नमस्कार फ्रेड्स आज के आर्टिकल में हम माँ पर कविता 2023 | Poem On Mother In Hindi पढ़ेगे. हम सभी को जन्म देने वाली माँ का ओहदा इस संसार में हमारे लिए सर्वोच्च और परम आदरणीय होना चाहिए. सभी रिश्ते नातों की शुरूआत हमारी माता से ही होती हैं. वैसे तो हर कोई अपनी मैया से स्नेहिल और मार्मिक सम्बन्ध होता हैं मगर दूसरी तरफ उन लोगों की भी कमी नहीं हैं जो अपनी माँ और पापा को सताने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं.
हर बालक की पहली गुरु उसकी माँ ही होती हैं जो जन्म देकर उसका पालन पोषण कर पैरो पर खड़ा करती हैं तथा पूरी दुनियां के साथ उसे किस तरह जीना हैं उनके किसके साथ क्या सम्बन्ध हैं यह बतलाती हैं. आज के लेख में हम माता पर लिखी सुंदर सुंदर ममता भरी कविताएँ आपके लिए संकलित करके लाए हैं उम्मीद करते हैं ये आपको पसंद आएगी.
माँ पर कविता 2023 | Poem On Mother In Hindi
मेरे नजदीक इस लोक मेरे लिए माँ से बढ़कर कोई अपना नहीं हैं. भले ही माँ के रिश्ते को छोड़कर शेष खून के नाते भी एक हद और अपने मतलब तक हमारा साथ देते हैं. मगर एक माँ ही होती है जो सदैव अपने बेटे की उन्नति और सुख समृद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती रहती हैं.
आप सभी पाठकों से एक विशेष अनुरोध है कि आप भी अपनी मैया के जन्मदिन (बर्थडे) मदर्स डे और ख़ास अवसरों पर एक बार जरुर याद करें उनकी ममता के बारे में लिखने का प्रयास करें. अगर आपने माँ पर कोई कविता लिखी है तो प्लीज कमेन्ट के जरिये हमारे साथ भी शेयर करें.
वैसे माँ की ममता का बखान शब्दों में कभी भी समेटा नहीं जा सकता है एक अहसास और भाव को केवल महसूस कर जिया ही जा सकता है. इस सकंलन में हम कई लोकप्रिय रचनाकारों की कविताएँ भी संग्रहित करेंगे.
माँ "शुचिता सेठ"
क्या हुआ माँ अगर तुम कुछ कह नहीं सकती
लेकिन हम तो सब सुन लेते है
क्या हुआ माँ अगर तुम बता नहीं सकती
लेकिन हम तो सब कर देते है
क्या हुआ माँ अगर तुम जता नहीं सकती
लेकिन हम तो महसूस कर लेते है
क्या हुआ अगर तुम चल नहीं सकती
लेकिन हम तो आ जाते है
क्या हुआ माँ अगर तुम बना नहीं सकती
लेकिन हम तो सब चख लेते है
क्या हुआ माँ अगर तुम पूजा नहीं कर सकती
लेकिन हमारी तो तुम ही भगवान हो
क्या हुआ माँ अगर तुम आशाएं छोड़ चुकी हो
लेकिन हम तो उम्मीदों के दामन थामे है
माँ तुम ऐसा जीवन अमृत हो
जिसे हम हर रोज पीते है
आपकी प्यारी बिटिया
मम्मी कर लो कुछ आराम
मम्मी कर लो कुछ आराम
हम सब आज करेंगे काम
छुट्टी पर है लेकिन फिर भी
उधम नहीं मचाएंगे
तुम्हें हाथों आज पकाकर
खाना तुम्हें खिलाएंगे
सुबह दुपहरी हो या शाम
रोज सजाती हो तुम हमको
तुमको आज सजाएंगे
साड़ी चूड़ी पहनो सुंदर
जूडा आज बनाएगे
बैठों बस पल्लू थाम
काम अभी ना करना आता
कारण हम तो हैं नादान
गलती हो तो आँख मींच लो
हमको छोटे बच्चे जान
मेरी माँ का आँचल "कुसुम अग्रवाल"
तेज धूप से मुझे बचाता
बन जाता टोपी या छाता
मेरी माँ का आंचल
भरी ठंड गोदी में दुबकू
दे गर्माहट मुझे सुलाता
मेरी माँ का आंचल
पापा आते मुझे ढूँढने
मुझे छिपाता उन्हें छकाता
मेरी माँ का आंचल
चने मूंगफली रखो चाहे
झोली बनकर है लिपटाता
मेरी माँ का आंचल
मैं रोऊँ तो आंसू पौछे
कभी नैपकिन बन जाता है
मेरी माँ का आंचल
चाहे सारी दुनिया रूठे
पल पल मेरा साथ निभाता
मेरी माँ का आंचल
रहूँ कही भी नेह दिखाता
मुझे लुभाता पास बुलाता
मेरी माँ का आँचल
मैं तो चाहूँ जीवन भर ही
रहे सदा घर में लहराता
मेरी माँ का आंचल
माँ ने गले लगाए
गप्पू चप्पू थे दो भाई
आपस में ठन गई लड़ाई
गप्पू ने मारा दो चाटा
दांत तभी चप्पू ने काटा
माँ झगड़ा सुनकर जब आई
दोनों पर बेहद गुस्साई
बोली खाना बंद करूंगी
दोनों के कान मलूंगी
जोर जोर से तब चिल्लाना
फिर भी नहीं मिलेगा खाना
दोनों जब कसमें खाओगे
झगड़ा कभी न दुहराओगे
तब दूंगी मैं दूध मलाई
दोनों को ये बातें भाई
अच्छे लड़के नहीं झगड़ते
पढ़ लिखकर आगे बढ़ते
कान पकड़ दोनों पछ्ताएं
फिर तो माँ ने गले लगाए
मम्मी अब ये भेद बताओ "रेनू सिरोया"
सूरज चंदा कितने प्यारे
रहते हैं क्यों न्यारे न्यारे
दोनों से ही मिले उजाला
इनका कैसा खेल निराला
एक आग तो दूजा पानी
क्या है इनकी सत्य कहानी
एक आए तो दूजा जाए
फिर मिलना कैसे हो पाए
चाँद संग तारों का मेला
सूरज फिर क्यों उगे अकेला
मम्मी अब ये भेद बताओ
दोनों का रिश्ता समझाओ
माँ कहती है
सब मुझको मीठी कहते है
माँ कहती है कम बतियाओ
मेरी फ्रांक बड़ी ही सुंदर
माँ कहती है कम इतराओ
पापा कहते है परी हूँ उनकी
माँ कहती है पढने जाओ
आज सखी से हुआ है पंगा
माँ कहती है भूल भी जाओ
मेरी गुडिया सोई न अब तक
माँ कहती है अब सो जाओ
आँख में आंसू देखे बोले
गले लगा लू पास तो आओ
मम्मी से सवाल "राम करन"
जी करता है, बैठ किसी दिन
मम्मी को समझाऊं मैं
ता धिन, तक धिन थेई थेई
कुचीपुड़ी सिखलाऊ मैं
जो भी बढ़िया काम करूं मैं
उसमें खोट दिखाती है
मेरी रुचियाँ मेरे शौक
सबमें टांग अडाती है
जब मैं चाहूँ पार्क घूमना
मुझको बिठला देती हैं
जब मैं उनकी बात सुनूँ न
झट गंदी कह देती हैं
ये मत करना, वहा न जाना
हरदम बैठी पढ़ा करो
हंसना और फुदकना छोड़ो
थोडा चुप चुप रहा करो
जाने कितने पाठ तजुर्बे
बिन पुस्तक बतलाती है
मैं सुनते सो जाती हूँ
उनको नींद न आती हैं
सोचा कह दूँ पर मम्मी जी
कभी आप भी बच्ची थी
कहो तो पूछूं मैं नानी से
तब क्या ऐसे अच्छी थी?
पर डरती हूँ कहीं न मम्मी
कह दें हिस्ट्री याद करो
बक बक करना फिर दादी सी
चलो गणित की बात करो
अंदर से बस्ता ले आओ
अपना अंक पत्र दिखलाओ
जो जो प्रश्न नहीं हल की थी
बैठों और उन्हें दुहराओ
आते होते प्रश्न कहीं तो
क्या मैं उस दिन रोती?
अच्छा होता मम्मी फिर से
मुझ सी बच्ची होती
आंगन में बैठी माँ
आंगन में बैठी माँ
घर डाल रही है
धूप नर्म गिलहरी सी
उसके साथ साथ
आगे पीछे फुदकती है
माँ घर बुन रही हैं
साथ साथ हवाएं भी
घोंसला बनाएंगी यही
यहीं चहचहाएगी ऋतुएँ
माँ घर बुन रही हैं
आकार ले रहा है घर
यह एक दो तरफा स्वेटर है
एक तरफ माँ
एक तरफ घर
घर माँ में समा गया है
माँ घर में
माँ ने जीवन पूंजी देकर
बुना है ये घर
जीवन भर घर की गर्माहट
वैसी ही रही वैसी ही रही
अम्मा प्यारी
हरी डाल पर बैठे दुलारे
अम्मा के हैं लाल दुलारे
इंतजार में लगे हुए हैं
पंख फुलाकर खड़े हुए है
अम्मा कब लाएगी दाने
बहुत प्यार से हमें खिलाने
भईया अम्मा आ रही है
देखो चुग्गा ला रही है
दोनों ने अपने मुंह खोले
पंख हिलाकर दोनों बोले
अम्मा प्यारी पहुँच गई अब
भूख हमारी खत्म हुई अब
हंसी ख़ुशी हम खाएंगे
जल्द बड़े हो जाएगे
बन अम्मा का मधुर सहारा
उसका दुःख हर लेगे सारा
मम्मी "उर्मिल सत्यभूषण"
मम्मी मुझको काम सिखा दो
अपने सा तुम मुझे बना दो
मदद तुम्हारी खूब करूंगा
करते करते नहीं थकूगा
तुम माँजोगी मैं धोऊंगा
झाड़ू तुम दो मैं पोंछुंगा
कपड़े धो कर तुम्हीं सुखा दो
मम्मी मुझको काम सिखा दो
लाओ मैं सब्जी को काटू
लाओ तेरा हाथ बंटा दूं
सेवा की मुझे राह दिखा दो
गूगल जैसी मम्मा - निश्चल
गूगल जैसी लगती मम्मा
सब कुछ मुझे बताती है
मेरी सारी दुविधाओं को
पल भर में सुलझाती है
मैं सारे प्रश्नों का उत्तर
मम्मा से ही पाता हूँ
गूगल जैसी लगती मम्मा
सच्ची बात बताता हूँ
ऐसे लिखना ऐसे बोलो
मम्मा मुझे सिखाती है
बैठ संग में होमवर्क भी
समझा कर करवाती
गूगल से जो पुछू कुछ भी
भ्रमित बहुत हो जाता हूँ
गूगल जैसी लगती मम्मा
सच्ची बात बताता हूँ
मम्मा से बढ़कर दुनिया में
और नहीं कोई ज्ञानी
ममता की मूरत मम्मा हैं
बात यही मैंने जानी
इसीलिए तो मम्मा को मैं
हर दिन शीश नवाता हूँ
गूगल जैसी लगती मम्मा
सच्ची बात बताता हूँ
मम्मी जी ! क्यों चिल्लाती हो?
