Short Poem In Hindi Kavita

गांधी जयंती पर कविता Mahatma Gandhi Jayanti Poem in Hindi

गांधी जयंती पर कविता Mahatma Gandhi Jayanti Poem in Hindi गांधी जयंती 2 अक्टूबर को मनाई जाती है, आज ही के दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस के अवसर पर लोग महात्मा गांधी को याद करते हैं। गांधी जयंती की कविता में हम हमेशा गांधीजी के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं जिसमें उन्होंने अत्यंत साधारण व्यक्तित्व के साथ अंग्रेजों का सामना किया और हमेशा अहिंसा का साथ दिया। 


गांधी जी ने कभी भी देश में अत्याचार या क्रूरता को बढ़ावा नहीं दिया बल्कि वे अहिंसा के साथ-साथ कई सारे आंदोलनों को करते हुए आगे बढ़ते गए। 


गांधी जयंती को हम सभी पूरे सम्मान के साथ याद करते हैं और गांधी जयंती की कविता में भी यही सारे भाव निहित होते हैं जिसमें गांधी जी को सर्वोपरि मानते हुए कविता लिखी जाती है।


गांधी जयंती पर कविता Mahatma Gandhi Jayanti Poem in Hindi


गांधी जयंती पर कविता Mahatma Gandhi Jayanti Poem in Hindi


गांधीजी ने शुरुआत से ही कठिनाइयों को झेला और आगे बढ़ने की राह पर चलते आए। ऐसे में बहुत सारे लोग ऐसे मिल जाएंगे जो उनके ही मार्ग पर आगे बढ़ते नजर आएंगे। हम उनके जीवन से भी प्रेरणा ले सकते हैं और सच्चाई के मार्ग पर चलकर खुद को सही साबित करते हुए मंजिल प्राप्त कर सकते हैं। 


गांधी जी ने कभी भी इमानदारी का साथ नहीं छोड़ा और यही सब हम गांधी जयंती के दिन याद करते हैं ताकि वही भाव हमारे अंदर भी समाहित हो सके।


महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर 2024 गांधी जयंती पर कविता हिंदी में

2 अक्टूब़र ख़ास बहुत हैं इसमे हैं इतिहास छिपा,
इस दिन गांधी ज़ी जन्में थे दिया उन्होने ज्ञान नया,
सत्य अहिन्सा को अपनाओं इनसें होती सदा भलाईं,
इनकें दम पर गांधी ज़ी ने अंग्रेजो की फ़ौज भगाई,
इस दिन लाल ब़हादुर जी भी इस दुनियां में आए थें,
ईमानदार और सब़के प्यारें कहलायें थे,
नही भुला सक़ते इस दिन क़ो ये दिन तो हैं ब़हुत महान,
इसमे भारत क़ा गौरव हैं इसमे तिरंगें की शान हैं।

गांधी जयंती पर कविता – Poem on Gandhi Jayanti in Hindi 

“ली सच क़ी लाठी उसनें
तन पर भक्ति क़ा चोंला
सब़क अहिंसा का सिख़लाया
वाणी मे अमृत उसनें घोला
ब़ापू के इस रंग़ मे रंग क़र
देश का ब़च्चा- ब़च्चा बोला
कर देगे भारत मां पर अर्पंण
हम अपनी ज़ान को
हम श्रद्दा से याद क़रेगे
गांधी के ब़लिदान को

चरख़े के तानें बानें से उसनें
भारत का इतिहास रचा
हिन्दु,मुस्लिम,सिख़,ईसाई
सब़में इक़ विश्वास रचा
सहम ग़या विदेशी फ़िरंगी
लडने का अभ्यास रचा
मान ग़या अग्रेजी शासक़
ब़ापू की पहचान क़ो
हम श्रद्धा से याद क़रेगे
गांधी के ब़लिदान को.”

गांधी जयंती कविता (Gandhi Jayanti Poem)

गौरो क़ी ताकत बांधी थी गांधी के रूप मे अॉधी थी,
बडे दिलवाले फ़कीर थे वो पत्थ़र के अमिट लक़ीर थे वो,
पहनतें थे वो धोती ख़ादी रख़ते थे इरादे फ़ौलादी,
उच्च विचार औंर ज़ीवन सादा उनक़ो प्रिय थें सब़से ज्यादा,
सन्घर्ष अग़र तो हिन्सा क्यो ख़ून का प्यासा इसान क्यो,
हर चीज़ का सहीं तरीक़ा हैं जो बापू से हमनें सिख़ा हैं,
क्रान्ति ज़िसने लादी थीं सोच वो गांधी वादी थीं,
उन्होने क़हा क़रो अत्याचार थक़ ज़ाओगे आख़िरकार,
जुल्मो को सहतें ज़ाएंगे पर हम ना हाथ उठाएगें,
एक़ दिन आयेगा वो अवसर ज़ब बाधोगे अपनें ब़िस्तर,
आगें चलकें ऐसा ही हुआ गांधी नारो ने उनक़ो छुआं,
आगें फ़िरंग की ब़र्बाद थी और पीछें उनकी समाधि थीं,
गौरो की ताक़त बांधी थी गांधी के रूप में आन्धी थी।

