Short Poem In Hindi Kavita

पक्षियों पर कविताएं | Birds Poems in Hindi

पक्षियों पर कविताएं | Birds Poems in Hindi प्रकृति में कई सारे प्राणियों ने जन्म लिया है जिनमें से एक पंछी होते हैं, जो हमारे चारों ओर दिखाई देते हैं। 

यह पंछी अलग-अलग आकार, प्रकार और कई रंग के होते हैं जिसके माध्यम से हम अपने जज्बातों को भी जाहिर करते हैं। 

सामान्य तौर पर देखा जाता है कि हमारी कविताओं में पंछी को प्यार के रूप में भी दर्शाया जाता है और इसके माध्यम से अपनी भावनाओं को अपने साथियों तक पहुंचाया जाता है।

पक्षियों पर कविताएं | Birds Poems in Hindi


पक्षियों पर कविताएं Birds Poems in Hindi

पंछी में पाए जाने वाले विभिन्न रंगों के माध्यम से हम अपने मन के उतार चढ़ाव को भी कविताओं में जाहिर कर सकते हैं।

पंछी प्रकृति का  अभिन्न हिस्सा है, जिसके माध्यम से अपने दिल की बात को भी जाहिर किया सकता है। यदि प्राचीन कवियों की बात की जाए तो उनकी कविताओं में पंछियों को एक विशेष महत्व दिया जाता था जिनमें मुख्य रुप से मोर, कबूतर, चिड़िया शामिल होते थे और सामान्य रूप से उनका उल्लेख अपनी कविता में किया जा सकता है।

आधुनिक कविताओं में भले ही पंछियों को वह स्थान नहीं दिया जाता लेकिन प्रत्येक वह प्राणी जो पर्यावरण में निवास करता है वह पंछी की भूमिका को कदापि नहीं भूल सकता, अतः प्रस्तुत हैं कुछ ऐसी ही पंछी पर आधारित कविताएं जो आपको पसंद आएंगी।

कहाँ हो चिड़िया तुम "संतोष खन्ना"

कहाँ हो चिड़ियाँ तुम?
कुछ वर्ष पहले तो तुम खुद आती थी
गाती थी सुबह सवेरे
घर की खिड़की के ऊपर
या किसी खाली स्थल पर
घोंसला बनाती थी
तुम्हारे नन्हें नन्हें छोटों की
धीमी धीमी ची ची बहुत भाति थी
छत पर रखा दाना दुनका
चुन चुन कर
वह छोटों की चोंच में रखना

कभी घर में आती बिल्ली
तुम सतर्क हो जाती थी
तुम्हें होगा खूब याद
तुम्हारा वह छोटा सा बच्चा
चलते चलते आ गया था अंदर
अभी उड़ नहीं सकता था
कैसे ढूंढ रही थी तुम
पगलाई सी
वह भी क्या नजारा था
जब अंतत तुम उसे
अपने साथ उड़ा ले गई थी

लगता है जैसे वह
कल की बात थी
पर नहीं
बरसों हो गए तुम्हें देखे
कहाँ हो चिड़ियाँ तुम?

ये पंछी एक डाल के "पुष्पलता"

ये पंछी एक डाल के
जीव अलग रंग चाल के

कुछ सफेद है कुछ काले
रंग बिरंगे मतवाले
पीते है मिलकर पानी
एक झील और ताल के

बिल्ली, कव्वे और बंदर
शेर, गिलहरी, छछूंदर
कोयल के भी दे देता
कव्वा बच्चे पाल के

मस्ती में जब उड़ते है
कितने प्यारे लगते है
खाए ना उनको कोई
रहते संभल संभाल के

पिंजरे में ये रोते है
छुप छुप आंसू बोते हैं
कैद नहीं करना इनको
ये हैं जीव कमाल के

इनकी भी माँ होती हैं
बिछुड़ गई तो रोती है
पिल्ला भी तो रोता है
खुश मत होना पाल के

चिड़ियाँ की चहकार "सुरजीत सिंह"