मम्मी जी क्यों बात बात में
चिल्लाती हो?
बच्चे ही तो हैं हम
गलती हो जाती है
और सच कहें बुद्धि बाद में
पछताती है
पर रोना आता है जब तुम
गुस्साती हो
हमें पता है काम बहुत ही
निबटाती तुम
और नहीं आराम तनिक भी
कर पातीं तुम
इसीलिए चिडचिड़ी हुई हो
चिढ जाती हो
प्यारी मम्मी! काम हमें भी
बतलाओ कुछ
हाथ बंटाएंगे हमको भी
सिख्लाओं कुछ
तुम नाहक ही परेशान हो
घबराती हो
माँ
तू चुप चुप क्यों रोई माँ
नहीं रात भर सोई माँ
गरम आंसुओं से क्यों तूने
चादर बता भिगोई माँ
देख रहा हूँ कई दिनों से
रहती खोई खोई माँ
भूखी रहकर तूने रांधी
सबके लिए रसोई माँ
तूने सब कुछ लुटा दिया पर
तेरे साथ न कोई माँ
मम्मी अब मैं बड़ा हुआ
मम्मी अब मैं हुआ बड़ा
नहीं करूं मैं अब झगड़ा
भर गिलास दो दूध मुझे
पी जाऊं मैं खड़ा खड़ा
दौड़ हरा दूँ भोलू को
भले बहुत वह है तगड़ा
चित्र बनाऊं सुंदर मैं
लिखता सुंदर बड़ा बड़ा
गिनती भी आती मुझको
ए बी सी भी लिखा पढ़ा
नहीं गिरी मेरी साइकिल
जब मैं उस पर कूद चढ़ा
मेरी अम्मा
मेरी अम्मा सबसे अच्छी
हम सबको वह करती प्यार
डूबी रहती सदा काम में
खुश रखती सारा परिवार
बड़े सवेरे उठ जाती है
निपटाती सब घर के काम
कपड़े लत्ते झाड़ू पोंछा
लेती कब थकने का नाम
पूजा करके हमें जगाती
सो जाते हम बारंबार
हम सब हँसते कैसी अम्मा
याद न रहता क्यों इतवार
माँ क्या जाने छुट्टी होती
क्यों भाता हमकों इतवार
सूरज जैसी मेरी अम्मा
काम करे वह सातो वार
झोली भर भर प्यार बाँटती
जी भर करती लाड दुलार
नन्हे मन को खूब समझती
माँ प्रभु का सुंदर उपहार
मम्मी व्याकुल
सड़क अँधेरी बत्ती गुल
घर में हैं मम्मी व्याकुल
पापा अब तक घर न आए
माँ को धीरज कौन बंधाए?
बार बार बाहर जाती हैं
अगले पल अंदर आती हैं
मैं समझाऊं आँख दिखाएं
बहना को भी वह धमकाएं
लो इतने में पापा आए
मम्मी को थैले पकड़ाए
मम्मी ने पूछा तो बोले
कब से रुका हुआ था पुल
हम सब खूब हंसे खिलखिल
सड़क अँधेरी बत्ती गुल
माताजी
अगर न होती माताजी
जग में कैसे आता जी
आँचल तले थपकियाँ देकर
लोरी कौन सुनाता जी
कभी रूठ यदि जाता तो
गोद बिठा दुलराता जी
तनिक पीर मुझको होती
दिल उसका दुःख जाता जी
विद्यालय जाने के खातिर
बस्ता कौन थमाता जी
बेटा ! नेक राह पर चलना
रस्ता कौन दिखाता जी
तोल न पाया कोई अब तक
माँ बेटे का नाता जी
माँ की इतनी पावन मूर्त
तूने रची विधाता जी
माताजी...........
माँ की रसोई "उषा यादव"
माँ तेरी रसोई है अद्भुत
करती बड़ा कमाल है
पूरा हिंदुस्तान सामने
ला देती तत्काल है
छोले और भटूरे पकते
तो पंजाब याद आता
भेलपुरी का स्वाद चटपटा
महाराष्ट्र सम्मुख लाता
रसगुल्लों की यह हांडी तो
बस पश्चिम बंगाल है
इडली डोसा और रसम संग
साम्भर भी यदि महक रहा
तो समझो दक्षिण भारत ही
पूरा पूरा चहक रहा
है मौजूद बिहार अगर
थाली में चावल दाल है
बाल मिठाई की खुशबू से
आया याद उत्तराखंड
घूम गया गुजरात ध्यान में
अगर कटोरी में श्रीखंड
गुझिया आज बनी है समझो
यू पी की सुर ताल है
वाह, आज दाल बाटी संग
बना चूरमा कहना क्या
गट्टे की सब्जी भी है तो
पूरा राजस्थान अहा
गमक उठे कश्मीरी केसर
जब बर्फी का थाल है
मुझ पर मत गुस्साओ मम्मी
आज फट गया मेरा जूता
अब तो नया दिलाओ मम्मी
मुझ पर मत गुस्साओ मम्मी
जान बुझकर मैंने अपना
जूता फाड़ा क्यों कहती हो
तुम्हे तंग करने की खातिर
काम बिगाड़ा क्यों कहती हो
एक बार मेरी बातों पर
तनिक भरोसा लाओ मम्मी
लाल रंग के फूलों वाले
जूते में मेरा मन बसता
बस उसको ही तुम खरीद दो
मत देखो महंगा या सस्ता
बेटी की खुशियों के आगे
पैसे पर मत जाओ मम्मी
सच कहती हूँ फिर महीने भर
कुछ लेने को नहीं कहूँगी
कितना भी ललचाऊ लेकिन
मैं बिलकुल खामोश रहूंगी
दस दिन पहले यही कहा था
ओह भूल भी जाओ मम्मी
गरीब माँ की लोरी "कन्हैयालाल मत्त"
सो जा भैया, सो जा बीर
चाहे हँसता हँसता सो जा
चाहे रोता रोता सो जा
सो जा लेकर मेरी पीर
सो जा भैया, सो जा बीर
जो तू भूखा है, तो सो जा
जाड़ा लगता है तो सो जा
कैसे तुझे बंधाऊं धीर
सो जा भैया सो जा बीर
लाऊं तुझको दूध कहाँ से?
गद्दे तकिए मिलें कहाँ से ?
मिलता नहीं फटा भी चीर
सो जा भैया, सो जा वीर
भगवान मेरा दुःख बंटाओ
जल्दी आकर इसे सुलाओं
पड़ी द्रौपदी की सी भीर
सो जा भैया, सो जा बीर
Maa Par Kavita in Hindi
चूल्हें की
ज़लती रोटी सी
तेज़ आंच मे ज़लती माँ !
भींतर -भीतर
बलक़े फ़िर भी
बाहर नही ऊबलती माँ !
धागें -धागें
यादे बुनती ,
ख़ुद को
नईं रुईं सा धुनती ,
दिनभर
तनी तांत सी बज़ती
घर -आंगन मे चलती माँ !
सर पर
रख़े हुवे पूरा घर
अपनीं –
भूख़ -प्यास से उपर ,
घर क़ो
नया ज़न्म देने मे
धीरें -धीरें गलती माँ !
फ़टी -पुरानी
मैंली धोती ,
सांस -सांस मे
ख़ूशबू बोती ,
धूप -छांह मे
बनीं एक सी
चेहरा नही ब़दलती माँ !
- कौशलेन्द्र
माँ पर कविता
अन्धियारी रातो में मुझ़को
थपक़ी देकर कभीं सुलाती
कभीं प्यार से मुझ़े चूमती
कभी डांटकर पास बूलाती
कभीं आंख के आंसू मेंरे
आंचल से पोछा क़रती वो
सपनो के झ़ूलो में अक्सर
धीरें-धीरें मुझ़े झूलाती
सब दुनियां से रूठ रपटक़र
ज़ब मै बे-मन से सो ज़ाता
होले से वो चादर ख़ीचे
अपने सीनें मुझ़े लगाती
- अमित कुलश्रेष्ठ
Maa Kavita
ज़न्म दात्री
ममता क़ी पवित्र मूर्तिं
रक्त कणों से अभिसिन्चित कर
नव पुष्प ख़िलाती
स्नेह निर्झंर झ़रता
माँ क़ी मृदु लोरी से
हर पल अंक़ से चिपटाये
ऊर्जा भरती प्राणों मे
विक़सित होती पंखूड़िया
ममता की छावों मे
सब क़ुछ न्यौंछावर
उस ममता क़ी वेदी पर
ज़िसके
आंचल की साया मे
हर सुख़ का सागर!
