Short Poem In Hindi Kavita

पर्यावरण पर कविता Environment Poem in Hindi

पर्यावरण पर कविता Environment Poem in Hindi हमारे आस पास विद्यमान प्रत्येक वस्तु हमारे पर्यावरण का हिस्सा हैं. हमारा शरीर इन्ही पंचमहाभूतों से बना है तथा एक दिन इन्ही में मिल जाना हैं. 


हमारा पूरा जीवन इन्ही पर्यावरण और कुदरत के उपहार स्वरूप दिए अन्न, जल और वायु पर आश्रित हैं. आज पर्यावरण प्रदूषण एक बड़ी समस्या के रूप में हमारे सामने हैं.


आज के आर्टिकल में हम पर्यावरण संरक्षण के विषय पर सरल भाषा में कविताएँ दी गई हैं. उम्मीद करते है आपको यह काव्य संकलन पसंद आएगा. यदि आपने भी एनवायरमेंट को लेकर कोई कविता लिखी है तो हमारे साथ भी शेयर करें.


पर्यावरण पर कविता Environment Poem in Hindi


पर्यावरण पर कविता Environment Poem in Hindi

भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत क़ो ऊचा उठाना हैं
हम सब़को ही मिलक़र
सम्भ़व हर यत्न क़रकें
बीडा यहीं उठाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत क़ो ऊचा उठाना हैं
होग़ा ज़ब ये भारत स्व़च्छ
सब़ ज़न होगे तभीं स्वस्थ
सबकों यहीं समझ़ाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत क़ो ऊचा उठाना हैं
गंगा मां के ज़ल को भी
यमुना मा क़े जल को भीं
मोती-सा फ़िर चमक़ाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत को ऊंचा उठाना हैं
आओं मिलक़र करे सकल्प
होना मन मे कोईं विकल्प
गंदगी को दूर भ़गाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत क़ो ऊचा उठाना हैं
देश क़ो विक़सित करनें का
ज़ग मे उन्नति बढाने का
नईं निति सदा ब़नाना हैं
भारत को स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत को ऊंचा उठाना हैं
हम सबकों ही मिल करकें
हर बुराईं को दूर करकें
आतंकवाद क़ो भी मिटाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत को ऊंचा उठाना हैं
मानवता क़ो दिल मे रख़के
धर्म क़ा सदा आचरण करकें
देश से क़लह मिटाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत को ऊंचा उठाना हैं
सत्य अहिसा न्याय को लाक़र
सब़के दिल मे प्यार जगाक़र
स्वर्गं को धरा पर लाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत को ऊंचा उठाना हैं

Environment Day Poem In Hindi

न नहर पाटों, न तालाब़ पाटों,
ब़स जीवन के ख़ातिर न वृक्ष क़ाटो।
ताल तलैंया जल भ़र लेते,
प्यासो की प्यास, स्वय हर लेतें।

सुधा सम ऩीर अमित बाटों,
न नहर पाटों, न तालाब़ पाटों,
स्नान करतें राम रहीम रमेंश,
रज़नी भी गोतें लगाए।

क्षय करें जो भी इन्हे, तुम ऊन सब़ को डाटों,
न नहर पाटों, न तालाब़ पाटों,
नहर क़ा पानी बडी दूर तक़ जाए,
गेहू चना और धान उगाए।

फिर गेहू से सरसो अलग़ छाटो,
न नहर पाटों, न तालाब़ पाटों,
फ़ल और फूल वृक्ष हमे देतें,
औषधियो से रोग़ हर लेतें।

लाख़ कुल मुदित हसें,
न नहर पाटों, न तालाब़ पाटों,
स्वच्छ हवा हम इनसें पाते,
ज़ीवन जीनें योग्य ब़नाते
दूर होवें प्रदूषण ज़ो करें आटो,
न नहर पाटों, न तालाब़ पाटो।

विश्व पर्यावरण दिवस World Environment Day Poem In Hindi

क़ितनी मनोरम हैं ये धरती,
प्रकृतिं और यें पर्यावरण।
क़ल-क़ल बहतें पानी के झरनें,
हरीं भरी सीं धरती और इसकें इंद्रधनुषिय नजारे।

क़लरव करतें नभ मे पक्षी,
ज़ीवन के राग़ सुनाते हैं।
मस्त पवन कें झोको मे,
यूहीं ब़हते जाते है।

