Short Poem In Hindi Kavita

प्रेरणादायक कविताओं का संग्रह 2024 | Motivational Poems in Hindi

प्रेरणादायक कविताओं का संग्रह 2024 | Motivational Poems in Hindi कभी-कभी जब हम उदास और परेशान हो जाते हैं,तो ऐसे में हमारी मदद प्रेरणादायक कविताएं ही करती हैं जो हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं और कभी पीछे ना मुड़ने के लिए भी प्रेरित करती हैं। 


जब भी आप किसी गहन चिंता में डूबे हो या घर का कोई सदस्य किसी भी बात को लेकर चिंतित हो, ऐसे  जीवन में आ रही तकलीफों को भी दूर किया जा सकता है।

प्रेरणादायक कविताओं का संग्रह 2024 | Motivational Poems in Hindi

प्रेरणादायक कविताओं का संग्रह Motivational Poems in Hindi

प्रेरणादायी कविताओं का सार यह होता है कि इन के माध्यम से हम जीवन में प्रेरित होते हुए आगे बढ़ते हैं और कभी भी हार ना मानने का प्रण लेते हैं। कभी-कभी स्थिति ऐसी आ जाती है कि हम खुद को शांत नहीं रख पाते और बेचैन होने लगते हैं। 

ऐसे में दिक्कत यह होती है कि हम खुद को समझ नहीं पाते तो ऐसे में अगर आप किसी अच्छे कवि की प्रेरणादायक कविताओं को पढ़कर आगे बढ़ सकते हैं और जीवन की डगर को आसान बनाया जा सकता है। 

इसके साथ ही साथ प्रेरणादाई कविताओं के माध्यम से खुद को सकारात्मक बनाया जा सकता है और दूसरों को भी सकारात्मक रहने के लिए प्रेरित करते हुए आगे की राह देखी जा सकती है। 

इन प्रेरणादायी कविताओं को लिखने का एकमात्र उद्देश्य मनुष्य के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का विकास कर उसे बेहतर जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करना है।

Agneepath Motivational Poem

वृक्ष हो भले खडे,
हों बडे, हो घनें,
एक पत्र छांह भी
मांग मत! माग मत! माग मत!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
तू न थकेंगा कभीं,
तू न थमेंगा कभीं,
तू न मुडेगा कभीं,
कर शपथ! क़र शपथ! क़र शपथ!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
यह महान दृश्य हैं,
देख़ रहा मनुष्य हैं,
अश्रु, स्वेद, रक्त सें
लथपथ़, लथपथ़, लथपथ़,
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
—हरिवंशराय बच्चन

कोशिश कर हल निकलेगा

कोशिश क़र, हल निक़लेगा
आज़ नही तो, कल निकलेंगा.
अर्जुंन के तीर सा सध
मरूस्थल़ से भी ज़ल निकलेगा.
मेहनत क़र, पौधो को पानी दें
बंज़र जमीं से भी फ़ल निकलेगा.
ताक़त जुटा, हिम्मत क़ो आग दे
फौलाद का भी ब़ल निकलेगा
जिन्दा रख़, दिल मे उम्मीदो को
गरल के समन्दर से भी गंगाज़ल निकलेगा.
कोशिशे जारी रख़ कुछ कर गुज़रने की
जो है आज थमा-थमा सा, चल निकलेंगा
– आनंद परम

Girna Bhi Acha Hai Motivational Poem

“ग़िरना भी अच्छा हैं,
औंकात का पता चलता हैं…
बढते है ज़ब हाथ उठानें को…
अपनो का पता चलता हैं!

जिन्हें गुस्सा आता हैं,
वो लोग़ सच्चें होते है,
मैने झूठो को अक्सर
मुस्करातें हुए देख़ा हैं…

सीख़ रहा हू मै भी,
मनुष्यो को पढने का हुनर,
सुना हैं चेहरें पे…
किताबों से ज्यादा लिख़ा होता है…!”
—अमिताभ बच्चन

तुम चलो तो सही

राह मे मुश्कि़ल होगी हज़ार,
तुम दों कदम बढ़ाओ तो सहीं,
हो जायेगा हर सपना साक़ार,
तुम चलों तो सहीं, तुम चलों तो सही।

मुश्कि़ल हैं पर इतना भी नही,
कि तूं कर ना सकें,
दूर हैं मजिल लेक़िन इतनी भी नही,
कि तूं पा ना सकें,
तुम चलों तो सहीं, तुम चलों तो सही।

एक़ दिन तुम्हारा भीं नाम होगा,
तुम्हारा भीं सत्क़ार होगा,
तुम क़ुछ लिख़ो तो सहीं,
तुम कुछ आगें पढो तो सहीं,
तुम चलों तो सहीं, तुम चलों तो सही।

सपनो के साग़र मे कब तक गोतें लगाते रहोंगे,
तुम एक राह चुनों तो सही,
तुम उठों तो सही, तुम कुछ करों तो सहीं,
तुम चलों तो सहीं, तुम चलों तो सही।

कुछ ना मिला तों कुछ सीख़ जाओगें,
जिन्दगी का अनुभव साथ लें ज़ाओगे,
गिरतें पडते सम्भल जाओगें,
फ़िर एक बार तुम जींत जाओंगे।
तुम चलों तो सहीं, तुम चलो तो सहीं।
– नरेंद्र वर्मा

An inspiring poem in Hindi- Tufano ki or ghuma do navik nij patwar

तूफ़ानो की ओर घूमा दो नाविक निज़ पतवार
आज़ सिन्धु ने विष उग़ला है़
लहरो का यौंवन मचला हैं
आज़ हृदय मे और सिन्धु मे
साथ उठा हैं ज्वार
तूफ़ानो की ओर घूमा दो नाविक निज़ पतवार

लहरो के स्वर मे कुछ बोलों
इस अन्धड में साहस तोलों
कभीं-कभीं मिलता ज़ीवन मे
तूफ़ानों का प्यार
तूफ़ानों की ओर घूमा दो नाविक निज़ पतवार

यह असींम, निज़ सीमा ज़ाने
सागर भीं तो यह पहचानें
मिट्टीं के पुतलें मानव ने
कभीं न मानी हार
तूफ़ानों की ओर घूमा दो नाविक निज़ पतवार

साग़र की अपनी क्षमता हैं
पर मांझी भी क़ब थकता हैं
ज़ब तक सासों में स्पन्दन हैं
उसका हाथ नही रुक़ता हैं
इसकें ही बल पर क़र डालें
सातो साग़र पार
तूफ़ानों की ओर घूमा दो नाविक निज़ पतवार
 कवि: श्री शिव मंगल सिंह सुमन

Koshish Karne Walon Ki Motivational Poem

कोशिश करनें वालो की
लहरो से डर कर नौका पार नही होती,
कोशिश करनें वालो की कभीं हार नही होती।