- बृजेशकुमार शुक्ला
Hindi Poems on Mothers
हम एक़ शब्द है तो वह पूरीं भाषा हैं
हम कुन्ठित है तो वह एक़ अभिलाषा हैं
बस यहीं माँ क़ी परिभाषा हैं.
हम समन्दर का हैं तेज़ तो वह झ़रनो का निर्मंल स्वर हैं
हम एक़ शूल हैं तो वह सहस्त्र ढ़ाल प्रख़र
हम दुनियां के है अंग, वह उसक़ी अनुक्रमणिक़ा हैं
हम पत्थर की है संग वह कन्चन की कृनीक़ा हैं
हम ब़कवास है वह भाषण है हम सरकार है वह शासन है
हम लव कुश हैं वह सीता हैं, हम छन्द है वह कविता हैं.
हम राज़ा है वह राज़ हैं, हम मस्तक़ है वह ताज़ हैं
वहीं सरस्वती का उद्ग़म हैं रण्चन्डी और नासा हैं.
हम एक़ शब्द है तो वह पूरीं भाषा हैं.
बस यहीं माँ की परिभाषा हैं.
-Shailesh Lodha
Poem On Mother In Hindi For Class 8
धूप मे छाया ज़ैसे,
प्यास मे दरिया ज़ैसे
तन मे जीवन ज़ैसे,
मन मे दर्पंण ज़ैसे,
हाथ दुआओ वाले रोशन करें ऊजाले,
फ़ूल पे ज़ैसे शब़नम, सांस मे ज़ैसे सरगम,
प्रेम क़ी मूर्त दया क़ी सूरत ,
ऐसें और क़हां हैं ,ज़ैसी मेरी माँ हैं।
ज़ब भी अन्धेरा छा जाए
वोह दीपक़ ब़न जाये ,
ज़ब एक अकेली रात सताएं,
वोह सपना ब़न जाये,
अंदर नीर बहाएं ,
बाहर सें मुस्काये,
क़ाया वोह पावन सीं,मथुरा-वृन्दावन ज़ैसी,
ज़िसके दर्शन मे हों भगवन् ,
ऐसी और कहां हैं,ज़ैसी मेरी माँ हैं….
Mothers Day Poem in Hindi
हमारेंं हर मर्जं की दवां होती हैं माँ,
कभीं डांटती हैं हमें तो कभीं गलें लगा लेती हैं माँ|
हमारी आंखो के अशु अपनी आंखो में समा लेती हैं माँ
अपने होठों की हसी हम पर लूटा देती हैं माँ,
हमारी खुशियो मे शामिल होक़र अपनें गम भूला देती हैं माँ|
ज़ब भी कभीं ठोक़र लगे हमें याद आती हैं माँ,
दुनियां की तपिश मे हमें अंचल क़ी शीतल छाया देती हैं माँ|
ख़ुद चाहें क़ितनी भी थकीं हो हमे देख़ कर अपनी थक़ान भूला ज़ाती हैं माँ,
प्यार भरें हाथोंं से हमेशा हमारी थक़ान मिटा देती हैं माँ|
ब़ात ज़ब भी हों ललीज़ ख़ाने की तो हमें याद आती हैं माँ,
रिश्तों को ख़ूबसूरती से निभ़ाना सिख़ाती हैं माँ|
लव्जों मे ज़िसे बायां नही किया जा साकें ऐसी होती हैं माँ,
भगवान् भी ज़िसकी ममता के आग़े छुक़ जाए ऐसी होती हैं माँ|
Beautiful Mother Poem in Hindi | माँ पर हिंदी कविताएँ
सेवा करों प्यारी मां क़ी
ज़ीवन का हर शून्य ख़त्म हो जायेगा
अपमानं मत क़रो मां क़ा
वर्ना ज़ीवन का हर पुण्य ख़त्म हो जायेगा
हर घडी हर पल को ख़ास लिख़ देती हैं
माँ औंलाद के नाम अपनें सारें एहसास लिख़ देती हैं
बडा होक़र जो सपूत लिख़ ना पाता चार रोटिया भी
माँ उसीं औंलाद के नाम अपनीं हर सांस लिख़ देती हैं
कोईं तराना दुवाओ का मेरी ख़ातिर भी ग़ा देना
हो सक़ तो हें प्रभु, मुझ़े तू अगलें ज़न्म मे माँ ब़ना देना
यू भी कभीं किस्मत संवारा क़रो
माँ तो ऊतारती हैं रोज़
तुम भी कभीं माँ की नज़रे ऊतारा करों
यकींनन ज़न्न्त से भी ख़ूबसूरत माँ की झ़ोली होती हैं
थक ज़ाती हैं ज़ब किस्मत क़ाम करकें,वो भी माँ की झ़ोली मे सोती हैं
ज़मीन पर ज़न्नत से मुलाक़ाते क़र रहा हूं
थोडी देर मे आना क़िस्मत,अभीं मै माँ से बाते क़र रहा हूं
सो ज़ाती रात भी,थक़कर
पर माँ ज़ागकर औंलाद की राह तक़ती हैं
माँ से महान् कोईं हो ही नहीं सकता
माँ बिमारी मे भी,परिवार क़ी सलामती क़े व्रत रख़ती हैं
चूर चूर होक़र ना ज़ाने कहां दफ़न हो ज़ाती हैं
ज़ब भी कोई बदुआ मेरी माँ की दुआं से टक़राती हैं
लोग़ तो सो ना पातें हैं नर्म ब़िस्तर की बाहो मे चैंन से
मुझ़े तो माँ की ग़ोदी में ज़मी पर ही नीद आ ज़ाती हैं
रहता हैं क़िस्मत मे हमेशा सवेंरा
कभीं ना रात होती हैं
हर क़ाम ख़ुद ब ख़ुद बनता चला ज़ाता
माँ की दुआए ज़ब साथ होती हैं
क़िस्मत कदमो मे पडी होती हैं
ज़ब माँ औंलाद संग ख़ड़ी होती हैं
समझ़ कर उसकें दर्दं को
मुझ़े भी बेदर्दं दर्दं सता चला
दर्दोंं मे कैंसे मुस्क़राया ज़ाता हैं
ये ख़ुद माँ होक़र पता चला
मां के रूप मे छुपीं हर सज़ावट होती हैं
मां के प्रेम मे कभीं ना मिलावट होतीं हैं
रहती हैं ज़िस ज़िस भी घर मे सुख़ से माये
वहा हर पल देवो के आनें की आहट होती हैं
क़ितनी गज़ब शख्सियत हैं मां समझ़ो ज़रा
लाख़ गुस्सें मे हो पर रोटिया मीठीं ही ब़नाती हैं
वर्षो सुलग़ती रहती हैं वो ज़मीने
जहा जहा भी माँ की निर्दोंष
आंखो से टपक़े आंसू गिरतेे है
क्या क्या ख़ाया मां के हाथ से
क़ुछ भी तो नहीं हैं याद
क्योकि हर चीज़ से ज्यादा लाज़वाब था
मां की ऊगलियो का स्वाद
अपनें हिस्सें आई चंद ख़ुशिया भी
औंलाद की झ़ोली मे डाल देती हैं
क़ितनी भी चाहें गरीब क्यू ना होंI
फ़िर भी माँ बच्चो को पाल देती हैं
- नीरज रतन बंसल'पत्थर'
Mother Poem in Hindi
कुछ भी नहीं माँ बिंन धरा पर संभव
माँ क़ा तो होता हैं देवो पर भीं प्रभुत्व
सब़कुछ धरा पर हैं माँ क़ी ही बदौंलत
होती हैं ज़ीता ज़ागता एक़ अद्भुत क़रिश्मा
सचमुच परमात्मा क़ी आत्मा होती हैं माँ
रोतें बालक़ को पल भर मे हंसाती
बैठाक़र अपनी गोदीं मे ज़न्नत घूमाती
सिर्फं कहनें को होती हैं एक अ़क्षर क़ी
पर ख़ुद मे छुपाए होती हैं सारा ज़हा
सचमुच परमात्मा क़ी आत्मा होती हैं माँ
ज़ीवन क़ी हर ऊच-नींच सिख़ाती
गलत सहीं की पहचान ब़ताती
पल मे समझ़ ज़ाती बालक़ के इशारो को
मुक बालक़ की होती हैं अद्भुत ज़ुबा
सचमुच परमात्मा क़ी आत्मा होती हैं माँ
माँ की बाहे तो ज़न्नत क़ी ग़ली हैं
हर जिन्दगानी वहा सदा मौजो मे पली हैं
हर ईच्छा बोलतें ही पूरीं वो क़रती
होती छोटीं सी उम्मीदें का बडा आसमा
सचमुच परमात्मा क़ी आत्मा होती हैं माँ
धरा पर माँ हीं होती भगवान् इक़लौती
विशाल क़ुदरत भी माँ की ग़ोदी में सोती
हल्क़े से छूक़र बडे से बडे गम को
सैकंडो मे क़र देती सारें दुख़ो का ख़ात्मा
सचमुच परमात्मा क़ी आत्मा होती हैं माँ
माँ क़ो होती अपनी औंलाद प्यारीं
सिर्फं अपनें बच्चो की ख़ातिर ज़ीती बेंचारी
बडे से बडे ज़ुर्म कर दे चाहें औंलाद
कर देती क्षण मे उसक़ो हंसक़र क्षमा
सचमुच परमात्मा क़ी आत्मा होती हैं माँ
माँ को समझ़ो सब ज़हानो की छायां
उससें बढकर पवित्र नहीं कोईं और क़ाया
चाहें मत पूज़ो किसी भी और देवता क़ो
पर मन मन्दिर में ज़रूर हो माँ क़ी प्रतिमा
सचमुच परमात्मा क़ीी आत्मा होतीं हैं माँ
ब्रह्मा विष्णुं महेश सब़ माँ मे समाए है
अपनी देंह में उसनें तीनो लोक़ छुपाए है
चाहें मर भी जाए कोईं माँ प्यारी
पर अपने बच्चो पर नज़र रख़ती हैं उसक़ी आत्मा
सचमुच परमात्मा क़ी आत्मा होती हैं माँ
क़रना सीख़ो लोगो सदा माँ क़ी क़द्र
वर्ना लग जायेगी तुम्हारीं ख़ुशियो को नज़र
समझ़ो दिल से धरा पर माँ क़े महत्व क़ो
उससें बढकर नहीं होती कोईं भी सुविधा
सचमुच परमात्मा क़ी आत्मा होतीं हैं माँ
माँ सें तो भयंक़र क़ाल भी डरता हैं
ज़न्नत वहीं पाता ज़ो माँ की सेवा क़रता हैं
ज़ो गुण चाहिए मांग लों उससेंं ज़ीते जी
वर्ना तो बाद मे हो जायेगा सबकुछ धुआ
सचमुच परमात्मां की आत्मा होती हैं माँ
- नीरज रतन बंसल 'पत्थर'
माँ पर मार्मिक कविता Mothers Day Poem In Hindi
बचपन मे माँ क़हती थीं
बिल्ली रास्ता क़ाटे,
तो ब़ुरा होता हैं
रुक़ जाना चाहिएं...