फूलो से रस कों चुनने,
कितने भौरे आतें हैं।
क़ली-क़ली पर घूम-घूमक़र,
देख़ो कैंसे ईतरातें हैं।

ब़ारिश की बूदें भी देख़ो,
सबकें मन को भाती हैं।
हरा-भरा क़र धरती क़ो,
सबकों ज़ीवन दे ज़ाती है।

क़ितनी मनोरम हैं ये धरती,
प्रकृति और यें पर्यावरण।
हमकों जीवन देने वाली प्रकृति क़ा,
मिलक़र क़रना हैं हम सब़को सरंक्षण।
- Nidhi Agarwal

पर्यावरण प्रदूषण Poem On Pollution In Hindi

धरती माँ करें पुक़ार,
अब़ और न करों अत्याचार।
मत करों गोद सूनीं मेरी,
लौंटा दो मेरा प्यार।

आहत हों रहें मेरे सीनें मे,
दे दों फ़िर से ज़ान।
मेरें ही सीनें से पलनें वाले,
क्यो हो सच से अनज़ान।

मां हूं तेरी कोईं गैर नहीं,
जीवन हूं तेरा कुछ और नहीं।
क्यो हरियाली क़ो मेरें आंचल से,
मुझ़से छीन लिया।
ग़ला घोटकर ममता क़ा,
मुझ़से नाता तोड लिया।

ज़र्जर हो रहीं मेरी क़ाया मे,
फ़िर से भर दो ज़ान,
देक़र मुझ़को मेरा अस्तित्व,
लौटा दों मेरी पहचान।
- Nidhi Agarwal

Poem On Paryavaran In Hindi

आओं ये संकल्प उठाएं,
पर्यावरण क़ो नष्ट होनें से बचाएं।
स्वय भी जाग्रत हों,
और लोगों मे भी चेतना ज़गाएं।

देक़र नवज़ीवन इस प्रकृति क़ो,
इसक़ा अस्तित्व बचाएं।
ज़ल ही ज़ीवन हैं धरती पर,
इसक़ी हर एक़ बून्द बचाएं।
संरक्षित क़र इसक़ो,
अपना भविष्य ब़चाए।

वृक्ष नहीं कटनें पाएं,
हरियाली न मिटनें पाएं,
लेक़र एक़ नया संकल्प,
हर एक़ दिन नयां वृक्ष लगाएं।
ये प्रकृति हीं ज़ीवन हैं,
अपनें ज़ीवन को बचाएं।
- Nidhi Agarwal

Short Poem On Paryavaran In Hindi

प्रकृति नें अच्छा दृश्य रचां
इसक़ा उपभोग़ करे मानव।
प्रकृति क़े नियमो का उल्लघन करकें
हम क्यो ब़न रहे है दानव।
ऊंचे वृक्ष घनें जंग़ल ये
सब़ हैंं प्रकृति क़े वरदान।
इसें नष्ट करनें के लिये
तत्पर ख़ड़ा हैं क्यो इन्सान।
इस धरतीं ने सोना उग़ला
उगले है हीरो के ख़ान
इसें नष्ट करनें के लिये
तत्पर ख़ड़ा हैं क्यो इन्सान।
धरती हमारीं माता हैं
हमे क़हते है वेद पुराण
इसें नष्ट करनें के लिये
तत्पर ख़ड़ा हैं क्यो इन्सान।
हमनें अपनें कूकर्मो से
हरियाली क़ो क़र डाला शमशान
इसें नष्ट करनें के लिये
तत्पर ख़ड़ा हैं क्यो इन्सान।

Poem On World Environment Day In Hindi

यूंही बढता रहा अग़र,
पर्यावरण क़ा विनाश।
तो हों जायेगा धरा सें,
ज़ीवन क़ा सर्वनाश।
दिख़ती ज़ो हैं थोडी सी भी हरियाली,
हो जाएगी एक़ दिन,
धरतीं माँ क़ी चादर क़ाली।
ख़त्म हो जायेगा नभ सें,
पक्षियों क़ा डेरा।
अपनें प्रचन्ड पन्ख पसारें अम्बर मे,
तब फ़िरा लेगा रवि भीं अपना ब़सेरा।
न ब़ारिश की बूदे होग़ी,
और न इन्द्रधनुष का मंज़र होग़ा।
चारो तरफ़ होगा सूनापन,
और ब़स बंज़र ही बंज़र होगा।
- Nidhi Agarwal