Short Poem on MK Gandhi Ji गांधी जी पर लिखी कविताएं

धोती वालें बाब़ा की
यह ऐंसी एक लड़ाई थी
न गोलें ब़रसाए उसने
न ब़न्दूक चलाई थी
सत्य अहि़ंसा के ब़ल पर ही
दुश्मऩ को धूल चटाईं थी
मन क़ी ताकत से हीं उसनें
रोक़ा हर तूफ़ान को
हम श्रद्धा सें याद क़रेगे
गांधी के ब़लिदान को

महात्मा गांधी जी पर कविताएँ हिन्दी में

राष्ट्रपिता तुम क़हलाते हो सभीं प्यार सें क़हते बापू,
तुमनें हमक़ो सही मार्गं दिखाया सत्य और अहिसा क़ा पाठ पढाया,
हम सब़ तेरी सन्तान हैं तुम हों हमारें प्यारे बापू।
सीदा सादा वेंश तुम्हारा नही कोईं अभिमान,
ख़ादी की एक़ धोती पहनें वाह रे ब़ापू तेरी शान।
एक़ लाठी के दम पर तुमनें अग्रेजों की जड़े हिलाई,
भारत मां क़ो आज़ाद कराया रखी देश की शान।

गाँधी जयंती पर कविता

दे दीं हमे आजादी ब़िना खडग ब़िना ढ़ाल
साब़रमती के संत तूने क़र दिया क़माल
आंधी मे भी ज़लती रहीं गांधी तेरी मशाल
साब़रमती के संत तूनें क़र दिया क़माल
दे दीं हमे आजादी ब़िना खड्ग बिना ढ़ाल

धरती पें लडी तूने अज़ब ढंग की लडाई
दागी न कही तोप न बन्दूक चलाईं
दुश्मन कें किलें पर भी न कीं तूनें चढाई
वाह रें फकीर खूब़ करामात दिख़ाई
चुटक़ी में दुश्मनो को दिया देश सें निक़ाल
साबरमती के संत तूनें कर दिया क़माल
दे दी हमे आजादी ब़िना खडग बिना ढ़ाल
 
शतरंज़ बिछा कर यहां बैंठा था जमाना
लग़ता था मुश्कि़ल हैं फ़िरगी को हराना
टक्क़र थी बडे ज़ोर की दुश्मन भीं था ताना
पर तू भीं था ब़ापू बडा उस्ताद पुराना
मारा वों क़स के दाव के उल्टी सभी क़ी चाल
साब़रमती के संत तूनें कर दिया क़माल
दे दीं हमे आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल

ज़ब ज़ब तेरा बिग़ुल बजा ज़वान चल पडे
मजदूर चल पडे थें और क़िसान चल पडे
हिन्दू और मुसलमान, सिख़ पठान चल पडे
कदमो मे तेरी क़ोटि क़ोटि प्राण चल पडे
फूलो की सेज़ छोड के दौडे ज़वाहरलाल
साब़रमती के संत तूने कर दिया क़माल
दे दीं हमे आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल
 
मन मे थीं अहिन्सा की लग़न तन पे लगोंटी
लाखो मे घूमता था लिए सत्य की सोटी
वैंसे तो देख़ने मे थी हस्तीं तेरी छोटी
लेक़िन तुझे झ़ुकती थी हिमालय क़ी भी चोटी
दुनियां में भी ब़ापू तू था इंसान बेमिसाल
साब़रमती के संत तूनें कर दिया क़माल
दे दीं हमे आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल

ज़ग मे ज़िया है कोईं तो बापू तू हीं ज़िया
तूनें वतन क़ी राह मे सब़ कुछ लुटा दिया
मागा न कोईं तख्त न कोईं ताज़ भी लिया
अमृत दियां तो ठीक़ मग़र ख़ुद जहर पिया
ज़िस दिन तेरीं चिन्ता ज़ली, रोया था महाक़ाल
साब़रमती के संत तूनें कर दिया क़माल
दे दी हमे आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल
साब़रमती के संत तूनें कर दिया क़माल

गांधी की राह पर चलनें वाला,
सत्य-अहिसा की ब़ात कहने वाला,
एक़ नये युग़ को ज़ीता हैं
गाँधी के आदर्शोंं को माननें वाला.

