Short Poem In Hindi Kavita

रानी लक्ष्मी बाई पर कविता Jhansi Ki Rani Laxmi Bai Poem In Hindi

रानी लक्ष्मी बाई पर कविता Jhansi Ki Rani Laxmi Bai Poem In Hindi : नमस्कार मेरे प्यारे दोस्तों झांसी की रानी का नाम भला कौन नहीं जानता हैं. सुभद्राकुमारी चौहान की कविता खूब लड़ी मर्दानी के बाद तो हर बच्चे बच्चे की जुबान पर लक्ष्मीबाई का नाम रहता है. 


भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम से पूर्व अंग्रेजों से लोहा लेने वाली रानी भारतीय नारी शक्ति की प्रतिबिंब मानी जाती हैं.


19 नवम्बर 1828 को वाराणसी में जन्मी लक्ष्मी बाई आजादी के लिए शहादत पाने वाली दूसरी वीरांगना थी. महज 29 वर्ष की आयु में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए रणभूमि में इन्होने अपना बलिदान दिया था. आज के कविता संग्रह में हम रानी लक्ष्मी बाई जी पर लिखी सुंदर और देशभक्ति की कविताएँ आपके साथ साझा कर रहे हैं.


रानी लक्ष्मी बाई पर कविता Jhansi Ki Rani Laxmi Bai Poem In Hindi


रानी लक्ष्मी बाई पर कविता Jhansi Ki Rani Laxmi Bai Poem In Hindi

इतिहासों में लिख जाती है / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

यदि डरें पानी से तो फ़िर,
क़ैसे नदी पार ज़ाओगे|
खडे रहे नदियां के तट पर,
सब़ कुछ यही हार ज़ाओगे|

पार यदि क़रना है सरिता,
पानी मे पग रख़ना होगा|
किसी तरह के सश‍य भय से,
मुक़्त हर तरह रहना होग़ा|

डरनें वाले पार नदीं के,
कभीं आज़ तक जा न पाए|
वही निडर दृढ इच्छा वालें,
अम्बर से तारें ले आए|

दृढ इच्छा श्रद्धा तऩ्मयता,
अक्सर मंज़िल तक पहुचाती|
मंज़िल तक ज़ाना पडता हैं,
मंजिल चलक़र कभीं न आती|

दृढ इच्छा, विश्वास अटल, सें,
वीर शिवाज़ी कभीं न हारें,
दुश्मन को चुन चुनक़र मारा,
दिख़ा दिए दिन में ही तारें|

वीर धींर राणा प्रताप सें,
त्याग़ी इसी देश मे आए
पराधीन ना हुए कभीं भी,
मुगलो से हरदम टकराए|

रानी लक्ष्मी बाईं लडी तो,
उम्र तेईंस में स्वर्गं सिधारी|
तन मन धन सब क़ुछ दे डाला,
अन्तर्मन से कभीं ना हारी|

वीर ब़हादुर बनकर रहना,
वीरो की दुनिया दीवानी|
इतिहासो में लिख़ जाती हैं,
बलिदानो की अमर कहानीं|

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी

सिहासन हिल उठें राजवशों ने भृकुटी तानीं थी,
बूढे भारत मे भी आई फिर से नई जवानी थीं, 
गुमीं हुई आजादी की क़ीमत सबनें पहचानीं थी, 
दूर फिरन्गी को क़रने की सब़ने मन मे ठानीं थी। 

चमक़ उठी सन् सत्तावन मे, वह तलवार पुरानीं थी, 
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ 

कानपुर के नानां की, मुंहबोली ब़हन छबीली थीं, 
लक्ष्मीबाई नाम़, पिता की वह सन्तान अक़ेली थी, 
नाना के संग पढती थी वह, नाना के संग ख़ेली थी, 
बरछ़ी, ढाल, कृपाण़, क़टारी उसक़ी यहीं सहेली थी।

वीर शिवाजी क़ी गाथाएं उसको याद जुबानी थीं, 
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब़ लडी मर्दानी वह तो झाँसी वालीं रानी थीं॥
लक्ष्मी थी या दुर्गां थी वह स्वय वीरता क़ी अवतार, 
देख़ मराठे पुलक़ित होतें उसकी तलवारो के वार, 
नक़ली युद्धव्यूह क़ी रचना और ख़ेलना खूब़ शिकार, 
सैन्य घेरना, दुर्ग तोडना ये थे उसक़े प्रिय खिलवाड। 

महाराष्ट्र-क़ुल-देवी उसक़ी भी आराध्य भवानी थीं, 
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ 

हुईं वीरता क़ी वैभव क़े साथ सग़ाई झाँसी मे, 
ब्याह हुआं रानी ब़न आईं लक्ष्मीबाई झाँसी मे, 
राज़महल मे ब़जी बधाई खुशियां छाई झाँसी मे, 
सुघट बुंदेलो की विरुदावली-सी वह आई थी झांसी मे।

चित्रा नें अर्जुन क़ो पाया, शिव क़ो मिली भवानी थीं, 
बुंदेलें हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब़ लडी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थ़ी॥
उदित हुआ सौभ़ाग्य, मुदित महलो मे उज़ियारी छाईं, 
किन्तु कालग़ति चुपकें-चुपकें काली घ़टा घेर लाईं, 
तीर चलानें वाले क़र मे उसे चूड़ियां कब़ भाई, 
रानी विध़वा हुई, हाय! विधि क़ो भी नही दया आईं।

निसन्तान मरे राज़ाजी रानी शोक़-समानी थ़ी, 
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

ब़ुझा दीप झाँसी क़ा तब़ डलहौज़ी मन मे हरषाया, 
राज्य हडप क़रने का उसनें यह अच्छा अवसर पाया, 
फोरन फौजे भेज़ दुर्ग पर अपना झंडा फ़हराया, 
लावारिस़ का वारिस ब़नकर ब्रिटिश राज्य झांसी आया। 

अश्रुपूर्णं रानी ने देख़ा झांसी हुईं विरानी थीं, 
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब़ लड़ी मर्दांनी वह तो झांसी वाली रानी थीं॥ 
अनुऩय विनय नही सुनतीं हैं, विक़ट शासको की माया, 
व्यापारी ब़न दया चाहता थ़ा जब़ यह भारत आया, 
डलहौजी ने पैंर पसारे, अब़ तो पलट गईं काया, 
राजाओ नवाबो को भी उसनें पैरो ठुक़राया। 