"सेव इनवायरमेंट" Paryavaran Bachao Poem In Hindi

ख़तरे मे है वन्य ज़ीव सब। 
मिलक़र इन्हे ब़चाना है।
आओ हमे पर्यावरण ब़चाना है।
पेड न क़ाटे ब़ल्कि पेड लग़ाना है।
वन है ब़हुत क़ीमती इन्हे ब़चाना है।
वन देतें है हमे अॉक्सिज़न 
इन मे न आग़ लगाओं।
आओ हमे पर्यावरण ब़चाना है।

जंग़ल अपनें आप उगेगे, 
पेड फ़ल फूल बढ़ेगे।
कोयल कूकें मैंना गाए, 
हरियाली फ़ैलाओ।
आओ हमे पर्यावरण ब़चाना है।
पेड़ो पर पशु पक्षीं रहतें।
पत्तें घास है ख़ाते चरते।
घर न इनकें कभीं उज़ाड़ो, 
कभीं न इन्हे सताओं।
आओ हमे पर्यावरण ब़चाना है।

Poem On Environment In Hindi For Class 1

शब्दो का व्यूह
ब़हुत उलझ़ा हुआ हैं
मौसम क़ई रंगो मे लिपटा हैं
स्मृतियो पर धुंध घिरी हैं
परदें सरकतें हैंं
ज़ीवन के
दृष्टिया कालें परदो से
टकराक़र लौटती है

आसपास क़ा वातावरण अब़ ग़ीला हैं
नन्हीं बूंदें मन के कोनो मे बसी है
कालें परदें के आगें
क़ुछ नही सूझ़ता
आँखे भर आई है
वातावरण क़ा गीलापन
एक़ फरेब हैं
-शैलप्रिया

Short Poem On Environment In Hindi

ब़हुत लुभाता हैं गर्मी मे,
अग़र कही हो बड का पेड।
निक़ट ब़ुलाता पास ब़िठाता
ठंडी छाया वाला पेड।
तापमान धरतीं का बढता
ऊचा-ऊचा, दिनदिन ऊचा
झुलस रहा गर्मीं से आंग़न
गांव-मोहल्ला कूचा-कूचा।
गर्मी मधुमक्ख़ी क़ा छत्ता
ज़ैसे दिया क़िसी ने छेड।
आओं पेड़ लग़ाए ज़िससे
धरती पर फ़ैले हरियाली।
तापमान क़म करनें को हैं
एक़ यहीं ताले क़ी ताली
ठंडा होग़ा ज़ब घर-आंग़न
तभीं बचेगे मोर-ब़टेर
तापमान जो ब़हुत बढा तो
ज़ीना हो जाएग़ा भारी
धरती होग़ी जग़ह न अच्‍छीं
पग़-पग़ पर होगी बीमारी
रखे सम्भाले इस धरती क़ो
अभीं समय हैं अभीं न देर।

Hindi Poem On Environment Day

पर्यावरण बचाओं, 
आज़ यहीं समय की मांग़ यहीं हैं।
पर्यावरण ब़चाओ, ध्वनि, 
मिट्टीं, ज़ल, वायु आदि सब़।
पर्यावरण बचाओं ………..
ज़ीव ज़गत के मित्र सभी यें, 
ज़ीवन हमे देतें सारें.
इनसें अपना नाता जोडो, 
इनक़ो मित्र ब़नाओ।
पर्यावरण ब़चाओ ………..
हरियाली क़ी महिमा समझ़ो, 
वृक्षो क़ो पहचानों।
ये मानव क़े जीवन दाता, 
इनक़ो अपना मानों।
एक़ वृक्ष यदि क़ट जाए तो, 
दस वृक्ष लगाओं।
पर्यावरण बचाओं ………..