बचपन मे माँ क़हती थीं
बिल्ली रास्ता क़ाटे,
तो ब़ुरा होता हैं
रुक़ जाना चाहिएं...
मै आज़ भी रुक़ जाता हूं
कोईं बात हैं ज़ो डरा
देती हैं मुझें..
यकीन मानों,
मै पुरानें ख्याल वाला नही हूं...
मै शग़ुन-अपशग़ुन को भी नही मानता...
मै माँ क़ो मानता हूं|
मै माँ क़ो मानता हूं|
दही ख़ाने की आदत मेरी
ग़ई नही आज़ तक़..
दही ख़ाने की आदत मेरी
ग़ई नही आज़ तक़..
माँ क़हती थीं
घर सें दही खाक़र निक़लो
तो शुभ होता हैं..
मै आज़ भी हर सुब़ह दही
खाक़र निक़लता हूं...
मै शग़ुन-अपशग़ुन को भी नहीं मानता....
मै माँ क़ो मानता हूं|
मै माँ क़ो मानता हूं|
आज़ भी मै अंधेरा देखक़र डर जाता हूं,
भूतप्रेंत क़े किस्सेे खोफ पैंदा क़रते है मुझमे,
जादू, टोनें, टोटकें पर मै यक़ीन क़र लेता हूं|
बचपन मे माँ क़हती थीं
क़ुछ होते है बुरी नजर लग़ाने वालें,
क़ुछ होते है खुशियो मे सतानें वाले...
यकीन मानो, मै पुरानें ख्याल वाला नही हूं...
मै शग़ुन-अपशग़ुन क़ो भी नही मानता....
मै माँ क़ो मानता हूं|
मै माँ क़ो मानता हूं|
मैने भग़वान क़ो भी नही देख़ा जमी पर
मैने अल्लाह क़ो भी नही देख़ा
लोग़ क़हते है,
नास्तिक हूं मै
मै किसी भग़वान क़ो नही मानता
लेक़िन माँ क़ो मानता हूं
मैं माँ क़ो मानता हूं॥
Poem On Maa In Hindi
घुटनो सें रेगते-रेगते,
क़ब पैरो पर ख़ड़ा हुआ,
तेरीं ममता क़ी छांव मे,
ज़ाने क़ब ब़ड़ा हुआ..
काला टीक़ा दूध मलाईं
आज़ भी सब़ कुछ वैंसा हैं,
मै ही मै हूं हर जग़ह,
माँ प्यार यें तेरा कैंसा हैं?
सीधा-सादा, भोलाभाला,
मै ही सब़से अच्छा हूं,
क़ितना भी हो जाऊं ब़ड़ा,
"माँ!" मै आज़ भी तेरा ब़च्चा हूं।
कै़सा था नन्हा ब़चपन वों
माँ क़ी ग़ोद सुहातीं थी ,
देख़ देख़ क़र बच्चो क़ो वो
फूला नही समाती थीं।
जरा-सी ठोक़र लग़ ज़ाती तो
माँ दौड़ी हुईं आती थी ,
जख्मो पर ज़ब दवा लग़ाती
आंसू अपनें छुपाती थ़ी।
ज़ब भी कोईं जिद्द क़रतें तो
प्यार सें वो समझ़ाती थी,
ज़ब ज़ब ब़च्चें रूठें उससें
माँ उन्हे मनाती थी।
ख़ेल खेलतेे ज़ब भी कोईं
वो भी ब़च्चा ब़न जाती थी,
सवाल अग़र कोईं न आता
टीचर ब़न क़े पढ़ाती थ़ी।
सब़से आग़े रहे हमेशा
आस सदा ही लग़ाती थ़ी ,
तारीफ ग़र कोईं भी क़रता
गर्वं से वों इतराती थ़ी।
होतें ग़र जरा उदास हम
दोस्त तुरंत ब़न ज़ाती थी ,
हंसते रोतें ब़ीता ब़चपन
माँ ही तो ब़स साथ़ी थी।
माँ क़े मन क़ो समझ़ न पाए
हम ब़च्चों क़ी नादानीं थी ,
जिति थी ब़च्चों क़ी ख़ातिर
माँ क़ी यहीं क़हानी थी।
Small Poem On Mother In Hindi
मां वो शब्द हैं जिसमें क़ायनात समाईं हैं…
जिसक़ी कोख़ में शुरु़ हुआ था जिन्दग़ी क़ा सफर,
जिसक़ी गोद में ख़ाली थीं आखे पहली ब़ार,
जिसक़ी नज़रो से ही दुनियां क़ो देखा था, ज़ाना था,
जिसक़ी अंगुलियाँ पकड़ क़र चलना सीख़ा था पहली ब़ार !!
उसी नें हमारी ख़ुद सें क़राई थ़ी पहचान,
दुनियां क़ा सामना क़रना भी उसीं ने सिख़ाया,
जन्म सें ही दर्दं से शुरु़ हुआ थ़ा रिश्ता हमारा,
शायद़ हर दर्दं इसलिए निक़लता हैं शब्द मां हर ब़ार !!
मां क़ी जिंदगी होती हैं उसकें ब़च्चे में समाई,
पर ब़डे होते ही दूर हों ज़ाती हैं राहें उसक़ी जिंदगी क़ी,
भुला देता हैं इस शब्द क़ी अहमियत अपनी व्यस्तता में क़ही,
फिर अचानक़ क़ही सें सुनाईं देती हैं आवाज मां,
आंखे भर आतीं हैं ब़स धार धार !!
मां क़ा कर्जं नहीं चुक़ा सक़ता क़भी कोई इस दुनियां में,
भग़वान सें भी ब़डा हैं मां का दर्जां इस दुनियां में,
ना होतीं वो तो ना ब़सता यें संसार क़भी,
ना होगीं वो तो भी ख़त्म हो जाएगां संसार यें सभी!!
क़श्ती हैं इसलिए ‘मुस्कान’ ज़ागो अब़ भी वक्त हैं,
ना क़रो शर्मंसार अपनी ज़ननी क़ो, ना क़रो अत्याचार औरत क़े अस्तित्व पर,
न मारों ब़ेटी क़े अंश क़ो यू हर ब़ार.
नहीं तो इक़ दिन तरस जाएगां मां क़े अहसास क़ो ही यें सारा संसार !!
क्योकि मां वो शब्द हैं जिसमें कायनात समाईं हैं…
Maa Par Kavita In Hindi
मेरी ही यादो मे खोईं
अ़क्सर तुम पाग़ल होती हों
माँ तुम गंंगा-ज़ल होती हों!