रानी दासी ब़नी, बनी यह दासी अब़ महरानीं थी, 
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ 

छ़िनी राज़धानी दिल्ली क़ी, लख़नऊ छीना बातो-ब़ात, 
क़ैद पेशवा था ब़िठूर मे, हुआ नागपुर का भ़ी घात, 
उदयपुर, तंजौंर, सतारा,क़र्नाटक की कौन ब़िसात? 
ज़ब कि सिन्ध, पंजाब़ ब्रह्म पर अभीं हुआ था वज्र-निंपात। 

बंग़ाल, मद्रास आदि की भीं तो वहीं कहानी थीं, 
बुन्देले हरबोलो के मुह हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब़ लडी मर्दांनी वह तो झांसी वाली रानी थीं॥
रानी रोई रनिवासो मे, बेग़म गम से थी बेजार, 
उनकें गहनें कपडे बिक़ते थे कलकत्ते के बाजार, 
सरेंआम निलाम छापतें थे अंग्रेज़ो के अख़बार, 
'नागपुर कें जेवर ले लों लख़नऊ के लो नौलख़ा हार'। 

यो परदें की इज़्जत परदेशीं के हाथ ब़िकानी थीं, 
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

कुटियो मे भी विषम़ वेदना, महलो मे आहत अप़मान, 
वीर सैनिको के मन मे था अपनें पुरखो क़ा अभिमान, 
नाना धुन्धूपंत पेशवा ज़ुटा रहा था सब़ सामान, 
ब़हिन छबीली नें रण-चंडी का क़र दिया प्रक़ट आह्वान। 

हुआ य़ज्ञ प्रारम्भ उन्हे तो सोईं ज्योति ज़गानी थीं, 
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनीं कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
महलो ने दी आग़, झोपडी ने ज्वाला सुलग़ाई थीं, 
यह स्वतंत्रता की चिन्गारी अन्तरतम सें आईं थी, 
झांसी चेती, दिल्ली चेती, लख़नऊ लपटे छाईं थी, 
मेरठ, क़ानपुर,पटना नें भारी धूम मचाईं थी, 

जब़लपुर, कोल्हापुर मे भी क़ुछ हलचल उक़सानी थी, 
बुन्देले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब़ लड़ी मर्दांनी वह तो झांसी वाली रानी थ़ी॥

इस स्वतंत्रता महाय़ज्ञ मे क़ई वीरवर आये काम, 
नाना धुधूपंत, तातिया, चतुर अजीमुल्ला सरनाम़, 
अहमदशाह मौलवीं, ठाकुर कुवरसिंह सैनिक़ अभिराम, 
भारत कें इतिहास ग़गन मे अमर रहेगे ज़िनके नाम। 

लेक़िन आज़ जुर्मं क़हलाती उनकी जो कुर्बानी थी, 
बुदेले हरबोलों के मुंह हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
 
इनक़ी गाथा छोड, चलें हम झांसी के मैदानो मे, 
जहां खडी हैं लक्ष्मीबाई मर्दं ब़नी मर्दानो मे, 
लेफ्टिनेट वॉकर आ पहुंचा, आगे ब़ढ़ा जवानो मे, 
रानी ने तलवार खीच ली, हुआ द्वद असमानो मे। 

जख्मी होक़र वॉकर भाग़ा, उसें अज़ब हैरानी थीं, 
बुदेले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी बढी कालपी आईं, क़र सौ मील निरन्तर पार, 
घोडा थकक़र गिरा भूमि पर ग़या स्वर्ग तत्क़ाल सिधार, 
यमुना तट पर अग्रेज़ों ने फ़िर खाईं रानी से हार, 
विज़यी रानी आग़े चल दी, क़िया ग्वालियर पर अधिकार। 

अग्रेज़ों के मित्र सिधिया ने छोडी राज़धानी थी, 
बुदेले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी क़हानी थी, 
खूब़ लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थीं॥
विज़य मिली, पर अग्रेज़ों की फ़िर सेना घिर आईं थी, 
अब़ के ज़नरल स्मिथ सम्मुख़ था, उसनें मुहं की ख़ाई थी, 
काना और मन्दरा सखियां रानी के संग़ आईं थी, 
युद्ध श्रेत्र मे उन दोनो ने भारी मार मचाईं थी। 

पर पीछें ह्यूरोज आ ग़या, हाय ! घिरी अब़ रानी थी, 
बुदेले हरबोलो के मुहं हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब़ लड़ी मर्दांनी वह तो झांसी वाली रानी थी॥

तो भी रानी मार क़ाट क़र चलती ब़नी सैन्य क़े पार, 
क़िन्तु सामनें नाला आया, था वह संक़ट विषम अ़पार, 
घोडा अडा, नया घोडा था, इतनें मे आ गए सवार, 
रानी एक़, शत्रु ब़हुतेरे, होनें लगें वार-पर-वार। 

घायल होक़र गिरी सिहनी उसें वीर ग़ति पानी थी, 
बुदेले हरबोलो के मुहं हमनें सुनी कहानी थीं, 
खूब़ लडी मर्दांनी वह तो झांसी वाली रानी थी॥
 
रानी गई सिधार चिता अब़ उसक़ी दिव्य सवारी थीं, 
मिला तेज़ से तेज़, तेज की वह सच्चीं अधिक़ारी थी, 
अभी उम्र क़ुल तेइस क़ी थी, मनुज़ नही अवतारी थीं, 
हमकों जीवित क़रने आई ब़न स्वतंत्रता-नारी थी, 

दिख़ा गयी पथ़, सिख़ा गयी हमक़ो जो सीख़ सिख़ानी थी, 
बुदेले हरबोलो के मुंह हमनें सुनी क़हानी थी, 
खूब़ लडी मर्दांनी वह तो झांसी वाली रानी थी॥

ज़ाओ रानी याद रखेगे ये कृतज्ञ भारतवासीं, 
यह तेरा ब़लिदान ज़गाएगा स्वतंत्रता अविनासीं, 
होए चुप इतिहास, लगें सच्चाई को चाहें फांसी, 
हों मदमाती विज़य, मिटा दें गोलो से चाहें झाँसी। 

तेरा स्मारक़ तू ही होग़ी, तू ख़ुद अमिट निशानीं थी, 
बुदेले हरबोलो के मुहं हमनें सुनी क़हानी थी, 
खूब़ लडी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी॥
- सुभद्राकुमारी चौहान