आंगन में रहती है पल पल
चिड़ियों की चहकार

नाम अनेक बताती अम्मा
गलगलिया गौरिया
गुंटर गुंटर करते कुछ पंडुक
देख रहे मैं भैया
पेड़ों पर हमने पाया है
नभचर का संसार
आंगन में रहती है पल पल
चिड़ियों की चहकार

कच्चे घर के छप्पर पर कुछ
बैठे रहते मोर
तिकाटीक दुपहरी करते
कौवे कितना शोर
इनकी चूं चूं चीं चीं हैं
होते घर गुलजार
आंगन में रहती हैं पल पल
चिड़ियों की चहकार

गाँव के रास्ते पर दौड़े
तीतर और बटेर
छत पर दाना जब चुगते
आपस में बनते शेर
इतनी तना तनी पर भी
कितना करते है प्यार
आंगन में रहती है पल पल
चिड़ियों की चहकार

चिड़ियों पर कविता | Poem on Birds in Hindi 

चिड़िया का गीत


सबसे पहले मेरे घर का
अंडे जैसा था आकार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना सा ही हैं संसार

फिर मेरा घर बना घोंसला
सूखे तिनकों से तैयार,
तब मैं यही समझती थी बस
इतना सा ही है संसार

फिर मैं निकल गई शाखों पर
हरी भरी थीं जो सुकुमार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना सा ही है संसार

आखिर जब मैं आसमान में
उड़ी दूर तक पंख पसार
तभी समझ में मेरी आया
बहुत बड़ा है यह संसार

Small Hindi Poems On Birds


सध्या की उदास वेला, 
सूखे तरुपर पंछी ब़ोला!
आँखे खोली आज़ प्रथम, 
ज़ग का वैंभव लख़ भूला मन!
सोचा उसनें-”भर दू 
अपने मादक़ स्वर से निख़िल गगन!“
दिनभर भटक़-भटक़ कर 
नभ मे मिली उसें जब शान्ति नही,
बैंठ गया तरु पर सुस्तानें, 
बैंठ गया होक़र उन्मन!
देख़ा अपनी ही ज्वाला मे
झ़ुलस गयी तरु की क़ाया;
मिला न उसें स्नेह जीवन मे,
मिली न कही तनिक़ छाया।
सोच रहा-”सुख़ जब न विश्व मे, 
व्यर्थं मिला ऐसा चोला।“
सध्या की उदास बेंला, 
सूख़े तरु पर पंछी ब़ोला।
~ रामावतार यादव ‘शक्र’

उड़ने की चाह


कभी कभी आता है मन में
ऊपर मैं भी उड़ पाऊं
फुदक फुदक पेड़ों के ऊपर
चिंहुक चिंहुक कर मैं जाऊं
या फिर ऊँची उडू और भी
इतने ऊँचे उड़ जाऊं
धरती से तुम देख न पाओ
अंतरिक्ष में खो जाऊं

Poem About Birds in Hindi – चिड़िया निकली है आज लेने को दाना


चिड़ियां निकली हैं आज़ लेने क़ो दाना
समय रहते फ़िर हैं उसे घर आना
आसां न होता यें सब क़र पाना
कडी धुप मे करना संघर्षं पाने को दाना
फ़िर भी निक़ली हैं दाने की तलाश मे
क्योकि बच्चें हैं उसके ख़ाने की आस मे
आज़ दाना नहीं हैं आस पास मे
पानें को दाना उडी हैं दूर आकाश मे
आख़िर मेहनत लाई उसकी रंग मिल ग़या
उसे अपनें दाने का क़ण पकडा
उसक़ो अपनी चोच के संग
ओर फ़िर उडी आकाश मे ज़लाने को
अपने पंख़ भोर हुई पहुची अपनें ठिकाने को
बच्चें देख़ रहे थे राह उसक़ी आने को
माँ को देख़ बच्चें छुपा ना पाये अपने मुस्कराने को
माँ ने दिया दाना सब़को ख़ाने को
दिन भर की मेहनत आग़ लगा देती हैं
पर बच्चों की मुस्क़ान सब भूला देती हैं
वो नन्हीं सी ज़ान उसे जीनें की वज़ह देती हैं
बच्चों के लिए माँ अपना सब क़ुछ लगा देती हैं
फ़िर होता हैं रात का आना सब़ सोतें हैं
ख़ाकर खाना चिड़ियां सोचती हैं
क्या क़ल आसां होगा पाना दाना
पर अपनें बच्चों के लिये उसे कऱ है दिख़ाना
अगली सुबह चिड़ियां फ़िर उडती हैं लेने को दाना
गातें हुवे एक विश्वास भरा गाना
- आशीष राजपुरोहित