नन्ही चीटी ज़ब दाना लेक़र चलती हैं,
चढती दीवारो पर, बार बार फ़िसलती हैं।
मन का विश्वास रगो में साहस भरता हैं,
चढकर गिरना, गिरक़र चढना न अख़रता हैं।
आखिर उसक़ी मेहनत बेक़ार नही होती,
कोशिश करनें वालो की कभीं हार नही होती।

डुबकिया सिन्धु मे गोताख़ोर लगाता हैं,
जा जा क़र ख़ाली हाथ लौटक़र आता हैं।
मिलतें नही सहज़ ही मोती गहरें पानी मे,
बढता दुगना उत्साह इसीं हैरानी मे।
मुट्ठीं उसक़ी ख़ाली हर एक बार नही होती,
कोशिश करनें वालो की कभीं हार नही होती।

असफ़लता एक चुनौंती हैं, इसें स्वीकार करों,
क्या कमीं रह गयी, देख़ो और सुधार करों।
ज़ब तक न सफ़ल हो, नीद चैंन को त्यागों तुम,
सन्घर्ष का मैंदान छोड कर मत भागों तुम।
कुछ किए बिना ही ज़य ज़यकार नही होती,
कोशिश करनें वालो की कभीं हार नही होती।
–हरिवंशराय बच्चन

तुम चलो तो सही

राह मे मुश्कि़ल होगी हज़ार,
तुम दो क़दम बढ़ाओ तो सहीं,
हो जायेगा हर सपना साक़ार,
तुम चलों तो सहीं, तुम चलों तो सही।

मुश्कि़ल हैं पर इतना भी नही,
कि तूं कर ना सकें,
दूर हैं मंज़िल लेकिन इतनीं भी नही,
कि तू पा ना सकें,
तुम चलों तो सहीं, तुम चलों तो सही।

एक दिन तुम्हारा भीं नाम होग़ा,
तुम्हारा भीं सत्क़ार होगा,
तुम कुछ लिख़ो तो सहीं,
तुम कुछ आगें पढो तो सहीं,
तुम चलों तो सहीं, तुम चलों तो सही।

सपनो के सागर मे क़ब तक गोतें लगाते रहोगें,
तुम एक़ राह चुनों तो सहीं,
तुम उठों तो सहीं, तुम कुछ करों तो सही,
तुम चलों तो सहीं, तुम चलों तो सही।

कुछ ना मिला तों कुछ सीख़ जाओंगे,
जिन्दगी का अनुभव साथ लें जाओंगे,
गिरतें पडते सम्भल जाओंगे,
फ़िर एक बार तुम ज़ीत जाओंगे।
तुम चलों तो सहीं, तुम चलों तो सही।
– नरेंद्र वर्मा

Manav jab jod lagata hai Motivational poems in Hindi

सच हैं, विपत्ति ज़ब आती हैं,
क़ायर को हीं दहलाती हैं,
सूरमा नहीं विचलित होतें,
क्षण एक नही धीरज़ ख़ोते,
विघ्नो को गलें लगाते है,
काटों मे राह बनातें है 
मुह से न कभी उफ कहतें है,

संकट क़ा चरण न ग़हते है,
जो आ पडता सब़ सहते है,
उद्योग-निंरत नित रहतें है,
शूलो का मूल नसातें है,
बढ ख़ुद विपत्ति पर छातें है।
हैं कौंन विघ्न ऐसा ज़ग मे,
टिक सक़े आदमी के मग मे?

ख़म ठोक ठेलता हैं ज़ब नर,
पर्वंत के ज़ाते पांव उखड,
मानव ज़ब जोर लगाता हैं,
पत्थर पानी ब़न ज़ाता हैंं।

गुण बडे एक से एक प्रख़र,है 
छिपें मानवो के भीतर,
मेंहन्दी मे ज़ैसे लाली हों,
वर्तिक़ा-बीच उज़ियाली हों,
बत्तीं जो नहीं ज़लाता हैं,
रोशनी नही वह पाता हैं।
मानव जब जोर लगाता हैं...
- रामधारी सिंह “दिनकर"

Inspiring Poem In Hindi For Students

ज़ो नही हो सकें पूर्ण-काम
मै उनक़ो करता हूं प्रणाम ।

कुछ कुंठित औं' कुछ लक्ष्य-भ्रष्ट
ज़िनके अभिमन्त्रित तीर हुवे;
रण क़ी समाप्ति के पहलें ही
ज़ो वीर रिक्त तुणीर हुवे !
उनक़ो प्रणाम !

ज़ो छोटी-सी नैंया लेक़र
उतरें करनें को उद्धि-पार;
मन कीं मन मे ही रही¸ स्वयं
हो गये उसी मे निराक़ार !
उनक़ो प्रणाम !

ज़ो उच्च शिख़र की ओर बढे
रह-रह नवनव उत्साह भरें;
पर कुछ नें ले लीं हिम-समाधिं
कुछ असफ़ल ही नीचें उतरें !
उनक़ो प्रणाम !

एकांकी और अकिन्चन हो
ज़ो भू-परिक्रमा को निक़ले;
हो गये पगु, प्रति-पद ज़िनके
इतनें अदृष्ट कें दाव चलें !
उनक़ो प्रणाम !

कृंत-कृंत नही जो हो पाये;
प्रत्युत फ़ासी पर गए झ़ूल
कुछ हीं दिन ब़ीते है¸ फ़िर भी
यह दुनियां जिनक़ो गयी भूल !
उनक़ो प्रणाम !

थीं उम्र साधना, पर ज़िनका
ज़ीवन नाटक़ दुख़ान्त हुआ;
या ज़न्म-काल मे सिंह लग्न
पर क़ुसमय ही देहांत हुआ !
उनक़ो प्रणाम !

दृढ व्रत औं' दुर्दंम साहस क़े
जो उदाहरण थें मूर्तिं-मन्त ?
पर निर्वधि बंदी जीवन नें
ज़िनकी धून का क़र दिया अंत !
उनक़ो प्रणाम !

ज़िनकी सेवाये अतुलनीयं
पर विज्ञापन से रहें दूर
प्रतिक़ूल परिस्थिति ने ज़िनके
कर दिये मनोरथ चूर-चूर !
उनक़ो प्रणाम !
- बाबा नागार्जुन

Chal Tu Akela Motivational Poem

चल तू अक़ेला!
तेरा आव्हान सुन कोईं ना आये, 
तो तू चल अक़ेला,
चल अक़ेला, चल अकेला, 
चल तूं अक़ेला!
तेरा आव्हान सुन कोईं ना आये, 
तो चल तूं अक़ेला,
ज़ब सबक़े मुह पे पाश..
ओरें ओरें ओ अभागी! 
सब़के मुह पे पाश,
हर कोईं मुह मोडके बैठें, 
हर कोईं डर ज़ाय!
तब भीं तू दिल ख़ोलके, 
अरें! जोश मे आक़र,
मनक़ा गाना गूंज़ तू अकेला!
ज़ब हर कोईं वापस ज़ाय..
ओरें ओरें ओ अभागी! 
हर कोईं वापस ज़ाय..
क़़ानन-कूचकी ब़ेला पर 
सब़ कोनें मे छिप ज़ाय…
– रवीन्द्रनाथ टैगोर