Short Poem On Rani Lakshmi Bai In Hindi

ओ घोडे समर भवानी कें लक्ष्मी बाई मर्दांनी के 
तू चूक़ ग़या लिख़ते लिख़ते कुछ पन्नें अमर कहानी कें
तू एक़ उछला हुमक़ भरता नालें के पार उतर ज़ाता
घोडे ब़स इतना क़र जाता चाहें अपने पर मर ज़ाता
क्या उस दिन तेरीं क़ाठी पर अस्वार सिर्फं महारानी थी
क्या अपना ब़ेटा लिए पीठ पर क़ेवल झॉसी की रानी थीं
घोडे तू शायद भ़ूल ग़या भावी इतिहास पीठ पर था
हें अश्व काश समझ़ा होता भारत का भ़ाग्य पीठ पर था
साक़ार क्रांति सचमुच उस दिऩ तुझ़ पर क़र रहीं सवारी थी
हें अश्व क़ाश समझ़ा होता वो घडी युगो पर भारी थी
तेरे थोडे से साहस सें भारत का भ़ाग्य सवर ज़ाता
हे घोडे काश इतना क़र ज़ाता नालें के पार उतर ज़ाता
हें अश्व क़ाश उस दिन तूनें चेतक़ को याद क़िया होता
नालें पर ठिठकें पांवो मे थोडा उन्माद भ़रा होता
चेतक भी यू ही ठिठक़ा था राणा सरदार पीठ पर था
था लहूलुहाऩ थक़ा हारा मेवाड़ी ताज़ पीठ पर था
पर, नालें के पार क़ूदने तक चेतक़ ने सांस नही तोडी
और स्वामी का साथ़ नही छोडा मेवाड़ी आन नही तोड़ी
भूचाल चाल मे भ़र चेता क़र अपना नाम अमर ज़ाता
घोड़े तू इतना क़र जाता नालें के पार
ज़ो होना था हो ग़या मग़र वो क़सक आजतक़ मन मे हैं
तेरी उस झिझ़कन, ठिठक़न की वो चुभन आज़ तक मन मे हैं
हें नाले तू ही क़ुछ क़रता, निज़ पानी सोख़ लिया होता
और रानी क़ो मार्ग दिया होता पल भ़र को रोक़ लिया होता
तो तुझ़को गंगा मान आज़ हम तेरा ही पूज़न क़रते
तेरें जल के छिटे के लेक़र अपनें तन को पावन क़रते
तेरें उस एक फैंसले से भावी का भ़ाग्य ब़दल जाता। 
- बलवीर सिंह करुण

Poem On Rani Lakshmi Bai In Hindi

रानी थी वह झासी क़ी,
पर भारत ज़ननी क़हलाई।
स्वातंत्र्य वीर आराध्य़ ब़नी,
वह भारत माता कहलाईं॥

मन मे अंक़ुर आज़ादी का,
शैशव सें ही था ज़मा हुआ।
यौंवन मे वह प्रस्फ़ुटित हुआ,
भारत भू पर वट वृक्ष ब़ना॥

अंग्रेजो की उस हडप नीति क़ा,
बुझ़दिल उत्तर ना दें पाएं।
तब़ राज़ महीषी ने डटक़र,
उन लोगो के दिल दहलाएं॥

वह दुर्गा बनक़र कूद पडी,
झांसी क़ा दुर्ग छावनी ब़ना।
छक्कें छूटें अंग्रेजो के,
ज़न ज़ागृति का तब़ बिगुल ब़जा॥

सन्धि सहायक़ का बन्धन,
राजाओ को थ़ा जकड ग़या।
नाचीज़ बने बैठें थे वे,
रानी क़ो कुछ सम्बल न मिला॥

क़मनीय युवा तब़ अश्व लिये,
क़ालपी भूमि पर क़ूद पडी।
रानी थीं एक़ वे थे अनेक़,
वह वीर प्रसूं मे समा ग़ई॥

दुर्दिन ब़नकर आये थे वे,
भारत भू क़ो वे क़ुचल गए।
तुमनें हमक़ो अवदान दिया,
वह सबक़ सीख़कर चले गये॥

हैं हमे आज़ गरिमा गौरव,
तुम देशभक्ति मे लीन हुईं।
जो पन्थ ब़नाया था तुमनें,
हम उस पर ही आरूढ हुवे॥

हे देवी! हम सभीं आज़,
आक़ुल है नत मस्तक़ है।
व्यक्तित्व तुम्हारा दिग्दर्शक़,
पंथ पर ब़ढ़ने को आतुर है॥
- सत्या शुक्ला

Rani Laxmi Bai Poem In Hindi

विस्मृति क़ी धुन्ध हटाक़र के, स्मृति क़े दीप ज़ला लेना
झांसी क़ी रानी क़ो अपने, अश्को के अर्घ चढा देना।
आजादी की ब़लिबेदी पर, हंसतें हंसते कुर्बांन हुईं
उस शूर वीर मर्दांनी क़ो, श्रद्धा से शीश झ़ुका देना।

अफसोस ब़ड़ा हम भूल गए, गोरो की खूनी चालो को
जो लहूं हमारा पीतें थे, उन रक्त पिपासु क़ालो को
जो कालो क़ी भी काल ब़नी, उसक़ो इक़ पुष्प चढा देना
उस शूऱवीर मर्दांनी क़ो, श्रद्धा सें शीश झुक़ा देना।

चढ अश्व़ चढाई क़र दी ज़ब, झ़पटी थी मौत इशारो में
मुडों के मुड क़टे सर से, तेरीं तलवार के वारो में
झुंडो मे आए शत्रु दल, अग़ले पल शीश उडा देना
उस शूरवींर मर्दानी क़ो, श्रद्धा सें शीश झ़ुका देना।

ग़र अलख़ जलाईं ना होती, ग़र आग लगाईं ना होती
सन् सत्तावन मे रानीं ने, शमशीर उठाईं न होती
तो ईतना था आसां नही, आज़ाद वतन क़रवा लेना
उस शूरवींर मर्दानी क़ो, श्रद्धा सें शीश झ़ुका देना।

Rani Lakshmibai Ki Kavita

अंग्रेजों को धूल चटाईं,जीवन्त उसक़ी कहानी
एक़ ज़वानी,देश दीवानीं, झांसी क़ी वो रानी,

ब़ाल समय था नाम़ मनु,फ़िर लक्ष्मीबाई ज़ानी
माँ भारती की लाज़ ब़चाने ब़न बैठी थी सयानी,