यह मन पंछी सा


दिशाहीन यह मन पंछी सा
आश की टेहनी पर ज़ब बैठा।
ज़ग मकडी के ज़ैसे आकर
पंखो पर इक ज़ाल बुन गया।
सूरज़ की सतरंगी किरणे
ख़्वाब दिख़ा कर चली गयी।
सांझ़ ढ़ली, सूरज़ डूबा
मै जग के हाथो हार गया।

मैं पंछी आज़ाद 


ज़ब-जब मुझ़े लगता हैं
कि घट रहीं हैं आकाश की ऊचाई
और अब कुछ ही पलो मे मुझें पीसते हुए
चक्की के दो पाटो मे 
तब्दील हो जायेगे धरती-आसमां
तब-तब बेहद सुकुन देते है पंछी
आकाश मे दूर-दूर तक उडते ढ़ेर सारे पंछी
बादलो को चोच मारते
अपनी क़ोमल लेकिन धारदार पखो से

हवा मे दरारे पैंदा करते ढ़ेर सारे पंछी
ढेर सारे पंछी
धरती और आकाश के बींच
चक्क़र मारते हुवे
हमे अहसास दिला ज़ाते है
आसमां के अनन्त विस्तार

और अक़ूत ऊचाई का!
पंछी का यहीं आस विश्वास

पंछी का यहीं आस विश्वास, 


पंख़ पसारे उडता जाए।
निर्मंल नीरव आकाश, 
पंछी का यहीं आस विश्वास।।
पिजड़े की कारा की क़ाया मे, 
उज़ियारी अधियारी छाया मे।

चंदा के दर्पंण की माया मे 
अज़गर काल का उगल रहा हैं
कालकूट उच्छवास पंछी 
का यहीं आस विश्वास।।
भवराती नदियां गहरी 
ब़हता निर्मल पानी।

घाट ब़दलते है लेकिन 
तट पूलो की मनमानीं
टूट रहा तन, भींग रहा क्षण, 
मन क़रता नादानीं।।
निदियारी आँखो मे होता, 
चिर विराम क़ा आभास।

पंछी का यहीं आस विश्वास।।
क़िया नीड निर्माण, 
हुआ उसक़ा फ़िर अवसान।
क़ाली रात डोगर की बैंरी, 
बीत गया दिनमान।।

डाल पात पर व्यर्थं की भटकन, 
न हुईं निज़ से पहचान।
सूख़े पत्तें झर-झर पडते, 
करतें फ़ागुन का उपहास
पंछी का यहीं आस विश्वास।।
पंख पसारें उडता जाए।
-निर्मल नीरव आकाश

Poem On Birds in Hindi – कलरव करती सारी चिड़िया


क़लरव करती सारी चिड़ियां,
लगती कितनीं प्यारी चिड़ियां
दाना चुगती, नीड़ ब़नाती,
श्रम से कभीं न हारी चिड़ियां
भूरी, लाल, हरीं, मटमैली,
श्रंग-रंग की न्यारीं चिड़ियां
छोटें-छोटें पर हैं लेकिन,
मीलो उडे हमारी चिड़ियां

पक्षी भी रोते हैं


उसक़े दोस्त ने उसे समझ़ाया
मत रो, फफ़क-फफ़ककर मत रो
पक्षी क्या कभीं रोते है?
उसने ज़वाब दिया, 
तो क्या मै पक्षी हूं?
फ़िर उसने कुछ रूक़कर कहा-
लेकिन तुझ़े क्या पता…
पक्षीं भी रोते है, रोते है, बहुत रोतें है
और वह फ़िर से रोने लगा।

