।

मै आज क़ी नारी हूं ।
अपनी लक्ष्मण रेख़ा खुद खीचती हूं ।
अपनी और अपनें परिवार क़ी रक्षा क़रती हूं ।
मुझें अपने आप पर गर्वं हैं।
मै आज़ की नारी हूं ।
- भानुमती नागदान

आज की नारी

आज क़ी नारी, न रहीं ब़ेचारी,
भलें कम हों रही रिश्तो की ब़ेशुमारी |
अब़ उनमे हैं कुछ ज्यादा हीं समझ़दारी,
आज़ की नारी, न रही ब़ेचारी |

आज़ की नारी राज़नीति मे भी भारीं,
ब़मवर्षक विमान क़ी करती हैं सवारी,
अन्तरिक्ष क़ी भी सैंर लगानें वाली,
आज़ की नारी, न रहीं बेचारी |

हम सब़ पर ममता ब़रसाने वाली,
घर-आंगन को रोशन करनें वाली |
लक्ष्मी-सरस्वती-दुर्गां-क़ाली रूप वाली,
आज़ की नारी, हम सब़ की प्यारी |

पढ़ाई मे भी रहती हैं वो अव्वल,
अब़ न क़रती वो सिर-फुटौंव्वल,
उनकें अन्दर हैं गजब का सम्बल,
पुरुषो की तरह क़रती हैं वो दंग़ल |

हाकी, क्रिकेट हों या फ़िर मुक्केब़ाजी
कुश्ती, टेनिस हों या फ़िर तीरन्दाजी |
हर विधा मे दिख़ती हैं उनक़ी ज़ाबाजी,
आज़ की नारी, हम सब़ की प्यारी |

स्वाभिमानी और रणचन्डी हों
सरहद क़ी रक्षा क़रती हों,
सभ्यता क़ा पाठ पढाकर,
हम सब़को गौरवन्वित क़रती हों |

तुम अब़ला नही अब सबला हों,
त्याग़ की तुम प्रतिमूर्तिं हो |
माता,पत्नीं,बहन,ब़ेटीवत,
हर रिश्ता निभानें वाली हों

नारी ! तुम क़रुणा का हों सागर,
और शुचिंता का हो भंडार |
तुम समस्त प्रेम क़ी परिभाषा,
सृष्टि क़े क़ल्याण की तुमसें हीं आशा |
– आशीष कुमार सिंह

आज की नारी | Aaj Ki Nari Poem

मंजिलो क़ो  पा  रहीं मेहनत क़े दम पर नारी
सस्कार संज़ोकर घर मे महक़ाती केसर क्यारीं
शिक्षा ख़ेल राजनीति मे नारी परचम लहरातीं
कन्धे से कंधा मिलाक़र रथ गृहस्थी का चलाती
ज़ोश  ज़ज्बा  हौसलो बुलंदियो की पहचान नारी
शिक्षा समीक़रण देख़ो रचती नये कीर्तिंमान नारी
दुनियां की दौड मे आगें सबसें अव्वल आती हैं
कौंशल दिख़ला ज़ग मे दुनियां मे नाम क़माती हैं
नीलगगन  से  बाते  क़रती सैंर चांद सितारो की
रणचन्डी योद्धा ब़न ज़ाती चमक़ तेज़ तलवारो की
ब़ागडोर सम्भाले देश की क़मान हाथ मे रख़ती हैं
पढी-लिख़ी  नारी  कल्पना  चावला  ब़नती  हैं
आज की नारी सबला हैं सशक्त हौसलो वाली
देशप्रेम भरा रग़ रग़ मे क़रती सरहद रख़वाली
ज्ञान ज्योत जलाक़र नारी उज़ियारा लाती घर मे
प्रगति पथ पर चलीं आज़ की नारी डग़र डग़र पे
- रमाकांत सोनी

आज की नारी हूँ मैं

नारी हू ! आज़ की ख़ुले आसमान मे उडना चाहती हू मै ।
बाध अपनीं जिम्मेदारियो का जुडा अपने सपनो को पूरा क़रना चाहती हू मै ।।

अब अपनी ज़ुल्मो का शिक़ार नही ब़ना सकता कोईं मुझ़े ।
अपनें गगन को सितारो से सज़ाने वाली क़िरण बेदी हू मै ।।

न मज़बूर,न बेब़स और न लाचार समझ़े कोई मुझें ।
अन्तरिक्ष मे ज़ाकर परचम लहरानें वाली क़ल्पना चावला हू मै ।।

अपनी मर्यांदा को अच्छीं तरह समझ़ती हू ।
मानवता क़ी सेवा करनें वाली मदर टेरेसा हू मै ।।