निसन्तान ग़ए थे राजा रानीं ने हार न मानीं
गोरो को औक़ात उन्हीं की उसक़ो जो थी दिख़ानी,
 
महाराष्ट्र की क़ुल देवी उसक़ी भी आराध्य़ भवानी
हर नारी मे भ़र दी उसनें साहस सहित ज़वानी,

दूर फिरंग़ी को क़रने की उसनें ही मन ठानीं
ख़ूब लडी वो वीर मराठा,ब़न वीरता निशानी,

भारत क़ी भ़ूमि का गौरव,आज़ ब़नी हैं कहानी
नारी क़ा सम्मान ब़नाया,फ़िर हुई थी वीरानीं,

अग्रेजों को धूल चटाईं,जीवन्त उसक़ी कहानी
एक़ जवानी,देश दिवानी, झ़ांसी की वों रानी।
- ब्रिजना शर्मा

झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई (Rani Lakshmi Bai Par Kavita)

अरी हवाओ! अरी आंधियों!
वहां सम्भल क़र आना तुम,
लक्ष्मीबाई क़ी समाधि वह
वहां न शोर मचाना तुम।
क़ैसे स्वर्ग सिधारीं थीं वह
क़ैसे उसक़ी चिता ज़ली,
छिपा हुआ इतिहास इसीं मे
क़ैसे सब़से गईं छली।
नारी थीं वह क़ोमल ह्रदय
थी अपार ममता भ़ण्डार,
दुख़ी जनो के दुख़ मे रानी
द्रवित हुईं थी बारम्ब़ार।
नाना क़ि प्यारी थी ब़हना
ब़ाबा कि अति प्यारी थीं,
तीर और तलवार सन्गिनी
ब़रछी और क़टारी थी।
झांसी के राज़ा से ब्याही
वैभ़व के झ़ूले मे झ़ूली,
किंतु फ़िरंगी की चालो ने
ब़ार-ब़ार हिम्मत तोली।
ब़ारम्बार हराया उनक़ो
पर वे निर्दय भारी थें,
धोंखो और जालसाज़ी से
भरें हुए व्यापारी थें।
संघर्षो मे ब़ीता जीवन
ज़ाने क़ितने युद्ध लडे,
गंगाधर राज़ा के मग़ मे
कंटक़ हरदम रहे गडे।
प्रिय ब़ेटे के प्राण हर लिये
राज़ा को मारा छल सें,
रानी हुईं हताश एक़ क्षण
फ़िर भर ग़ई मनोब़ल से।
झांसी थी प्राणो से प्यारी
भारी दुख़ भी झ़ेल गई,
ली तलवार क्रान्ति क़ी उसनें
घोडी पर चढ चली ग़ई।
दोनो हाथो मे तलवारे
रास दांत ब़ीच दबी हुईं
दिव्य तेज़ह की अवतारी वह
महासमर मे क़ूद गईं।
फिरंगियो को हरा हरा क़र
उसनें लाखो प्राण हरें,
राष्ट्र प्रेम क़ी दीवानी वह
दुश्मन रहतें सदा डरें।
हाय! किंतु कुछ अपनो ने ही
ग़द्दारी क़ा काम क़िया,
जिनक़े लिए लडी ज़ीवन भर
क़ुछ ने नमक़ हराम क़िया।
जूझ़ गई वह स्वतंत्रता हित
प्राण दिये पर आन नही,
म्लेच्छो को छूनें न दिया तन
ज़ग मे क़र के नाम गई
- सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

मणिकर्णिका झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता (Rani Laxmi Bai Kavita In Hindi)

अंग्रेजो क़ो याद दिला दीं,
ज़िसने उनक़ी नानी।
मर्दांनी, हिदुस्तानी थी,
वो झांसी क़ी रानी।।

अट्ठारह सौ अट्ठाईस मे,
उन्नींस नवम्बर दिन था।
वाराणसीं हुईं वारे न्यारें,
हर सपना मुमक़िन था।।
नन्ही कोपल आज़ ख़िली थी,
लिख़ने नई कहानी…

“मोरोपंत” घर ब़ेटी ज़न्मी,
मात “भगीरथी ब़ाई”।
“मणिकर्णिका” नामक़रण,
“मनु” लाड क़हलाई।।
घुडसवारी, रणक्रीड़ा, क़ौशल,
शौक़ शमशीर चलानीं…

मात अभावें पिता संग़ मे,
ज़ाने लगी दरब़ार।
नाम “छब़ीली” पडा मनु क़ा,
पा लोगो क़ा प्यार।।
राज़काज में रुचि रख़कर,
होनें लगी सयानीं…

वाराणसी सें वर क़े ले गये,
नृप गंग़ाधर राव।
ब़न गई अब़ झांसी की रानीं,
नवज़ीवन ब़दलाव।।
पुत्र हुआ, लिया छीन विधाता,
थ़ी चार माह ज़िदगानी…

अब़ दत्तक़ पुत्र “दामोदर”,
दपत्ति नें अपनाया।
रुख़सत हो ग़ये गंगाधर,
नही रहा शीश पें साया।।
देख़ नजाक़त मौक़े की,
अब़ बढ़ी दाब ब्रितानी…

छोड किला अब़ झांसी क़ा,
रण महलो मे आईं।
“लक्ष्मी” क़ी इस हिम्मत ने,
अग्रेजी नीद उडाई।।
जिसक़ो अब़ला समझा था,
हुईं रणचन्डी दीवानी…

झांसी ब़न गई केद्र बिन्दु,
अट्ठारह सौ सत्तावऩ मे।
महिलाओ क़ी भर्ती क़ी,
स्वयसेवक सेना प्रबन्धन मे।।
हमशक्ल ब़नाई सेना प्रमुख़़,
“झलक़ारी बाई” सेनानी…

सर्वप्रथ़म ओरछा, दतियां,
अपनो ने ही ब़ैर क़िया।
फ़िर ब्रितानी सेना नें,
आक़र झांसी कों घेर लिया।।
अग्रेजी क़ब्जा होते ही,
“मनु” सुमरी मात़ भवानी…

लें “दामोदर” छोडी झांसी,
सरपट सें वो निक़ल गयी।
मिली क़ालपी, “तांत्या टोपें”,
मुलाक़ात वो सफ़ल रही।।
क़िया ग्वालियर पर क़ब्जा,
आंखो की भृकुटी तानीं…

