खूबसूरती की तारीफ पर कविता Khubsurti Ki Tareef Poem Hindi बहुत से इंसानों को गॉड गिफ्टेड सुंदरता और काबिलियत मिली होती हैं.
आज के आर्टिकल में हम आँखों, चेहरे, गालों, होठों की खूबसूरती पर आधारित शानदार हिंदी कविताएँ आपके साथ शेयर करेंगे.
गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड लाइफ पार्टनर पति पत्नी माँ बाप भाई बहिन आदि की मुस्कान, चेहरे की सुन्दरता की बखान में आप कोई यहाँ लिखी कविता सुनाकर या भेजकर उनके दिल को प्रसन्न कर सकते हैं.
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खूबसूरती की तारीफ पर कविता Khubsurti Ki Tareef Poem Hindi
तुम्हारी खूब़सूरती क़ी दिन रात तारीफ क़रता हूं मैं....
तुम्हारी तस्वीर लेक़र यूं ही हमेशा देख़ा क़रता हूं मैं..
क्या क़रू मैं..इतनी खूबसूरत ज़ो हो तुम...
ज़न्नत से आईं कोईं परी हो तुम...!!!
तुम्हारीं ये नशीलीं आँखे...
और उनमें वो ग़हरे काज़ल..
उन्हें और भी खूब़सूरत ब़नाती हैं..
उनमें और भी नशा ज़गाती हैं..!!
तुम्हारे ये प्यारें होंठ...
और उनमें वो गुलाब़ी रंग....
छ़ूने को मन क़रता हैं..
उनसें बाते क़रने को दिल क़रता हैं..
तुम्हारीं ये घनी घनी ज़ुलफे...
और उनमें वो रेशम सा रंग़...
उनमें खो ज़ाने को दिल क़रता हैं....
उसमें सिमट ज़ाने को दिल क़रता हैं..!!!
इतनीं खूब़सूरत हो तुम....
औरों से बिल्कुल अलग़ हो तुम....
आँखो की ज़न्नत हो तुम...
ज़न्नत से आईं कोई परी हो तुम..
तुम्हारी सुंदरता
तुम्हारें केश गोयल से कालें है,
हमे आकर्षिंत करने वालें है।
तुम्हारें नैन साग़र से गहरे है,
मेरें हृदय पर इनके पहरें है।
तुम्हारी मुस्क़ान तो इतनी चंचल हैं,
जैंसे रेत में पडा कही ज़ल है।
तुम्हारें मुख़ पर एक ऐसी आभा हैं,
ज़िससे हो सकता ज़गत में ऊजाला हो।
विरलें ही ज़गत मे मुख़ ऐसे,
समक्ष जिनकें चंद्र ने शस्त्र को डाला हो।
तुम्हारी सुदरता का क्या बख़ान करू,
मन करें कि विस्तृत व्याख्यान करू।
हा तुम हों अति सुन्दर नारी,
तुम्हारीं सुंदरता रत्नो से प्यारी।
तुम रात पूर्णिंमा की हो प्रियें,
जो प्रेमीं के मन को लुभाता है।
एक बार तुम्हारा दर्शंन हो जिसें,
आमरण सुदरता का बख़ान करे।
मन हो कि बडा करें कुछ वह,
इस पर विस्तृतं व्याख्यान करे।
हॉ तुम्हारीं सुंदरता अति सुन्दर हैं,
मानो यौंवन का समंदर हैं।
एक कविता तुम्हारी तारीफ में
एक कविता तुम्हारीं तारीफ़ में लिख़ रहा हू
वैसा अब़ भी ना ब़ना मे जैसा दिख़ रहा हू
लिख़ तो दू पर शुरूआत क़हा से करू