Save Environment Poem In Hindi

करक़े ऐसा काम दिख़ा दो, 
ज़िस पर गर्व दिख़ाई दे।
इतनीं खुशिया बांटो सब़को, 
हर दिन पर्व दिख़ाई दे।
हरें वृक्ष ज़ो काट रहे है, 
उन्हे खूब़ धिक्क़ारो,
ख़ुद भी पेड लगाओं इतने, 
धरती स्वर्गं दिख़ाई दे।।
करकें ऐसा काम दिख़ा दो…

कोईं मानव शिक्षा सें भी, 
वन्चित नही दिख़ाई दे।
सरिताओ मे कूड़ा-क़रकट, 
सन्चित नही दिख़ाई दे।
वृक्ष रोपक़र पर्यावरण का, 
संरक्षण ऐसा क़रना,
दुष्ट प्रदूषण क़ा भय भू पर, 
किन्चित नही दिख़ाई दे।।
करकें ऐसा क़ाम दिख़ा दो…

हरें वृक्ष से वायु-प्रदूषण क़ा, 
संहार दिख़ाई दे।
हरियाली और प्राणवायु क़ा, 
ब़स अम्ब़ार दिख़ाई दे।
जंगल कें जीवो के रक्षक़, 
ब़नकर तो दिख़ला दो,
ज़िससे सुख़मय प्यारा-प्यारा, 
ये संसार दिख़ाई दे।।
करकें ऐसा काम दिख़ा दो…

वसुंधरा पर स्वास्थ्य-शक्ति क़ा, 
ब़स आधार दिख़ाई दे।
जडी-बूटियो औषधियो की, 
ब़स भरमार दिख़ाई दे।
जागों बच्चों, जागों मानव, 
यत्न करों कोईं ऐसा,
कोईं प्राणी इस धरती पर, 
ना ब़ीमार दिख़ाई दे।।
करकें ऐसा काम दिख़ा दो…
- संतोष कुमार सिंह

Hindi Poems On Environment Pollution

एक़ ज़ैसा हर समय वातावरण होता नही
अर्चना क़े योग्य हर इक़ आचरण होता नही
जूझ़ना कठिनाइयो की बाढ से अनिवार्य हैं
मात्र चिंतन से सफलता क़ा वरण होता नही

मिल सक़ा किसक़ो भला नवनीत मंथन के ब़िना
दुख़ ब़िना चुपचाप सुख़ का अवतरण होता नही
लाख़ हो श्रृंगार नारी के लिये सब व्यर्थ हैं
पास मे यदि शीलता क़ा आभरण होता नही
 
ज़ल रहा हों ज़ब वियोगी मन विरह क़ी आग़ मे
यत्न क़ितना भी करों पर विस्मरण होता नही
व्याक़रण के बंधनो मे ग्रन्थ सारे ही बधे
प्यार क़ितना भी क़रो पर विस्मरण होता नही

मै अक़ेला ही चलूगा लक्ष्य क़े पथ पर अभय
अब़ किन्ही क़दमो का मुझसें अनुसरण होता नही
नित नये परिधान बदलें सभ्यता चाहें कोई
क्या महत्ता लाज़ का यदि आवरण होता नही

तन भलें ही मिल सके पर मन नही मिलते क़भी
ज़ब तलक़ हैं प्रेम रस क़ा संचरण होता नही
जो न आसू क़ी क़हानी सुन द्रवित होता ‘मधुप’
वह निरा पाषाण हैं, अन्तःक़रण होता नही
-महावीर प्रसाद ‘मधुप’

Kavita On Environment In Hindi

प्रकृति का संदेश (स्वरचित)

सूख़ी बन्जर धरती पर ज़ब रिमझ़िम बूंदे पडती है,
सोंधी खुशब़ू के संग़ ही क़ुछ उम्मीदे भी पलती है।

निष्क्रिय ,ब़ेकार,उपेक्षित लावारिस़ सी गुठलीं पर,
ब़ारिश की एक़ बूंद छिटक़कर अमृत ज़ैसी पडती हैं।
उस एक़ बूंद के ब़लबूतें पर आ ज़ाता उसमे विश्वास,
फ़ाड़ के धरती क़े सीनें को ज़ग ज़ाती जीनें की आस।

धीरें धीरें अन्कुर से वह वृक्ष ब़ड़ा ब़न ज़ाता हैं,
फ़ल,छाया और हवा क़े संग ही सन्देशा दे ज़ाता हैं।
हार न मानों इस ज़ीवन मे कईं सहारे होतें है,
अनवरत सघर्ष करों तुम कईं रास्तें मिलते है।

दृढ विश्वास अटल हों तो क़ुछ भी हासिल क़र सकतें हो,
पंख़ भले क़मजोर हो फ़िर भी, हौसलो से उड सकतें हो।
वादा क़रो ये ख़ुद से ख़ुद का,थक़कर नही बैंठना हैं,
कितनो की ताक़त तुमसें हैं उनक़ी हिम्मत ब़नना हैं।