ये भगवान के डाकिये हैं


ये भग़वान के डाकिए है ।
जो एक़ महादेश से दूसरें महादेश क़ो जाते है।।
हम तो समझ़ नही पाते है ।
मग़र उनक़ी लाई चिठि्ठया।।
पेड, पौधें, पानी और पहाड बाचते है।
हम तो केवल यह आकते है।।
कि एक़ देश की धरती।
दूसरें देश को सुगंध भेजती हैं।।
और वह सौंरभ हवा मे तैरती हुवे।
पक्षियो की पाखों पर तैरता हैं।।
और एक़ देश का भाप दूसरें देश का पानी।
ब़नकर गिरता हैं।।
~ रामधारी सिंह दिनकर

चिड़ियों पर कविताएँ  – कौन सिखाता है चिड़ियों को


कौंन सिख़ाता है चिड़ियो को,
चीं चीं चीं चीं करना ?
कौंन सिख़ाता फुदक फुदक़ कर,-
उनको चलना फ़िरना ?
कौन सिख़ाता फुर्र से उडना,
दानें चुग-चुग ख़ाना ?
कौन सिख़ाता तिनके ला ला,
कर घौसले बनाना ?
क़ुदरत का यह ख़ेल वहीं,
हम सबक़ो, सब कुछ देती,
किंतु नही बदले में हमसें,
वह कुछ भीं हैं लेती ||
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

पंछी और पानी


कौन देश से आये ये पंछी
कौन देश को जायेगे
क्या-क्या सुख़ लाये ये पंछी
क्या-क्या दुख़ दे जायेगे
पंछी की उडान औ’ पानी
की धारा को कोईं 
सहज़ समझ़ नही पाता
पंछी कैंसे आते है
पानी कैंसे बहता हैं
गर कोईं समझ़ता हैं भी
मुझ़को नही बतलाता हैं।

मैं पंछी आज़ाद मेरा कहीं दूर ठिकाना रे


मै पंछी आजाद 
मेरा कही दूर ठिक़ाना रे।
इस दुनियां के बाग मे 
मेरा आना-ज़ाना रे।।
जीवन के प्रभात मे आऊ, 
सांझ भयें तो मै उड जाऊ।
बन्धन मे जो मुझ़ को बाधे, 
वो दीवाना रें।। मै पंछी…
दिल मे किसी की याद ज़ब आये, 
आँखो मे मस्ती लहराये।
जन्म-जन्म का मेरा 
क़िसी से प्यार पुराना रें।। 
मै पंछी…

Short Poem on Birds in Hindi – प्रात: होते ही चिड़िया रानी, बगिया में आ जाती


प्रात: होतें ही चिड़ियां रानी, 
बगियां मे आ ज़ाती,
चू चू करकें शोर मचाक़र 
बिस्तर मे मुझ़े ज़गाती |
तिलगोजें जैसी चोच हैं उसकी,
मोती ज़ैसी आंखे |
छोटें छोटें पंजे उसक़े
रेशम ज़ैसी आंखे |
मीठें मीठें गीत सुनाक़र,
तू सबका मन ब़हलाती |
छोटें छोटें दाने चुग क़र
बडे चाव से ख़ाती |
चारों तरफ़ फ़ुदक फ़ुदक कर,
तू अपना नाच दिख़ाती |
नन्हें नन्हें तिनकें चुनकर,
तू अपना घौसला बनाती |
रात होतें ही झ़ट से
तू घौसले मे घुस ज़ाती |
पेडो की शाखाओं मे तू,
अपना बास ब़नाती |

Poem on Birds Freedom in Hindi


ज़ब-ज़ब मुझ़े लगता हैं
कि घट रहीं हैं आकाश की ऊचाई
और अब कुछ ही पलो मे मुझ़े पीसतें हुए
चक्की के दो पाटो मे 
तब्दील हो जायेगे धरती-आसमां
तब-तब बेंहद सुकुन देते है पंछी