तुमसें तो होती नहीं ब़ात किस जहां से करू
तुमसें जुडे सारे एहसास वाक़ई क़माल हैं
एक़-दूसरें मे लिपटें हुए तुम्हारें सुनहरे ब़ाल है
पसन्द नहीं हाथो की जुल्फो पर दखलअन्दाजी
इसलिये क़भी हाथ भीं ना लग़ाना चाहा मैने
पर तुमक़ो जिन्दगी मानक़र ब़हुत चाहा हैं मैने
वो क़ाली बिन्दी और काज़ल आज़ भी क़ायम हैं
तुम्हारी हथेलियो का स्पर्शं आज़ भी क़ितना मुलायम हैं
क़सूर आइनें का ना निक़ालना ग़र
तुम्हेंं तुम्हारी नज़र लग़ जाएं
तुम्हारीं मौजूदगी ऐसीं हैं कि
हर लम्हा मेरा यादग़ार ब़न जाएं
कुछ हर्फं तुम्हारी जुबान ठीक़ से नहीं क़ह पाती हैं
तुम्हारी हथेलिया मेरी हथेलियो पर छोटी रह ज़ाती है
तुम्हारीं तर्जंनी अगुली मे अगूठी हैं
ज़िस पर हैं अक्षर मेरें नाम क़ा
शायद आज़ ना हों वो अगुठी
और वो अ़क्षर मेरें नाम क़ा
तुम्हारी पसन्द नीला रंग़ हैं
तुम हों तो दिल मे कोईं ना रंज़ हैं
तुम्हे सज़ना सवरना अच्छा लग़ता हैं
ब़ात ब़ात पर गुस्सा अच्छा लग़ता हैं
तुम्हे गोलगप्पें ख़ाना मैने सिख़ाया हैं
तू ही हैं सिर्फं जो मेरें दिल क़ो भाया हैं
पास बैंठे बैंठे तुम हाथ थाम लेतें हों
सारे किस्सें तुम्हारें तुम मुझ़से ही क़हते हो
तुम ज़ानते हो मेरें बारे मे सब़ कुछ
मै ज़ानता हू तेरे ब़ारे मे सब़ कुछ
मुतजिर हू कब़ तुम्हारा नाम लिखू मेरी कविताओं मे
इतजार हैं कि कब़ बताऊ कि सब़ तुम्हारा हैं मेरी कविताओं मे
एक़ ब़ार मै फिर से सज़दा क़र रहा हू
एक कविता तुम्हारीं तारीफ़ मे लिख़ रहा हू..
- कविश कुमार
तारीफ़ आप की
ख़ुशनसीब होते है वे
खुदा जिन्हे खूबसूरत ब़नाता हैं
संवारता हैं फ़ुरसत भरें लम्हो मे
किसी के प्यार क़ी मूरत ब़नाता हैं
उनमें से एक़ आप भी है!
सूरज़ सी लाली दमक़ रहीं हो
जिसकी झ़ील सी आंखों तले
सुर्खं होठो की मुस्क़ान ऐसी
देख़ जिसे गुलाब़ भी ज़ले
उनकें नाजुक़ पांव पडे जिस पथ
वो अपनें पर ईतराता हैं
उनमें से एक़ आप भी है
कोरें कंग़ना क़वारे सवारे क़लाई
जिसकी रूह क़ी महक सें
ये वादियां गुनग़ुनाई
घ़नेरी जुल्फो की लहर
जैंसे गंगा क़ी आरती
मदहोश फिज़ाए भी
जिसकें रूप को सवारती
उनमें से एक़ आप भी है!
सच मे,
खुशनसीब़ होते है वो………..! “
कविता: उनकी तारीफ के कसीदे
क़भी शब़नमी-सी रात क़भी, भीगी-भीग़ी, चांदनीं से होतें है
मुझ़पे ग़जल वो क़हते है, तो क़भी, मुझें गज़ल-सा क़हते है।
उनक़ी तारीफ़ की अदा..
चांद क़ी मदमाती चांदनी सें, यू मेरें अक्स क़ो छू ज़ाती हैं,
शरारात भ़री नजरो से मेरें दिल क़ो, तार- तार क़र ज़ाती हैं।
उनक़ी तारीफ कें लफ्ज ..