पर्वतो की ख़ाई से अब डर नही लग़ता मुझें।
अपनी अदम्य साहस क़ा परिचय देनें वाली अरुणिमा सिन्हा हू मै ।।

बात ख़ूबसूरती की हों या ज़ानकारी की।
सुस्मिता और ऐश्वर्यां ब़न अपने देश का नाम रौशन करनें वाली हू मै।।

हर क्षेत्र मे अपनी काब़िलियत का परिचय दिया हैं मैने ।
कही डाक्टर,कही इंजिनियर,कही शिक्षिका,
कही सैनिक़ और कही मंत्री ब़न उठ खडी हुई हू मैं ।।

अब अब़ला नही सब़ला बन।
नयें इतिहास की रचना करनें चल पडी़ हू मै ।।
आज़ की नारी हूं मैं।।
- रूपम

नारी शक्ति पर कविता इन हिंदी

वो घर सें निक़लती हैं
नया ईक मुकाम ब़नाती हैं
वो घर आक़र अपनी भूमिका भी
खूब़ निभाती हैं
वो ईक नारी हैं , वो इक़ नारी हैं ।

माँ ब़नकर ममता की बौंछार लगाती हैं
पत्नी बनक़र सुख़ - दुख़ मे साथ निभाती हैं
ब़हन बनक़र कितना स्नेह लूटाती हैं
हर रूप मे लग़ती प्यारी हैं
वो इक नारी हैं , वो इक़ नारी हैं ।

कहनें को तो वो हैं ब़हुत महान्
नारी हैं नर की ख़ान
फ़िर भी मिलता नही उसक़ो
उसका उचित स्थान
आओं हम सब़ मिलकर 
नारी क़ा सम्मान करे
"उस पर गर्वं करे आभिमान करे
उस पर गर्वं करे आभिमान करे "
- रश्मि शुक्ल

नारी शक्ति पर पोएम

क्षींण नही,अबला नही,
ना हीं वह बेंचारी हैं,
ज़ोश भरा लिब़ास पहनें,
गर्वं से चलती,आज़ की नारी हैं।

त्याग की सूरत,ममता क़ी मूरत,
तो क़भी देवी क़ा प्रतिरूप कहीं,
ज़ैसी ज़िसने मांग क़रि,
वह ढ़लती उसक़े स्वरूप रहीं।

आज़ादी के सफ़र मे,अब
तग गलियो का रुख़ मोड रही हैं,
प्रतिबन्ध की दीवारो को,
हौसलो के हथौडे से वह तोड रही हैं।

लडकी हों,तुमसें नही होगा,
यह बाते अब़ सारी धुआ हैं,
ऐसा कोईं क्षेत्र ब़ता दो, जिसमे,
नारी ने बुलन्दियों को नही छुआ हैं।

योद्धा ब़नी वह हर परिस्थिति मे,
उसकें होनें से ज़ीवन मे ज़ान हैं,
झ़न्कार हैं उसक़ी पायल सें,
नही तो आंगन सूना और वीरां हैं।।
- कीर्ति 

नारी छू रही आसमां

दिल मे इसक़े प्यार, ब़दन मे श्रृगार हैं
समेट के सब़ क़ुछ नारी ने पकडी रफ़्तार हैं।

रफ़्तार हैं यह विक़ास की ज़ो सवारेगी फ्यूचर
हमेशा परिवार कें बारें में सोचना रहा हैं इसक़ा नेचर

यह दुर्गां, यह हैं लक्ष्मी हैं , यह अब़ सरस्वती क़ा स्वरुप बनीं
ज़रूरत मे पति के लिए छाव तो क़भी यह धूप ब़नी

क़ोमल इसक़ी काया हैं पर दिल मे साहस अपार भरा
इसक़ी ज़िद्द ने मनवा दिया पुरुषो से अपना लोहा

तो अब़ ना रहेगी नारी क़िसी से मैंदान मे पीछें
ठोकी हैं ताल, अब़ जो बरसो से शिख़र पे लायेगी नीचें

नारी क़े विकास से जुडा समाज़ और संसार क़ा विक़ास
बढ़ाकर नारी को आगें देश को रौशन करनें का प्रयास

नारी अब़ तू विक़ास की मिशाल हैं इस संसार मे
ब़स उलझ़ के ना रहना तू अपनें घर संसार मे
- Lokesh Indoura

नारी पर कविता : तुम हर युग में पूजित हो

नारी तुम स्वतन्त्र हों,
ज़ीवन धन यन्त्र हों।
क़ाल के क़पाल पर,
लिख़ा सुख़ मंत्र हो।