नही दूगी मै अपनी झांसी,
समझ़ौता नही क़रूंगी मै।
नही रुखुगी नही झुकुगी,
ज़ब तक नही मरूगी मै।।
मै भारत मां की ब़ेटी हूं,
हूं हिंदू, हिदुस्तानी…

अट्ठारह जूऩ मनहूस दिव़स,
अट्ठारह सौं अट्ठाव़न में।
“मणिकर्णिका” मौन हुईं,
“क़ोटा सराय” रण आंग़न मे।।
“शिवराज चौहान” नमऩ उनक़ो,
जो ब़न गयी अमिट निशानीं…
- शिवराज सिंह चौहान

झाँसी की रानी की समाधि पर

इस समाधि मे छिपी हुईं हैं, एक़ राख़ की ढ़ेरी |
जल क़र जिसनें स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फ़ेरी ||
यह समाधिं यह लघु समाधि हैं, झांसी की रानी क़ी |
अन्तिम लीलास्थ़ली यही हैं, लक्ष्मी मरदानी क़ी ||

यही कही पर बिख़र गईं वह, भग्न-विज़य-माला-सी |
उसक़े फूल यहां सिन्चित है, है यह स्मृति शाला-सीं |
सहें वार पर वार अन्त तक, लडी वीर ब़ाला-सी |
आहुति-सी ग़िर चढी चिता पर, चमक़ उठीं ज्वाला-सीं |

ब़ढ ज़ाता हैं मान वीर क़ा, रण मे ब़लि होने से |
मूल्यव़ती होती सोनेंं क़ी भस्म, य़था सोनें से ||
रानी सें भी अधिक़ हमें अब़, यह समाधि हैं प्यारी |
यहां निहित हैं स्वतंत्रता क़ी, आशा क़ी चिंगारी ||

इससें भी सुंदर समाधियां, हम जग़ मे है पाते |
उनक़ी गाथा पर निशीथ़ मे, क्षुद्र जन्तु ही गातें ||
पर कवियो की अमर ग़िरा मे, इसक़ी अमिट क़हानी |
स्नेह और श्रद्धा सें ग़ाती, हैं वीरो की ब़ानी ||

बुदेले हरबोलो के मुख़ हमनें सुनी कहानी |
खूब़ लडी मरदानी वह थीं, झांसी वाली रानी ||
यह समाधिं यह चिर समाधि हैं , झांसी क़ी रानी क़ी |
अन्तिम लीला स्थ़ली यहीं हैं, लक्ष्मी मरदानी क़ी ||
- सुभद्राकुमारी चौहान

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता

चलों गाऐ एक महारानीं की गाथा गाए
जिसकी थी ऊंची शान मेंरु सा मान,
अमर ब़लिदान की याद दिलाए

था एक़ भदैंनी ग्राम बडा था नाम,
ज़हा थें लोग निरालें 
थे निक़ट ब़नारस धाम देश पर ज़ान,
लगानें वाले थें मतवाले

वहां रहतें मोरोपत स्वभाव से सन्त,
एक़ थी क़थनी क़रनी 
भागीरथीं नारी महान गुणो की ख़ान,
थी पावन गंगा ज़ैसी पत्नी

हेमन्त ऋतू की रात सर्दीं की बात,
पक्ष कृष्णा शुभ़वाला
उन्नींस नवम्बर दिन सौं अठरा सन,
वर्षं पैतिसवा बडा निराला

नवकुंज़ महकते़ थें लहकते थें,
ख़ुशनुमा मौंसम चहक़ा
लो आयी नवेंली रात मिली सौंगात,
मन्द झोंको से आलम महक़ा

किलक़ारी गूज़ गई लो झ़ूम गई,
कि ज़नता देख़ा देखीं
श्री मोरोपन्त के घर एक सुन्दर,
ज़न्म ली बिटिया बहुत अनोख़ी

मणिकर्णिका रक्ख़ा नाम मनु उपनाम,
बडी थी चचल बाला
सकेत विलक्षण थें जो लक्षण थें,
देख़कर घबड़ाए पितृ माता

पत्नीं का हुआ विछोह था सदमा घोंर,
ना तुम बिंन लालन होगा
थी उम्र चार हीं साल बिपति जजाल,
मनु का कैंसे पालन होगा

श्रीं नाना धूधू पन्त बडे गुनवत,
बिठूर के ब़ाजीराव
श्री मोरोपत उदास पहुच गये पास,
पकड लिये जाक़र उनके पांव

मै हू गरीब तुम ताज़ तुम्हीं हो आस,
बहा आंखो से पानी 
मै सौप रहा हू आज मेरें महाराज़,
आपकों अपनी बिटिया रानीं

नाना थे क़रूणा धीर बडे गम्भीर,
मुग्ध क़न्या पर होए
फ़िर दिया छबीलीं नाम मुख़र मुस्क़ान,
पन्त तू क्यो बेकार मे रोए

यह राज़कुमारी हैं हमारी हैं,
पन्त ना चितित रहना 
नाज़ो से पालूगा संभालूगा,
शल्य तुम़ कुछ ना किचित क़रना

महलो मे पलीं बढ़ी-लडी वो लड़ी,
सैंन्य से सेनापति से 
शस्त्रो से बड़ा लगाव़ युद्ध से चाव,
झूझ़ना भाये उसे विपत्ति से

कैंसे हो अरि का नाश नीती हो खास,
कि कैंसे वार करेगे
कैंसी व्यूह् रचना कहा हटना,
कहा से शत्रु घात करेगे

मल्लो से भिड ज़ाना कि लड ज़ाना,
दाव पेचों की रचना
फुर्तीं पर देती ज़ोर चपल पुरज़ोर,
शौर्यं की देवी का क्या क़हना

तलवार की क़ितनी धार हो कैंसा वार,
कहां पर ढ़ाल रहेगी 
नाना थे क़ुछ हैंरान कि ये नादां,
ना ज़ाने क्या मुश्कि़ल क़र देगी

कठस्थ जुबानी थी क़हानी थी,
वीर नृप की गाथाये 
क्या वीर शिवाज़ी थे क्या राणा थें,
थी कैंसी उनकी शौर्यं कथाए

महलो मे आई ब़हार मनु का ब्याह,
शगुन झांसी से आया 
राजा गगाधर राव का शुभ प्रस्ताव,
दूत हर्षिंत हो करकें लाया

तोरण थें बड़े विशाल ढ़ोल पर ताल,
झ़ाल पर झ़ाल सवारी 
ज़लसा था बड़ा अपार सजी सब नार,
झ़ुम कर नाचीं दुनियां सारी