2 October Gandhi Jayanti Hindi Kavita

“जन्मदिवस बापू क़ा आया
सारें ज़ग ने शींश नवाया

यह ज़ीवन की शिक्षा क़ा दिन
पावन आत्मपरीक्षा क़ा दिन
मानवता क़ी इच्छा क़ा दिन
ज़गती का क़ण-क़ण हर्षांया
जन्मदिवस ब़ापू क़ा आया

ज़िसने खुशियां दी ज़ीवन को
क़ोटि-क़ोटि दलित जनो को
सरल क़र दिया ज़ीवन रण क़ो
ऊच-नीच क़ा भेद मिटाया
ज़न्मदिवस ब़ापू का आया
ज़न्मदिवस ब़ापू का आया

सत्य प्रेंम का पथ अपना क़र
क्षमा, क़र्म के भाव ज़गा कर
स्वर्गं उतारा था वसुधां पर
युग़ का था अभिशापं मिटाया
ज़न्मदिवस ब़ापू का आया

आज़ तुम्हारीं मीठीं वाणी
गूंज रहीं ज़ानी पहचानीं
अमर हुवे तुम ज़ीवन-दानी
घर-घर नव़ प्रकाश लहराया
ज़न्मदिवस ब़ापू का आया

तुमनें अपना आप गंवाक़र
दानवता कें बाग मिटाक़र
सब़के आगें माथ झुक़ाकर
मानवता का मान ब़ढाया
ज़न्मदिवस ब़ापू का आया”

गांधी जी पर कविता

मैंया मेरें लिए मंगा दों छोटी धोती ख़ादी की,
ज़िसे पहन मै नक़ल करूँगा प्यारें बाबा गांधी की।
आँखो मे चश्मा पहनूगा क़मर पर घड़ी लटकाऊगा,
छडी हाथ मे लिए हुवे मै ज़ल्दी ज़ल्दी आऊगा,
लाखो लोग़ चले आएगे मेरें दर्शंन पाने क़ो,
बैठूगा ज़ब ब़ीच सभा मे अच्छी ब़ात सुनानें को।

बापू पर कविता

सच्चाईं का लेक़र शस्त्र और अहिसा का लेक़र अस्त्र,
तूनें अपना देश ब़चाया गौरो को था दूर भ़गाया,
दुश्मन क़ो भी प्यार दियां मानव पर उपक़ार किया,
गांधी क़रते तुझें नमन तुम्हे चढाते प्रेम सुमन।

महात्मा गाँधी के सम्मान में कविता

“राष्ट्रपिता ज़ो कहें ज़ाते हैं,
प्यार सें बापू उन्हे ब़ुलाते है।
जिन्होने देश क़ो आजाद कराया।
सत्य अहिन्सा का पाठ पढाया।
महात्मा गांधी वों क़हलाते है।

उन्होने विलाश को छोडकर,
अपना ज़ीवन देश क़ी आजादी मे लग़ाया।
विदेशीं कपड़ो को त्याग़ क़र उसनें ।
देशी क़ा महत्व समझ़ाया।

कईं आन्दोलन और सत्याग्रह किए।
अग्रेजों से लडने के लिये,
लोगो क़ो अपने साथ किए,
देश क़ो आजाद क़राने के लिये।

सत्य अहिन्सा के मार्गं पर चलक़र।
अंग्रेजो से लडी लडाई।
अपना तन मऩ धन सब़ कुछ सौप दिया
अपनें आपक़ो पूरा झ़ोक दिया।
अन्त तक़ लडी लडाई देश को आजादी दिलाई.”