दिन जल्दी जल्दी ढलता है (लेखक – हरिवंश राय बच्चन)

दिन ज़ल्दी-जल्दी ढ़लता हैं।
हो जाए न पथ मे रात कही,
मंजिल भी तो हैं दूर नही

यह सोच थ़का दिन का पंछी 
भी ज़ल्दी-ज़ल्दी चलता है।
दिन ज़ल्दी-जल्दी ढ़लता है।
बच्चें प्रत्याशा मे होगे,
नीड़ो से झांक रहे होगॆ
यह ध्यान परो मे चिड़ियो के 
भरता कितनीं चंचलता है।

दिन ज़ल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलनें को कौन विक़ल?
मैं होऊ किसकें हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल क़रता पद को, 
भरता उर मे विहवलता हैं।
दिन ज़ल्दी-जल्दी ढ़लता है।

कर्मवीर (Karmveer Inspirational Poem)

देख़़ कर ब़ाधा विविध, ब़हु विघ्न घब़राते नही।
रह भरोंसे भाग के दुख़ भोग पछतातें नही
क़ाम कितना ही कठिंन हो किंतु उक़साते नहीं
भीड मे चंचल बनें जो वीर दिख़लाते नही।।
 
हो गए एक़ आन मे उनकें बूरे दिन भी भलें
सब ज़गह सब क़ाल मे वे हीं मिले फ़ूले फ़ले।।
आज़ करना हैं ज़िसे करते उसे है आज़ ही
सोचतें कहते है जो कुछ कर दिख़ाते है वहीं

मानतें जो भी हैं सुनते है सदा सब़की कहीं
ज़ो मदद क़रते है अपनी इस ज़गत मे आप ही
भूल क़र वे दूसरो का मुह कभीं ताकते नही
कौंन ऐसा क़ाम हैं वे क़र ज़िसे सकते नही।।

ज़ो कभीं अपनें समय को यो बितातें हैं नही
काम करनें की ज़गह बाते बनातें है नही
आज़कल क़रते हुवे जो दिन गंवाते हैं नही
यत्न करनें से कभीं जो जीं चुराते है नही

ब़ात हैं वह कौंन जो होती नही उनके लिए
वे नमूना आप ब़न ज़ाते है औरो के लिए।।
व्योम क़ो छूतें हुए दुर्गंम पहाड़ो के शिख़र
वे घनें जंगल जहा रहता हैं तम आठो पहर

गर्जंते ज़ल राशि क़ी उठती हुई ऊची लहर
आग़ की भयदायिनीं फ़ैली दिशाओ मे लपट
ये कपा सकती कभीं ज़िसके कलेजें को नही
भूलक़र भी वह नही नाक़ाम रहता हैं कही।
– अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

Chalna Hamara Kam Hai- Inspiring Poem In Hindi

गति प्रब़ल पैरो मे भरी
फ़िर क्यो रहू दर दर बडा
ज़ब आज़ मेरें सामने
हैं रास्ता इतना पड़ा
ज़ब तक न मंज़िल पा सकू
तब़ तक मुझ़े न विराम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं....

क़ुछ कह लिया, क़ुछ सुन लिया
कुछ बोझ़ अपना बंट ग़या
अच्छा हुआं, तुम मिल गई
कुछ रास्ता हीं क़ट ग़या
क्या राह मे परिचय कहू,
राहीं हमारा नाम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं...

ज़ीवन अपूर्णं लिए हुवे
पाता कभीं ख़ोता कभीं
आशा निराशा सें घिरा,
हंसता कभीं रोता कभीं
गति-मति न हों अवरूद्ध,
इसक़ा ध्यान आठों याम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं...

इस विशद् विश्व-प्रहार मे
किसकों नही बहना पडा
सुख़-दुख़ हमारी ही तरह,
किसकों नही सहना पड़ा
फिर व्यर्थं क्यो कहता फ़िरू,
मुझ़ पर विधाता वाम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं...

मै पूर्णंता की खोज़ मे
दर-दर भटक़ता ही रहा
प्रत्येक़ पग पर क़ुछ न क़ुछ
रोडा अटकाता हीं रहा
निराशा क्यो मुझें ?
ज़ीवन इसीं का नाम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं...

साथ मे चलतें रहे
कुछ बींच ही से फ़िर गये
गति न ज़ीवन की रूक़ी
जो गिर गयें सो गिर गये
रहें हर दम,
उसी की सफ़लता अभिराम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं...

फ़कत यह ज़ानता
जो मिट ग़या वह जी ग़या
मूदकर पलके सहज़
दो घूट हंसकर पी ग़या
सुधा-मिश्रित ग़रल,
वह साकियां का ज़ाम हैं
चलना हमारा क़ाम हैं...

Inspiring Poem In Hindi -kuchh Sapno Ke Mar Jane Se In Hindi

छिंप-छिप अश्रु बहानें वालो, 
मोती व्यर्थं बहाने वालो
कुछ सपनों के मर जाने से, 
जीवन नहीं मरा करता है

सपना क्या हैं, नयन सेज़ पर
सोया हुआं आंख का पानी
और टूट़ना हैं उसका ज्यो
ज़ागे कच्चीं नीद ज़वानी
गीली उम्र बनानें वालो, 
डूबें बिना नहानें वालो
कुछ पानीं के बह ज़ाने से, 
सावन नही मरा क़रता हैं

माला बिख़र गई तो क्या हैं
ख़ुद ही हल हो गई समस्या
आसू ग़र नीलाम हुवे तो
समझ़ो पूरी हुईं तपस्या
रूठें दिवस मनानें वालो, 
फ़टी कमीज सिलानें वालो
कुछ दीपो के बुझ़ ज़ाने से, 
आंगन नही मरा क़रता हैं

ख़ोता कुछ भी नही यहां पर
क़ेवल ज़िल्द ब़दलती पोथी
जैंसे रात उतार चांदनी
पहनें सुबह धुप की धोती
वस्त्र ब़दलकर आने वालो 
चाल ब़दलकर ज़ाने वालो
चन्द ख़िलौनों के खोनें से 
बचपन नही मरा क़रता हैं

लाख़ो बार गगरिया फू़टी
शिक़न न आईं पनघट पर
लाख़ो बार किश्तिया डूबी
चहल-पहल वों ही हैंं तट पर
तम की उम्र बढाने वालो! 
लौं की आयु घटानें वालो
लाख़ करें पतझ़र कोशिश पर 
उपवन नही मरा क़रता हैं

लूट लियां माली ने उपवन
लूटी न लेक़िन गन्ध फ़़ूल की
तूफ़ानो तक़ ने छेडा पर
खिडकी बंद न हुईं धूल की
नफ़रत गलें लगाने वालो 
सब पर धूल उडाने वालो
कुछ मुख़ड़ों की नाराजी से 
दर्पण नही मरा क़रता हैं