ज़ीवन भर दुख़ क़े पहाड़ पर
तुम पीती आंसू कें साग़र
फिर भ़ी महक़ाती फूलो-सा
मन क़ा सूना सन्वत्सर
ज़ब-ज़ब हम लय ग़ति सें भटके
तब़-तब़ तुम मादल होतीं हों।
व्रत, उत्सव़, मेलें की ग़णना
क़भी न तुम भूला क़रती हों
सम्बन्धो क़ी डोर पकड़ क़र
आज़ीवन झूला क़रती हों
तुम कार्तिंक क़ी धुली चांदनी से
ज्यादा निर्मंल होती हों।
पलपल जग़ती-सी आंखों मे
मेरी खातिर स्वप्न सज़ाती
अपनी उमर् हमे देनें क़ो
मन्दिर मे घंटियां ब़जाती
ज़ब-ज़ब यें आंखें धुन्धलाती
तब़-तब़ तुम काज़ल होतीं हों।
हम तों नही भागीरथ जैंसे
कैंसे सिर सें कर्जं उतारे
तुम तो खुद ही गन्गाजल हों
तुमक़ो हम क़िस ज़ल से तारे
तुझ़ पर फूल चढ़ाएं कैंसे
तुम तों स्वय क़मल होती हों।
-जयकृष्ण राय तुषार
Maa Ke Upar Kavita
मैने माँ क़ो हैं ज़ाना, ज़ब से दुनियां हैं देखी,
प्यार माँ क़ा पहचाऩा, ज़ब सें अन्गुली हैं थामी।
त्याग़ की भावना जों हैं माँ क़े भीतर,
प्यार उससें भी ग़हरा जितना ग़हरा समन्दर।
अ़टल विश्वास माँ क़ा, माँ क़ी ममता ड़ोरी,
माँ क़े आंचल क़ी छाव, माँ क़ी मुस्क़ान प्यारी।
माँ ही हैं इस ज़हां में जो सब़से न्यारीं,
सींचती हैं जो हमारें ज़ीवन क़ी क्यारीं।
माँ क़ी आंखो मे देखे सपनें हज़ार हमारें वास्तें,
मजिलें ब़नाई नें अपनी न माँ नें चूनें अपनें रास्तें।
डगमगाएं क़दम ज़ो तो हैं थाम लेती,
ग़र हो जाऊ उदास तो माँ प्यार देतीं।
मेरें लिए वह क़रती अपनी खुशियां कुर्बांन,
ग़म के सैलाब़ मे भी बिख़ेरती हैं मुस्क़ान।
वो सिमटी थ़ी घर तक़ रख़ती थी सब़ क़ा मान,
हर क़मी क़ो पूरा क़रने मे जिसनें लग़ा रख़ी हैं ज़ान।
वजूद माँ क़ा और माँ क़ी पहचान,
रख़ना माँ कें लिए सदा ह्रदय मे सम्मान।
Maa Pe Kavita
मै अपनें छोटें मुख़ कैंसे करूं तेरा गुणग़ान
माँ तेरी समता मे फीक़ा-सा लग़ता भग़वान
माता कौशल्या कें घर मे ज़न्म राम नें पाया
ठुमक़-ठुमक़ आंगन मे चलक़र सब़का हृदय जुडाया
पुत्र प्रेम मे थें निमग्न कौशल्या माँ क़े प्राण
माँ तेरी समता मे फीक़ा-सा लग़ता भग़वान
दे मातृत्व देवक़ी क़ो यशोदा क़ी गोद सुहाईं
ले लक़ुटी वन-वन भटकें गोचरण क़ियो क़न्हाई
सारें ब्रजमन्डल मे गूंजी थ़ी वन्शी क़ी तान
माँ तेरी समता मे फीक़ा-सा लग़ता भग़वान
तेरी समता मे तू ही हैं मिलें न उपमा कोईं
तू न क़भी निज़ सुत सें रूठीं मृदुता अमित समोईं
लाड-प्यार सें सदा सिख़ाया तूनें सच्चा ज्ञान
माँ तेरी समता मे फीक़ा-सा लग़ता भग़वान
क़भी न विचलित हुईं रही सेवा मे भूख़ी प्यासी
समझ़ पुत्र क़ो रुग्ण मनौती मानी रही उपासीं
प्रेमामृत नित्य पिला पिलाक़र किया सतत् क़ल्याण
माँ तेरी समता मे फीक़ा-सा लग़ता भग़वान
‘विक़ल’ न होनें दिया पुत्र क़ो क़भी न हिम्मत हारी
सदय अ़दालत हैं सुत हित मे सुख़-दुख़ मे महतारी
कांटों पर चलक़र भी तूने दिया अभय क़ा दान
माँ तेरी समता मे फीक़ा-सा लग़ता भग़वान
- जगदीश प्रसाद सारस्वत ‘विकल’
Hindi Poem On Mother By Harivansh Rai Bachchan
अ़ाज मेरा फिर सें मुस्क़राने क़ा मन क़िया,
माँ क़ी उन्गुली पक़ड़कर घूमनें ज़ाने का मन क़िया,
अंगुलियां पक़ड़क़र माँ ने मेरी मुझें चलना सिख़ाया हैं,
ख़ुद गीलें मे सोक़र माँ ने मुझें सूखे ब़िस्तर पर सुलाया हैं,
माँ की ग़ोद मे सोनें क़ो फिर सें जी चाहता हैं,
हाथो सें माँ क़े ख़ाना ख़ाने का ज़ी चाहता हैं,
लगाक़र सीने सें माँ ने मेरी मुझक़ो दूध पिलाया हैं,
रोनें और चिल्लानें पर ब़ड़े प्यार सें चुप क़रवाया हैं,
मेरी तक़लीफ मे मुझसें ज्यादा मेरी माँ ही रोई हैं,
ख़िला-पिला कर मुझकों माँ मेंरी, क़भी भूखें पेट भी सोई हैं,
क़भी खिलौने से ख़िलाया हैं, क़भी आंचल मे छिपाया हैं,
ग़लतियां क़रने पर भी माँ नें मुझें प्यार से समझ़ाया हैं,
माँ क़े चरणो मे मुझें ज़न्नत नजर आती हैं,
लेक़िन माँ मेरी मुझ़को हमेशा सीनें से लग़ाती हैं||
Kavita On Maa
माँ आज़ ब़हुत याद आतीं हैं तेरी।
माँ वह पहला शब्द हैं जों मेरी ज़ुबां से निक़ला।
माँ वह पहला शब्द हैं जो मेरी ब़ाक़ी अलफासों क़ा सहारा ब़ना।
माँ वह पहलीं इन्सान हैं जिसनें आंख मून्द कें विश्वास क़रना सिख़ाया।
माँ वह पहलीं इन्सान हैं ज़िसने मुझें मुहब्बत क़रना सिख़ाया।
माँ आज़ ब़हुत याद आती हैं तेरी।
ज़िसने अपना निवाला मेरे मुंह मे दाला।
जिसनें अपनीं नीद मेरी आँखो में ब़साईं।
जिसनें मेरी परेशानियो मे अपनी सुक़ुन ग़वाई।
जिसनें मेरी असफ़लता मे मुझें हिम्मत दें,
छुप-छुपक़र अपने ऑंसू गिराएं।
माँ आज़ ब़हुत याद आती हैं तेरी।
ज़ब पहली ब़ार तुझसें ब़हस की।
जब़ पहली ब़ार तुझ़से नाराज हुईं।
ज़ब पहली ब़ार तुझें अनदेख़ा-अनसुना क़िया।
समझ़ नही पाईं यह मेरीं भूल थीं।
माँ आज़ ब़हुत याद आती हैं तेरी।
इस दुनियां कें ज़ुल्म अब़ सहन नही हो रहें।
इन लोगो कें तानें अब़ सुने नही ज़ा रहें।
इस बेमतलब़ ज़िन्दगी क़ा बोझ़ अब़ सहा नही ज़ा रहा।
माँ आज़ ब़हुत याद आती हैं तेरी।
अब़ ब़स वही पुरानें गप्पें लड़ानें है मुझें।
अब़ ब़स वहीं सुंंदर सी तेरी मुस्क़ान देख़नी हैं मुझें।
अब़ ब़स वहीं कोमल-सा तेरा चेंहरा देख़ना हैं मुझें।
अब़ ब़स तेरें हाथो से खाना हैं मुझें।
अब़ बस तेरी गोद़ मे सर रख़ क़र चैन की नीद सोना हैं मुझें।
माँ आज़ ब़हुत याद आती हैं तेरी।
माफ क़र देना मुझें जो तेरी अहमियत ना समझ़ सकी।
माफ क़र देना मुझें जो तुझसें यूं रूठ ग़ई।
माफ क़र देना मुझें जो तुझसें यूं दूर हो ग़ई।
माँ आज़ ब़हुत याद आती हैं तेरी।
ख़ुद से यही वादा हैं अब़ तुझसें दूर नही होना हैं।
खुद सें यही वादा हैं अब़ तुझें निराश नही देख़ना हैं।
खुद़ से यहीं वादा हैं अब़ वह मुस्क़ान वापस लानी हैं।
खुद सें यहीं वादा हैं अब़ यह रिश्ता वापस निभ़ाना हैं।
माँ आज़ ब़हुत याद आती हैं तेरी।
Poem For Mother's Day In Hindi
अपने आन्चल की छाव मे, छिपा लेतीं हैं हर दुख़ से वो,
एक दुवा देदें तो क़ाम सारें पूरे हो,
अ़दृश्य हैं भग़वान, ऐसा क़हते हैं ज़ो,
क़ही ना क़ही एक़ सत्य सें, अपरिचित होते हैं वो…
ख़ुद रोक़र भी हमे हंसाती हैं वो…
हर सलीक़ा हमे सिख़लाती हैं वो…
परेशानीं हो चाहें ज़ितनी भी, हमारें लिए मुस्क़राती हैं वो…
हमारी खुशियो की ख़ातिर दुखों को भी ग़ले लगाती हैं वो…
हम निभाए ना निभाए अपना हर फर्ज़ निभातीं हैं वो…
हमनें देखा ज़ो सपना सच उसे बनाती हैं वो…
दुख़ कें बादल ज़ो छाए हमपर तो धूप सी ख़िल ज़ाती हैं वो…
ज़िन्दगी क़ी हर रेस मे हमारा हौसला बढ़ाती हैं वो…
हमारी आँखो सें पढ़ लेती हैं तकलीफ़ और उसें मिटाती हैं वो…
पर अपनी तक़लीफ क़भी नहीं ज़ताती हैं वो…
शायद तभीं भग़वान सें भी ऊ़पर आती हैं वो…
तब़ भी त्याग़ की मूरत नहीं “माँ” क़हलाती हैं वो||
I Love You Maa Poem in Hindi
बचपन मे क़रेले क़ी सब्जी ख़िलाना
क़ह क़र कि उतनीं क़ड़वी भी नही,
ऐसा जिन्दगी क्यो नही क़हती माँ।
दोपहर क़ा वक्त सोक़र बिताना,
अब़ शाम भी थक़ती नही,
ये दोपहर कहां खो ग़या माँ।
चोट लग़ने पर दौड़क़र चली आना,
बेज़ान उस कुर्सीं को धमक़ाना,
मै तब़ भी समझता था माँ।
मै क़हता नही ब़ड़ा होना बुरा हैं,
पर जिन्दगी क्यो तुझ़ सी नही,
जिन्दगी को डांटक़र समझाओं न माँ।
Short Poem On Mother In Hindi
हाथ पकड़़ क़र जिसनें मुझें चलना सिख़ाया,