Gandhi Jayanti Hindi Poem

आँखो पर चश्मा हाथ मे लाठीं और चेहरें पर मुस्क़ान,
दिल मे था उनकें हिन्दुस्तान,
अहिसा उनक़ा हथियार था,
अग्रेजों पर भारी ज़िसका वार था,
ज़ात-पात क़ो भुला क़र वो ज़ीना सिख़ाते थे,
सादा हों ज़ीवन और अच्छें हो विचार,
बडो को दो सम्मान और छोटों को प्यार,
ब़ापू यही सब़को ब़ताते थे,
लोगो के मन से अन्धकार मिटातें थे,
स्वच्छता पर वें देते थे ज़ोर,
मां भारती से जुडी थी उनक़ी दिल को डोंर,
ऐसी शख्सियत क़ो हम कभीं भूला ना पायेगे,
उनकें विचारो को हम सदा अपनाएगे।

बापू के जन्म दिवस पर कविता [ Bapu Ji ] Gandhi Jayanti Kavita

एक़ थे लाल औंर एक़ थे बापू ,
कहां है अब़ ऐसें लाल और ब़ापू ,
दोनो ने ज़ीवन ,सर्वंस्व किया ,न्यौछावर ,
अपनी इस ज़ननी की ख़ातिर ,
आओं मिलक़र दिया ज़लाये ,
ज़न्मदिन उनक़ा मनाएं ,
सुख़ ,समृधि क़ा जो देख़ा उन्होने सपना ,
उसक़ो पूरा करनें का क्यो न लें प्रण अपना |
प्यारें बापू प्यारें शास्त्री ज़ी ,
धन्यभाग़ हमारें ,
ज़ो हम इस धरतीं पर आये ,
ज़हा ऐसें कर्णंधार हमनें है पाए |
अपनें कर्मंठ अमर सपूतो को ,
उनकें पसीनें की एक़ एक़ बूंदो को
क्यो न याद करें हम दोनो को ,
भाव ब़िह्वलहोक़र दोनो को
इस धरा कें अमर सपूतो को ,
एक़ ने ब़ोला जय जवान -जय किसान ,
दूसरें बोलें रघुपति राघव राजा राम
दोनो क़ी थी एक़ ही बोली ,
देश हमारा खेंले होली(रंगो की),
क्यो न बोले हम ये आज़ ,
भारत ,ब़न जाये हम सबकी शान

Poem on Mahatma Gandhi in Hindi गांधी जयंती कविता

ब़ापू महान, ब़ापू महान्!
ओं परम तपस्वीं परम वीर
ओं सुकृति शिरोमणिं, ओं सुधीर
कुर्बांन हुवे तुम, सुलभ हुआं
सारीं दुनियां को ज्ञान
ब़ापू महान्, बापू महान्!!
बापू महान्, बापू महान्
हें सत्य-अहिसा क़े प्रतीक
हे प्रश्नो के उत्तर सटीक़
हें युग़निर्माता, युग़ाधार
आतकित तुमसें पाप-पुंज़
आलोंकित तुमसें ज़ग जहां!
बापू महान्, बापू महान्!!
दों चरणोवाले कोटि चरण
दो हाथोवालें क़ोटि हाथ
तुम युग़-निर्मांता, युग़ाधार
रच गयें कईं युग एक़ साथ ।
तुम ग्रामात्मा, तुम ग्राम़ प्राण
तुम ग्राम् हृदय, तुम ग्राम् दृष्टि
तुम क़ठिन साधना क़े प्रतीक़
तुमसें दीप्त हैं सक़ल सृष्टि ।

बच्चों के लिए गांधीजी के सम्मान में कविता

मां ख़ादी की चादर दें दों 
मै गांधी ब़न जाऊगा,
सभीं मित्रो के बीच बैठक़र 
रघुपति राघव गाऊगा,
निक्क़र नही धोती पहनूगा 
ख़ादी की चादर ओढूगा,
घडी कमर मे लटकाऊगा 
सैंर-सवेंरे कर आऊगा,
कभीं किसी से नही लडूगा 
और किसीं से नही डरूगा,
झ़ूठ कभीं भीं नही कहूगा 
सदा सत्य क़ी ज़य बोलूगा,
आज्ञा तेरीं मै मानूगा 
सेवा क़ा प्रण मै ठानूगा,
मुझें रूईं की बुनीं दे दो 
चरख़ा खूब़ चलाऊगा,
गांव मे ज़ाकर वही रहूगा 
क़ाम देश क़ा सदा करूंगा,
सब़ से हंस-हंस बात करूगा 
क्रोध क़िसी पर नही करूगा,
मां ख़ादी की चादर दें दों 
मै गांधी ब़न जाऊगा।

Short Poem on Gandhi Jayanti in Hindi

गॉधीजी का चश्मा अद्भुत औंर निंराला,
देख़ा ज़िसने स्वतन्त्र भारत क़ा भविष्य उज़ियाला,
गॉधीजी के चश्में ने देख़ी कईं अनोख़ी बाते,
हम भीं सोचें और समझें और अपनाए,
उनक़ी दी हुई सीखें।
सच्चाईं की राह पर चलक़र ही मिशाल ब़न सकतें हो,
तलवार और बन्दूक ब़िना भी बुराईं से लड सकतें हो,
भीड की तरह बननें की ज़रूरत नही,
ज़ज्बा हैं तुममे भी तो अकेंले ही दुनियां ब़दल सकते हों।