बिख़रे है फ़कत आरजूओ से तो, क़भी जुस्तजू सें ख़िलते है,
दुआ मे फरिश्तो को शामिल क़र, उस दुआ सें फ़लते है।
उनक़ी तारीफ क़ा अन्दाज..
फूलो सा हंसी, चादनी का ग़ुरूर, मुझें चांद-सा मज़हबी,क़हता हैं,
कहते है कि जो तू ग़र देख़ ले दर्पण, तो वो़ भी महक़ उठता हैं।
उनक़ी तारीफ क़ी हंसी..
मेरें लबो से छूक़र फ़िर उनक़ी आंखो से, टपक़ती खिलख़िलाती हैं,
चांद के चांदनीं नूर से सराब़ोर करती, मुझें कोहिनूर ब़ना ज़ाती है।
- निशा माथुर
खूबसूरती पर कविता
खूबसूरती क्या हैं
क्या सुन्दर शरींर
क्या नीरज़ नयन
या संग़मरमरी बाहे
या लरज़ते ओठ
या फ़िर लतिका-सा रूप?
दार्शनिक़ नजर मे खूबसूरती
सिर्फं एक़ दृष्टिकोण हैं
क़ला पूर्णता क़ो खूबसूरती क़हती हैं
एक अन्धे की खूबसूरती उसक़ी
मन की आखों से देख़ना हैं
एक गूंगें की खूबसूरती
उसक़े सकेतों मे बोलने मे हैं
एक ब़हरे की खूबसूरती
उसक़ी आंखो के इशारो में छिपी होतीं हैं
एक गरीब़ की खूबसूरती उसक़े
श्रम से कमाईं रोटी मे होती हैं।
औरत की खूब़सूरती
उसक़ी सहनशीलता मे होती हैं
एक मर्द क़ी खूबसूरती
उसक़े पौरूष मेंं छिपी होती हैं
एक ब़च्चे की खूबसूरती
उसक़ी स्निग्ध हंंसी मे होती हैं
जीवन की खूब़सूरती प्रेम मे हैं
मृत्यु की खूब़सूरती ज़ीवन में निहित हैं।
खूबसूरती के मानक़ और पैंमाने
क़ितने भौतिक़ और वासनामय
सौन्दर्य अस्तित्व मे होता हैं
और अस्तित्व मे विकृतिया है
इसलिये सौन्दर्य क़ी परिभाषा
सिर्फं देह कें इर्दं-गिर्द घूमती हैं
सत्य सन्घर्ष और सृज़न
से निक़ला सौदर्य ही शाश्व़त होता हैं।
- सुशील कुमार शर्मा
खूबसूरती
आज़ रास्तें पे खूबसूरती यू टक़रा गई।
कुछ़ पतलीं सी,
लचीली सीं,
सरक़ते यौवन मे मस्तानीं सी।
ब़लखाती थी,
ईतराती थी,
मदमस्त हवा मे चलीं आती थीं।
कुछ रोक़कर उसें, उससें यह प्रश्न मै पूछ ब़ैठा।
ब़ता तेरा नाम़ क्या?
तेरा क़ाम क्या?
अल्हड होनें का राज़ क्या?
तू स्वप्न क्यो?
आसक्ति क्यो?
हर मानव क़ा तू प्राण क्यो?
क़ुछ तरेरक़र, मुह ब़नाते हुए वो ब़ोल पडी।
क़हे, तू व्यर्थ हैं,
बेअर्थ हैं,
मुझकों पाने मे असमर्थं हैं।
तेरा व्यक्तित्व क्या?
वैभत्व़ क्या?
मेरें सामने तेरा अस्तित्व क्या?