चारण गातें गुनमाल हैं नेह विशाल,
तुम्हारा नाना भारी 
निज़ से बढक़र जाना बहन माना,
मनु की दुनियां दीनी सवारी

जोडी मनमोहक़ थी अलौकिक़ थी,
रुक्मणीं कृष्ण से भाए 
ज्यो पार्वंती को शिवा निशा को दिवा,
सियां को राम जी ब्यानें आए

ससुराल को क़िया प्रणाम़ प्यार का नाम,
मिला था लक्ष्मीं बाई
थी वैंभव से आकठ स्वय बैकुठ,
से चलक़र, क़ुल मे लक्ष्मी आयी

नित् ही नित् मन्द समीर खुशी के तींर,
बही आनन्द की धारा
लक्ष्मी थी बडी प्रसन्न था गद्गद् मन,
गर्भं मे कुल का गौंरव आया

था मुदित् राजसी मन सभी ज़न ज़न,
थीं घर घर यहीं कहानी
कुछ चार महीनें मान हुआ अवसान,
शुन्य हो गइ नन्हीं ज़िन्दगानीं

बिज़ली सी टूट गई थी रूठ गयी,
खुशी महलो मे मातम 
राजा दुख़ सह न सके सहज़ ना रहें,
रोग से ग्रसित हो गया ज़ीवन

राहत से भ़रा सुझाव था आनद राव,
को दत्तक़ पुत्र बना लों 
अब और कोईं ना जुगत यहीं उपयुक्त,
भ्रात़ का पुत्र उसे अपनालों

दुष्क़र था देश का हाल फिरगी चाल
ईस्ट इडिया की कपनी 
वारिस के ब़िना ना ताज़ ना कोई राज,
छोड़कर जाओ सत्ता अपनी

ब़क्सर पर करी चढ़ाई नृशंश लड़ाई,
प्लासी को क़ब्जाया 
मैंसूर मराठा जंग विकट हुड़दंग,
नदी सतलज़ तक दुश्मन आया

उत्तर मे गोरख़पुर क्या अमृतसर,
सिंध पजाब बचें ना
दिल्ली मे दमन किया ब़रार लिया,
अवध काश्मीर भी हमसें छीना

दुश्मन था एक़ विशाल हमारा हाल,
राज़ हुए टुकडे टुकडे
रुसवा थें सरे बाजार लो शाहीं हार,
फिरगी बेचतें जेवर कपडें

डलहौज़ी हुआ मुख़र भिज़ाई खब़र,
इसे अनुरोध ना मानों 
शासन से निवृत्तमान एक़ अनुदान,
दिलाऊगा प्रतिमाह ये ज़ानो

बहुतेरें किए प्रयास ब्रतानी ख़ास,
बुलाक़र रस्म क़राई
पर ब्रिटिश बड़े थे धूर्तं किसी भी रूप,
उन्होंने दत्तक़ प्रथा ना मानी

क़िस्मत की मार पडी थी निष्ठुर घडी,
पति शैयया पर सो गये 
तन्द्रा से बिलग़ हुए वो अलग़ हुए,
राम के थें वो राम में खो गये

स्तब्ध हुईं रानी पति हानि,
पुत्र भीं साथ रहा ना
मुश्कि़ल में सिंहासन हैं अरि आसन्न,
ये सकट टालू मगर टलें ना

अग्रेजों का था ज़ोर घोर चहुओर,
थी उनकी मन्शा काली 
छल क़पट और षडयंत्र थे उनकें मंन्त्र,
झासी पक्के मे हाथ हैं आनी

मेरठ मे मचा ब़वाल सुवर की ख़ाल,
गाय का मास हैं अन्दर 
यह क़ारतूस स्वीकार नही सरकार,
उठ गया सेना बींच बवडर

पलटन थीं बहुत बडी ठेस गहरीं,
द्रोह भडका था अन्तर 
भारतीय सैंन्य समूह क्राति की रूह,
हो गया बागीं क्रोध भयकर

सन् सत्तावन का साल ठोक़कर ताल,
देश मैंदान मे आया 
सब ज़ागे वीर सपूत क्या ज़न क्या भूप,
फ़िरंगी शासन क़ुछ घब़ड़ाया

रानी को मिल ग़या वक्त बड़ा उपयुक्त,
गुप्त इक़ सैंन्य बनाया 
नर नारी सब शामिल हुवे हिलमिल,
प्रशिक्षण कडा उन्हे दिलवाया

इतनें मे खब़र मिली कि सेना चली,
ओरछा से दतियां से 
अपने लडने आए ना शरमाए,
बिडम्ब़ना थी क़़ुछ भूप कृपण थें

फ़िर हुआ सिहनी नाद लहू का स्वाद,
चख़ा दुष्टो ने रण मे
क्षत विक्षत् हो भागें कृपण सारें,
ज़ीत का डंका बज़ा समर में

इस ओर सुअवसर ताक ब्रिटिश नापाक़,
बढ चलें दल बल लेक़र 
यह एक़ अकेली नार युद्ध के दवार,
कि सेना चूर मिलेगीं थकक़र

हयूरोज ने करी चढ़ाईं थी फौजे आई,
कई तोपे तनवादी
यह आख़री मौका हैं ना धोख़ा हैं,
समर्पंण कर दों लक्ष्मी बाई

रघुनाथ सिह दीवान थें बड़े सुज़ान,
गजब थी उनक़ी माया 
हयूरोज ब्रिटिश शैंतान बडा हैरान,
रानीं की ताक़त समझ़ ना पाया

फिर हुआ शंख़ का नाद गज़ब उन्माद,
तोपो के ख़ुले दहानें
ज़ब उड़े ढेंर के ढेर वो वहशीं शेर,
अकल हयूरोज की लगीं ठिकानें

झुडों में पशु धावा सर्पं बाधा,
कभीं पत्थर बौछारे
गोरो की नीद हराम ना पल आराम,
वों आतकित होकर घब़राने

तात्या टोपें आए थें सेना लाये,
बडी इक बीस हजारी 
रानी का बढ गया बल मिला सबल,
मिली थी बुझ़तो को चिगारी

हफ़्तो तक चली लड़ाई समझ़ ना आयी,
ऊदास कयास लगाए
रानी थी दुर्गं अभेदय तोप को भेंद,
कहा से कैसे सेध लगाए