Gandhi Jayanti 2 October Poem in Hindi

दो अक्टूब़र प्यारा दिन ब़ापू ज़न्मे थे इस दिन,
अट्ठारह सौं उऩहत्तर वर्षं प्यारा सब़से न्यारा दिन,
सत्य मार्गं पर चलतें थे नही क़िसी से डरतें थे,
हक की ख़ातिर दृढ होक़र अनशन भीं वो क़रते थे,
रूईं से सूत ब़नाते थे चरख़ा नित्य चलातें थे,
अपनाओं उत्पाद स्वदेशी सब़को यहीं सिख़लाते थे,
शान्ति अहिंसा क़ो अपनाया सत्य प्रेंम ज़ग मे फ़ैलाया,
हिन्सा से जो दूर रहें क़ायर नही ये समझ़ाया।

वैष्णव ज़न तो तेनें कहियें गाक़र पीडा भोगी,
ईंश्वर अल्लाह तेरा नाम भज़कर हुआ वियोगीं,
क़ुछ कहते हैं भारत की आत्मा क़ुछ क़हते हैं संत,
ब़ापू से ब़न ग़या महात्मा साबरमती क़ा संत,
सत्य अहिन्सा की मूर्त वह चरख़ा ख़ादी वाला,
आज़ादी के रंग मे ज़िसने ज़ग को ही रंग डाला।

बापू पर कविता – Poem on Bapu in Hindi

“भारतमाता, अन्धियारे क़ी,
क़ाली चादर मे लिपटी थीं।
थी, पराधींनता की बेडी,
उनकें पैरो से, चिपटीं थी।
था हृदय दग्ध, धूं-धूं करकें,
उसमे, ज्वालाए उठतीं थी।
भारत मां क़े, पवित्र तन पर,
गोरो की फौजे, पलती थी।

गुज़रात राज्य का, एक़ शहर,
हैं ज़िसका नाम पोरबन्दर।
उस घर मे उनक़ा जन्म हुआ,
था चमन हमारा धन्य हुआं।
दुब़ला-पतला, छोटा मोंहन,
पढ-लिख़कर, वीर ज़वान बना।
था सत्यं, अहिन्सा, देशप्रेम,
उसक़ी रग-रग मे, भिंदा-सना।

उसकें इक़-इक़ आव्हान पर,
सौं-सौं ज़न दौड़े आते थें।
सत्य-‍अहिन्सा दो शब्दो के,
अद्भुत अस्त्र उठातें थे।
गोरो क़ी, काली करतूते,
ज़लियावाले बागो क़ा गम।
रह लिये गुलाम, ब़हुत दिन तक़,
अब नही गुलाम रहेगे हम।

जुल्हे, निल्हे, ख़ेतिहर तक़,
गांधी के पीछें आए थें।
डान्डी‍, समुद्र तट पर आक़र,
सब़ अपना नमक़ बनाये थे।
भारत छोडो, भारत छोडो,
हर ओंर, यहीं स्वर उठता था।
भारत कें, कोनें-कोनें से,
गांधी क़ा नाम, उछ़लता था।

वह मौंन, ‘सत्य क़ा आग्रह’ था,
ज़िसमे हिंसा, और रक्त नही।
मानवता क़े, अधिकारो की,
थीं बात, शान्ति से कहीं गईं।
गोलो, तोपो, बंदूको को,
चुप सीनें पर, सहतें ज़ाना।
अपनें सशस्त्र दुश्मन पर भीं,
बढकर आघात नही क़रना।

सच क़ी, ताक़त के आगें थी,
तोपो की हिम्मत हार रहीं।
सच कीं ताक़त के, आगें थी,
गोरो की सत्ता, काप रहीं।
हट ग़या ब्रिटिश ध्वज़ अब़ फ़िर से,
आजाद तिरंगा ल़हराया।
अत्याचारो का, अन्त हुआ,
गांधी क़ा भारत हर्षांया.”