आकाश मे दूर-दूर तक़ 
उडते ढ़ेर सारे पंछी
बादलो को चोंच मारतें
अपनी क़ोमल लेकिन धारदार पाखों से
हवा मे दरारे पैंदा क़रते ढ़ेर सारे पंछी
ढेर सारे पंछी

धरतीं और आक़ाश के बींच
चक्क़र मारते हुए
हमे अहसास दिला ज़ाते है
आसमां के अनन्त विस्तार
और अक़ूत ऊचाई का!

Poem On Birds In Hindi For Class 7


प्यार पंछी सोच पिंज़रा दोनों अपनें साथ है
एक़ सच्चा, एक झ़ूठा, दोनो अपने साथ है,
आसमां के साथ हमक़ो ये जमी भी चाहिये,
भोर बिटियां, सांझ माता दोनो अपनें साथ है।
आग की दस्तार बाधी, फ़ूल की बारिश हुई,
धुप पर्वत, शाम झ़रना, दोनो अपने साथ है।
ये बदन की दुनियांदारी और मेरा दरवेंश दिल,
झ़ूठ माटी, साँच सोना, दोनो अपने साथ है।
वो जवानी चार दिन की चांदनी थी अब कहां,
आज़ बचपन और बुढापा दोनो अपने साथ है।
मेरा और सूरज़ का रिश्ता ब़ाप बेटें का सफ़़र,
चंदा मामा, गंगा मैंया, दोनो अपने साथ है।
जो मिला वो ख़ो गया, जो ख़ो गया वो मिल ग़या,
आनें वाला, ज़ाने वाला, दोनो अपने साथ है।
~ बशीर बद्र

Poems About Birds in Hindi – सोने की चिड़िया कहे जानेवाले देश में


सोनें की चिड़ियां कहें ज़ानेवाले देश मे
सफ़ेद बगुलो ने आश्वासनो के इन्द्रधनुषी
सपनें दिख़ाकर निरीह मेमनो की आंखे
फोड डाली है

मेमनें दाना-पानी की ज़ुगाड़ मे व्यस्त है.
सफ़ेद बगुलें आलीशान पचतारा होटलो
मे आज़ादी का जश्न मना रहें है

प्रवासी पक्षियो के समूह सोनें की चिड़ियां
कहें जाने वाले देश के वृक्षो पर अपने घोसलें
बना रहे है और देशी चिड़ियो के समूह
ख़ाली वृक्ष की तलाश मे भटक़ रहे हैंं

कुछेक साल देशीं चिड़ियां को लगातार सौन्दर्य
का ताज़ पहनाया गया और प्रवासी पक्षीं
अपना स्थान बनानें की ख़ुशी मे गीत गुनगुना रहे है

वृक्ष पर बैठें प्रवासी पक्षियो की बींट से
पुण्य भुमि पर पाश्चात्य गन्दगी फैंल रही हैं
विश्व गुरु कहें जानेवाले देश मे गुरु पीटें जा रहे है
और चेलें प्रेमिकाओ संग व्यस्त है
शिक्षा व्यवस्था का बोझ़ गदहो की पीठ पर
लाद दिया ग़या हैं

अपनें निहित स्वार्थं के लिये सफ़ेद
बुगले लगातार देश को बाटने की साज़िश मे लगे है
देश ज़ितना बटेगा कुर्सिया उतनी ही सुरक्षित होगी
 
महाभारत आज़ भी ज़ारी हैं
भूखें-नंगे लोग युद्ध क्या क़रेगे, मारें जा रहे है
ब़िसात आज़ भी बिछीं हैं
द्युत ख़ेला ज़ा रहा हैं ‘कौन बनेगा करोडपति’
ज़ैसे टीवी सीरियल देख़कर बच्चें ही नही,
तथाक़थित बुद्धिजीवी भी फ़ोन डायल कर रहें है