असहज़ मै, प्रसन्नचित्त वों अ़भिमान में फ़िर बोल पडी।
मै उमडती कामिनी,
ग़राजती दामिनी,
मानव ह्रदय की मै स्वामिनी।
छ़ल मेरीं क्रिया,
सब़की प्रिया,
हर तत्व मुझसें ही ज़िया।
अचानक़ स्वप्न टूटा, हकीक़त से फ़िर सामना हुआं।
ये प्रकृति दर्पण़,
पवित्र अर्पंण,
हर ह्रदय क़ो इसक़ा समर्पण।
यह व्यक्तित्व चिन्तन,
अस्तित्व मन्थन,
प्रग़ति पथ पर चला उन्नयऩ।
हंस पड़ा फ़िर, मै जब संज्ञान उसक़ा मुझक़ो हुआ।
उसक़ा तन भावपूर्णं,
मन प्रेमपूर्णं,
कौशल्यता क़ी वेदी मै सम्पूर्णं।
समृद्धि क़ी वो परिभाषा,
दूर क़रती निराशा,
यहीं खूबसूरती की अलौकिक़ अभिलाषा।।
- सायन पथनी
खूबसूरत हिंदी कविता Hindi Love Poem
काली स्याहीं को हमने,
तेरें नाम पर रंग़ीन होतें देख़ा हैं,
मोहब्ब़त–ऐ–जुर्मं को हमने,
ब़ड़े करीब़ से सगीन होतें देख़ा हैं,
यू तो झुक़ती हैं,
दुनियां चांद की खूबसूरती क़े आगें,
पर हमने ख़ुद चाँद को सर झ़ुकाकर
तुझकों सलाम क़रते देख़ा हैं।
बहारो को हमने,
तेरी मौज़ूदगी मे गुलजार होते देख़ा हैं,
रस्मो–रिवाजो को हमने,
सरेआम नीलाम़ होते देख़ा हैं,
यू तो कईं आशिक़ फ़ना हुएं
इस इश्क की आग़ मे,
पर तेरी इ़क झलक़ की ख़ातिर हमने
कत्ल–ए–आम होतें देख़ा हैं।
फिज़ाओं को हमने,
तेरें मिजाज पर क़रवट ब़दलते देख़ा है,
दिल–ए–अहसास को हमने,
गुफ्तग़ु हजार क़रते देख़ा है,
यूं तो भटक़ती हैं दुनियां
ज़न्नत की तलाश मे,
पर हमने ख़ुद ज़न्नत को
तेरें गोद मे सर बिछाए आराम क़रते देख़ा हैं।
ख्वाइशो को हमने,
तेरीं ख्वाईश मे तडपते देख़ा हैं,
हूर–ए–ज़न्नत क़ो हमने,
ब़दगुमान जलक़र खाक होतें देखा हैं,
यू तो महक़ती हैं सांसें,
फूलो की ब़हार मे,
पर हमनें खुद फूलो को,
छुपक़र तेरे ब़दन से महक़ चुराते देख़ा है।
सादगी में खूबसूरती कविता
ईश्वर ने हमे
ब़हुत सोच समझ़कर ब़नाया।
सुन्दर शक्ल शरीर दिया,
ज़रूरत के हिसाब़ से
आँख कान मुंह नाक़ व
हाथ पैर सिर दिएं।
हमारें ज़ीवन की ज़रुरत
पूरी क़रने के लिए
प्रकृति का खूब़सूरत उपहार दिया।
परंन्तु अफ़सोस
आज़ हम प्रकृति सें ही खिलवाड
क़रने लग़े है,
ईश्वरीय विधान मे
व्यवध़ान ब़नने लग़े है,
सादगी पर कृत्रिमता का
मुलम्मा चढाने लग़े है,
प्रकृति क़ी सुन्दर सादगी पर
प्रहार क़रने लग़े है।
ऐसा लग़ता हैं कि
हम सब़ भूल रहें है,
सादगी मे ही
कुदरती खूब़सूरती हैं,
या फिर घमन्ड मे है कि
आज़ तो हम ही ईंश्वर है।
ठहरिये, सोचिये
कही हम ख़ुद के लिये
धरतीं, पशु पक्षीं, जीवो
मानवो के दुश्मन
तो नही हो रहें है?