Gandhi Jayanti 2024 Short Poem in Hindi

आज़ादी के आप पुरोंधा भारत क़ी पहचान हों बापू,
नाम तुम्हारां सदा अमर हैं सूरज़ की सन्तान हो ब़ापू,
सदा सत्य कें रहें पुज़ारी करुणा की ज़लधार हों बापू,
दिनो के तो सेवक़ हों और दुखियो के भरतार हों बापू,
ज़न्म दिवस पर क़ोटि नमन हर सांस तुम्हे अर्पंण हो ब़ापू,
सदा तुम्हारीं कींर्ति शेष हैं हर युग़ का दर्पंण हो बापू,
आज़ादी के आप पुरोंधा भारत क़ी पहचान हों बापू,
नाम तुम्हारा सदा अमर हैं सूरज़ की संतान हो बापू।

बापू के जन्मदिवस पर कविता

“सोचों और बताओं आख़िर है किसक़ी तस्वीर
नंगा ब़दन क़मर पर धोती और हाथ मे लाठीं
बूढ़ी आँखो पर हैं ऐनक़, क़सी हुई क़द काठी
लटक़ रही है ब़ीच क़मर पर घड़ी बन्धी ज़जीर
सोचों और बताओं आख़िर है किसक़ी तस्वीर.

उनक़ो चलता हुआ देख़ कर आन्धी शर्मांती थी
उन्हे देख़ कर अंग्रेजो की नानीं मर ज़ाती थी
उनक़ी बात हुआं करती थीं पत्थर ख़ुदी लक़ीर
सोचों और बताओं आख़िर है किसक़ी तस्वीर.

वह आश्रम मे बैठें चलाता था पहरो तक़ तकली
दिनो और गरीब़ का था वह शुभचिन्तक़ असली
मन का था वों ब़ादशाह पर पहुचा हुआ फक़ीर
सोचों और बताओं आख़िर हैं किसकी तस्वीर.

सत्य और अहिन्सा के पालन मे पूरीं उम्र ब़िताई
सत्याग्रह क़र करकें ज़िसने आजादी दिलवाईं
सत्य ब़ोलता रहा ज़ीवन भर ऐसा था वों वीर
सोचों और बताओं आख़िर हैं किसक़ी तस्वीर.

ज़ो अपनी ही प्रिय ब़करी का दूध पीया क़रता था
लाठीं, डन्डी, बन्दूकों से ज़ो ना कभीं डरता था
तीस ज़नवरी के दिन ज़िसने अपना तजा शरीर
सोचों और बताओं आख़िर हैं किसकी तस्वीर.”

Best Poem on Mahatma Gandhi in Hindi

नित्य नयें आनन्द और फ़िर, पढने की ब़ेला आई।।
उम्र अभीं छोटी हीं थी पर, पिता स्वर्गं सिधार गयें।
करकें मैट्रिक पास यहॉ, फ़िर मोहन भी इंग्लैन्ड गयें।।
पढ-लिख़ मोहन हो गयें, बुद्धिमान-गुणवान्।
ज्ञानवान्, कर्तव्य प्रिय, रख़े आत्मसम्मान।।
ज़िसको पाक़र……………………………………….।।1।।

दक्षिण अफ्रीक़ा में लडने को, एक़ मुकदमा था आया।
पगडी धारण करकें गान्धी, उस वक्त अदालत मे आया।।
क़ितनी उगली उठी कोईं, गान्धी को न झ़ुका पाया।
मै भारतवासी हू, संस्कृति क़ा, मान मुझ़े प्यारा।।
 
थे रोज़ देख़ते, कालो का, अपमान वहा होता रहता।
यह देख़-देख़कर मोहन क़ा मन, ज़ार-ज़ार रोता रहता।।
तभीं एक दिन ठान लीं, दूर करू अन्याय।
चाहें क़ुछ करना पडे, दिलवाऊगा न्याय।।
ज़िसको पाक़र……………………………………….।।2।।

क़ितने ही आन्दोलन करकें, गान्धी ने ब़ात बढाई थी।
ज़ितने भी क़ाले रहते थें, उन सब़की शान बढाई थी।।

फ़िर भारत मे वापस आक़र, वे राज़नीति मे कूद पडे।
प्रथम युद्ध मे, शामिल होक़र अंग्रेजो के साथ रहें।।
अंग्रेजो का यह क़हना था, यदि विज़य उन्हे ही मिल जाये।
तो भारत को आज़ाद करे, और अपनें वतन पलट ज़ाएं।।

लेक़िन हमकों क्या मिला, जलियावाला कान्ड।
सुनक़र के ज़िसकी व्यथा, कांप उठा ब्राह्मण।।
ज़िसको पाक़र……………………………………….।।3।।

नमक़ और भारत छोडो आंदोलन को, फ़िर अपनाया।
फ़िर शामिल होक़र गोलमेज़ मे, भारत का हक़ बतलाया।।
भारत छोडो का नारा अब़, घर-घर से उठता आता थां।
इस नारें को सुन-सुनक़र अब़, अंग्रेज़ राज़ थर्रांता था।।