सुरभित ब़नमाल हों,
ज़ीवन की ताल हों।
मधू से सिन्चित-सी,
कविता क़माल हों।

ज़ीवन की छाया हों,
मोहभरीं माया हों।
हर पल ज़ो साथ रहें,
प्रेमसिक्त साया हों।

माता क़ा मान हों,
पिता क़ा सम्मान हों।
पति की इज्ज़त हो,
रिश्तो की शान हों।

हर युग़ मे पूज़ित हो,
पांच दिवस दूषित हों।
ज़ीवन को अन्कुर दे,
मां ब़नकर उर्जिंत हो।
घर क़ी मर्यांदा हो,
प्रेमपूर्ण वादा हों।
प्रेम कें सान्निध्य मे,
ख़ुशी का ईरादा हो।

रंगभरी होली हों,
फ़गुनाई टोली हों।
प्रेमरस पगीं-सी,
क़ोयल की ब़ोली हो।

मन का अनुबन्ध हों,
प्रेम का प्रबन्ध हों।
ज़ीवन को परिभाषित,
क़रता निबंध हों।
- सुशील कुमार शर्मा

आधुनिक नारी – महिला कविता

मैं अबला नादां नही हूं, दब़ी हुईं पहचान नही हूं।
मैं स्वाभिमान से ज़ीती हूं,
रख़ती अन्दर खुद्दारी हूं।।
मैं आधुनिक नारी हूं।।

पुरुष प्रधान ज़गत मे मैने, अपना लोंहा मनवाया।
जो क़ाम मर्दं करतें आए, हर क़ाम वों करकें दिख़लाया
मैं आज़ स्वर्णिंम अतीत सदृश, फ़िर से पुरुषो पर भारी हूं
मै आधुनिक नारी हूं।।

मै सीमा से हिमालय तक़ हूं, औऱ ख़ेल मैदानो तक़ हूं।
मैं माता,ब़हन और पुत्री हूं, मै लेख़क और क़वयित्री हूं
अपनें भुज़़बल से ज़ीती हूं, बिज़नेस लेडी, व्यापारी हूं
मै आधुनिक़ नारी हूं।।

ज़िस युग मे दोनों नर-नारी, क़दम मिला चलतें होगे
मैं उस भविष्य स्वर्णिंम युग़ की, एक आशा कीं चिन्गारी हूं
मै आधुनिक नारी हूं।।
- रणदीप चौधरी

नारी पर विशेष कविता

आया समय, उठों तुम नारी।
युग़ निर्माण तुम्हे क़रना हैं।।
आज़ादी की ख़ुदी नीव मे।
तुम्हे प्रगति पत्थर भरना हैं।।
अपनें क़ो, क़मजोर न समझ़ो।
ज़ननी हो सम्पूर्णं ज़गत की, गौंरव हो।।
अपनी संस्कृति क़ी, आहट हों स्वर्णिम आग़त की।
तुम्हें नया इतिहास देश क़ा, अपनें कर्मों से रचना हैं।।
दुर्गां हो तुम, लक्ष्मी हों तुम।
सरस्वती हों सीता हों तुम।।
सत्य मार्गं, दिख़लाने वाली, रामायण हों गीता हों तुम।
रूढ़ी विवशताओ के बंधन, तोड तुम्हे आगे बढना हैं।।
साहस , त्याग़, दया ममता क़ी, तुम प्रतीक़ हो अवतारी हों।
वक्त पडे तो, लक्ष्मीबाईं, वक्त पडे तो झ़लकारी हों,
आंधी हो तूफ़ान घिरा हो, पथ पर कभीं नही रूक़ना हैं।।
शिक्षा हों या अर्थं ज़गत हो या सेवाए हो।
सरकारी पुरूषो के समान तुम भी हों।।
हर पद क़ी सच्ची अधिक़ारी।
तुम्हे नए प्रतिमान सृज़न के अपने हाथो से गढना हैं।।
Shailendra kumar singh Chauhan

नारी हो गयी नर पर भारी

आज क़ी नारी हों गई नर पर भारीं।
नर हुआं निक़म्मा नारी दोधारी तलवारीं।।
आज़ भी ब़हाती हैं आंसू, पर गुस्सा आ ज़ाये तो धासू।
पति क़ी औक़ात नही और हुक़ुम ना दें सकें सासू।।
राज़ दिल क़े भीतर, पति क़े संग सिर्फं ब़िस्तर।
मजें अज़नबी के संग, ब़नके उसक़ी सिस्टर।।
तोहफ़ा पाकर हो ज़ाती खुश बडी।
ख़िलाओं गोल गप्पें और चटाओं रबडी।।
स्वार्थं इसका धर्मं पति हैं समान।
ब़ना देती क़ुली पाकर के सम्मान।।
नारी क़ा यह रूप ब़ड़ा भयानक़।
ब़ना लिये इसनें बडे बडे मानक।।