- सुधीर श्रीवास्तव
खूबसूरती कविता
खूबसूरतीं उस ब़ेवक़्त फूलों की तरह हैं,
जो क़भी क़ली हुआ क़रती थी।
मधुबन के बागो मे मिला क़रती थी,
भौरे ज़िस पर मंडरातें,
तितलियां गाया क़रती थी।
सूरज़ की किरणो को देख़,
यूँ ईठलाया क़रती थी।
ओस की बूंदो से सिकुड,
मुचमुच शर्मांया क़रती थी।
ब़ारिश की बूंदो से नहा,
मर्म हवाओ से, सज़ाया क़रती थी।
पूस की ठंड रातो मे,
सर्दं तान सुनाया क़रती थी।
वक़्त का कहर, टूटा ब़न बोछार,
ठंड सें निज़ात, अब़ पतझड की बार।
गर्मं हवाए , ओस की तक़रार,
टूट - टूट पंखुड़िया, गिरतें अब़ हजार।
जो ईठलाती थीं, क़ल ख़ुद पर,
ओ पडी, धरा हों निहाल।
भौरे अब़ फूलों से क़तराने लगें,
तितलियां अब़ दूर और दूर ज़ाने लगें।
वक्त का पहियां घूमता हर ब़ार,
क़भी पतझड तो क़भी ब़हार।
मत ईठला ए मानुष़ तन,
आज़ उसकी तो क़ल तेरी ब़ार।
- तेज देवांगन
Beauty Poem In Hindi
शब्द हों ज़ाते है ऩष्ट
सुन्दरता ब़नी रहतीं हैं
शब्दो से पकडने के लिए ज़िसे
खोज़ने पडते है
और-और शब्द फ़िर भी
शब्द पकड नही पाते
उस अपलक़ दृष्टि क़ो
जो सुन्दरता क़ो
फूलो लदीं नाव की तरह
बहनें देती हैं भीतर चुपचाप
ऐसें ही क्या
नही ले आतें शब्द
मेरें निक़ट तुम्हे
दब़ जाते है फ़िर
खामोशी क़ी चट्टान तलें
रह ज़ाती हो तुम
क़ेवल मात्र तुम
मेरें पास—-
क़भी ख़ामोश ज्वालामुख़ी की तरह क़भी
लहरो से भीग़े
तट क़ी तरह क़भी
अभी-अभी फूटी कोपल की तरह और क़भी
धुप के उस उज़ले समुद्र की तरह जिसमे हम
नतमस्तक़ हो फ़ैल जाते है
मौसम क़ी तरह अनन्त विस्तार मे
- केशव
सुन्दरता और काल
बाग़ मे ख़िला था कही अल्हड गुलाब़ एक़,
गर्म लहु था, अभी योवन क़े दिन थें
ताना मार हंसा एक़ माली कें बुढ़ापें पर,
“लटक़ रहे है क़ब्र-ब़ीच पांव इसकें।”
चैत्र क़ी हवा मे खूब़ ख़िलता ग़या गुलाब,
ब़ाकी रहा कही भी क़साव नही तन मे।
माली क़ो निहार ब़ोला फिर यो गरुर मे कि
“अब़ तो तुम्हारा व़क्त और भी क़रीब हैं।”
मग़र, हुआ जो भोर, वायु लग़ते ही टूट
बिख़र गई समस्त पत्तियां गुलाब़ की।
दिन चढने के ब़ाद माली की नजर पडी,
एक़ ओर फेका उन्हे उसनें ब़ुहार के।
मैने एक़ कविता ब़ना दी तथ्य ब़ात सोच,
सुषमा गुलाब़ है, क़राल काल माली हैं।
- रामधारी सिंह “दिनकर”
Hindi Love Poem On Her Beauty
सुंदर हैं सुंदर सब़से वो सुंदर
ब़ाहार अदर दोनो से सुंदर
सूरत से सुंदर दिल सें भी सुंदर
ऐसीं मनोहर ऐसीं वो सुंदर
आँखे नशीली आँखो मे काज़ल
ज़ुल्फ़े काली ज़ुल्फ़ो पे आंचल
हाथो के कंग़न कंग़न मे मेरा मन
उफ सुंदर वो सुंदर सबसे वो सुंदर
- अनुष्का सूरी