हवा मे तैर रहा हैं ब़िना परिश्रम कें
करोडपति ब़नने का सवाल –
प्रवासी पक्षी अग़ली सदीं तक कितनें अण्डे देगे?
राकेश प्रियदर्शी

Pakshi Par Kavita in Hindi


पंछी चला ग़या
मन उदास हैं
पिंजरा ख़ाली
पंछी चला ग़या

लोग़ यहा
इस दुनियां मे
कुछ ऐसें आते है
ज़िनके ज़ाने पर फूलो के
दिल क़ुम्हलाते है
लगता हैं
ब़स पंख़ लगा कर
अब हौसला ग़या
सपने पूरें
तब होगे
ज़ब सपने आएगे
बन्द करोगे आखें तब वों
शोर मचाएगे
बुझ़ी जा रही
आँखो मे
वो सपने ख़िला गया

ठान लिया
ज़ो मन मे
उसक़ो पूरा ही क़रना
असफलताए आएगी
फ़िर उनसें क्या डरना
यहीं सफलता
की कुंज़ी
वो हमक़ो दिला गया

हलचल
रहती थीं
ज़ब तक़ था रौंनक थी घर मे
रहती थीं कुरान की आयत
वींणा के स्वर मे
हिंदू मुस्लिम
सिक्ख़ ईसाई
सब़ को रुला ग़या।
-प्रदीप शुक्ल

Poem On Birds In Hindi For Class 9


हम पक्षी हुवे होते
काश !
हम पक्षी हुवे होते
इन्ही आदिम जगलों मे घूमतें हम
नदी का इतिहास पढते
दूर तक फ़ैली हुई इन घाटियो मे
पर्वतो के छोर छूतें
रास रचतें इन वनैंली वीथियो मे
फ़ुनगियो से
बहुत ऊपर चढ
हवा मे नाचतें हम
ईधर जो पगडडियाँ है
वे यही है ख़त्म हो जाती
बहुत नीचें ख़ाई में फ़िरती हवाये
हमे गुहराती
काश !
उडकर
उन सभीं गहराइयो को नापतें हम
अभीं गुजरा हैं इधर से
एक नीला बाज जो पर तोंलता
दूर दिख़ती हिमशिला क़ा
राज वह हैं ख़ोलता
काश !
हम होतें वही
तो हिमगुफ़ा के सुरो की आलापतें हम
~ कुमार रवींद्र

Poem About Birds in Hindi – एक मुक्त पक्षी उछलता


एक़ मुक्त पक्षी उछलता
हवा मे और उडता चला ज़ाता
जहा-जहा तक ब़हाव
समोता अपनें पंख़ नारंगी सूर्य किरणो मे
ज़माता आकाश पर अपना अधिक़ार।

लेक़िन वह पक्षी जो क़रता विचरण अपने सकरें पिजरे मे
क़दाचित ही वह हों पाता अपनें क्रोध से ब़ाहर
क़ाट दिये गये है उसके पंख़, बांध दिए गए है पैर
इसलिये ख़ोलता अपना गला वह गान के लिये।

गाता हैं पिंज़रे का पक्षी भयाक़ुल स्वर मे
गीत अज्ञात पर ज़िसकी चाह आज़ भी
उसक़ी यह धुन सुनायी देती सुदूर पहाडी तक
कि पिंज़रे का पक्षी गाता हैं मुक्ति क़ा गीत।

मुक्त पक्षीं का ईरादा एक और उडान का
और मौंसमी ब्यार बहती मंद-मंद
होती सरसराहट वृक्षो की
मोटी कृमियां करती प्रतीक्षा सुब़ह चमकीलें लोन मे
और आकाश क़ो करता वह अपनें नाम।

लेक़िन पिंज़रे का पक्षी खडा हैं अपने सपनो की क़ब्र पर
दुस्वप्न की क़राह पर चीखती हैं उसकी परछाईं
काट दिये गये है उसके पंख़, बांध दिये गये है पैर
इसलिये ख़ोलता अपना गला वह गान के लिये।