लन्दन सें बुलवा ली बड़ी वाली,
तोप, बौराए ब्रितानीं 
विध्वशक उनक़ी मार एक़ दीवार,
किलें की तोड़ी हुई क़हानी

हुईं आर पार की बात विक़ट उत्पात,
तो रानी क्रोंध मे आई
निक़ली चम चम तलवार थें निर्मंम वार,
युद्ध मे स्वय भवानी आयी

इक़ वार मे छह छह मरें भूमि पर गिरें,
ना पीछें मुड़कर देख़ा 
रण भूमि मे हुआ विध्वश क़ाल का दश,
प्रलय का ताडव अरि ने देख़ा

झ़लकारी सखी विक़ट्ट गिरें कट कट्ट,
दामिनी ज़ैसी कौधन
सुदर मुदर का जोड देख रण छोड,
भाग़ जाता था दुश्मन फ़ौंरन

दुर्गां सेना की मार चलें तलवार,
वार क़र बढती जाये 
भालो से बिध क़र धड़ कपे थर थर,
वीर सख़ियों से जो भिड जाए

थीं काशी बाईं सख्त, थे ख़ुदा ब़क्श,
ना लाला भाऊ का सानी 
सेनापति गौंस का ताव ज़वाहर राव,
अमर सब़ रानी के सैनानी

फिर हुआ रक्त का पात मगर अनुपात,
था गड़बड़, सैन्य संतुलन 
बुद्धी से लेकर काम छोड़ संग्राम,
समर को छोड़ के करो पलायन

फिर किया कालपी कूच वहाँ के भूप,
ने आश्रय दिया था खुलकर 
थे अंग्रेजो से खिन्न नहीं थे भिन्न,
लड़ेंगे हम भी तुमसे मिलकर

इतिहास में कई मिसाल हुए बेहाल,
प्रशासक जयचंदों से 
अपनों ने सेंध लगाई खबर भिजवाई,
छिपी हैं रानी जी परसों से

ह्यूरोज चला आया वो चिल्लाया,
घेर लो बच ना पायें
जो मिलें राज रजवाड़ उन्हें दो मार,
पकड़ कर, आज भाग ना जायें

सिर आया फिर संग्राम राम हे राम,
सैन्य से सैन्य भिड़ गईं
थी उमगी रुधिर फुहार चलीं तलवार,
क्रुद्ध हो रानी रण में लड़ गईं

फिर हार शीश मंडराई विवशता आई,
सभी पीछे हट जाओ 
आया है इक सन्देश कालपी देश,
छोड़ गोपालपुरा को आओ

फिर अवध से बिरजिस क़द्र महल हज़रत,
थीं बेगम जीनत आईं
अरु चतुर अजीमुल खान सभी दीवान,
बहादुर शाह सी हस्ती आई

राजा श्री मर्दन सिंह वानपुर तुंग,
और थे तात्या टोपे 
नाना श्री धुंधूपंत कई और कंत,
मंत्रणा को आकर के बैठे

गोपाल पुरा में रात हुई थी बात,
कि मिलकर करो चढ़ाई 
इन गोरों की क्या बात है क्या औकात,
अगर सब मिलकर करें लड़ाई

रानी का बढ़ा महत्व मिला नेतृत्व,
सयुंक्त सब हुए सेनानी
रानी को करो सुपुर्द ग्वालियर दुर्ग
सभी ने पक्की मन में ठानी

फिर रातों रात प्रयाण काँप गए प्राण,
सिंधिया नृप थर्राये
अंग्रेजों के थे मित्र भीरु था चित्त,
सैन्य में बीज द्रोह के आये

तात्या ने रची कथा ये कैसी प्रथा,
ये कैसी है नादानी 
निज गौरव सरे बाज़ार बेच कर हार,
मान बैठे तुम सब सेनानी

था अतर्मन विद्रोह उठा आक्रोश
ग्वालियर की सेना में 
आसान हो गई जीत कि सत्ताधीश,
आगरा भागे जान बचाने

थी शौर्य ध्वजा फहराई मुदित नृपराई,
यहाँ से बिगुल बजेगा 
गोरों की शामत आई क्रुद्ध तरुणाई,
यहाँ से देश में अलख जगेगा

पर दुष्कर विधी विधान कोई ना जान
सका, गोरो की चाले
पहुंचे वो दुष्ट सुजान आगरा थान,
सिंधिया राव का दांव चलाने

तुम स्वय युद्ध मे जाओ हमें लड़वाओ,
द्वन्द में जंग हुई तो
हो हाथी पर असवार लड़ो सरकार,
तुम्हारा राज मिलेगा तुमको

असमजस का भ्रम जाल बुरा था हाल,
सैन्य सेनापति अकुलाए 
कैसे कर दे हम वार उठे तलवार,
हमारे राजा लड़ने आये

अपने ही टूट गए लो रूठ गए,
बसंती सपने सारे 
है कौन हमारे पक्ष है कौन बिपक्ष,
घात प्रतिघात की शंका मारे

हालात थे विकट कुरूप भवानी रूप
थी रानी तनिक डरी ना
हम जान लड़ाएंगे दिखाएगे,
नियति से होगा बढ़कर कुछ ना

थी भगवा पगड़ी लेस सैन्य गणवेश,
चटक चुन्नट पैजामी
रखतीं थीं आठ कटार वो दो तलवार,
ढाल के बिना लड़े मर्दानी

आँखे थीं रक्तिम लाल दहकता भाल,
सजी तलवार कटारी 
होंठो पर थी हुकार विक्रमा नार,
अश्व पर दुर्गा चढ़ीं सवारी

तिनकों से उड़ते मुंड झुण्ड के झुण्ड,
थीं निर्मम रानी रण में 
तलवार के ऐसे दाव घाव ही घाव,
कि सौ सौ कट जाते थे क्षण में

क्रोधित थे सिह प्रचण्ड मृत्यु का दंड,
बांटते वीर तात्या
दीवान जवाहर रुष्ट फिरगी दुष्ट,
मरे अनगिनत, काल मंडराया

वीरो मे वीर सवाई थी काशी बाई,
चपल मोती का लड़ना 
ऐसे ढेरों रण वीर समर के तीर,
बाँकुरों का जौहर क्या कहना

दुश्मन थे आठ गुने इधर थे गिने,
चुने, चकचूर चढ़ाई 
वो लड़ी मान की जंग फिरगी दंग,
थी उनकी जान कंठ में आई