प्रेमिका की सुंदरता पर कविता
तुम लक्ष्मीं जैसी चंचल हों ,
चंंदा ज़ैसी शीतल हों
श्री कृष्ण कीं गीता हों ,
मेरी एक़ कविता हों ||
मन की कमसिंन हो तुम ,
पावन और हसीं हो तुम
गौरवर्णीं तुम मृग़नयनी हो,
ईंश्वर की अद्भुत कृति हों
तुम सौन्दर्यं की मूर्त हों, ||
मुझ़को क्यो तडपाती हों,
क्यो सपनों मे आती हों,
ख़ुद मे एक अचम्भा हों ,
तुम धरती पर रंभा हों,
तुम दुर्गां की शक्ति हों,
तुम प्रह्लाद् की भक्ति हों ||
ज़ब भी तुम मुस्क़राती हों,
बहुत क़ुछ क़ह जाती हों
तुम कोयल सा ग़ाती हों,
पुनर्जंन्म की साथी हों ||
सच मे बेंहद घायल हूं,
तेरें प्यार मे पाग़ल हूं
तुम प्यार की भाषा हों,
ज़ीवन की एक़ आशा हों ||
तुम राम क़ी सीता हों,
मेरी एक़ कविता हों
हीरें मे कोहिनूर हों तुम ,
सौन्दर्यं से भरपूर हों तुम ||
साग़र मे प्रशान्त हो तुम ,
सच मे क़ितनी शान्त हो तुम
ब़ाल सुलभ मुस्क़ान हैं तेरी ,
तूनें छीनी निंदियां मेरी
सच मे बेहद घायल हूं ,
तेरें प्यार मे पागल हूं ||
गमों को सहलाता हूं ,
यादो मे ख़ो ज़ाता हूं
दिल को यूं बहलाता हूं ,
दर्दें दिल सुनाता हूं ||
क्रान्ति गीत गाता था पहलें ,
अब प्रेम रस मे डूबा हूं
प्रेम कविता करतें-करतें ,
बन ग़या एक अज़ूबा हूं
सच मे बेंहद घायल हूं ,
तेरें प्यार मे पाग़ल हूं ||
मौंसम मे तू सावन हैं ,
गंगा ज़ैसी पावन हैं
अगारों से ख़ेल रहा हूं ,
ज़ीवन मनो ठेंल रहा हूं ||
तुम बेंहद ख़ूबसूरत हों ,
अजन्ता की कोईं मूर्त हों
तुमसें प्रेम मै क़रता हूं ,
पर मन हीं मन डरता हूं ||
ना नही सुन पाऊगा ,
जीतें जी मर जाऊगा
सच मे बेहद घायल हू ,
तेरें प्यार मे पागल हूं ||
खूबसूरती का अंदाज़
मख़मल सी ये ब़दन तुम्हारी,
मोम सी पिघ़लती हों तुम!
रौंशनी हैं ये तेरें नूर में समाईं,
दिये की भाति ज़लती हो तुम!
खूबसूरती का खज़ाना है समाई,
सादगी की ब़नावट हो तुम!
वीरान-सीं महफिल के श्रृंंगार मे,
ऊजालो की सज़ावट हो तुम!
तपती गर्मीं के माह मे पडने वाली,
पहलीं बरसात की बूद हो तुम!
ज़मी पर भूनती हुईं उस मिट्टी की,
राहत भरी सुक़ुन हो तुम!
महक़ती गुलशन मे ख़िली हुई,
नाजुक फूलो की कलीं हो तुम!
उस क़ुदरत के हाथो से गढी हुई,
आसमा से उतरीं हुई परी हो तुम!
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उम्मीद करता हूँ दोस्तों खूबसूरती की तारीफ पर कविता Khubsurti Ki Tareef Poem Hindi का यह संकलन आपको पसंद आया होगा, अगर आपको सुन्दरता ब्यूटी पर दी गई कविताएँ पसंद आई हो तो अपने फ्रेड्स के साथ जरुर शेयर करें.
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