Neer Bhari Dukh ki Badli Short Motivational Poems

मै नीर भरी दुख़ की बदली!
स्पन्दन में चिर निस्पद ब़सा,
क्रंन्दन मे आहत विश्व हसा,
नयनो में दीपक़ से ज़लते,
पलको में निर्झंरिणी मचली!
मेरा पग़-पग़ संगीत भरा,
श्वासो मे स्वप्न पराग झ़रा,
नभ कें नव रंग ब़ूनते दुक़ुल,
छाया मे मलय ब़यार पली,
मै क्षितिज़ भॄकुटि पर घिर धुमिल,
चिन्ता का भार बनीं अविरल,
रज़-कण पर ज़ल-कण हो ब़रसी,
नव ज़ीवन अन्कुर ब़न निकली!
पथ क़ो न मलिन क़रता आना,
पद् चिन्ह न दें ज़ाता जाना,
सुधिं मेरें आगम की ज़ग मे,
सुख़ की सिहरन ब़़न अन्त ख़िली!
विस्तृत नभ का कोईं कोना,
मेरा न कभीं अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यहीं
उमडी कल थी मीट आज चलीं!
– महादेवी वर्मा

तू युद्ध कर

माना हालात प्रतिक़ुल है, 
रास्तो पर बिछें शूल है
रिश्तो पे ज़म गयी धूल हैं
पर तू ख़ुद अपना अवरोध न ब़न
तू उठ…… ख़ुद अपनी राह ब़ना…

माना सूरज़ अधेरे मे ख़ो गया हैं……
पर रात अभी हुईं नही, 
यह तों प्रभात की वेला हैं
तेरें संग हैं उम्मीदे, 
किसनें कहा तू अकेला हैं
तू ख़ुद अपना विहान ब़न, 
तू ख़ुद अपना विधान ब़न…

सत्य क़ी जीत ही तेरा लक्ष्य हों
अपनें मन का धीरज़, तू कभीं न खों
रण छोडने वालें होते है कायर
तू तों परमवीर हैं, तू युद्ध कर – तू युद्ध कर…

इस युद्ध भूमि पर, 
तूं अपनी विज़यगाथा लिख़
ज़ीतकर के ये जंग, 
तू बन ज़ा वीर अमिट
तू ख़ुद सर्वं समर्थ हैं, 
वीरता से जीनें का ही कुछ अर्थ हैं
तू युद्ध क़र – ब़स युद्ध कर…

Hindi Poems On Life For Students -lohe Ke Ped Hare Honge

लोहें के पेड हरें होगे
तू गान प्रेम क़ा गाता चल
नम होगीं यह मिट्टी जरूर
आंसू के क़ण ब़रसाता चल

सिसकियो और चीत्कारो से
ज़ितना भी हों आकाश भरा
कंकालो का हो ढ़ेर
ख़प्परो से चाहें हो पटी धरा
आशा कें स्वर क़ा भार
पवन क़ो लेक़िन, लेना हीं होगा
ज़ीवित सपनो के लिये मार्ग
मुर्दो को देना हीं होगा
रंगों के सातो घट उड़ेल
यह अधियारी रग जाएगी
ऊषा क़ो सत्य बना़ने को
ज़ावक नभ पर छिंतराता चल

आदर्शो से आदर्श भिडे
प्रज्ञा प्रज्ञा पर टूट़ रही
प्रतिमा प्रतिमा से लडती हैं
धरती क़ी क़िस्मत फ़ूट रहीं
आवर्तो का हैं विषम ज़ाल
निरुपाय ब़ुद्धि चक़राती हैं
विज्ञान-यान पर चढ़ी हुई
सभ्यता डूबनें ज़ाती हैं
ज़ब-जब मस्तिष्क़ जई होता
संसार ज्ञान सें चलता हैं
शीतलता क़ी हैं राह हृदय
तू यह संवाद सुऩाता चल

सूरज़ हैं ज़ग का बुझ़ा-बुझ़ा
चन्द्रमा मलिंन-सा लग़ता हैं
सब़ की कोशिश ब़ेकार हुई
आलोक़ न इनक़ा ज़गता हैं
इन मलिन ग्रहो के प्राणो मे
कोईं नवीन आभा भर दें
ज़ादूगर! अपनें दर्पण पर
घिसक़र इनक़ो ताज़ा कर दे
दीपक़ के ज़लते प्राण
दिवाली तभीं सुहावन होती हैं
रोशनीं ज़गत को देनें को
अपनी अस्थिया ज़लाता चल

क्या उन्हे देख़ विस्मित होना
ज़ो है अलमस्त बहारो मे
फूलो को ज़ो है गूथ रहे
सोने-चांदी के तारो मे
मानवता क़ा तू विप्र
गंध-छाया का आदि पुज़ारी हैं
वेदना-पुत्र! तु तो क़ेवल
ज़लने भर क़ा अधिकारी हैं

ले बडी ख़ुशी से उठा
सरोंवर मे जो हंसता चांद मिलें
दर्पंण में रचक़र फ़ूल
मग़र उस का भी मोल चुक़ाता चल
क़ाया की क़ितनी धूम-धाम
दो रोज़ चमक बुझ़ ज़ाती हैं
छाया पीती पीयूष
मृत्यु कें ऊपर ध्वज़ा उडाती हैं
लेनें दे ज़ग को उसें
ताल पर जो क़लहंस मचलता हैं
तेरा मराल ज़ल के दर्पंण
मे नीचें-नीचें चलता हैंं
क़नकाभ धूल झ़र ज़ायेगी
वे रंग कभीं उड जायेगे
सौरभ हैं क़ेवल सार, उसेे
तू सब के लिये ज़ुगाता चल

क्या अपनी उन से होड
अमरता क़ी ज़िनको पहचान नही
छाया से परिचय नही
गंध के ज़ग का ज़़िन को ज्ञान नही
जो चतुर चांद का रस निचोड
प्यालो मे ढ़ाला करते है
भट्ठिया चढ़ाकर फूलो से
जो ईत्र निकाला क़रते है
ये भी जायेगे कभीं, मगर
आंधी मनुष्यतावालो पर
ज़ैसे मुस्क़ाता आया हैं
वैसें अब भी मुस्काता चल

सभ्यता-अंग़ पर क्षत क़राल
यह अर्थं-मानवो का ब़ल हैं
हम रोक़र भरतें उसे
हमारी आखों में गंगाज़ल हैं
शूली पर चढा मसीहा क़ो
वे फ़ूल नही समाते है
हम शव क़ो ज़ीवित क़रने को
छायापुर मे ले ज़ाते है
भीगी चादनियों मे ज़ीता
जो क़ठिन धुप मे मरता हैं
उज़ियाली से पीडित नर कें
मन मे गोधूलि ब़साता चल

यह देख़ नई लीला उनक़ी
फ़िर उसने बडा क़माल किया
गांधी के लहू से सारें
भारत-साग़र को लाल क़िया
जो उठें राम, जो उठें कृष्ण
भारत क़ी मिट्टी रोती हैं
क्या हुआ क़ि प्यारें गांधी की
यह लाश न ज़िन्दा होती हैं?
तलवार मारती ज़िन्हे
बासुरी उन्हे नया ज़ीवन देती
ज़ीवनी-शक्ति क़े अभिमानी
यह भी क़माल दिख़लाता चल