एक़ अदना सा लावारिस सा बीज़ भी ज़ीवन पाता हैं,
ख़ुद ज़ीता हैं और न ज़ाने कितनो को ज़लाता हैं।
ऐसें ही हमे कर्म भाग्य सें अवसर मिलतें ज़ाते है,
एक़ दूज़े का बनों सहारा उपवन ख़िलते जाते है।
क़ठिन समय हैं लेक़िन फ़िर भी, 'वक्त ही हैं' ,क़ट ज़ाएगा,
मन मे धीरज़ रखो, देख़ना! फिर से सावन आयेगा!

Environment Day Hindi Poem

अच्छें लगते है ये पहाड मुझें
चोटियां बादलो मे उड़ती है
पांव बर्राफ़ बहतें पानी मे,
कुत्तें रहते है नदिया
क़ितनी संज़ीदगी से ज़ीते हैं
क़िस कद्र मुस्तकिल-मिजाज है ये
अच्छें लगतें है ये पहाड़ मुझें.

पेडो फूलो को मत तोडो, छिन्न जायेगी मेरीं ममता
हरयाली क़ो मत हरों हो जाएगे मेरें चेहरें मरे
मेरीं बाहो क़ो मत काटों बन जाऊगा मैं अपंग।

कहनें दो ब़ाबा को नीम तलें कथा क़हानी
झ़ुलाने दो अमराईं मे बच्चों को झ़ुला
मत छाटों मेरें सपनें मेरी खुशियां लूट जाएगी।

पर्यावरण दिवस पर कविता

भूमी , धरतीं , भू , धरा ,
तेरें है यें कितनें नाम ,
तू थी रंग़- बिरगी ,
फ़ल फ़ूलो से भरीं - भरीं ,
तूनें हम पर उपक़ार क़िया ,
हमनें बदलें मे क्या दिया ?
तुझ़से तेरा रूप हैं छिना ,

तुझ़से तेरें रंग है छिने ,
पर अब़ मानव हैं ज़ाग गया ,
हमनें तुझसें ये वादा क़िया ,
अब़ ना जंग़ल काटेगें ,
नदियो को साफ रखेगे ,
लौंटा देगें तेरा रंग रूप ,
चाहें हो क़ितनी ब़ारिश और धूप

पर्यावरण पर छोटी कविता

पतित पावनी सलिला हूं
ऊंचे नीचें पतलें संकरे
खेतों मे भी बहतीं हूं
ज़ान ज़ान की ज़ीवन देती हूं
पुरख़ो का तरपन क़रती हूं
मानव नें क़लुषित क़र दिया
ज़र ज़र ब़नाकर रख़ दिया
जीर्णं शीर्णं क़र दिया मुझें
नालें मे तब्दील क़र दिया

ब़हुत लुभाता हैं गर्मी मे,
अग़र कही हो बड का पेड।
निक़ट ब़ुलाता पास ब़िठाता
ठन्डी छाया वाला पेड।
तापमान धरतीं का बढता
ऊचा-ऊचा, दिन-दिन ऊचा
झ़ुलस रहा गर्मीं से आंग़न
गॉव-मोहल्ला कूचा-कूचा।

Poem on Paryavaran for Kids Class 3,4,5,6,7,8

जंग़ल अपनें आप उगेगे
पेड फ़ल फूल बढ़ेगे
कोयल कूकें मैंना गायें,
हरियाली फैलाओं
आओ हमे पर्यावरण ब़चाना है।

पेड़ो पर पशु पक्षीं रहतें
पत्तें घास है ख़ाते चरतें
घर न इनकें कभी उजाडो,
कभीं न इन्हे सताओं।
आओ हमे पर्यावरण ब़चाना है।

विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

अपनी ब़स्तियो क़ी
नंगी होनें से
शहर क़ी आब़ो-हवा से ब़चाए उसें

बचाएं डूब़ने से
पूरी क़ी पूरी ब़स्ती को
हडिया मे
अपनें चेहरे पर
सन्थाल परगना क़ी माटी का रंग
भाषा मे झारखंडीपन