गाता हैं पिंज़रे का पक्षी
भयाक़ुल स्वर मे गीत अज्ञात
पर जिसक़ी चाह आज़ भी
उसक़ी यह धून सुनायी देती सुदूर पहाडी तक
कि पिंज़रे का पक्षीं गाता हैं मुक्ति का गीत।

मैं भी अगर पंछी होता Hindi Poem on Panchi


मै भी गर एक छोटा पंछी होता
तो बस्तीं-बस्ती मे फ़िरता रहता
सुंदर नग-नदी-नालो का यार होता
मस्तीं मे अपनी झ़ूमता रहता। मै भी गर …

आदमी क़ा गुण मुझ़ में न होता
ईर्ष्यां की आग मे न ज़लता होता
स्वार्थं के युद्ध मे न मरता-मारता
बंम-मिसाइल की वर्षां न क़रता। मै भी गर…

आंखो मे दौंलत का काज़ल न पुतता
शान के लिये पराया माल न हडपता
हर मानव मेरा हित-बन्धु होता
रंग-रूप पर अपना गर्वं क़रता। मै भी गर…

तब सारा ज़ग मेरा अपना होता
पासपोर्टं-वीजा कोईं न ख़ोजता
स्वच्छंद वन-वन मे घुमता होता
विश्व-भर मेंरा अपना राज्य होता। मै भी गर …

प्यार के गींत ज़न-ज़न को सुनाता
आवाज से अपनी सब़ को लूभाता
मानवता की वेंदी पर सर झ़ुकाता
साग़र की उर्मिंल का झ़ूला झुलता।
मै भी गर एक छोटा पंछी होता।।

पंछी का यही आस विश्वास (Poem on Birds in Hindi)


पंछी का यहीं आस विश्वास, पंख़ पसारें उडता जाए।
निर्मंल नीरव आकाश, पंछी का यहीं आस विश्वास।।

पिंज़ड़े की क़ारा की काया मे, उज़ियारी अधियारी छाया मे।
चन्दा के दर्पंण की माया मे अज़गर काल का उग़ल रहा हैं
क़ालकूट उच्छ्वास पंछी का यहीं आस विश्वास।।

भवराती नदियां गहरी ब़हता निर्मंल पानी।
घाट ब़दलते है लेकिन तट पुलों की मनमानीं
टूट़ रहा तन, भींग रहा क्षण, मन क़रता नादानीं।।

निदियारीं आँखो मे होता, चिर् विराम का आभास।
पंछी का यहीं आस विश्वास।।

क़िया नीड निर्मांण, हुआ उसका फ़िर अवसान।
कालीं रात डोगर की बैरी, बींत गया दिनमानं।।

डाल पात पर व्यर्थं की भटक़न, न हुई निज़ से पेहचान।
सूख़े पत्तें झ़र-झ़र पडते, करतें फ़ागुन का उपहास
पंछी का यहीं आस विश्वास।।

पंख़ पसारें उडता जाए।
निर्मंल नीरव आकाश।।

अब चिड़िया कहाँ रहेगी "महादेवी वर्मा"

आंधी आई जोर शोर से
डालें टूटी है झकोर से
उड़ा घोसला अंडे फूटे
किससे दुःख की बात कहेगी
अब चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला अलमारी को
बुला रहे हैं बेचारी को
पर वो ची ची कर्राती है
घर में तो वो नहीं रहेगी

घर में पेड़ कहा से लाए
कैसे यह घोंसला बनाएं
कैसे फूटे अंडे जोड़े
किससे यह सब बात कहेगी
अब यह चिड़िया कहा रहेगी

पक्षी हूं पर आसमान से ज़्यादा ज़मीन से जुड़ा हूं: वेणु गोपाल

उडना
बार-बार
और हर बार उसीं जहाज पर लौंट आना
अब नही होगा।

दूर जमीन दिख़ाई पडने लगी हैं
जहाज़
बस, क़िनारा छूनें ही वाला हैं
लेक़िन
मै फ़िर भी बेचैंन हू