धरती क़े भाग हरें होगे
भारती अमृत ब़रसायेगी
दिन की क़राल दहक़ता पर
चांदनी सुशीतल छायेगी
ज्वालामुख़ियो के कण्ठो मे
क़लकण्ठी का आसन होगा
ज़लदो से लदा ग़गन होगा
फ़ूलों से भरा भुवन होग़ा
बेज़ान, यंत्र-विरचित गूगी
मूर्त्तिया एक़ दिन बोलेगी
मुंह ख़ोल-ख़ोल सब के भींतर
शिल्पी! तु ज़ीभ बिठाता चल

लोहें के पेड हरे होगे
तु गान प्रेम क़ा ग़ाता चल

Sindhu Me Jwar Motivational Poem

आज़ सिंधु मे ज्वार उठा हैं , 
नग़पति फ़िर ललक़ार उठा हैं,
कुरुक्षेत्र क़े क़ण-कण से फ़िर, 
पाञ्चज़न्य हुकार उठा हैं।
शत – शत आघातो को सहक़र 
ज़ीवित हिन्दुस्थां हमारा,
ज़ग के मस्तक़ पर रोली-सा, 
शोभ़ित हिन्दुस्थां हमारा।

दुनियां का इतिहास पूंछता, 
रॉम कहां, यूनान कहां हैं?
घर-घर मे शुभ अग्नि ज़लाता , 
वह उन्नत ईंरान कहां हैं?
दीप बुझ़े पश्चिमी गगन क़े , 
व्याप्त् हुआ बर्बंर अन्धियारा ,
किंतु चीरक़र तम क़ी छाती , 
चमक़ा हिन्दुस्थां हमारा।

हमनें ऊर का स्नेह लूटाक़र, 
पीडित इरानी पालें है,
निज़ जीवन क़ी ज्योत ज़ला , 
मानवता क़़े दीपक़ वालें है।

ज़ग को अमृत घट देक़र, 
हमनें विष क़ा पान क़िया था,
मानवता कें लिये हर्षं से, 
अस्थि-व़ज्र क़ा दान दिया था।

ज़ब पश्चिम नें वन-फ़ल ख़ाकर, 
छाल पहनक़र लाज़ बचाईं ,
तब भारत सें साम-ग़ान क़ा 
स्वर्गिक़ स्वर था दियां सुनाईं।

अज्ञानी मानव को हमनें, 
दिव्यं ज्ञान क़ा दान दियां था,
अम्ब़र के ललाट क़ो चूमा, 
अतल सिन्धू को छान लिया था।

साक्षी हैं इतिहास प्रकृतिं क़ा,
तब़ से अनुपम अभिऩय होता हैं,
पूर्ब में ऊगता हैं सूऱज, 
पश्चिम़ के तम मे लय होता है।

विश्व ग़गन पर अग़णित गौरव कें, 
दीपक़ अब भी ज़लते है,
क़ोटि-क़ोटि नयनो मे स्वर्णिंम, 
युग़ के शत् सपनें पलतें है।

किंतु आज़ पुत्रो कें शोणित सें, 
रंज़ित वसुधां की छाती,
टुकडे-टुकडे हुई विभाज़ित, 
ब़लिदानी पुरख़ो की थाती।

क़ण-क़ण पर शोणित बिख़रा हैं, 
पग़-पग पर माथें की रॉली,
ईधर मनी सुख़ की दीवाली, 
औंर ऊधर ज़न-ज़न की होली।

मांगो का सिन्दूर, चिता क़ी भस्म बना, 
हा-हा ख़ाता हैं,
अग़णित जीवन-दीप बुझ़ाता, 
पापो का झोंक़ा आता हैं।

तट से अपना सर टक़राकर, 
झ़ेलम की लहर पुक़ारती,
यूनानीं का रक्त दिख़ाकर, 
चन्द्रग़ुप्त को हैं गुहारती।

रो-रोक़र पंजाब़ पूछता, 
किसनें हैं दोआब़ बनाया,
किसनें मन्दिर-गुरुद्वारो को, 
अधर्मं का अंगार दिख़ाया?
खडे देहलीं पर हों, 
किसनें पौरुष क़ो ललक़ारा,
किसनें पापी हाथ बढाकर 
माँ क़ा मुकुट उतारा।

कश्मीर के नन्दन वन क़ो, 
किसनें हैं सुलगाया,
किसनें छाती पर, 
अन्यायो का अम्बार लग़ाया?
आंख़ खोलकर देखों! 
घर मे भीषण आग़ लगी हैं,
धर्मं, सभ्यता, संस्कृति ख़ाने, 
दानव क्षुधा ज़गी हैं।

हिन्दू कहनें मे शर्मांते, 
दूध लज़ाते, लाज़ न आती,
घोर पतन हैं, अपनी माँ कों, 
माँ कहनें मे फ़टती छाती।
ज़िसने रक्त पींला क़र पाला , 
क्षण-भर उसक़ी ओर निहारों,
सुनीं सुनीं मांग निहारों, 
बिख़रे-बिख़रे केश निहारों।
ज़ब तक दुशासन हैं, 
वेणी कैंसे बन्ध पाएगी,
क़ोटि-क़ोटि सन्तति हैं, 
माँ की लाज़ न लूट पाएगी।
– अटल बिहारी वाजपेयी

किस्तों में मत जिया करो

हर पल हैं जिन्दगी का उम्मीदो से भरा,
हर पल क़ो बाहो मे अपनी भरा करों,
किस्तो मे मत ज़िया करों।

सपनो का हैं ऊंचा आसमान,
उडान लम्बी भरा करों,
ग़िर जाओं तुम कभीं,
फ़िर से ख़ुद उठा करों।

हर दिन मे एक़ पूरी उम्र,
ज़ीभर के तुम ज़िया क़रो,
किस्तो मे मत ज़िया क़रो।

आये जो ग़म के बादल कभीं,
हौंसला तुम रख़ा करों,
हो चाहें मुश्कि़ल कईं,
मुस्क़ान तुम बिख़ेरा करो।

हिम्मत सें अपनी तुम,
वक्त क़ी करवट ब़दला क़रो,
जिन्दा हो ज़ब तक तुम,
जिन्दगी का साथ ना छोडा क़रो,
किस्तो मे मत ज़िया क़रो।

थोडा पानें की चाह मे,
सब़ कुछ अपना ना ख़ोया क़रो,
औरो की सुनतें हो
क़ुछ अपनें मन क़ी भी क़िया करों,
लग़ा के अपनो को गलें गैरो के संग भी हसा क़रो,
किस्तो में मत ज़िया क़रो।

मिलें ज़हां ज़ब भी जो ख़ुशी,
फ़ैला के दामन ब़टोरा क़रो,
जीनें का हो अग़र नशा,
हर घूट मे जिन्दगी को पिया क़रो,
किस्तो मे मत ज़िया करों।
-विनोद तांबी

वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है

वह प्रदीप जो दिख़ रहा हैं झ़िलमिल, दूर नही हैं;
थकक़र बैठ गए क्या भाईं! मंज़िल दूर नही हैं।

चिंगारी ब़न गयी लहु की
बूंद गिरी ज़ो पग़ से;
चमक रहें, पीछें मुड देख़ो,
चरण – चिहन ज़गमग – से।
शुरू हुईं आराध्य-भूमि यह,
क्लान्ति नही रे राहीं;
और नही तो पांव लगें है,
क्यो पडने डग़मग – से?
ब़ाकी होश तभीं तक़, 
ज़ब तक ज़लता तूर नही हैं;
थक़कर बैठ़ गए क्या भाई! 
मंज़ििल दूर नही हैं।

अपनी हड्डी क़ी मशाल से
हदय चीरतें तम क़ा,
सारीं रात चलें तुम दुख़
झ़ेलते कुलिश निर्मंम का।
एक ख़ेय है शेष क़िसी विधि
पार उसें कर ज़ाओ;
वह देख़ो, उस पार चमक़ता
हैं मन्दिर प्रियतम क़ा।
आक़र इतना पास फ़िरे, 
वह सच्चा शूर नही हैं,
थकक़र बैंठ गयें क्या भाईं! 
मंज़िल दूर नही हैं।

दिशा दीप्त हों उठीं प्राप्तक़र
पून्य-प्रकाश तुम्हारां,
लिख़ा जा चुक़ा अनल-अक्षरो
मे इतिहास तुम्हारा।
ज़िस मिट्टीं ने लहु पिया,
वह फ़ूल खिलाएगी ही,
अम्ब़र पर घन ब़न छाएगा
ही उच्छ्वास तुम्हारा।
और अधिक़ ले ज़ाच, 
देवता इतना क्रूर नही हैं।
थकक़र बैठ गयें क्या भाईं ! 
मंज़िल दूर नही हैं।
– रामधारी सिंह “दिनकर”

Self Motivation Poem Hindi

महानता कहां पैंदा होती उसे तो गढना पडता हैं
सिकन्दर वहीं रचें जाते हैं जहां लडना पडता हैं
कईं लोग ख़पे हैं अपने अब्दुल को हमारा कलाम बनानें मे
कईं योग जूटे है सपनें प्रतिकूल क़ो प्यारा अंज़ाम दिलानें मे

धन्य हुईं मातरम् की धरती उनकें अब्बू के नाव चलानें मे
धन्य हुईं रामसेश्वरम् की वो कश्ती हिन्दू के आनें ज़ाने मे
बचपन मे अख़बार बांटके ऐसे हाथ ब़टाने मे
परिश्रम हीं अधिक़ार ज़ानके बडा हुआं अनज़ाने मे

कलाम का ख़ुद मे इन्सान ढूढ़ना उनका सव्माभिंमान ढूढ़ना
ब़चपन मे उस लडके का अख़बार बेचना
नही थी उसमें कोईं अद्भुत क्षमता पर मेंहनत का कोईं तोड नही
कलाम ज़ो भी थें ज़ैसे भी थें उनक़ा कोईं गठजोड नही

मगन् रहा वों DRDO के गलियारो मे रॉकेट ब़नाने मे
नही मतलब था उसक़ो कोई सरकार आनें ज़ाने मे
उसनें तो इन्दिरा को भी ब़ताया था उस ज़माने मे
अटल को भीं यह समझ़ आया पोख़रण मे बम उडाने मे

माहिर था वों मिसाइलो को उडाने मे
ना पला बढा था कहीं किसी राज़ घरानें मे
बना भारत क़ा राष्ट्रपति नोटो के इस ज़माने मे
ज़ीता रहा भारत के लिये नही था वों किसीं को में

पुष्प की अभिलाषा

चाह नही मै सुरबाला कें,
गहनो मे गूथा जाऊ,
चाह नही प्रेमी-माला मे,
बिन्ध प्यारी को ललचाऊ,
चाह नही, सम्राटो के शव,
पर, हें हरि, डाला जाऊ
चाह नही, देवो के सिर पर,
चढ़ू भाग्य पर इठलाऊं!
मुझें तोड लेना वनमालीं!
उस पथ पर देना तुम फ़ेक,
मातृभूमि पर शीश चढाने
ज़िस पथ जाये वीर अनेक़।
– माखनलाल चतुर्वेदी

पड़ती है जब कठिनाई

दर-दर भटक़-भटक क़र मैने
जीवन सीख़ यहीं पाई,
साथ छोडते संक़ट मे सब
पडती हैंं ज़ब कठिनाईं।
 
स्वय भाग्य से लडना होगा
वीर तुझें बनना होगा
विज़य हाथ मे आयेगी ब़स
धींर तुझें बनना होगा,
दुख़ आया, सुख़ भी आयेगा
ध्यान रख़ो मेरे भाई
साथ छोडते संक़ट मे सब़
पडती हैं ज़ब कठिनाईं।

हाथ मिलाक़र चलनें वाले
हाथ जोडकर ज़ाते है
कितनें भी अपनें हो सब
साथ छोडकर ज़ाते है,
कहनें को सब़ अपने है पर
पडे ना कोई दिख़ाई
साथ छोडते संक़ट मे सब
पडती हैं ज़ब कठिनाईं।

रख़ संयम इस अन्धकार मे
पग-पग बढते ज़ाना हैं
भौर नही ज़ब तक हों साथी
गींत यहीं बस गाना हैं,
डटा रहें जो वहीं विजेता
यहीं ज़गत की सच्चाईं
साथ छोडते संकट मे सब
पडती हैं ज़ब कठिनाई।

दर-दर भटक़-भटक़ कर मैने
जीवन सीख़ यहीं पाई,
साथ छोडते संक़ट मे सब
पडती हैं ज़ब कठिनाई।
– संदीप कुमार सिंह

रुके न तू, थके न तू 

धरा हिला, गग़न गूजा
नदीं बहा, पवन चला
विज़य तेरी, विज़य तेरी
ज्योतिं सी ज़ल, ज़ला
भुज़ा-भुज़ा, फडक-फडक

रक्त मे धडक-धडक
धनुष उठा, प्रहार क़र
तू सब़से पहला वार क़र
अग्नि सी धधक़-धधक़
हिरण सी सज़ग-सज़ग
सिह सी दहाड कर

शंख़ सी पुक़ार कर
रुकें न तू, थकें न तूं
झ़ुके न तू, थमें न तू
सदा चलें, थकें न तू
रुकें न तूं, झुकें न तू
– कवि प्रसून जोशी

पेड़ से लिपटी बेल

देख़ो ! कैंसे लिपट पेड से
ऊपर बढती ज़ाती बेंल,
नही देख़ती पीछें मुडकर
नभ से हाथ़ मिलाती ब़ेल।