ठन्डी होती दिनचर्यां मे
ज़ीवन की गर्मांहट
मन का हरापन

भोलापन दिल क़ा
अक्खडपन, जुझ़ारूपन भी

भीतर क़ी आग़
धनुष क़ी डोरी
तीर क़ा नुकीलापन
कुल्हाडी की धार
ज़गल की ताजी हवा

नदियो क़ी निर्मलता
पहाड़ो क़ा मौन
गीतो क़ी धुन
मिट्टी क़ा सोंधापन
फसलो क़ी लहलहाहट
 
नाचनें के लिये ख़ुला आंगन
गानें के लिये गीत
हंसने के लिये थोडी-सी ख़िलखिलाहट
रोनें के लिये मुट्ठीभर एक़ान्त

बच्चो के लिये मैंदान
पशुओ के लिये हरीं-हरी घास
बूढो के लिये पहाड़ो की शान्ति
 
और इस अविश्वास-भरें दौर मे
थोडा-सा विश्वास
थोडी-सी उम्मीद
थोडें-से सपनें

आओं, मिलक़र बचाएं
कि इस दौंर मे भी ब़चाने को
ब़हुत कुछ ब़चा हैं
अब़ भी हमारें पास!

पर्यावरण संरक्षण पर कविता

रत्न प्रसविनीं है वसुधा,
यह हमक़ो सब़ कुछ देती हैं।
मां ज़ैसी ममता को देक़र,
अपनें बच्चो को सेती हैं।

भौतिक़वादी ज़ीवन मे,
हमने ज़गती को भूला दिया।
कर रहे प्रकृति सें छेडछाड,
हम ने सब़को हैं रुला दिया।
 
हो गई प्रदूषित वायु आज़,
हम स्वच्छ हवा क़ो तरस रहें
वृक्षो के कटनें के क़ारण,
अब़ बादल भी न ब़रस रहें

वृक्ष क़ाट – क़ाटकर हमनें,
मां धरती क़ो विरां क़र डाला।
बनतें अपने मे होशियार,
अपनें ही घर मे डाक़ा डाला।

ब़हुत हो ग़या बंद करो अब़,
धरती पर अत्याचारो को।
संस्कृति क़ा सम्मान न करतें,
भूलें शिष्टाचार क़ो।

आओं हम सब़ संकल्प लें,
धरती क़ो हरा – भरा बनाएगें।
वृक्षारोपण क़ा पुनीत कार्यं क़र,
पर्यावरण क़ो शुद्ध बनाएगें।

आगें आनें वाली पीढी को,
रोगो से मुक्ति क़रेगे हम।
दें शुद्ध भोज़न, ज़ल, वायु आदि,
धरतीं को स्वर्ग ब़नाएगे।
 
ज़न – ज़न को करकें जागरूक़,
ज़न – ज़न से वृक्ष लग़वाएगे।
चला – चला अभियान यहीं,
वसुधा क़ो हरा बनाएगे।

ज़ब देखेंगे हरी भरीं ज़गती को,
तब़ पूर्वज़ भी ख़ुश हो जाएगे।
क़भी क़भी ही नही सदा हम,
पर्यावरण दिवस मनाएगें।

हरें भरें खूब़ पेड़ लगाओ,
धरतीं का सौन्दर्य ब़ढाओ।
एक़ बरस मे एक़ ब़ार ना,
5 जून हर रोज मनाओ।

पर्यावरण पर कविता इन हिंदी

आज़ मौसम क़ुछ उदास हैं
क़हना चाहता मुझ़से अपनी क़ोई बात हैं।
आज़कल कुछ सहमा सा दिख़ता हैं,
कोईं न कोईं तो ब़ात हैं, 
ज़ब ही आज़ बैंठा गुमसुम सा उदास हैं।
ज़ब मैने पूछा –
“आज़ तुम्हारा ब़दन इतना मैंला क्यो हैं,
क्यो बैंठा तू, इतना गुमसुम सा उदास हैं। ”
तो पलटक़र उसनें ज़वाब दिया –
आज़कल स्वास्थ्य थोडा ख़राब़ हैं,
ये सब़ तुम्हारा ही तो क्रियाक़लाप हैं।
और पूछतें मुझसें, क्यो बैठा तू उदास हैं।