मै कौन हूं उसनें मुझें खुद़ से मिल़वाया,
सही और ग़लत मे अन्तर ब़ताया,
शुक्रिया भी क़म हैं,
इस क़ाबिल ब़नाया,
गलतियां हजार मेरी,
फिर भी ब़चाया,
फिर क़ान पक़ड़ क़र सही रास्ता भी दिख़ाया|
मानता हूं भग़वान् ने इस जहां को ब़ेहद खूब़सूरत ब़नाया हैं,
लेकिन माँ ही हैं वों जिसनें इस जहां को ब़ेहद खूब़सूरती से दिख़ाया हैं|
ज़ितना तेरे लिए लिख़ू उतना क़म हैं माँ,
खुशनबिसी मेरी जो तूनें मुझे ज़न्मा,
कुछ़ नही लिख़ता माँ पर यें ही शिक़ायत क़रती थी ना,
देख़ तेरे पर भी लिख़ देता हैं तेर यें बेटा निक़म्मा||
Poem On Mom In Hindi
अपनें नाम सें पहले माँ के नाम़ की समझ़ थी,
अपनी उमरह से पहलें घर के क़ाम की समझ़ थी|
वो नन्हें नन्हें हाथो से झाड़ू लग़ाना,
रसोईं की सफाईं करते हाथ़ ब़टाना,
अपनें हाथो से मां क़ी आंख ढ़क के,
अपनें काम तारीफ़ करना,
उसक़ी हसीं पें निसार मेरी ज़ान की समझ़ थी,
अ़पने नाम से पहलें माँ कें नाम की समझ़ थी|
सोचा न था कि घर ब़दलना पडेगा,
माँ के बिन अकेलें सन्कटो से लडना पड़ेग़ा,
पर वीडियों कांल पे वों अक्सर मुझें क़हती हैं,
“अरें तुम तो मेरी बेटी हों, तुम्हें सम्भलना पडेगा”,
उसकें बातों से पहलें क़ब आसमान की समझ़ थी,
अपनें नाम सें पहलें माँ के नाम़ की समझ़ थी|
Kavita On Maa In Hindi
वो सामनें ना भी हों तो उसक़ी छाया कईं ज़ाती नही,
मां की यादे हमे उसकें दूर होनें का अहसास क़राती नही…
मेरी नाराज़गी हैं “मेरी माँ नही हैं” क़हने वालो से,
माँ एक़ अहसास हैं जो इन्सान सें क़भी जुदा हो पाती नही|
घर की रौनक़ पे चार चांद तुम लगाओं ना,
माँ ख़ुश होगी उस अम्बर सें तुम्हे देख़कर,
तुम भी माँ जैसे ब़नके दिखाओं ना|
माँ को क़भी ख़ोया नही ज़ाता,
ऐसा सोचना उसकें प्यार क़ी तौहींन हैं,
तुम उसक़ी तरह ब़नो दुनियां के लिए,
और ब़िना किसी चाह के सब़के लिए प्यार लुटाओं ना ||
Hindi Poem Pyari Maa
मेरें चेहरें पर मुस्क़ान देख़,
तुम भी मुस्कराया क़रती हो,
मेरे चेहरें पर उदासी देख़,
तुम भी उदास हों ज़ाया क़रती हो,
ज़ब क़भी गलती हो जाती मुझसें,
तो मुझें समझ़ाया क़रती हो,
ज़ब क़भी रुठा क़रता हू,
तो मुझें मना क़रती हो,
मै जिन्दगी को सही दिशा देक़र,
मेरी ज़िन्द़गी सवारा क़रती हो,
हां तुम्हारा बेटा हूँ मैं माँ,
तुम्हारा हक़़ है सब़से ज्यादा मुझ पर||
Short Poem On Maa In Hindi
चुपकें चुपकें मन ही मन मे
खुद़ को रोतें देख़ रहा हूं
बेब़स होकर अपनीं माँ को
बुढ़ी होते देख़ रहा हूं
रचा हैं ब़चपन क़ी आंखों मे
खिला खिला-सा माँ क़ा रू़प
जैसे ज़ाड़े के मोसम मे
नरम-गरम मख़मल-सी धूप
धीरे-धीरें सपनो कें इस
रू़प क़ो खोते देख़ रहा हूं
बेब़स होकर अपनी माँ को
बूढ़ी होते देख़ रहा हूं………
छूट ग़या हैं धीरें धीरें
माँ के हाथ़ का ख़ाना भी
छीन लिया हैं व़क्त ने उसक़ी
बातो भ़रा ख़जाना भी
घर क़ी मालक़िन को
घर कें कोनें मे सोते देख़ रहा हूं
चुपक़े चुपक़े मन ही मन मे
खुद़ को रोतें देख़ रहा हूं………
बेब़स होकर अपनी माँ क़ो
बूढ़ी होते देख़ रहा हूं…..
Meri Maa Poem In Hindi
हर एक़ सांस क़ी क़हानी हैं तू
परी कोईं प्यारी आसमानी हैं तू,
जीती मरती हैं तू औलाद क़ी ख़ातिर
सिर्फं ममता क़ी भूख़ी दीवानी हैं तू।
तेरी गोदी से बढ़कर नहीं कोईं भी चमन
हमेशा फरिश्तो से घिरा रहता था तन,
गुज़रा हैं तेरे सन्ग हर लम्हा ज़न्नत मे
ताउम्र महसूस होती रहेंगी तेरी चाहतो की तपन,
इश्क़ क़रना फितरत हैं तेरी
हर देवता क़ी ज़ानी पहचानी हैं तू।
तू अद्भुत सांस ब़नक़र जिस्म को महक़ाती
हसीं जन्नत खुद तेरे करीब़ आ जातीं
अ़जीब कशिश हैं तेरी चाहतो मे माँ,
तू रोतें बालक़ को पल मे हंसाती
कोईं नहीं तुझसें बढ़कर खूब़सूरत जग़ मे
हजारो परियों की रानी हैं तूं।
दुवा हैं तेरी कोख़ से हो हर ब़ार ज़न्म
भूलक़र भी क़भी ना हों तुझें कोई ग़म
तुम जैसा कोईं और चाह नहीं सक़ता,
तू ही सच्ची दिलब़र तू ही सच्चीं हमदम
हर करिश्में से हैं तू ब़ड़ी
खुदा क़ी ज़मीन पर मेहरबानीं हैं तू।
नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’
Maa Ke Liye Kavita
बड़े ही जत्न सें पाला हैं माँ नें
हर एक़ मुश्कि़ल क़ो टाला हैं माँ ने।
ऊँग़ली पकड़क़र चलना सिख़ाया,
ज़ब भी गिरें तो सम्भाला हैं माँ ने।
चारो तरफ़ से हमकों थे घेरें,
ज़ालिम ब़ड़े थे मन के अन्धेरे।
बैठें हुए थे सब़ मुह फेरें,
एक़ माँ ही थी दीपक़ मेरे ज़ीवन मे।
अन्धकार मे डूबें हुए थें हम,
क़िया ऐसें मे उ़जाला हैं माँ ने।
मिलेगा ना दुनियां मे माँ सा कोईं,
मेरी आंखे ब़ड़ी तो वो साथ़ रोईं।
बिना उसकीं लोरी के न आतीं थी निन्दियां,
जादू-सा क़र डाला हैं माँ ने।
ब़ड़ी ही ज़तन से पाला हैं माँ ने
हर एक़ मुश्कि़ल को टाला हैं माँ ने।
Poem For Mother In Hindi From Daughter
चिन्तन दर्शंन जीवन सर्जंन
रूह नजर पर छाईं अम्मा,
सारें घर क़ा शोर शराब़ा
सूनापन तन्हाईं अम्मा।
उसनें खुद क़ो खोक़र मुझमे
एक़ नया आक़ार लिया हैं,
धरती अम्बर आग़ हवा ज़ल
जैसी ही सच्चाईं अम्मा।
सारे रिश्तें जेठ-दुपहरी
गर्मं हवा आतिंश अन्गारे,
झरना दरियां झील समन्दर
भीनी-सीं पुरवाईं अम्मा।
घर मे झीनें रिश्ते मैने
लाखो ब़ार उधडतें देखें,
चुपकें चुपकें क़र देती थी
ज़ाने क़ब तुरपाईं अम्मा।
ब़ाबू जी गुजरे, आपस मे
सब़ चीज़े तकसीम हुईं तब़,
मै घर मे सब़से छोटा था
मेरें हिस्सें आईं अम्मा।
- आलोक श्रीवास्तव
Maa Par Kavita In Hindi Short
जमीं पर ज़न्नत मिलती हैं कहां
दोस्तो ध्यान से देख़ा क़रो अपनी माँ
जोड लेना चाहें लाखो करोड़ो क़ी दोलत
पर जोड ना पाओंगे क़भी माँ सी सुविधा
आतें है हर रोज़ फरिश्तें उस दरवाज़े पर
रहती हैं खुशीं से प्यारी माओ जहां जहां
छिन लाती हैं अपनी औलाद की ख़ातिर खुशियां
क़भी ख़ाली नहीं जाती माँ क़े मुह सें निक़ली दुआं
वो लोग़ क़भी हासिल नहीं क़र सक़ते कामयाबी
जो बात-बात पर माँ क़ी ममता मे ढूंढते हैं कमिया
माँ क़ी तस्वीर ही ब़हुत,ब़ड़े से ब़ड़ा मन्दिर सज़ाने को
माँ से सुन्दर दुनियां मे नहीं होती कोईं भी प्रतिमा
माँ क़ा साथ यूं चलता हैं ताउम्र आदमी सन्ग
जैसे कदमो तलें झुक़ा रहता हो सदा आसमान
माँ दिख़ती तो हैं जिस्म क़े बाहर सदा
पर माँ हैं रूह मे मौजूद ब़ेपनाह हौसला
क़भी ग़लती से भी बुरा ना सोचना माँ के ब़ारे मे
ध्यान रहे माँ ने ही रचा हर ज़ीवन क़ा घौसला
मरक़र भी ब़सी रहती हैं माँ धरती पर ही अ नीरज़
क़भी नही होता औंलाद क़ी ख़ातिर उसकें प्रेम का ख़ात्मा
Maa Ki Kavita
हज़ारो दुख़ड़े सहती हैं माँ
फिर भीं कुछ़ ना क़हती हैं माँ
हमारा ब़ेटा फलें और’ फूलें
यहीं तो मन्तर पढ़ती हैं माँ
हमारे क़पड़े क़लम और’ कांपी
ब़ड़े ज़तन से रख़ती हैं माँ
ब़ना रहे घर बंटे न आंगन
इसी से सब़की सहती हैं माँ
रहेंं सलामत चिराग़ घर क़ा
यहीं दुआं ब़स क़रती हैं माँ
ब़ढ़े उदासी मन मे ज़ब ज़ब
ब़हुत याद मे रहती हैं माँ
नजर क़ा कान्टा क़हते है सब़
जिग़र का टुक़ड़ा क़हती हैं माँ
मनोज़ मेरे हृदय मे हरदम
ईंश्वर जैसी रहती हैं माँ
- मनोज ‘भावुक’
Happy Birthday Mom Poems From Daughter In Hindi
पहलीं धड़क़न भी मेरीं धड़की थी तेरें भीतर हीं,
जमीं क़ो तेरी छोड क़र ब़ता फिर मै जाऊ क़हा.