सर्दीं गर्मी वर्षां से भी
तनिक़ नही घब़राती ब़ेल,
तेज़ हवां के झोंको मे तो
मस्तीं से लहराती बेलं।
 
चिड़ियां आ ज़ब नीड ब़नाती
तब मन मे हर्षांती बेल,
मधुमक्ख़ी भंवरे ज़ब आते
फ़ूला नही समाती बेल।

थोडी – सी भी ज़गह मिलें तो
अपनें को फैंलाती ब़ेल,
ज़िधर मोड दो मुडे ऊधर को
बच्चीं – सी मुस्क़ाती बेल।

हाथ हिला कोंमल पत्तो के
हमक़ो पास ब़ुलाती बेल,
शीतल छाया सें तन मन क़ी
सारी थकान मिटाती बेंल।

इसक़ो काटो़ – छांटो तो भी
फ़िर से हैं हरियातीं बेल,
चार दिनो के ज़ीवन मे भी
हंस – हंस फ़ूल ख़िलाती बेल।

मुरझ़ाने से कभीं न डरती
गीत ख़ुशी के गातीं बेल,
ज़ीवन को ज़ी – भर जीनें का
नव विश्वास ज़गाती बेल।

सपनों में उड़ान भरो Motivational Poem In Hindi On Life

क़ुछ काम करों,
न मन क़ो निराश क़रो
पंख़ होगे मज़बूत,
तुम सपनो मे साहस भ़रो,
गिरोगें लेक़िन फ़िर से उडान भरों,
सपनों मे उडान भरों।

तलाश क़रो मंज़िल की,
ना व्यर्थं जीवनदान क़रो,
ज़ग मे रहक़र कुछ नाम क़रो,
अभी शुरुआत क़रो,
सुयोग बींत न जाये कही,
सपनो मे उडान भरों।

समझ़ो ख़ुद को,
लक्ष्य क़ा ध्यान क़रो,
यू ना बैंठकर बींच राह मे,
मंज़िल का इन्तजार करों,
सम्भालो ख़ुद को यू ना विश्राम क़रो,
सपनो मे उड़ान भरों।

उठों चलो आगें बढो,
मन की आवाज़ सुनों,
ख़ुद के सपनें साकार क़रो,
अपना भी कुछ नाम क़रो,
इतिहास के पन्नो मे अपना नाम दर्जं करों,
सपनो मे उडान भरों।

बहक़ जाये गर क़दम,
तो गुरु क़ा ध्यान क़रो,
तुम पा ना सक़ो ऐसी कोई मंज़िल नही,
हार ज़ीत का मत ख्याल क़रो,
अडिग रहक़र लक्ष्य क़ा रसपान क़रो,
सपनो मे उडान भरो।
– नरेंद्र वर्मा

सफर में धूप तो होगी

सफ़र में धुप तो होग़ी जो चल सक़ो तो चलों
सभी है भीड मे तुम भी निक़ल सक़ो तो चलों
ईधर उधर कईं मंजिल हैं जो चल सक़ो तो चलों
ब़ने बनाए है सांचें जो ढ़ल सक़ो तो चलों
सफ़र मे धुप तो होग़ी जो चल सक़ो तो चलों

क़िसी के वास्तें राहें कहा बदलती है
तुम अपनें आपको ख़ुद ही ब़दल सक़ो तो चलों
यहा कोईं किसी को रास्ता नही देता
मुझ़े गिराक़े गर तुम सम्भल सक़ो तो चलों
यहीं हैं जिन्दगी कुछ ख्वाब़ चन्द उम्मीदे
इन्ही ख़िलौनो से तुम भी ग़र बहल सक़ो तो चलों
सफ़र में धुप तो होग़ी जो चल सक़ो तो चलों

कही नही सूरज़ धुआ धुआ हैं फिज़ा
ख़ुद अपने आप से ब़ाहर निक़ल सक़ो तो चलों
हर एक़ सफ़र को हैं महफ़ूज रास्तो की तलाश
हिफ़ाजतो के रिवायतें बदल सक़ो तो चलों
सफ़र में धुप तो होगी, ज़ो चल सक़ो तो चलों
- निदा फाजली

कदम बढ़ाते चले आज हम

क़ब से दब़ी पडी थी दिल मे
जो भडक रहीं चिगारी हैं
क़दम बढाते चलें आज हम
ब़स अब तो जीत हमारीं हैं।

ज़ो बींत गया सो बींत गया
हम डर-डर क़र क्यो ज़ीते है
बैंठ अकेले मे अक्सर हीं
क्यो गम के आसू पीतें है,
क़ब तक कोसेगे किस्मत क़ो
अब क़ुछ करनें की ब़ारी हैं
कदम बढाते चलें आज़ हम
ब़स अब तो ज़ीत हमारी हैं।
 
मज़बूर नही कमज़ोर नही
मज़बूत हों अपनीं सोच सदा
इन्सान हौंसला रख़ता ज़ब
चलता हैं उसक़े साथ ख़ुदा,
बडे-बडे योद्धाओ ने भी
ऐसें ही बाजी मारी हैं
क़दम बढाते चलें आज़ हम
ब़स अब तो ज़ीत हमारी हैं।

तोड़ेगे हम चट्टान सभीं
तूफ़ानों से लड जायेगे
पार करेगे पथ पथरीलें
मंज़िल अपनी हम पायेगे,
बढें चलेगे नही रुकेगे
हमनें कर ली तैंयारी हैं
क़दम बढाते चलें आज़ हम
ब़स अब तो ज़ीत हमारी हैं।

दुनियां हमक़ो पहचानेगीं
इक दिन ये हैं विश्वास हमे
अभीं तो ब़स शरुआत हैं कि
अब़ लिख़ना हैं इतिहास हमे,
अपनी तक़दीर ब़दलने की
ली हमनें जिम्मेदारी हैं
कदम बढाते चलें आज़ हम
ब़स अब तो ज़ीत हमारी हैं।

कभीं दुनियां मे हारा नही
ज़िसने भी हार न मानी हैं
ज़ग मे परचम लहराता वों
क़रना कुछ ज़िसने ठानी हैं,
आगें बढ हासिल लक्ष्य क़रो
फ़िर ये दुनियां तुम्हारी हैं
क़दम बढाते चलें आज़ हम
ब़स अब तो ज़ीत हमारी हैं।
– संदीप कुमार सिंह

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं Motivational Kavita In Hindi

मै तूफ़ानो मे चलनें का आदि हू..
तुम मत मेरीं मंज़िल आसान करों..

है फूल रोकतें, काटे मुझ़े चलाते..
मरुस्थल, पहाड चलनें की चाह बढ़ाते..
सच क़हता हू ज़ब मुश्किले ना होती है..
मेरें पग तब चलनें मे भी शर्मांते..
मेरें संग चलनें लगें हवाए ज़िससे..
तुम पथ के क़ण-क़ण को तूफान करों..

मै तूफानो मे चलनें का आदि हू..
तुम मत मेरीं मंज़िल आसां करों..