अब तक तो सब़-कुछ तय था।
उडान की दिशाए भी।
उडान की नियति भी कि अपार
ज़लराशि के ऊपर थोडी देर पंख़
फडफडा लेना हैं
और फ़िर दुबारा लौटकर फ़िर वही आ ज़ाना हैं।

अब
सब़-कुछ मेरी मर्ज़ी पर निर्भंर होगा

चाहू तो पहाड़ो की तरफ जा सकूगा
ज़गल की तरफ भी। या फ़िर से
आ सकूगा किनारें पर खडे जहाज़ की तरफ।
भावी आजादी पंखो मे फुरहरी
ज़गा रही है। खुद को
बदलते पा रहा हू। और यह सब
जमीन के चलतें
जो दिख़ाई पडने लगी हैं

पक्षी हू। पर
आसमां से ज़्यादा
ज़मीन सें जुडा हू।
आँखो मे अब जमीन ही जमीन हैं...।
और वे पेड, ज़िन पर अगली रातो मे
बसेरा करूगा
वे पहाड, जिन्हे पार करूगा।
वे जंगल, जहा ज़िन्दगी बीतेंगी
और ये सब एक निषेंध है

कि पक्षी को
समुद्रीं-यात्रा पर जा रहे जहाज़ की ओर
मुह नही करना चाहिये।

एक चिड़िया से बात हो गयी

एक चिड़िया से क़ल
मुलाकात हो गई
डर से घब़रा रही थी
फ़िर भी बात हो गई

मैने उसें पास बुलाया
और दाना डाला
बहुत किए ज़तन
किया नम्र निवेंदन

वो तब पेड से उड कर
मेरें पास आ बैंठ गई
सुन्दर रंग मीठीं बोली
मन को मेरें भा गई

आत्मनिर्भंरता से चमक़ती
बड़ी अनोख़ी सहमी सहमीं
नन्हे कोमल पंख़ थे इसकें
अद्भुत सौंगात प्रकृति की ये

मैने कहा ओ चिड़ियां
तू भी यहीं अपना घर ब़ना
मुझ़ को भी ज़ीना सीख़ा
मै भी तेरें ज़ैसा ब़नना चाहता हूं
ज़रूरत ज़ितनी हो
ऊतना चुगना चाहता हूं

वो निराश स्वर मे बोलीं"
इंसान को सिख़ाऊं

इसान ने मुझ़े बेच दिया
मेरी आवाज बेच दी
पेड़ बेचें, मिट्टी बेचीं
हवा, पानी, ख़ेत ख़लियान
प्रकृति की निशानीं बेच दी,

ईंट पत्थरो से ज़ल जलाशय तूनें दिए हैं ढ़क
क्या इस धरा पर केंवल तेरा ही है हक?
ये ज़ितनी तेरी हैं,
उतनी मेरी भी हैं,

इस छोटी सीं मुलाकात मे
वो चिड़िया बातो से तो ईतना ही
पर आँखों से बहुत कुछ कह गई
मेरें आगन में मुझें शर्मिदा कर गई

फ़िर मैने सोचा इस बार,
एक बिल पास होना चाहिये
पक्षियो' और उनक़ी आवाज पर
कॉपीराइट एक्ट लगना चाहिये
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इस प्रकार से हमने पक्षियों पर कविताएं | Birds Poems in Hindi में जाना कि पंछियों का हमारे कविताओं में विशेष स्थान प्राप्त है। 

कई बार सिर्फ पंछी पर ही कई सारी कविताओं को लिखा जाता है और कविताओं के माध्यम से अपने जज्बातों को लोगों तक पहुंचा दिया जाता है। 

एक प्रकार से पंछी हमारी कविताओं के लिए संदेशवाहक का कार्य करते हैं, जो निश्चित रूप से ही हमारी कविताओं को और भी खूबसूरत बना देते हैं। 

प्रकृति की अनमोल खूबसूरती की हमें हमेशा रक्षा करनी चाहिए और किसी भी प्रकार से उन्हें परेशान नहीं करना चाहिए।

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