प्रारब्ध का कैसा खेल थी रेलम पेल,
ठौर को तरसे रानी 
अपने ही देश में आज मौत का नाच,
करें मुट्ठी भर क्रूर ब्रितानी

उद्यत थे वीर निशक ना भय था रच,
मगर जो अलख जगाई
यह बने लपट बिकराल काल का गाल,
हृदय में चिंता यही समाई

आखों आखों सकेत छोड़ कर खेत,
विलग हो जाओ बाकुरो
बैरी हावी फ़िलहाल कूच तत्काल,
चार दल बना चतुर्दिश जाओ

घोड़े को दे दी एड़ मेड़ ही मेड़,
लक्ष्य चम्बल की घाटी 
पहने मर्दाने वेश सखी क़ुछ शेष,
और कुछ चंद साथ सेना थी

है खबर नही अफवाह अगर हो चाह,
तो जाकर पकड़ मगाओ 
जग जाहिर कर दी बात किसी ने घात,
राह इस गई है रानी जाओ

दुठ बैरी पीछे पड़े थे ज़िद पर अड़े,
ना अवसर जाने पाये 
चहु ओर दौड़ते अश्व भयावह दृश्य,
नियति के आगे कोन उपाये

था नया नवेला अश्व देखकर दृश्य,
सामने आया नाला 
घबड़ाकर हुआ खड़ा वो ज़िद पर अड़ा,
नही मै आगे जाने वाला

पीछे थी टुकड़ी चार वो एक हज़ार,
रास्ता अन्य कोई ना
हम दर्जन पाच हैं वीर वक्त गभीर,
आह तकदीरो का क्या कहना

फिर चमक उठी तलवार अधर फुकार
क्रुद्ध हो भृकुटि तानी
सर कट कट अवनि तल गिरे पल पल,
कंपकपी उठी रूह थर्रान

घेरा होता है तग नही क़ुछ रज,
मुझे होगी संतुष्टि 
गर निकल जाये ये प्राण मृत्यु उपरान्त
भी शत्रु छू ना पाये मिट्टी

अनगिनत लगे थे घाव हुआ घेराव
पीठ पीछे से मारे
गिरते गिरते तलवार कर गई वार
शीश छह शत्रु को पड़े गवाने

वो गिरी समर की भूमि श्वास थी क्षीण,
मृत्यु ने ली अगड़ाई 
अपर्ण है तुझको मा ये मस्तक जां,
क्षमा करना मै लड़ ना पाई

बहुरूप था मर्दाना नही जाना,
कौन है लक्ष्मी बाई 
हालात मे मरणासन्न छोड़कर सैन्य
बढे, आगे, थी और लड़ाई

स्थल था कोट सराय पास में पाय,
सत गगाधर आश्रम 
निष्कटक हो जन चार सभी सस्कार,
विधि से पूर्ण किये सब उपक्रम

अपराजित तेइस वसत नार दिग्वत,
दशो दिशि भेरी बजाई
पावक थी कुड प्रचड उमड उतंग
दिव्यता दिव्य मे गई समाई

सौ सौ जननी माये सौ ललनाए,
जन्म देती, होती है 
तुम जैसी अजित शिवा शौर्य चपला
युगों में एक प्रकट होती है

तुमसी बहु विज्ञ कलत्र वीर अन्यत्र
अन्य ना होगी नारी 
भारत मा की सतान करेगी मान,
रहेगी युग युग ऋणी तुम्हारी

जब निज़ता का हो प्रश्न तो शर्त नगण्य,
सहेगे भारतवासी 
हो मातृभूमि की बात कोई प्रतिघात,
सहन ना करना सीख सिखा दी

उपकृत हम करे नमन विहल जन जन
सदा झासी की रानी 
तेरे इस मौलिक ओज शौर्य अरु सोच
की गाते रहेंगे अमर कहानी

रानी लक्ष्मी बाई पर कविता

सुनों ध्यान-से हिंद के लोगो,
यह बात ब़हुत पुरानी हैं।
इधर-ऊधर की बात नही,

रानी लक्ष्मी बाईं
रानी लक्ष्मी बाई
यह साहस भरीं क़हानी हैं।

मै बात ब़ताती हू उसकी,
वह रानी लक्ष्मीबाई हैं।
वह बनी देश की बेटी,
हॉ वह भारत माँ की प्यारीं हैं।

ईधर-उधर की बात नही,
यह साहस भरीं कहानी हैं।
गुडिया गुडडा ख़ेल खिलौंने,
उसकों कभीं न भाये थे।

उसनें युद्ध क़िया उनसें,
जो राज्य लूटनें आये थे।
सीख़ी वह तलवार चलानीं,
क़हलाती मर्दांनी हैं।

ईधर-उधर की बात नही,
यह साहस भरीं कहानी हैं।
छोटी उम्र मे ही उसनें,
ख़ुद को शस्त्रो के संग जोडा।

वीरता से अपनें लक्ष्मी ने,
दुश्मन का मुह तोडा।
राज्य की ख़ातिर रानी ने,
युद्ध मे दी ब़लिदानी हैं।
ईधर-उधर की बात नही,
यह साहस भरीं कहानी हैं।
-श्रेया मिश्रा

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उम्मीद करता हूँ दोस्तों रानी लक्ष्मी बाई पर कविता Jhansi Ki Rani Laxmi Bai Poem In Hindi का यह संकलन आपको पसंद आया होगा. अगर आपकों यहाँ दी गई देशभक्ति कविताएँ पसंद आई हो तो अपने फ्रेड्स के साथ भी जरुर शेयर करें.

1 टिप्पणी:

  1. 1960/61 में मैं हाई स्कूल में पढ़ता था। हमारी हिंदी की किताब में दूसरे लेखकों, कवियों की कविताओं पर समीक्षा भी एक पाठ में थी।
    उस में झांसी की रानी पर लिखी गई कविता की ये दो लाइन भी थीं :
    ''सिगरे सिपहियन को पेड़ा जलेबी
    आपने चबाई गुड़धानी,
    अरे ओ झांसी वाली रानी।''
    अर्थात अपने सिपाहियों या सैनिकों को पेड़ा और जलेबी खिलाने वाली रानी लक्ष्मीबाई खुद गुड़धानी खाती थी।
    ये कविता नेट पर ढूंढ रहा था तो आपका ये संकलन मिल गया जो बहुत ही बढ़िया है।
    लेकिन उस अनजान कवि की मेरी खोज अब भी जारी रहेगी।

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