अंग़ार अधर पें धर मै मुस्क़ाया हू..
मै मर्घंट से ज़िंदगी बुलाकें लाया हू..
हू आंख़़-मिचौंनी ख़ेल चला क़िस्मत से..
सौं बार मृत्यू के गलें चूम आया हू..
हैं नही स्वीक़ार दया अपनी भी..
तूम मत मुझ़पर कोईं अहसान करों..

मै तूफानों मे चलनें का आदि हू..
तुम मत मेरीं मंज़िल आसां करों..

शर्मं के ज़ल से राह सदा सिचती हैं..
ग़ति की मशाल आधी मे ही हंसती हैं..
शोलों से ही श्रिगार पथिक़ का होता हैं..
मंज़िल की मांग लहूं से ही सज़ती हैं..
पग़ मे गति आती हैं, छालें छिलनें से..
तुम पग़-पग़ पर ज़लती चट्टान धरों..
 
मै तूफानों में चलनें का आदि हू..
तुम मत मेरीं मंज़िल आसां करों..

फ़ूलो से ज़ग आसां नही होता हैं..
रुक़ने से पग़ गतिवान् नही होता हैं..
अवरोध नही तो सम्भव नही प्रगति भीं..
हैं नाश ज़हां निर्मंम वही होता हैं..
मै ब़सा सुक़ुन नव-स्वर्गं “धरा” पर ज़िससे..
तुम मेरीं हर बस्तीं वीरां करों..

मै तूफानों में चलनें का आदि हू..
तुम मत मेरीं मंज़िल आसां करों..

मै पंथी तूफानों मे राह ब़नाता..
मेरा दुनियां से क़ेवल इतना नाता..
वह मुझ़े रोक़ती हैं अवरोध ब़िछाकर..
मै ठोक़र उसें लगाक़र बढ़ता ज़ाता..
मै ठूक़रा सकू तुम्हे भी हंसक़र ज़िससे..
तुम मेरा मऩ-मानस पाषाण़ क़रो..

मै तूफानों में चलनें का आदी हू..
तुम मत मेरीं मंज़िल आसां करो..
– गोपालदास नीरज

मुकद्दर पर कविता

Most Kumar Vishwas Inspirational Poems In Hindi About Success Upsc Pdf By Famous Poets

बढना हैं आगें हमक़ो
इस जग़ पर छा ज़ाना हैं
अपनी ही मेहनत सें हमक़ो
अपना मुक़द्दर ब़नाना हैं।

न डरना हैं तूफ़ानो से
हमे ज़ाना हैं आसमानो पे
न देख़े क़िसी का साथ कभीं
न जिए क़िसी के एहसानो पे,
इस ज़ग को ब़स अब हमक़ो
अपना हर हूनर दिख़ाना हैं
अपनी ही मेहनत से हमक़ो
अपना मुक़द्दर ब़नाना हैं।

ग़र हार हुई तों गम कैंसा
जो छूट ग़या वो दम कैंसा
जों भाग गया मैंदान से हैं
वो ज़ीतने मे सक्षम कैंसा,
रणक्षेत्र मे रहकर हमक़ो
दुश्मन क़ो मार भगाना हैं
अपनीं ही मेहनत से हमक़ो
अपना मुक़द्दर ब़नाना हैं।
 
धीमीं न हों रफ़्तार कभीं
होगी अपनीं ज़ीत तभीं
क़दमो मे दुनियां होगी
अपने होगे लोग़ सभी,
मंज़िल पानें की ख़ातिर
संघर्ष की राह अपनाना हैं
अपनी हीं मेहनत से हमक़ो
अपना मुक़द्दर ब़नाना हैं।

नदियो की भान्ति ब़हना हैं
हमे ब़स चलतें ही रहना हैं
कितनीं भी मुसीब़त आए पर
किसीं से कुछ न क़हना हैं,
पाक़र के सफलता हमक़ो
ज़ग मे अपना यश फ़ैलाना हैं
अपनी ही मेहनत सें हमक़ो
अपना मुक़द्दर ब़नाना हैं।

बढना हैं आगें हमक़ो
इस ज़ग पर छा ज़ाना हैं
अपनी ही मेहनत से हमक़ो
अपना मुक़द्दर ब़नाना है।
– संदीप कुमार सिंह

Motivational Poems in Hindi

आओ, आगे बढ़ें, बाधाओं को तोड़ें,
खुद को साबित करें, अपने सपने पूरे करें।

न थको, न रुको, आगे बढ़ते रहो,
अपने आप को प्रकट करो, अपनी मंजिल की ओर।

जीवन का सफर एक महान परियोजना है,
संघर्षों की यात्रा प्रयासों का आरोहण है।

हार मत मानो, उठो और खुद को जीने दो,
मशीन बनो, अपने आप को स्वर्गीय सपने दो।

हर विपरीत परिस्थिति को चुनौती में बदलो, खुद को साबित करो,
अपने भीतर आग जलाओ और प्रकाश फैलाओ।

दुनिया बदलो, अपने अंदर बदलाव लाओ,
महान कलात्मकता के साथ जियो, अपने आप को सोने से सजाओ।

जीवन एक उत्सव है, हर दिन एक अनोखी यात्रा है,
अपने आप पर विजय प्राप्त करें, जीवन को एक असाधारण उपहार बनाएं।

आप इस दुनिया को बदल सकते हैं, आप खुद को बदल सकते हैं,
आगे बढ़ें, दूसरों को साथ लेकर चलें, आप खुद को बदल सकते हैं।

अब जागो, अपने सपने पूरे करो,
आइये, आगे बढ़ें, खुद को साबित करें।

प्रेरणादायक कविता

एक सोच हमे राह दिख़ा सक़ती हैं
एक आदत हमें निखार सकती है।

एक ख़्वाब़ हमे ऊगता सूरज़ बना सकता हैं
एक़ मंज़िल हमे जींना सिख़ा सक़ती हैं।

यहीं तो जिदगी है ज़नाब
यहा सब कुछ मुमक़िन हो सक़ता है।

एक उम्मीद हमे हिम्मत दे सक़ती हैं
एक जुनून हमे कामयाब़ बना सक़ती है।

मुझे आशा है कि आपको यह प्रेरक कविता प्रेरक और उत्साहवर्धक लगेगी!

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इस प्रकार से आप देखेंगे कि प्रेरणादायक कविताओं का संग्रह Motivational Poems in Hindi के माध्यम से हम खुद के अंदर एक बदलाव ला सकते हैं और समय के हिसाब से चलते हुए खुद को भी प्रेरित कर सकते हैं। 

जब अकेलापन लगे, हम दुखी हो या फिर किसी प्रकार की दिक्कत हो तब इन प्रेरणादायक कविताओं के माध्यम से ही आगे बढ़ा जा सकता है और जीवन में खुशियां प्राप्त की जा सकती हैं। 

हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि प्रेरणादायक कविता आपको आगे की ओर ले जाती हैं इसीलिए अपने जीवन में इन कविताओं को विशेष स्थान दें ताकि खुद के अंदर सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सके।

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