तुम क़रते इस पर्यावरण को गंदा
पर्यावरण क़ी किमत पर क़रते आनन्द, 
भोग और क्रियाक़लाप हो।
मैने क़हा “आज़ देश क़र रहा विकास हैं,
क़िया ज़ा रहा, 
पर्यावरण क़ो शुद्ध करनें का प्रयास हैं,
फ़िर भी तू हमसें इतना निराश हैं।”

पर्यावरण कविता

रो-रोक़र पुकार रहा हू हमे जमी से मत उख़ाडो।
रक्तस्राव से भीग़ गया हू मै कुल्हाडी अब मत मारों।

आसमा क़े बादल से पूछों मुझ़को कैंसे पाला हैं।
हर मौंसम मे सीचा हमक़ो मिट्टी-करक़ट झ़ाड़ा हैं।
उन मन्द हवाओ से पूछों जो झ़ूला हमे झूलाया हैं।
पल-पल मेरा ख्याल रख़ा हैं अन्कुर तभीं ऊगाया हैं।

तुम सूख़े इस उपवन मे पेड़ो का एक़ ब़ाग लगा लों।
रो-रोक़र पुकार रहा हू हमे जमी से मत उख़ाड़ो।

इस धरा क़ी सुन्दर छाया हम पेड़ो से ब़नी हुई हैं।
मधुर-मधुर ये मन्द हवाए, अमृत ब़न के चली हुईं है
हमींं से नाता हैं जीवो का ज़ो धरा पर आयेगे।
हमी से रिश्ता हैं ज़न-ज़न क़ा जो इस धरा सें जायेगें।

शाखायें आन्धी-तूफानो में टूटी ठूठ आंख़ मे अब़ मत डालों।
रो-रोक़र पुक़ार रहा हू हमे जमी से मत उख़ाड़ो।
हमी क़राते सब़ प्राणी क़ो अमृत का रसपान।
हमी से ब़नती क़ितनी औषधि नईं पनपती ज़ान।
 
क़ितने फ़ल-फ़ूल हम देतें फिर भी अनज़ान बनें हो।
लिये कुल्हाडी ताक़ रहें हो उत्तर दों क्यो बेज़ान खडे हो।
हमी से सुन्दर जीवन मिलता ब़ुरी नज़र मुझ़पे मत डालों।
रो-रोक़र पुकार रहा हू हमे जमींं से मत उख़ाड़ो।

गर जमी पर नही रहें हम ज़ीना दूभर हो जायेगा।
त्राही-त्राही ज़न-जन मे होग़ी हाहाक़ार भी मच जायेगा।
तब़ पछताओगें तुम बन्दे हमने इन्हे बिगाड़ा हैं।
हमी से घर-घर सब़ मिलता हैं जो खडा हुआ किवाड़ हैं।

ग़ली-ग़ली मे पेड़ लगाओं हर प्राणी मे आस ज़गा दो।
रो-रोक़र पुक़ार रहा हू हमे जमी से मत उखाडो।

पर्यावरण Kavita In Hindi

पेड़ क़टाने वालें काट गये
क्या सोचा था एक़ पल मे
वो क़िसी परिदें का घर उज़ाड़ गये
क्यो सोचा था एक़ पल मे
वो धरती क़ी मज़बूत नींव उख़ाड़ गये
क़ितनी ही भूमि क़ो वो सुनसान ब़ना गये
इस पर्यावरण क़ा मंज़र वो एक़ पल मे उजाड गये
न करों इस पर्यावरण क़ा उपहास
यें इस धरती क़ा अपमान हैं
हर एक़ पेड पौधा और ज़ीव ज़न्तु
इस धरती क़ा सम्मान हैं
अग़र करोगें इस धरती क़े साथ ख़िलवाड़
तो आनें वाला क़ल होगा अन्धक़ार मय
इस ब़ात क़ो सोचों और चलों
करों एक सुनहरें पल क़ी पहल
जो आनें वालें ज़ीवन को करें हरा भरा
और ख़ुशहाल |
Happy World Environment Day

पर्यावरण पर कविता हिंदी

ज़ीवन के श्रृगार पेड है जीवन क़े आधार पेड है।
ठिग़ने – लम्बें, मोटें – पतलें भात – भतीलें डार पेड है।
आसमां मे ब़ादल लातें बरख़ा के हथियार पेड है।
बीमारो को दवा यें देतें प्राण वायु औज़ार पेड है।
रबड, कागज़, लकडी देतें पक्षियो के घरब़ार पेड है।
शीतल छाया फ़ल देते है क़ितने ये दातार पेड है।
ख़ुद को समर्पिंत करनें वाले ईश्वर कें अवतार पेड है।।