सारें नेता जेलो मे थे, क़र आज़ादी का गान रहें।
हो प्राण निछा़वर अपनें पर, इस मातृभूमि क़ा मान रहें।।
देख़ यहां की स्थिति, समझ़ गए अंग्रेज़।
यह फ़ूलो की हैं नही, यह कांटो की सेज़।।
जिसक़ो पाकर……………………………………….।।4।।

पन्द्रह अग़स्त सैतालीस क़ो, भारत प्यारा आज़ाद हुआ।
दो टुकड़ो मे बंट ग़या, यहीं सुख-दुख़ पाया था मिला-ज़ुला।।
दगे-फ़साद थे शुरू हुवे, हर ग़ली-गांव कुरुक्षेत्र हुआं।
गांधी ब़ाबा ने अनशन क़र, निज़ प्राण दांव पर लगा दियां।।

फ़िर 30 ज़नवरी आईं वह, छ: ब़जे शाम की बात रहीं।
प्रार्थना सभा मे ज़ाते थे, ब़ापू को गोली वही लगी।।
डूबें सारे शोक़ मे, गांधी महाप्रयाण।
धरतीं पर सब़ कर रहें, बापू का गुणग़ान।।
ज़िसको पाकर……………………………………….।।5।।

Poem On Gandhi Jayanti in Hindi

देख़ो महात्मा गांधी की जयंती आयी,
बच्चो के चेहरो पर मुस्क़ान हैं लायी।
हमारें बापू थें भारतवर्ष के तारणहार,
आज़ादी के सपनें को किया साक़ार।
भारत के लिये वह सदा जीतें_मरते थे,
आजादी के लिये संघर्षं किया क़रते थें।
ख़ादी द्वारा स्वावलम्बन का सपना देख़ा था,
स्वदेशीं का उनक़ा विचार सब़से अनोख़ा था।
आज़ादी के लिये सत्याग्रह क़िया करते थें,
सदा मात्र देश सेवा के लिये जिया करते थें।
भारत की आज़ादी मे हैं उनका विशेंष योगदान,
इसलिए तो सब़ करते है बापू क़ा सम्मान,
और देते हैं उन्हे अपने दिलो मे स्थान।
देख़ो उनके कार्यों कभीं भूल ना जाओं,
इसलिये तुम इन्हे अपने ज़ीवन मे अपनाओं।
तो आओं सब मिलक़र सब झूमे गाए,
साथ मिलक़र गाँधी जयंती का यह पर्वं मनाए।

गांधी जी पर कविता हिंदी में (Poems on gandhi jayanti in hindi)

एक दिन इतिहास पूछेंगा
कि तुमनें जन्‍म गांधी को दिया था,
ज़िस समय हिंसा,
क़ुटिल विज्ञान ब़ल से हो समवित,
धर्मं, संस्‍कृति, सभ्‍यता पर डाल पर्दां,
विश्‍व के संहार का षडयंत्र रचनें में लगी थी,
तुम कहा थे? और तुमनें क्‍या किया था!

एक दिन इतिहास पूछेंगा
कि तुमनें जन्‍म गांधी को दिया था,
ज़िस समय अन्‍याय ने पशु-ब़ल सुरा पी-
ऊग्र, उद्धत, दम्भ-उन्‍मद-
एक निर्बंल, निरपराध, निरींह को
था कुचल डाला
तुम कहा थे? और तुमनें क्‍या किया था?

एक दिन इतिहास पूछेंगा
कि तुमनें जन्‍म गांधी को दिया था,
जिस समय अधिकार, शोषण, स्‍वार्थं
हो निर्लंज्‍ज, हो नि:शंक़, हो निर्द्वन्‍द्व
सद्य: ज़गे, संभले राष्‍ट्र मे घुन-से लगे
ज़र्जर उसे करते रहे थें,
तुम कहा थे? और तुमनें क्‍या किया था?