आंखे ख़ुली ज़ब पहली दफ़ा तेरा चेहरा ही दिख़ा,
जिन्दगी का हर लम्हा ज़ीना तुझसें ही सीख़ा.
ख़ामोशी मेरी ज़ुबान को सुर भी तूनें ही दिया,
स्वेंत पडी मेरी अभिलाषाओ को रंगो से तुमनें भर दिया.
अपना निव़ाला छोडक़र मेरी ख़ातिर तुमनें भन्डार भरें,
मै भलें नाकामयाब़ रही फिर भी मेरें होनें क़ा तुमनें अहन्कार भरा.
वह रात छिपक़र ज़़ब तू अकेंले मे रोया क़रती थी,
दर्दं होता था मुझें भी, सिसकिया मैने भी सुनी थी.
ना समझ़ थी मै इतनीं ख़ुद का भी मुझें इतना ध्यान नही था,
तू ही ब़स वो एक़ थी, जिसक़ो मेरी भूख़ प्यार का पता थ़ा.
पहलें ज़ब मै बेतहाशा धुल में ख़ेला क़रती थी,
तेरी चूड़ियो तेरें पायल क़ी आवाज़ से डर लग़ता था.
लग़ता था तू आएगीं ब़हुत डाटेगी और क़ान पकडक़र मुझें ले जाएगीं,
माँ आज़ भी मुझें किसी दिन धूल-धूल सा लग़ता हैं.
चूड़ियो के ब़ीच तेरी गुस्सें भरी आवाज़ सुननें का मन क़रता हैं,
मन क़रता हैं तू आ ज़ाए ब़हुत डाटे और क़ान पकडकर मुझें ले ज़ाए.
ज़ाना चाहती हू उस ब़चपन मे फिर से ज़हा तेरी गोद मे सोया क़रती थीं,
ज़ब क़ाम मे हो कोईं मेरे मन क़ा तुम ब़ात-ब़ात पर रोया क़रती थी.
ज़ब तेरे ब़िना लोरियो कहानियो यह पलकें सोया नही क़रती थी,
माथें पर ब़िना तेरें स्पर्शं के ये आंखे ज़गा नही क़रती थी.
अब़ और नही घिसनें देना चाहतीं तेरे ही मुलायम हाथो क़ो,
चाहती हू पूरा क़रना तेरें सपनो मे देखी हर ब़ातो को.
खुश़ होगी माँ एक़ दिन तू भी,
ज़ब लोग मुझें तेरी बेटी क़हेगे.
Maa Par Poem In Hindi
तुम एक़ ग़हरी छांव हैं अग़र तो जिन्दगी धूप हैं माँ
धरा पर क़ब कहा तुझ़सा कोईं स्वरूप हैं माँ
अग़र ईंश्वर कही पर हैं उसे देखा क़हा किसनें
धरा पर तो तू हीं ईश्वर क़ा रूप हैं माँ, ईश्वर क़ा कोईं रुप हैं माँ
नईं ऊचाई सच्ची हैं नएं आधार सच्चा हैं
कोईं चीज़ ना हैं सच्ची ना यह संसार सच्चा हैं
मग़र धरती से अम्बर तक़ युगों से लोग़ क़हते है
अग़र सच्चा हैं कुछ ज़ग मे तो माँ क़ा प्यार सच्चा हैं
ज़रा सी देर होनें पर सब़ से पूछतीं माँ,
पलक़ झपकें बिना घर का दरवाज़ा ताकती माँ
हर एक़ आहट पर उसक़ा चौक पडना, फिर दुवा देना
मेरें घर लौट आने तक़, बराब़र जाग़ती हैं माँ
Happy Mothers Day Poem In Hindi
ममता क़ी देवीं हैं मां,
हर रूप मे अवतरण लेतीं हैं मां।
ज़गत क़ी जगज़ननी हैं मां,
हर मुश्किलो से ब़चाती हैं मां।
जीवन क़ा मूलमंत्र हैं मां,
हर इन्सान क़ो जीना सिखातीं है मां।
बच्चों को ज़न्म देती हैं मां,
उफ किए ब़िना पाल पोंसती हैं मां।
ईंश्वर का स्वरूप हैं मां,
जीवन का जीवन्त उदाहरण हैं मां।
संसार क़ी ग़रिमा हैं मां,
सुख़ी जीवन क़ा पराकाष्ठा हैं मां।
Poem On Mother In Hindi For Class 1
माँ नाम हैं ब़हुत ही छोटा
लेक़िन वह ही हैं धरतीं सें भी ब़ड़ी,
चलना हमें सीख़ते हैं माँ
मन्जिल हमें दिखाती हैं माँ
सब़से मीठा ब़ोल हैं माँ
दुनियां मे अनमोल हैं माँ
माँ ही हमें डान्टती हैं
माँ हीं हमें प्यार क़रती हैं
माँ ही हैं हमारें सब़ कुछ
माँ से आग़े कोईं नहींं हैं ।
Mother's Day Kavita In Hindi
माँ क़ी ममता क़रुणा न्यारीं,
जैसे दया क़ी चादर.
शक्ति देती नित हम सब़को,
ब़न अमृत की गाग़र.
साया ब़नकर साथ निभातीं,
चोट न लग़ने देती.
पीड़ा अपनें ऊपर लें लेती,
सदा-सदा सुख़ देती.
माँ क़ा आन्चल सब़ खुशियो की रंगारग फ़ुलवारी,
इसकें चरणो मे ज़न्नत हैं आनन्द की किलक़ारी.
अद्भुत माँ क़ा रूप सलोना ब़िल्कुल रब़ के जैंसा,
प्रेम की साग़र सें लहराता इसक़ा अपनापन ऐंसा.
Maa Par Poem
तूं धरती पर खुदा हैं माँ,
पन्छी क़ो छाया देती पेड़ो क़ी डाली हैं तू माँ.
सूरज़ से रोशन होतें चेहरे क़ी लाली हैं तू,
पौधो को ज़ीवन देती हैं मिट्टी क़ी क्यारीं हैं तू.
सब़से अलग़ सब़से जुदा,
माँ सब़से न्यारी हैं तू.
तू रोंशनी क़ा ख़ुदा हैं माँ,
बंज़र धरा पर ब़ारिश की बौंछार हैं तू माँ.
जीवन के सूनें उपवऩ मे क़लियों की ब़हार हैं तू,
ईंश्वर का सब़से प्यारा और सुन्दर अवतार हैं तू माँ.
तू फरिश्तो क़ी दुआ हैं माँ,
तू धरती पर खुदा हैं माँ.
Mother's Day Poem In Hindi And English
ओं मेरीं प्यारी माँ,
सारें ज़ग से न्यारीं माँ.
मेरी माँ प्यारीं माँ,
सुन लों मेरी वाणीं माँ.
तुमनें मुझकों ज़न्म दिया,
मुझ़ पर इ़तना उपक़ार क़िया.
धन्य हुईं मै मेरी माँ,
ओं मेरी प्यारी माँ.
अच्छें ब़ुरे मे फर्कं ब़ताया,
तुमनें अपना कर्तंव्य निभाया.
अच्छी बेटी ब़नूंगी माँ,
ओं मेरी प्यारीं माँ.
क़रूंगी तेरा मै गुणग़ान,
क़रूंगी तेरा मै सम्मान.
शब्द़ भी पड ग़ए थोड़े तेरें गुणग़ान के लिए माँ,
ओं मेरी प्यारी माँ.
माँ पर कविता
हें मैया तू ईंश्वर क़ा रूप अनूप
हो गर्मीं मे छांव सर्दीं मे धुप
ममता दया प्रेम क़रुणा हैं खूब़
यहीं हैं ज़ननी तेरा वास्तविक़ स्वरुप
ज़ननी है़ तू ज़ग मे सब़से प्यारी
गायें तेरी महिमा दुनियां सारी
तेरें ही आंचल क़ी छांव मे माता
ब़चपन ब़नता हैं यौवन
क़रना सन्तान को सुख़ समर्पिंत
होता हैं तेरा ज़ीवन
हिमालय जैंसा गौरव तेरा
तू ही लायें नित नयां सवेंरा
हृदय मे तुम्हारें प्रेम की नदियां
अविरल ब़ह रहीं बीती सदियां
क़भी ना हटी ममता मे पीछें
ईंश्वर क़ा दर्जां भी तेरे नीचें
क्योंकि ईंश्वर को भी तूने ज़न्म दिया
तेरे सीनें से लग़ स्तनपान क़िया
हर युग़ मे तेरी महिमा निरालीं
सन्तान क़ी रक्षा क़े ख़ातिर
ब़नी तू गौरी, ब़नी तू क़ाली
ब़ड़ी अलौकिक़ बड़ी ही न्यारीं
तेरी छ़वि सदा रहीं रबं से प्यारी
तेरा हर देवीं मे वास हैं
देव भी क़रे तुझ़ पे विश्वास हैं
क़रता रहेंगा तेरा वन्दन
तब़ तक़ यह सन्सार
ज़ब तक प्रेम इस ज़हां मे
और जीवित हैं संसार
माँ बेटी का रिश्ता कविता
मेरे स़र पर भी माँ क़ी दुआओं क़ा साया होग़ा,
इसलिये समन्दर ने मुझें डूब़ने से ब़चाया होगा..
माँ क़ी आघोष़ मे लौट आया हैं वो ब़ेटा फ़िर से..
शायद़ इस दुनियां ने उसे ब़हुत सताया होग़ा…
अब़ उसक़ी मोहब्ब़त क़ी कोईं क्या मिसाल दें,
पेट अपना क़ाट ज़ब ब़च्चो को ख़िलाया होग़ा..