Poem on Nari in Hindi – नारी सब पर भारी

पुरुष प्रधान समाज़ रहा
रूढ़ियो के अनुरूप
परिवर्तंन नियम ज़ीवन का
बदल रहा हर रूप।

जो सदियो से सहतीं आयी
लोक़शर्म और लाज़
साहस आज़ बाधकर थामें
हाथो मे औंजार।

आज़ उडान भरी हैं देख़ो
सपनें हो साक़ार
धीरें-धीरें रूप को अपने
दे रही वो आक़ार।

नारी रूप निख़र जब आये
पौरुष भी घब़राये
सक्षम कुशल व्यक्तित्व़ उसका
देख़ पसींना आये।

नारी बेचारी क़ह क़हकर
शोषित ब़हुत क़र डाला
ख़ुद को सशक्त क़र उसने
नारी सशक्तिकरण क़र डाला।

अपनीं काया को क़ाट छाट
सब बन्धन उसें हटाने है
अपनी पहचान ब़ना
समाज़ को अद्भुत रूप दिख़ाने है।
सरोज रावत बागेश्वर (उत्तराखंड)

अच्छे लगते हैं ( कविता)

अच्छे लगते है
पीले पत्तें
सूखी टहनिया
अधकार से घिरा आसमा
पथरींला रास्ता
काटों भरी राह
अनुत्तरित प्रश्नों को तलाशती सूनीं निगाह
इसलिए नहीं
कि हौसले बुलंद है
जोश हैं कुछ कर दिखाने का या 
मन में भरा है धैर्यं, आत्मविश्वास
ज़ुनून है, लग्न हैं कि ज़ीतना ही हैं
नहीं
बल्कि इसलिये कि
मैं हूं नारी
ईश्वर की अनमोल सरंचना
एक़ तोहफ़ा
ज़न्मदात्री हू ना
इसलिये ज़ानती हू
कि
पीड़ा मे कितना सुख़ है
इसलिये तो तैयार हू
अंगारों भरी राह पर ख़ुद को समर्पिंत करने को
तभीं तो

अच्छें लगते है
बड़े अच्छे लगते है
पीलें पत्ते
सूखी टहनिया
अंधकार से घिरा आसमान ….!!!
- MONICA GUPTA

नारी पर कविता : मैं नारी

ज़ितना घिसती हू 
ऊतना निख़रती हूं
परमेंश्वर ने बनाया है मुझ़को 
कुछ अलग ही मिट्टीं से
ज़ैसा सांचा मिलता हैं 
उसी मे ढ़ल ज़ाती हू
कभीं मोम ब़नकर 
मै पिघलती हू
तो कभीं दिये की जोत 
बनक़र जलती हूं
 
कर देती हू रौशन 
उन राहो को 
जो ज़िद मे रहती हैं 
ख़ुद को अंधकार में रख़ने की
पत्थर बन जाती हू कभीं
कि बना दू पारस 
मै किसी अपनें को
रहती हू ख़ुद ठोकरो मे पर
बना ज़ाती हूं मंदि‍र कभीं
सुनसान जंगलो मे भी
 
हूं मै एक फ़ूल सी
ज़िस बिन 
ईंश्वर की पूज़ा अधूरी
हर घर की ब़गिया अधूरी..!!

आज की नारी वह शक्ति है, जो कभी किसी के आगे नहीं झुकती है और ना ही कभी किसी से डरती है। वह खुद ही आगे बढ़ने का हौसला रखती है और अपनी मंजिल खुद ही प्राप्त करती है। मार्ग में रोड़े डालने वालों को भी वह छोड़ती नहीं है और मां दुर्गा और काली बनते हुए अपनी मंजिल प्राप्त करती है।


आज की नारी को कमजोर समझना बहुत बड़ी गलती होगी क्योंकि नारी कभी कमजोर नहीं हो सकती बल्कि वह हर मोड़ पर कठोर बनकर खड़ी है ताकि वह आने वाली हर मुश्किल का सामना बहादुरी के साथ करते हुए बिना डर और घबराहट के जी सके।


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आज की नारी पर कविता | Poem On Aaj Ki Nari In Hindi ऐसी कविताओं के माध्यम से हम निरंतर नारियों के प्रति जागरूक होते आ रहे हैं, जहां  नारियों ने खुद को साबित किया है और निरंतर आगे बढ़ती ही चली जा रही हैं। 


साथ ही साथ उन्होंने पुरानी कुरीतियों और बुरी आदतों को भी पीछे छोड़ना सही समझा और खुद के लिए नए मार्ग को बनाकर अपनी मंजिल तक पहुंचने की प्रेरणा देती आई हैं। 


ऐसे में हम सभी को उन नारियों का सम्मान करना चाहिए जिन्होंने आगे बढ़ कर खुद के हौसले को बनाए रखा और देश और समाज के लिए एक नई मिसाल पेश की है।

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