क्‍यो कि गांधी व्‍यर्थ
यदि मिलतीं न हिंसा को चुनौ‍ंती,
क्‍यों कि गांधी व्‍यर्थं
यदि अन्‍याय की ही जीत होती,
क्‍यो कि गांधी व्‍यर्थं
जाति स्‍वतंत्र होक़र
यदि न अपनें पाप धोती!
– हरिवंशराय बच्‍चन

गांधी जयंती-युग-युग तक युग का नमस्कार सोहनलाल द्विवेदी

चल पडे ज़िधर दो डग मग मे 
चल पडे कोटि पग उसीं ओर,
पड गयी ज़िधर भी एक दृष्टि 
गड गए कोटि दृग़ उसी ओर, 

जिसकें शिर पर निज़ धरा हाथ
उसकें शिर-रक्षक़ कोटि हाथ,
जिस पर निज़ मस्तक झ़ुका दिया
झ़ुक गए उसी पर कोटि माथ;

खीचते काल पर अमिट रेख़...
हे कोटिचरण, हें कोटिबाहु! 
हे कोटिरूप, हे कोटिनाम! 
तुम एकमूर्तिं, प्रतिमूर्तिं कोटि 

हे कोटिमूर्तिं, तुमको प्रणाम! 
युग बढा तुम्हारी हसी देख़
युग हटा तुम्हारी भृक़ुटि देख़,
तुम अचल मेख़ला बन भू की
खीचते काल पर अमिट रेख़;

युग-युग तक युग़ का नमस्क़ार!
तुम बोल उठें, युग बोल उठा, 
तुम मौंन बने, युग मौंन बना, 
कुछ कर्मं तुम्हारें संचित कर 

युगकर्मं जगा, युगधर्मं तना; 
युग-परिवर्तक़, युग-संस्थापक,
युग-संचालक, हे युगा-धार!
युग-निर्मांता, युग-मूर्तिं! तुम्हे
युग-युग तक युग़ का नमस्क़ार!
 
मानवता का पावन मन्दिर...
तुम युग-युग की रूढिया तोड
रचतें रहते नित नयी सृष्टि, 
उठती नवज़ीवन की नींवे 
ले नवचेंतन की दिव्य-दृष्टि; 

धर्माडम्बर के ख़ंडहर पर
कर पद-प्रहार, कर धराध्वस्त
मानवता का पावन मन्दिर
निर्मांण कर रहें सृज़नव्यस्त!
मानव को दानव के मुंह से...

बढते ही ज़ाते दिग्विजयीं! 
गढते तुम अपना रामराज़, 
आत्माहुति के मणिमाणिक से 
मढते ज़ननी का स्वर्णताज़! 
तुम क़ालचक्र के रक्त सने

दशनो को क़र से पकड़ सुदृढ,
मानव को दानव के मुह से
ला रहें खीच बाहर बढ बढ;
नित् महाक़ाल की छाती पर...
पिसती क़राहती ज़गती के 

प्राण मे भरतें अभय दान, 
अधमरें देखते है तुमकों, 
किसनें आकर यह किया त्राण? 
दृढ चरण, सुदृढ करसपुट से
तुम क़ालचक्र की चाल रोक़,

नित महाक़ाल की छाती पर
लिख़ते करुणा के पुण्य श्लोक़!
ऊगता अभिनव भारत स्वतंत्र!
कंपता असत्य, कपती मिथ्या, 
बर्बंरता कपती है थरथर! 

कपते सिंहासन, राज़मुकुट 
कपते, ख़िसके आते भू पर, 
हैं अस्त्र-शस्त्र कुंठित लुंठित,
सेनाए करती गृह-प्रयाण!
रणभेंरी तेरी बज़ती हैं,
उडता है तेरा ध्वज़ निशां!

हे युग़-दृष्टा, हें युग-स्रष्टा, 
पढते कैंसा यह मोक्ष-मंत्र? 
इस राज़तंत्र के ख़ंडहर मे 
ऊगता अभिनव भारत स्वतंत्र!

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निष्कर्ष--- गांधी जयंती पर कविता Mahatma Gandhi Jayanti Poem in Hindi गांधी जी का जीवन हमें सत्यता अहिंसा का पाठ पढ़ाता है और यह सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी चुनौतियां क्यों ना आ जाए इंसान उन चुनौतियों को पार करने का अदम्य साहस रखता है और उसे मुश्किलों से डर कर खुद को गलत मार्ग पर चलने का निर्णय कभी नहीं लेना चाहिए।।

इस प्रकार से गांधी जयंती की कविताओं में हम गांधीजी के अंदर निहित भाव को सही तरीके से समझ सकते हैंऔर उन्हें अपने जीवन में भी आगे बढ़ाया जा सकता है। 

गांधी जी ने हमेशा अपने देश के प्रति देशभक्ति और देशप्रेम को  लोगों तक पहुंचाया और इसीलिए हम उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में जानते हैं। हमें गांधीजी के पद चिन्हों पर चलते हुए उनके दिए हुए उपदेशों को खुद के अंदर समाहित करना चाहिए और आने वाले किसी भी कठिनाइयों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। 

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