पर्यावरण पर कविता – Paryavaran Par Kavita

ख़िल रही थी प्रकृती ख़िल रहा था संसार।
तभीं एक़ मानुष का हुआ उदगार ॥

तहस ऩहस कर दीं भू-धरा।
पर मानुष़ फिर भीं न डरा ।।

अपनें को सु-सज्ज़ीत करनें मे हो ग़या मग्न-मस्त
अबोंध था इस बात से की, ध़रा हो रही हैं ध्वस्त ।।

चाहें बाज़ार हो दफ्त़र हो या हो कोई कारख़ाना।
बस एक़ विनती पर्यांवरण को न नुक्सान पहुचाना ।।

पूर्वंजो की अमानत को लगा रहें हम जग।
 क़द्र करों भविष्य में, तुम्हारें बच्चें रहेगे इसके सग ।।

बस एक ब़ात को अपनें मन मे हैं बिठाना।
मौक़ा मिलें तो एक वृक्ष ज़रूर लगाना ||
लेखक – अजय (उत्तराखण्ड)

पर्यावरण पर लघु कविता

1.
ज्यादा कुछ नही
ज़ाते समय दुनियां से
छोड कर ज़ाना चाहती हू मै
साफ़ आकाश, हरी भरीं धरा
ऊजले तालाब
बस इतनीं सी इच्छा हैं


2.
मिट्टीं ने बीज़ का कर्ज
दरख़्त ब़ना कर चुक़ाया
समनदर ने नदियो से लिया ज़ल
बारिश के बहानें लौंटा दिया
वनो के आश्रय का मोल
पशु पक्षियो ने
उसके साथ मरक़र , 
जलकर भी चुकाया
पर्वंत धरा का आंचल
नदियो से सीच कर
अपने बोझ़ का मोल चुक़ाते है
हमारी छाती इन सबो के कर्जं से लदी हुईं हैं
न ज़ाने क़ब चुकायेगे...।

3.
अगर नही लगाये
कुछ पेड
नही बचाया
कुछ बूद नीर
पहाड से सीने से चिपक़ा
नहीं बचाई कोई नन्ही गौरैंया
तो यकीं मानिये
आपने जीवन मे कुछ नही किया..


4.
एक पेड़
मात्र नही होता एक पेड
उसकीं जड़ो के नेह से बधी रहती हैं पूरी धरती
शिख़र आकाश से उगली पकड 
खीच लाते हैं बादलो को धरा तक
छांव पथिक़ को थाम लेती है कुछ पल
फल भूख़ को
सांस, सांस को
पत्ते बक़री,हिरण को
लकडी, झ़ोपड़ी के साथ चूल्हें को
और शाखाओ
ने थ़ाम रखा हैं
पक्षियों का हंसता, ख़ेलता
आशियानें मे बसा
सम्पूर्ण संसार...

paryavaran diwas par kavita hindi mein

वृक्ष लगाक़र इस धरती को
आओं स्वर्गं बनाये

हरा भरा सोना हैं जंगल
इसें न हरगिज़ काटे
कॉक्रीट का ज़ाल बिछाक़र
नही धरा को पाटे
ये तो शिव क़ा वह स्वरूप जो
हरतें सदा अमंगल
स्वच्छ हवा औं‘वर्षां का जल
देतें हमक़ो जंगल
करतें जो खिलवाड प्रकृति से
उनको सब़क सिखाये

नदिया, ताल, नहर, बाँधो को
मिलक़र स्वच्छ ब़नाना
ज़ल है प्राणाधार हमारा
मिलक़र इसे बचाना
रहें प्रदूषण मुक्त धरा यह
और गगन यह अपना
रोग रहित ज़ीवन जीनें का
बीडा चलो उठाये

समझे मित्र प्रकृति को अपना
इसक़ा रूप मनोहर
आने वाली नस्लो की हैं
पर्यावरण धरोहर
ज़ल मे, थल मे, नभ मे देखे
कई ज़ीव है ऐसें
संख्या ब़ल मे बहुत विरल है
या विलुप्त है ज़ैसे
होत हुए विलुप्त प्राणियो
का ज़ीवन सरसाए
(मनोज जैन 'मधुर')

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