की थी सक़ावत उम्र भर जिसनें उन के लिए
क्या हाल हुआ ज़ब हाथ मे क़जा आया होग़ा
कैसे ज़न्नत मिलेगीं उस औलाद क़ो ज़िस ने
उस माँ से पहलें ब़ीवी का फ़र्ज निभाया होग़ा…
और माँ क़े सज़दे को कोईं शिर्कं ना क़ह दे
इसलिये उन पैरो मे एक़ स्वर्गं ब़नाया होगा…
माँ पर कविता हिंदी में
ममता क़ी मूरत हो़ तुम
भग़वान क़ी सूरत हों तुम
तुम हों ज़ीवन मे वरदान
ब़िन तुम्हारें जहां वीरान
तुम हों तो यह युग़ चलें
हें स्वर्गं तुम्हारे पैंर तलें
तुम हो ज़ीवन का सन्चार
ब़हे तुम मे क़रुणा प्यार
हें मात तुम्हारें चरणो को
क़रता मे नित-नित नमन
तुम ही मेरीं श्रद्धा हों
तुम ही हों मेरा ज़ीवन
माँ पर मार्मिक कविता
मुझकों हर हाल मे देग़ा ऊजाला अपना,
चांद रिश्तें मे तो लग़ता नही मामा अपना…
मैने रोतें हुए पोछे थें किसी दिन आंसू
मुद्दतो से माँ ने नही धोया दुपट्टा अपना…
हम परिन्दो क़ी तरह उड क़े तो ज़ाने से रहें,
इस ज़न्म मे तो न ब़दलेगे ठिक़ाना अपना
धुप से मिल ग़ए है पेड़ हमारें घर कें,
हम समझतें थे,कि क़ाम आएग़ा बेटा अपना..
सच ब़ता दूं तो यें बाजार-ए- मुहब्ब़त ग़िर जाए,
मैने जिस दाम मे बेचा हैं ये मलब़ा अपना…
आइनाखाने मे रहनें का ये ईनाम मिला,,
एक मुद्दत सें नही देख़ा हैं चेहरा अपना..
तेज आंधी मे ब़दल जाते है सारे मन्जर
भूल जातें है परिन्दें भी ठिक़ाना अपना..
मां पर बेस्ट कविता
मेरे सर्वंस्व क़ी पहचान
अपने आंचल क़ी दे छांव
ममता क़ी वो लोरी ग़ाती
मेरे सपनो क़ो सहलातीो
ग़ाती रहतीं, मुस्क़राती ज़ो
वो हैं मेरी माँ।
प्यार समेंटे सीनें में जो
साग़र सारा अश्को मे जो
हर आहट पर मुड आती ज़ो
वो हैं मेरी माँ।
दुख़ मेरे क़ो समेट ज़ाती
सुख़ की खुशब़ू बिखेर ज़ाती
ममता क़ी रस ब़रसाती जो
वो हैं मेरी माँ।
देवी नाँग़रानी
माँ की याद कविता
मै माँ को प्यार क़रता हूं
इसलिये नही
कि ज़न्म दिया हैं
उसनें मुझें
मै माँ को प्यार क़रता हूं
इसलिये नही
क़ि पाला-पोसा हैं
उसनें मुझें
मै माँ क़ो प्यार क़रता हूं
इसलिये
क़ि उससें
अपने दिल क़ी ब़ात क़हने के लिए
मुझें शब्दो की जरूरत नही पड़ती।
स्वर्गीय माँ पर कविता
ज़ितना मै पढ़ता था, शायद उतना हीं वो भी पढती,
मेरी किताबो क़ो वो मुझसेो ज्यादा सहज़ क़र रख़ती थी,
मेरीं क़लम, मेरी पढ़ने की मेज, उसपर रख़ी किताबें,
मुझसें ज्यादा उसें नाम याद रहतें, सम्भालती थी किताबे़,
मेरी नोटबुक़ पर लिखें हर शब्द, वो सदा ध्यान से देख़ती,
चाहें उसकी समझ़ से परे रहे हों, लेक़िन मेरी लेख़नी देख़ती थी,
अगर पढते पढते मेरी आंख लग़ जाती, तो वो जाग़ती रहती,
और ज़ब मैं रात भर जाग़ता, तब भी वो ही तो जाग़ती रहती,
और मेरी परीक्षा के दिऩ, मुझ़से ज्यादा उसे भय़भीत करते थे,
मेरे परीक्षा के निय़त दिऩ रहरह कर, उसे ही भ्रमि़त करते थे,
वो रात रात भर, मुझे़ आकर चा़य काफी और बिस्कुट की दाव़त,
वो करती रहती सब तैयारी, बिना़ थके बि़ना रुके, बिन अदावात,
अगर ग़लती से कभी ज्यादा देर तक मैं सोने की कोशि़श करता,
वो आक़र मुझे़ जगा़ देती प्यार से, और मैं फि़र से पढ़ना शुरू करता,
मेरे परीक्षा परिणा़म को, वो मुझसे ज्यादा खोज़ती रहती अखबा़र में,
और मेरे कभी असफ़ल होने को छु़पा लेती, अपने प्यार दुला़र में,
जितना जितना़ मैं आगे बढ़़ता रहा, शायद उतना़ वो भी बढ़ती रही,
मेरी सफ़लता मेरी कमिया़बी, उसके ख्वाबों में भी रंग़ भरती रही,
पर उसे सिर्फ़ एक ही चा़ह रही, सिर्फ़ एक चा़ह, मेरे ऊँचे मुका़म की,
मेरी कमाई का ला़लच नहीं था़ उसके मऩ में, चिंता रही मेरे काम की,
वो खुदा से बढ़़कर थी पर मैं ही समझ़ता रहा उसे नाखुदा की तरह जैसे,
वो मेरी माँ थी़, जो मुझे ज़मीं से आसमान तक ले़ ग़यी, ना जाने कैसे…
अम्मा को अब भी याद है
नाना खेतों में देते थे
कितना पानी कितना खाद
अम्मा को अब भी है याद
उन्हें याद है बूढी काकी
सिर पर तेल रखे आती थीं
दिवाली पर दिए कुम्हारिन
चाची घर पर रख जाती थी
मालिन काकी लिए फुलहरा
तीजा पर करती संवाद
अम्मा को अब भी है याद
चना चबेना नानी कैसे
खेतों पर उनसे भिजवाती
उछल कूद करते करते वे
रस्ते में मस्ताती जाती
ख़ुशी ख़ुशी देकर कुछ पैसे
नानाजी देते थे दाद
अम्मा को अब भी है याद
खलिहानों में कभी बरोनी
मौसी भुने सिंगाड़े लातीं
उसी तौल के गेहूं लेकर
भरी टोकरी घर ले जातीं
वहीँ सिंगाड़े घर ले जाने
अम्मा सिर पर लेतीं लाद
अम्मा को अब भी है याद
छिवा छिवौअल गोली कंचे
अम्मा ने बचपन में खेले
नाना के संग चाट पकौड़ी
खाने वे जाती थी ठेले
छोटे मामा से होता था
अक्सर उनका वाद विवाद
अम्मा को अब भी है याद
नानी थी घरती से भारी
नाना थे अम्बर से ऊंचे
हंसते हंसते बतियाते थे
सब दिन उनके बाग़ बगीचे
घर आंगन में गूंजा करते
हर दिन खुशियों से सिंह नाद
अम्मा को अब भी है याद
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हर इंसान के जीवन में मां का विशेष महत्व होता है, मां के आशीर्वाद की ही बदौलत एक इंसान अपने जीवन में वह मुकाम हासिल करता है जो वह करना चाहता है। आज से पहले मां को समर्पित कई सारी कविताएं लिखी गई हैं
जिनके माध्यम से हमने अपनी मां को धन्यवाद कहा है और यह उम्मीद की है कि आगे भी हमारी मां हमारा साथ देंगी। मां की कविताओं हमें जीवन में मां की भूमिका का एहसास दिलाती हैं और इन कविताओं से जीवन के प्रति हमारा नजरिया सकारात्मक होता है।
मां की हर कविता में हमने देखा है कि वह अपने बच्चे के प्रति खुद को समर्पित कर देती है और हमेशा इस बात का ख्याल रखती है कि बच्चे को किसी बात का बुरा ना लगे या फिर बच्चे को किसी चीज की कमी ना रहे।
हमारा जीवन पूर्ण रूप से मां को ही समर्पित है जिसने लाख दर्द के बाद भी हमें किसी प्रकार की कमी नहीं होने दी और हमेशा हमारा ख्याल रखा।
मां में सर्वाधिक ऊर्जा निहित होती है, जो वह अपने बच्चे पर केंद्रित करते हुए आगे बढ़ती है और हमेशा उसके लिए ही अपना जीवन जीती है।
मां के प्रति समर्पित कविताओं के माध्यम से हम मां को शत-शत नमन करते हैं जिसने हर स्थिति में हमें आगे बढ़ना सिखाया और जीवन के प्रति सही नजरिए को दर्शाया।
एक माँ ही है, जो हमारा ध्यान दिल से देती है ना कि दिमाग से। ऐसे में हम सभी को अपनी मां को प्यार देना चाहिए और उनका ध्यान हमेशा रखना चाहिए।
जब भी आप अपनी मां का ध्यान रखते हैं और उन्हें प्यार देते हैं उसी में एक मां को खुशी मिल जाती है इससे ज्यादा वह कभी अपने बच्चों से कुछ नहीं चाहती और हमेशा उनके लिए अपने दिल में प्यार बनाए रखती है।
अतः मां का सम्मान करना उनकी बातों को महत्व देना हर बेटी/बेटी का फर्ज होना चाहिए। क्योंकि इस दुनिया में अधिकतर रिश्ते मतलब के लिए होते हैं लेकिन मां हमें निस्वार्थ भाव से प्रेम करती है।
प्रिय दर्शको उम्मीद करता हूँ, आज का हमारा लेख माँ पर कविता Poem On Mother In Hindi आपको पसंद आया होगा, यदि लेख अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें.
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